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भारत-अमेरिका समुद्र-तल केबल साझेदारी: डिजिटल युग की रीढ़

भारत-अमेरिका सम्बन्ध

आज के समय में दुनिया में राजनीतिक तनाव और डिजिटल चीजों पर हमारी निर्भरता बढ़ रही है, ऐसे में भारत और अमेरिका की साझेदारी तकनीक और आर्थिक सहयोग का एक अहम हिस्सा बन चुकी है। अब दोनों देश रणनीतिक क्षेत्रों पर काम कर रहे हैं, और तकनीकी आपूर्ति श्रृंखलाओं को विविध और जोखिम-रहित बनाने की साझा समझ के साथ इस अस्थिर वैश्विक दुनिया में आगे बढ़ रहे हैं।

इसलिए TRUST (Technology for Resilient, Open and Unified Security and Trust) फ्रेमवर्क को विकसित किया जा रहा है, जो भारत-अमेरिका की Critical and Emerging Technology (iCET) पहल का महत्वपूर्ण कदम माना जा सकता है।

भारतअमेरिका सहयोग: व्यापार से समुद्रतल केबल की दिशा में

व्यापार से परे भारतअमेरिका सहयोग
भारत और अमेरिका के बीच तेजी से बढ़ती साझेदारी कई क्षेत्रों में फैल रही है, विशेष रूप से रणनीतिक और तकनीकी क्षेत्रों में।

  • इस दिशा में TRUST फ्रेमवर्क – Technology for Resilient, Open and Unified Security and Trust, जो पहले के iCET (U.S.-India Initiative on Critical and Emerging Technology) का उन्नत रूप है।
  • यह फ्रेमवर्क डिजिटल आपूर्ति श्रृंखलाओं को विविध और जोखिम-मुक्त बनाने की साझा प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
  • राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की आगामी क्वाड सम्मेलन (भारत, ऑस्ट्रेलिया, जापान, अमेरिका) के लिए भारत यात्रा की संभावना बढ़ रही है।

समुद्रतल केबल: एक रणनीतिक अवसंरचना
समुद्र के नीचे बिछी ये केबलें, जो वैश्विक इंटरनेट ट्रैफिक का 95% से अधिक वहन करती हैं, भारत-अमेरिका डिजिटल साझेदारी में एक रणनीतिक केंद्र बिंदु बन चुकी हैं।

  • जब ये केबलें किसी तट पर पहुँचती हैं, तो ये या तो प्रत्यक्ष रूप से उपयोगकर्ताओं से जुड़ती हैं, या फिर ऐसे डेटा सेंटरों से संपर्क करती हैं, जो क्लाउड कंप्यूटिंग और अन्य जरूरी डिजिटल सेवाओं को चलाते हैं।
  • इस संदर्भ में चीन की डिजिटल सिल्क रोड और समुद्र-तल अवसंरचना में उसका आक्रामक विस्तार यह स्पष्ट करता है कि अब विश्वसनीय विकल्पों की आवश्यकता पहले से कहीं अधिक है।
  • ऐसे में भारत और अमेरिका के बीच सुरक्षित और लचीले केबल नेटवर्क पर सहयोग को मजबूत बनाना, वैश्विक डिजिटल संरचना की अखंडता बनाए रखने के लिए अनिवार्य हो गया है।भारत की भू-रणनीतिक क्षमता

समुद्र-तल अवसंरचना के विकास में भारत के पास कई रणनीतिक फायदे हैं।

  • हालाँकि भारत के पास 11,098 किलोमीटर लंबा समुद्री तट और इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में एक केन्द्रीय भौगोलिक स्थिति है, फिर भी भारत में केवल 17 सक्रिय समुद्र-तल केबल्स हैं, जबकि सिंगापुर जैसे छोटे शहर-राज्य में 26 केबल्स संचालित हो रही हैं।
  • इनमें से 15 केबलें केवल मुंबई के एक संकरे 6 किलोमीटर के क्षेत्र में एकत्रित होती हैं, जिससे नेटवर्क पर प्राकृतिक आपदाओं, तकनीकी विफलताओं या किसी प्रकार की तोड़फोड़ का भारी जोखिम बना रहता है।
  • अगर इन केबल लैंडिंग स्टेशनों को भारत के लंबे समुद्री तट पर बेहतर ढंग से वितरित किया जाए, तो यह नेटवर्क को अधिक लचीला बनाएगा और किसी एक क्षेत्र में व्यवधान आने पर भी डेटा का प्रवाह बना रहेगा।
  • भारत की निकटता होर्मुज़ जलडमरूमध्य, मलक्का जलडमरूमध्य, और बाब-अल-मंदब जैसे महत्वपूर्ण समुद्री चोकपॉइंट्स से भी इसे एक वैश्विक डिजिटल ट्रांजिट हब बनने की ओर अग्रसर करती है।
  • इसके साथ ही, भारत में बैंडविड्थ की मांग 2021 से 2028 के बीच 38% तक बढ़ने की संभावना है, जो बताता है कि बेहतर कनेक्टिविटी केवल क्षेत्रीय विस्तार के लिए नहीं, बल्कि घरेलू ज़रूरतों को पूरा करने के लिए भी अत्यंत आवश्यक है।

भारत एक ट्रांजिट हब के रूप में

  • भारत की भौगोलिक स्थिति उसे समुद्र-तल केबलों के लिए एक स्वाभाविक ट्रांजिट हब बनाती है। भारत के पास विशाल तटीय क्षेत्र है, कई बुनियादी ढांचे वाले बंदरगाह हैं, और एक तेजी से बढ़ता डिजिटल उपभोक्ता आधार भी है।
  • फिर भी, लाइसेंसिंग में अधिकतम 50 मंजूरियाँ विभिन्न मंत्रालयों से लेनी होती हैं, जो परियोजनाओं में देरी का कारण बनती हैं। भारत अभी भी विदेशी-ध्वज वाली मरम्मत जहाजों पर निर्भर है, जो सिंगापुर या दुबई से आते हैं और मरम्मत में तीन से पाँच महीने तक लग जाते हैं।

चुनौतियाँ और समाधान
भारत-अमेरिका के समुद्र-तल केबल सहयोग को सशक्त बनाने के लिए कुछ महत्वपूर्ण समस्याओं और समाधानों पर विचार आवश्यक है:

  1. नियामकीय अड़चनें और प्रशासनिक जटिलताएं/Regulatory Bottlenecks and Bureaucratic Complexity

भारत में समुद्र-तल केबल बिछाने या मरम्मत करने के लिए 50 से अधिक मंजूरियों की आवश्यकता होती है, जो विभिन्न मंत्रालयों जैसे दूरसंचार मंत्रालय, रक्षा मंत्रालय और स्थानीय बंदरगाह प्राधिकरणों से ली जाती हैं। यह जटिल और धीमी प्रक्रिया निवेशकों को हतोत्साहित करती है और अवसंरचना के विकास में देरी करती है।

समाधान

  • एकल-खिड़की मंजूरी प्रणाली (Single Window Clearance) लागू की जाए।
  • मंजूरी प्रक्रिया को डिजिटाइज और मानकीकृत किया जाए।
  • सार्वजनिक और निजी पक्षों के बीच समन्वय के लिए स्पष्ट और समयबद्ध SOP (मानक संचालन प्रक्रिया) तैयार की जाए।
  1. विदेशीध्वज पोतों पर निर्भरता/Dependence on Foreign-Flagged Repair Vessels

भारत के पास अपनी खुद की केबल मरम्मत जहाज़ों का बेड़ा नहीं है, और वह सिंगापुर और दुबई से आने वाले विदेशी पोतों पर निर्भर है। इन पोतों को आने-जाने, कस्टम क्लियरेंस, नौसेना की अनुमति, और अन्य प्रक्रियाओं में 3 से 5 महीने तक लग सकते हैं।

समाधान

  • भारत को अपने स्वयं के मरम्मत पोतों का बेड़ा विकसित करना चाहिए, जो भारतीय ध्वज के अंतर्गत पंजीकृत हो।
  • तटीय क्षेत्रों में क्षेत्रीय केबल रखरखाव डिपो बनाए जाएं।
  • शुरुआती लागत में मदद के लिए सरकारी प्रोत्साहन या पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप (PPP) मॉडल अपनाया जाए।
  1. अवसंरचना की एक ही स्थान पर अत्यधिक निर्भरता

वर्तमान में भारत की 17 में से 15 केबलें मुंबई के 6 किमी के इलाके में एकत्रित होती हैं।
यह अत्यधिक केंद्रीकरण नेटवर्क को प्राकृतिक आपदा, तकनीकी विफलता या तोड़फोड़ जैसी घटनाओं के प्रति संवेदनशील बनाता है।

समाधान

  • भारत के 11,000 किमी लंबे तटीय क्षेत्र में केबल लैंडिंग स्टेशनों का विकेंद्रीकरण किया जाए।
  • विशाखापत्तनम (पूर्वी तट), कांडला (गुजरात), और पारादीप (ओडिशा) को संभावित नए केंद्र के रूप में विकसित किया जा सकता है।
  • राज्य सरकारों को टैक्स छूट और ज़मीन आवंटन जैसे प्रोत्साहन देने चाहिए।
  1. निवेश की बाधाएँ और निजी क्षेत्र की सीमित भागीदारी

समुद्र-तल अवसंरचना में निवेश को अस्पष्ट नीति, उच्च पूंजी लागत और कम लाभकारी रिटर्न के कारण चुनौती मिल रही है।

समाधान

  • सरकार को विकास वित्त संस्थानों और अमेरिका जैसे संप्रभु भागीदारों के साथ मिलकर कम ब्याज ऋण, गारंटी और सम्मिलित वित्त मॉडल (blended finance) तैयार करने चाहिए।
  • स्पष्ट और दीर्घकालिक नीतिगत ढाँचा तैयार किया जाए।
  • Digital Infrastructure Fund की स्थापना की जाए जो समुद्र-तल और ज़मीनी नेटवर्क को समर्थन दे सके।
  1. साइबर सुरक्षा और भरोसे की कमी

समुद्र-तल केबल संवेदनशील डेटा को ले जाती हैं, इसलिए वे हैकिंग, जासूसी या तोड़फोड़ के लिए असुरक्षित हो सकती हैं। चीन की ‘डिजिटल सिल्क रोड’ पहल के संदर्भ में यह चिंता और बढ़ जाती है।

समाधान

  • भारत और अमेरिका को मिलकर साइबर सुरक्षा प्रोटोकॉल, जोखिम मूल्यांकन ढाँचा और एन्क्रिप्शन मानक विकसित करने चाहिए- TRUST फ्रेमवर्क के अंतर्गत।
  • संयुक्त प्रशिक्षण, इंटेलिजेंस साझा करना, और आपातकालीन अभ्यास दोनों देशों को तैयार रखेंगे।

भारतसंयुक्त राज्य अमेरिका के मजबूत संबंधों का महत्त्व

  • आर्थिक अवसरों को बढ़ावा देना: संयुक्त राज्य अमेरिका भारत के लिए व्यापारिक वस्तुओं (Merchandise export) का सबसे बड़ा निर्यात गंतव्य है।
    • भारत अमेरिका के नेतृत्व वाले इंडो-पैसिफिक इकोनॉमिक फ्रेमवर्क फॉर प्रोस्पेरिटी (IPEF) के तीन स्तंभों में शामिल हो गया है।
  • वैश्विक रणनीतिक प्रभाव को मजबूत करना: जैसे- क्वाड, जो ऑस्ट्रेलिया, भारत, जापान और संयुक्त राज्य अमेरिका के बीच एक कूटनीतिक साझेदारी है। इसका उद्देश्य एक खुले, स्थिर एवं समृद्ध हिंद-प्रशांत क्षेत्र का समर्थन करना है।
    • इस तरह की पहल से चीन के बढ़ते प्रभाव को प्रतिसंतुलित करने में मदद मिलेगी।
  • रक्षा आधुनिकीकरण और क्षमता विकास: भारत ने अमेरिका के साथ कई मूलभूत रक्षा समझौतों पर हस्ताक्षर किए हैं, जिनमें निम्नलिखित शामिल हैं:
    • जनरल सिक्योरिटी ऑफ़ मिलिट्री इन्फॉर्मेशन एग्रीमेंट (GSOMIA)
    • लॉजिस्टिक्स एक्सचेंज मेमोरेंडम ऑफ एग्रीमेंट (LEMOA)
    • कम्युनिकेशंस कंपेटिबिलिटी एंड सिक्योरिटी एग्रीमेंट (COMCASA)
    • बेसिक एक्सचेंज एंड कोऑपरेशन एग्रीमेंट (BECA)
  • अमेरिका ने भारत को स्ट्रेटेजिक ट्रेड ऑथराइजेशन-1 (STA-1) का दर्जा देकर एक प्रमुख रक्षा साझेदार के तौर पर स्वीकार किया है।
  • उभरती हुई प्रौद्योगिकियों में साझेदारी: महत्वपूर्ण और उभरती हुई प्रौद्योगिकियों पर अमेरिका-भारत पहल (iCET, 2023) शुरू की गई है।
  • अंतरिक्ष क्षेत्रक में साझेदारी: उदाहरण के लिए- निसार (नासा-इसरो सिंथेटिक एपर्चर रडार) मिशन।
    • इसके अलावा, भारत अमेरिका के नेतृत्व वाले आर्टेमिस अकॉर्ड में शामिल हो गया है। यह बाह्य अंतरिक्ष, चंद्रमा, मंगल, धूमकेतु और क्षुद्रग्रहों के असैन्य अन्वेषण और उपयोग के लिए गैर-बाध्यकारी सामान्य सिद्धांत स्थापित करता है। इसका उद्देश्य अंतरिक्ष में शांतिपूर्ण, स्थायी और पारदर्शी सहयोग को बढ़ावा देना है।
  • ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित करना: 2008 के अमेरिका-भारत 123 असैन्य परमाणु समझौते को पूरी तरह से लागू करने के लिए भारत में अमेरिका द्वारा डिजाइन किए गए परमाणु रिएक्टर्स  बनाए जाएंगे।
    • हालिया वर्षों में, अमेरिका भारत के लिए तरलीकृत प्राकृतिक गैस (LNG) के सबसे बड़े आपूर्तिकर्ताओं में से एक के रूप में उभरा है।
  • आतंकवाद से निपटना: हाल ही में, अमेरिका ने तहव्वुर राणा (26/11 आतंकी हमलों से जुड़ा आतंकी) के भारत को प्रत्यर्पण को मंजूरी प्रदान की।
  • बहुपक्षीय मंचों पर समर्थन: उदाहरण के लिए- संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) में भारत की स्थायी सदस्यता और परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह (NSG) की सदस्यता के लिए अमेरिका का समर्थन।
    • अमेरिका अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी में पूर्ण सदस्य के रूप में शामिल होने के भारत के प्रयास का समर्थन करता है।
  • जलवायु परिवर्तन से निपटना और नवीकरणीय ऊर्जा सहयोग: अमेरिका भारत के नेतृत्व वाले अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन में शामिल हो गया है।
    • इसके अलावा, यू.एस.-इंडिया रिन्यूएबल एनर्जी टेक्नोलॉजी एक्शन प्लेटफॉर्म (RETAP) शुरू किया गया है।
    • दोनों देश ग्लोबल बायोफ्यूल्स एलायंस (GBA) का हिस्सा हैं।

भारतअमेरिका साझेदारी में तनाव पैदा करने वाले हालिया मुद्दे

  • व्यापार और आर्थिक चुनौतियां: पारस्परिक प्रशुल्कों (Reciprocal tariffs) का आरोपण और अन्य संरक्षणवादी नीतियां भारतीय उत्पादों की प्रतिस्पर्धात्मक क्षमता को कम कर सकती हैं।
    • वर्ष 2024 में, भारत को अमेरिका की “स्पेशल 301” रिपोर्ट में प्रायोरिटी वॉच लिस्ट में शामिल किया गया था। यह रिपोर्ट वैश्विक स्तर पर बौद्धिक संपदा अधिकारों (IPR) के संरक्षण और प्रवर्तन की वार्षिक समीक्षा प्रस्तुत करती है।
    • अमेरिका ने जून, 2019 में भारत को जेनरलाइज्ड सिस्टम ऑफ प्रिफ्रेंसेज (GSP) का लाभ लेने वाले देशों की सूची से बाहर कर दिया था। इससे भारत के कुछ उत्पादों के शुल्क-मुक्त निर्यात पर प्रभाव पड़ा है।
  • भूराजनीतिक मतभेद: भारत सामरिक स्वायत्तता और स्वतंत्र विदेश नीति का पालन करता है।
    • उदाहरण के लिए- भारत क्वाड का हिस्सा है, लेकिन इसे सैन्य गठबंधन में बदलने से बचता है। इसके अलावा, रूस-यूक्रेन युद्ध पर भारत का संतुलित दृष्टिकोण अमेरिका की नीति से अलग है।
  • वीज़ा और आव्रजन संबंधी चुनौतियां: हाल ही में अमेरिका अपने वीज़ा नियमों को सख्त कर रहा है, जैसे कि H-1B वीज़ा पर सख्त प्रतिबंध लगाया जाना। इसका भारतीय IT पेशेवरों और अन्य लोगों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।
    • इसके अलावा, अवैध भारतीय आप्रवासियों को निर्वासित किया जा रहा है।
  • मानव एवं धार्मिक अधिकारों से संबंधित चिंताएं: संयुक्त राज्य अमेरिका के अंतर्राष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता आयोग (United States Commission on International Religious Freedom: USCIRF) ने नागरिकता (संशोधन) अधिनियम (CAA), 2019 पर चिंता जताई थी। इसे भारत ने अपने आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप के रूप में देखा है।
  • भारत पर प्रतिबंध लगाना: अमेरिका ने भारत द्वारा रूस से S-400 वायु रक्षा प्रणाली जैसे उन्नत हथियारों की खरीद पर चिंता व्यक्त की है। इसके चलते, अमेरिका “काउंटरिंग अमेरिकाज एडवर्सरीज थ्रू सैंक्शंस एक्ट (CAATSA)” के तहत भारत पर आर्थिक एवं अन्य प्रतिबंध लगाने की चेतावनी देता रहता है।

निष्कर्ष

समुद्र-तल केबल अवसंरचना को मज़बूत बनाना भारत-अमेरिका रणनीतिक साझेदारी का एक मूलभूत कदम है। जैसे-जैसे डिजिटल लचीलापन (Digital Resilience) राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ता जा रहा है, विश्वसनीय और विविधीकृत केबल नेटवर्क की आवश्यकता पहले से कहीं अधिक है।

भारत की भू-स्थानिक स्थिति, तेजी से बढ़ती डिजिटल अर्थव्यवस्था, और अमेरिका के साथ रणनीतिक तालमेल इसे वैश्विक इंटरनेट इकोसिस्टम का एक केंद्रीय केंद्र बना सकते हैं। नियामक सुधार, अवसंरचना निवेश, और द्विपक्षीय सहयोग पर शीघ्र कार्रवाई केवल भारत-अमेरिका संबंधों को मज़बूत नहीं करेगी, बल्कि दोनों देशों के व्यापक रणनीतिक और व्यापारिक हितों को भी आगे बढ़ाएगी।

 

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