टी. एच. ग्रीन (1836–1882) एक ब्रिटिश आदर्शवादी विचारक थे, जिन्होंने सकारात्मक स्वतंत्रता (Positive Liberty) के सिद्धांत को स्थापित किया।
उनका मानना था कि:
- मानव चेतना स्वयं स्वतंत्रता की मांग करती है,
- यह स्वतंत्रता अधिकारों की आवश्यकता उत्पन्न करती है,
- और अधिकारों को संरक्षित करने हेतु राज्य की आवश्यकता होती है।
ग्रीन का तर्क
व्यक्ति का नैतिक विकास तभी संभव है जब उसे समाज में स्वतंत्र रूप से अपने विवेक और तर्क के अनुसार कार्य करने का अवसर मिले, और इसके लिए राज्य की भूमिका आवश्यक है।
टी.एच. ग्रीन (T.H. Green) के अनुसार, स्वतंत्रता (Liberty) का अर्थ सिर्फ बाहरी बंधनों से मुक्ति नहीं, बल्कि आत्म-साक्षात्कार और नैतिक विकास है, सच्ची स्वतंत्रता वह है जो व्यक्ति को “अच्छे” कार्यों के लिए सक्षम बनाती है।
नैतिक स्वतंत्रता की अवधारणा
- ग्रीन के अनुसार इच्छा की स्वतन्त्रता व्यक्ति के नैतिक स्वभाव से उत्पन्न होती है।
- “अच्छे कार्य” की पहचान व्यक्ति के विवेक और तर्क से होती है।
- राज्य का उद्देश्य नैतिक और सामाजिक विकास को बढ़ावा देना है।
- राज्य व्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा तभी कर सकता है जब वह सामूहिक भलाई सुनिश्चित करे।
- यदि लोग स्वयं नैतिक जिम्मेदारियाँ नहीं निभाते, तो राज्य को हस्तक्षेप करना उचित है।
- कानून का उद्देश्य बाध्यता नहीं, बल्कि सहायक मित्र के रूप में कार्य करना है।
- अधिकार केवल कानूनी मान्यता नहीं, बल्कि नैतिक चेतना से उत्पन्न होते हैं।
- सभी अधिकार सामाजिक रूप से व्युत्पन्न हैं – “प्राकृतिक अधिकारों” की ग्रीन ने आलोचना की हैं।
महत्वपूर्ण तथ्य:
- टी. एच. ग्रीन नैतिक स्वतंत्रता (Moral Freedom) के सिद्धांत के समर्थक थे।
- उन्होंने नकारात्मक स्वतंत्रता (बाधाओं से मुक्ति) के विपरीत सकारात्मक स्वतंत्रता (आत्म-विकास और तर्क के अनुसार कार्य) की वकालत की।
- उनके अनुसार, राज्य व्यक्ति की नैतिक स्वतंत्रता को सुनिश्चित करने का एक माध्यम है, बाधा नहीं।
टी. एच. ग्रीन के अनुसार मानव चेतना और स्वतंत्रता
आदर्शवादी दर्शन और मानव चेतना
- ग्रीन का दर्शन ब्रिटिश आदर्शवाद पर आधारित था, जहाँ मन, चेतना और कारण को अनुभवजन्य यथार्थता से ऊपर माना गया।
- वे मानते थे कि मानव चेतना प्राकृतिक रूप से स्वतंत्र, तार्किक और सार्वभौमिक नैतिक सत्य को समझने में सक्षम है।
चेतना के आदर्श के रूप में स्वतंत्रता
- मानव चेतना अपने स्वभाव से स्वतंत्रता के सिद्धांत का समर्थन करती है।
- स्वतंत्रता, चेतना और तार्किकता की पूर्ण अभिव्यक्ति के लिए मूलभूत आवश्यकता है।
अधिकारों की मांग
- स्वतंत्रता केवल एक शर्त है, पर मानव विकास के लिए पर्याप्त नहीं।
- इसलिए स्वतंत्रता को व्यक्तिगत अधिकारों की मान्यता और सुरक्षा की मांग करनी होती है (जैसे – जीवन, संपत्ति, विचार और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता)।
राज्य की भूमिका
- राज्य या राजनीतिक संस्था की आवश्यकता व्यक्तिगत अधिकारों की सुरक्षा और उपयोग के लिए है।
- राज्य को अधिकारों की रक्षा के साधन के रूप में देखा जाना चाहिए, ताकि मानव उत्कर्ष (human flourishing) संभव हो सके।
- स्थानिक स्वशासन (Local Self-Governance) को प्राथमिकता देते हैं।
- केवल आवश्यक होने पर राष्ट्रीय राज्य को हस्तक्षेप करना चाहिए।
नकारात्मक बनाम सकारात्मक स्वतंत्रता
- नकारात्मक स्वतंत्रता: बाहरी बाधाओं से मुक्ति (जैसे बोलने की आज़ादी)।
- सकारात्मक स्वतंत्रता: व्यक्ति की अपनी क्षमताओं के अनुसार जीवन को दिशा देने की शक्ति।
Thomas Hill Green Books
- Essays: Moral, Political and Literary
- Prolegomena to Ethics
- An Estimate of the Value and Influence of Works of Fiction in Modern Times
- The Witness of God and Faith: Two Lay Sermons
- Works of Thomas Hill Green; Volume 1