शटल डिप्लोमेसी एक प्रकार की कूटनीति है जिसमें कोई मध्यस्थ (mediator) दो या अधिक पक्षों के बीच बार-बार यात्रा करता है ताकि बातचीत को आसान बनाया जा सके और विवादों का समाधान किया जा सके। यह विधि तब अपनाई जाती है जब राजनीतिक, भौगोलिक या सुरक्षा कारणों से संबंधित पक्षों के बीच सीधी वार्ता संभव नहीं होती।

- 1970 के दशक में तत्कालीन अमेरिकी विदेश मंत्री हेनरी किसिंजर (Henry Kissinger) द्वारा इज़राइल और मिस्र के बीच शांति स्थापित करने के प्रयासों को शटल डिप्लोमेसी का उत्कृष्ट उदाहरण माना जाता है।
उन्होंने जेरूसलम और काहिरा के बीच उड़ान भरते हुए, दोनों पक्षों के नेताओं से अलग-अलग मुलाकात की और एक संघर्षविराम तथा अंततः कैम्प डेविड समझौते (Camp David Accords) करवाने में सफलता पाई। - डॉ. हैरल्ड सॉन्डर्स, जो किसिंजर के साथ इन शटल्स में शामिल थे, बताते हैं कि यह प्रक्रिया सिर्फ एक समझौते तक सीमित नहीं थी, बल्कि एक “चरण–दर–चरण रणनीति” के तहत पूरे क्षेत्र में शांति स्थापित करने की योजना थी।

- गोल्डा मेयर (इज़राइल की प्रधानमंत्री) के साथ वार्ता के समय, किसिंजर ने सिर्फ अमेरिका के विदेश मंत्री नहीं, बल्कि यहूदी समुदाय के एक सलाहकार के रूप में व्यवहार किया, जिससे विश्वास और सहमति का माहौल बना।
शटल डिप्लोमेसी की प्रमुख विशेषताएँ
- अप्रत्यक्ष संचार: पक्षों के बीच सीधे आमने-सामने वार्ता के बजाय एक मध्यस्थ के माध्यम से संवाद होता है।
- विश्वास निर्माण: मध्यस्थ दोनों पक्षों के साथ विश्वास और संबंध बनाता है।
- संदेश और प्रस्तावों का आदान–प्रदान: मध्यस्थ पक्षों के बीच प्रस्तावों और प्रतिक्रियाओं को पहुंचाता है।
- संघर्ष की स्थिति में उपयुक्त: जब दोनों पक्ष एक-दूसरे से सीधा संपर्क नहीं चाहते।
वर्तमान सन्दर्भ
- हाल के वर्षों में जापान के प्रधानमंत्री फुमियो किशिदा और दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति यूं सुक येओल के बीच संबंधों को सुधारने के प्रयासों को भी शटल डिप्लोमेसी का ही उदाहरण माना गया है।
- वे एक-दूसरे के देशों की यात्राएँ कर रहे हैं, और परस्पर द्विपक्षीय वार्ताएँ कर रहे हैं ताकि पुराने राजनीतिक तनाव को दूर किया जा सके और सहयोग को बढ़ावा दिया जा सके।
चुनौतियाँ
- मध्यस्थ की निष्पक्षता और प्रतिष्ठा पर निर्भरता: अगर मध्यस्थ पर भरोसा न हो, तो प्रक्रिया विफल हो सकती है।
- समय और संसाधनों की भारी मांग: बार-बार यात्राएँ और चर्चाएँ समय-सीमा को लंबा कर सकती हैं।
- पारदर्शिता की कमी: दोनों पक्षों को एक-दूसरे के इरादों और रियायतों की पूरी जानकारी नहीं होती।
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