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रोहिणी आयोग

राजनीतिक दृष्टि से ओबीसी आरक्षण का मामला अत्यंत संवेदनशील है। संविधान के अनुच्छेद 340 के अंतर्गत अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) के उप-वर्गीकरण (sub-categorization) हेतु वर्ष 2017 में रोहिणी आयोग (Rohini Commission) का गठन किया गया। इस आयोग की अध्यक्षता दिल्ली उच्च न्यायालय की सेवानिवृत्त मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति जी. रोहिणी (G. Rohini) द्वारा की गई।

रोहिणी आयोग क्यों लाया गया?

OBC (अन्य पिछड़ा वर्ग) के भीतर आरक्षण के असमान वितरण की जांच करना — यह पता लगाना कि क्या वास्तव में सभी जातियों को आरक्षण का लाभ मिल रहा है या फिर कुछ गिनी-चुनी जातियाँ ही पूरे OBC आरक्षण का अधिकांश लाभ उठा रही हैं।
‘सब-कैटेगराइजेशन’ की पुरानी मांग — कई राज्य सरकारों का मत है कि OBC वर्ग के भीतर भी जातियों में असमानता है; कुछ ही जातियाँ इस आरक्षण से सशक्त हो रही हैं जबकि अनेक जातियाँ वंचित रह गई हैं।
डेटा आधारित विश्लेषण — सरकार यह मूल्यांकन करना चाहती थी कि किन जातियों को कितना लाभ प्राप्त हुआ है।

मुख्य बिंदु:

2018 में आयोग ने OBC कोटे के तहत पिछले 5 वर्षों में दी गई1.3 लाख केंद्रीय नौकरियों और पिछले 3 वर्षों में विश्वविद्यालयों, IIT, NIT, IIM, और AIIMS जैसे केंद्रीय उच्च शिक्षण संस्थानों में OBC प्रवेश के आंकड़ों का विश्लेषण किया।
OBC आरक्षण में उप-श्रेणी व्यवस्था की समीक्षा की गई।
OBC वर्ग के भीतर अत्यंत सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों की पहचान करना — यह देखना कि क्या इन्हें लाभ मिला या नहीं।
27 प्रतिशत आरक्षण को उप-श्रेणियों के बीच न्यायसंगत रूप से वितरित करने की व्यवस्था का सुझाव।
OBC सूची की पुनःसमीक्षा की गई।

रोहिणी आयोग का महत्व:

OBC आरक्षण में सुधार और संतुलन लाने हेतु।
उन प्रभावशाली जातियों के वर्चस्व को कम करना जो OBC श्रेणी में अत्यधिक लाभ उठा रही हैं।
उपेक्षित जातियों को मुख्यधारा में लाना।
आरक्षण के माध्यम से सामाजिक न्याय को सुदृढ़ करना।

अन्य राज्यों में उप-श्रेणी का प्रावधान

कई राज्यों में OBC वर्ग के भीतर पहले से ही उप-श्रेणियाँ लागू हैं, जिनमें शामिल हैं:
महाराष्ट्र, बिहार, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल, तेलंगाना, कर्नाटक, हरियाणा, झारखंड, आंध्र प्रदेश,
तथा केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर और पुडुचेरी।


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