श्रेणी समाजवाद 20वीं शताब्दी के आरंभिक दशकों में ब्रिटेन में उभरा एक प्रभावशाली राजनैतिक आंदोलन था। इसका मुख्य उद्देश्य उद्योगों में श्रमिकों का प्रत्यक्ष नियंत्रण स्थापित करना था। यह आंदोलन विशेष रूप से G.D.H. Cole से जुड़ा हुआ था और विलियम मोरिस के विचारों से प्रेरित था।
- यह विचारधारा राज्य समाजवाद और श्रम समाजवाद का समन्वय थी।
- श्रम समाजवाद की तरह इसने राज्य द्वारा उद्योगों पर नियंत्रण की आलोचना की, जबकि राज्य समाजवाद की तरह इसने राजनीतिक संगठनों और राज्य के अस्तित्व को आवश्यक माना।
- श्रेणी समाजवाद ने उद्योगों के स्वामित्व को राज्य के अधीन स्वीकार किया, किंतु उनका नियंत्रण श्रमिक संघों के हाथों में देने की वकालत की।
इतिहास और विकास
- इस आंदोलन की जड़ें 19वीं शताब्दी के मध्य में देखी जा सकती हैं जब रस्किन और कुछ ईसाई समाजवादियों ने इसके बीज बोए।
- बाद में J. Penty की पुस्तक ‘Restoration of the Guild Syste’ और ‘नवयुग’ (New Age) पत्रिका ने इस विचार को लोकप्रियता दिलाई।
- 1914 के पहले यह आंदोलन परिपक्व हुआ और प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान इसमें विस्तार हुआ।
- युद्धकाल में D.H. Cole, W. Mellor, और Reckitt के नेतृत्व में राष्ट्रीय श्रेणी संघ की स्थापना हुई।
- लंदन की राष्ट्रीय निर्माण श्रेणी और शॉप स्टीवर्ड आंदोलन ने श्रमिकों को औद्योगिक नियंत्रण की ओर प्रेरित किया।
- हालांकि युद्ध के बाद 1921 की आर्थिक मंदी और सरकारी समर्थन समाप्त होने के कारण यह आंदोलन धीरे-धीरे समाप्त हो गया और जन आंदोलन का स्वरूप न ले सका।
गिल्ड सामाजिक इकाई
- श्रेणी समाजवाद गिल्ड को सामाजिक इकाई मानते है। आरेंज गिल्ड अर्थात् स्वशासी समुदाय की संज्ञा प्रदान की है। एक व्यवसाय वालों का एक गिल्ड अर्थात् स्वशासी समुदाय होना चाहिए। प्रत्येक गिल्डका अपना स्वशासन होना चाहिए।
- इससे मजदूरों की सृजनात्मक शक्ति और भावना का विकास होगा। यह सिद्धान्त नीचे से ऊपर तक गिल्डों की एक श्रेणी में विश्वास करता है। इनके अनुसार स्थानीय गिल्ड उच्चतर राष्ट्रीय गिल्डों के नियंत्रण में होंगे।
- इसने कार्य की दृष्टि से गिल्डों को तीन भागों में विभाजन किया है -औद्योगिक, नागरिक और वितरणात्मक उद्योगों एवं कृषि से सम्बन्धित गिल्ड औद्योगिक अध्यापन एवं कानून आदि से सम्बन्धित वितरणात्मक होंगे। ये स्थानीय, प्रादेशिक और राष्ट्रीय स्तर के होंगे।
- इसके अनुसार सभी व्यवसायों के अलग – अलग स्थानीय , प्रादेशिक और राष्ट्रीय गिल्ड होने चाहिए। राष्ट्रीय गिल्डों को मिलाकर एक राष्ट्रीय औद्योगिक गिल्ड होना चाहिए। यह व्यवस्थापिका की तरह अन्तिम रूप में नीति का निर्धारण तथा अपील के अन्तिम न्यायालय के रूप में कार्य करेगा।
सामाजिक स्वामित्व और राज्य
- यह विचारधारा सामाजिक स्वामित्व को मान्यता देती थी और औद्योगिक स्वायत्तता का समर्थन करती थी। इसके अनुसार, ऐसा राजनीतिक लोकतंत्र व्यर्थ है जिसमें आर्थिक निर्णयों का अधिकार आम जनता के पास नहीं होता।
- कोल के अनुसार, राज्य की भूमिका तो आवश्यक है, किंतु समाज के सुखदायी परिवर्तन के लिए उद्योगों की शक्ति श्रमिकों को हस्तांतरित होनी चाहिए।
- श्रेणी समाजवाद राजनीतिक और औद्योगिक प्रशासन को पृथक रखने की बात करता है।
- इसमें ऐसी एक संयुक्त समिति की परिकल्पना की गई थी जिसमें राजनीतिक और श्रमिक प्रतिनिधि दोनों हों और वही सभी विवादों का अंतिम समाधान करें।
- लेकिन विचारक अर्नेस्ट बारबर ने इस विभाजन को अव्यावहारिक बताते हुए कहा कि आधुनिक युग की विभिन्न गतिविधियाँ एक-दूसरे पर आश्रित हैं, इसलिए इस तरह का पृथक्करण असंभव है।
श्रेणी समाजवाद के तत्व
श्रेणी समाजवाद के निम्नलिखित तत्व हैं:—
निजी स्वामित्व का अन्त
- श्रेणी समाजवाद नैतिक और मनोवैज्ञानिक आधार परपूँजीवादी व्यवस्था की आलोचना करते हुए उसका विरोध करता है। उत्पादन के साधनों पर निजी स्वामित्व का अन्त कर यह उन्हें पूरे समाज के नियन्त्रण में कर देने का समर्थन करता है ताकि कुछ थोड़े से पूँजीपतियों के बजाय सम्पूर्ण समाज के हितों की पूर्ति हो।
- इसके अनुसार उत्पादन के साधनों के समाजीकरण से उद्योगों में श्रमिक आन्दोलन हो जायेंगे जिसके फलस्वरूप उत्पादन में वृद्धि होगी। नैतिक दृष्टि से पूँजीवादी व्यवस्था गलत है क्योंकि उसका सामाजिक हित से कोई सम्बन्ध नहीं होता है।
राजनीतिक लोकतंत्र निरर्थक
- आर्थिक समानता और उत्पादन साधनों पर श्रमिकों के नियंत्रण के अभाव में यह सिद्धान्त राजनीतिक लोकतंत्र को निरर्थक मानता है।
- यह वर्तमान लोकतान्त्रिक व्यवस्था के प्रतिनिधित्व प्रणाली को गलत मानता है तथा कहता है कि एक मनुष्य दूसरे मनुष्य की इच्छा का प्रतिनिधित्व कर सकता है। विशिष्ट और व्यापारिक प्रतिनिधित्व ही वास्तविक होता है। व्यक्ति विशेष का प्रतिनिधित्व गलत है। समूह विशेष के हितों का ही प्रतिनिधित्व किया जा सकता है।
- यह सिद्धान्त लोकतन्त्र के वर्तमान ढाँचे में विश्वास कर व्यावसायिक लोकतंत्र में विश्वास करता है। निजी सम्पत्ति के अन्त में विश्वास तथा राज्य के नियन्त्रण में विश्वास करने और लोकतंत्र के वर्तमान ढाँचे को निरर्थक समझने के कारण यह सिद्धान्त पूँजीवादी व्यवस्था का घोर विरोधी है।
मजदूरी के स्थान पर प्रतिफल
- श्रेणी समाजवादी मजदूरी की दासता तथा अपमानजनक बात मानते हैं। वे इसे समाप्त कर मजदूरों का प्रतिफल ( Payments ) देने का समर्थन करते हैं। वे प्रतिफल को सम्मानजनक मानते हैं। उनकी यह मान्यता भावुकता पर आधारित है। वे प्रतिफल का समर्थन तो करते हैं परन्तु इस प्रश्न पर उनमें मतभेद है कि यह किस आधार पर मिलना चाहिए योग्यता अथवा उत्पादन।
- कोल ने प्रतिफल की समानता को असम्भव बताया है। प्रतिफल की तरह ही कीमतों के निर्धारण में भी इनमें मतभेद है। किसी ने राष्ट्रीय गिल्ड , किसी ने उत्पादक समितियों तथा किसी ने उच्चतर समिति द्वारा इसके निर्धारण की बात की है।
राज्य का नियंत्रण नहीं परन्तु राज्य अनिवार्य
- श्रेणी समाजवादी उद्योगों पर राज्य के नियन्त्रण का विरोध करते हैं , परन्तु इसे समाज का एक अपरिहार्य संस्था मानते हैं। उसके अनुसार कुछ ऐसे कार्य हैं जिन्हें कोई गिल्ड नहीं कर सकता है , जैसे – बाहरी आक्रमण से रक्षा , करारोपण तथा शान्ति एवं व्यवस्था बनाये रखना।
- राज्य नागरिकों के सामान्य हितों का प्रतिनिधित्व करता है अतः यह अनिवार्य और अपरिहार्य है। इसकी अनिवार्यता और अपरिहार्यता मानते हुए भी इसके रूप के बारे में इनमें मतवैभिन्य है।
- हॉब्सन औद्योगिक संघटनों से भिन्न और विशिष्ट मानने के कारण इसे सर्वोच्चता और सम्प्रभुता प्रदान करता है। उसके अनुसार राज्य का सभी गिल्डों पर नियन्त्रण होगा।
- कोल, हॉब्सनसे भिन्न धारणा रखता है। वह सम्प्रभुता सम्पन्न राज्य की धारणा में विश्वास नहीं करता है। उसके अनुसार अन्य समुदायों की तरह राज्य भी एक समुदाय है। वर्तमान राज्यों के स्थान पर कम्यून प्रणाली स्थापित करने पर बल देता है।
फ्रांसीसी संघवाद तथा ब्रिटिश फेबियनवाद से असन्तुष्ट
- श्रेणी समाजवादी उद्योगों में मजदूरों का स्वशासन स्थापित करने में विश्वास करते हैं। वे पूँजीवादी व्यवस्था के कट्टर विरोधी हैं क्योंकि उनके अनुसार पूँजीपति राष्ट्रीय सम्पत्ति का बहुत बड़ा भाग हड़प जाते हैं तथा मजदूरों को उचित हक नहीं प्राप्त होता है।
- इस स्थिति की समाप्ति के लिए ही इस सिद्धान्त के प्रवर्तक और समर्थक उत्पादन के साधनों के राष्ट्रीयकरण तथा उद्योगों, मजदूरों का स्वशासन स्थापित करने में विश्वास करते हैं।
- श्रेणी समाजवादी न तो संवैधानिक और न ही हिंसात्मक तरीके में विश्वास करते हैं। लक्ष्य प्राप्ति के लिये वे ट्रेड यूनियन आन्दोलन में विश्वास करते हैं। उनका तरीका साम्यवादियों और समाजवादियों से भिन्न है।
- उनके अनुसार वर्तमानपूँजीवादी व्यवस्था तथा संसदीय पद्धति क्रान्ति अथवा अपेक्षित परिवर्तन लाने में सक्षम नहीं है।
- उनका मत है कि यदि संवैधानिक तरीके से अनुकूल शासन व्यवस्थापित भी हो जाये जो वह वर्तमान राजनीतिक एवं आर्थिक व्यवस्था के कारण कोई क्रान्तिकारी परिवर्तन नहीं कर सकेगी। यदि सफलता मिली भी तो उसकी प्राप्ति में काफी समय लग सकता है।
निष्कर्ष
श्रेणी समाजवाद एक ऐसा प्रयोग था जो औद्योगिक लोकतंत्र और सामाजिक स्वामित्व के मेल को प्रस्तुत करता था। यद्यपि यह स्थायी आंदोलन नहीं बन सका, लेकिन इसके सिद्धांतों ने समाजवाद के इतिहास में एक महत्वपूर्ण वैचारिक स्थान प्राप्त किया।