मैकियावेली का मानना था कि राजनीति केवल कड़वी सच्चाइयों से चलती है; जैसे सत्ता की भूख और शक्ति के लिए संघर्ष।- ‘Machiavelli believed that in politics, one is guided solely by the harsh realities of political life’
आज पुरानी अंतरराष्ट्रीय राजनीति के नियम अब खत्म हो रहे हैं। साथ ही, वर्चस्व पाने के तरीके भी अब पूरी तरह से बदल रहे हैं। आज के दौर में, जैसे-जैसे युद्ध की अवधारणाएं बदली हैं, हथियार ही राजनीति का सबसे बड़ा साधन बन गए हैं। आजकल, जैसे-जैसे युद्ध की सोच बदली है, वैसे-वैसे हथियार राजनीति का सबसे अहम हिस्सा बन गए हैं।
- साल 2025 को लोग अकसर शांति का प्रतीक मानते हैं, लेकिन सच यह है कि दूसरे विश्व युद्ध के बाद भी कई छोटे-बड़े युद्ध होते रहे हैं। वाही दूसरी ओर‘नियमों पर आधारित दुनिया’ जैसे विचार भी लोगों को अच्छे लगने लगे हैं और फैलने लगे हैं।
शांति एक भ्रम
जिस शांति की बात द्वितीय विश्व युद्ध के बाद से जाती रही है, वह असल में एक भ्रम था। कोरिया, वियतनाम और उत्तर अफ्रीका जैसे क्षेत्रों में लगातार छोटे युद्ध होते रहे, जिससे यह साफ हो गया कि युद्ध कभी रुके ही नहीं थे। इन टकरावों ने यह दिखा दिया कि शांति केवल एक दिखावा थी, न कि कोई स्थायी स्थिति।

1989 और 9/11: के बाद बड़ी घटनाएँ
- 1989, जब बर्लिन की दीवार गिरी, वह एक ऐतिहासिक मोड़ था। लोगों को लगा था कि अब दुनिया शांतिपूर्ण हो जाएगी।upsc
- लेकिन 2001 में 9/11 के आतंकवादी हमलों ने इस सोच को पूरी तरह बदल दिया।
9/11 के बाद की दुनिया ने यह साफ कर दिया कि खतरे अब सिर्फ देशों से नहीं,
बल्कि अज्ञात, अदृश्य और गैर-सरकारी संगठनों से भी हो सकते हैं।
आधुनिक युद्ध: सिर्फ हथियार नहीं, रणनीति भी
- 9/11 ने यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि सुरक्षा को अब पारंपरिक तरीके से नहीं देखा जा सकता।
अब युद्ध में न सिर्फ हथियार काम आते हैं, बल्कि सूचना, डिजिटल नेटवर्क, और मनोवैज्ञानिक रणनीति भी महत्वपूर्ण हो गई हैं। - पुराने समय में युद्ध का मतलब होता था, टैंक, बंदूकें और सेनाएं।लेकिन अब युद्ध सिर्फ हथियारों की ताकत पर नहीं टिका है।
अब इसमें शामिल हैं:
- साइबर हमले (Cyber Warfare)
- ड्रोन तकनीक
- कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI)
- सोशल मीडिया का प्रोपेगेंडा
- आतंकवाद और गुप्त ऑपरेशन
इसलिए, आज का युद्ध बहुत ज्यादा जटिल और बहु-स्तरीय (multi-dimensional) हो गया है।
ऑपरेशन सिंदूर और नया युद्ध मॉडल
ऑपरेशन सिंदूर में युद्ध के स्वरूप में जो बड़ा और निर्णायक बदलाव आया, उसे समझने के लिए हमें 1990 के शुरुआती वर्षों की ओर देखना होगा। खासतौर पर, ‘ऑपरेशन डेजर्ट स्टॉर्म’ (1991 में इराक के खिलाफ अमेरिका के नेतृत्व में हुआ खाड़ी युद्ध) इस परिवर्तन का प्रतीक था।
डेजर्ट स्टॉर्म: पहला आधुनिक युद्ध
- यह युद्ध सिर्फ बंदूकों और टैंकों तक सीमित नहीं था।
- यहाँ पहली बार देखा गया कि कैसे उच्च तकनीक (advanced technology), सटीक जानकारी (real-time intelligence), और रणनीतिक नेटवर्किंग (strategic coordination) का मिलाजुला प्रयोग युद्ध को पूरी तरह बदल सकता है।
यह युद्ध सैटेलाइट इमेजरी, GPS-निर्देशित हथियार, लाइव टारगेटिंग, साइबर और मनोवैज्ञानिक दबाव जैसी रणनीतियों से लड़ा गया था।
- इसने एक नई सैन्य सोच को जन्म दिया, जहाँ ताकत सिर्फ हथियारों की नहीं, बल्कि जानकारी की थी।
- ‘डेजर्ट स्टॉर्म’ यह दिखाने वाला पहला युद्ध था कि अब जो जीतता है, वो ज़रूरी नहीं सबसे ताकतवर हो,
बल्कि वो हो सकता है जिसके पास सबसे तेज और सटीक जानकारी हो।
इसने यह सवाल खड़ा किया कि – क्या युद्ध में अब हथियार से ज़्यादा डेटा और कंट्रोल सिस्टम मायने रखते हैं?
21वीं सदी के युद्ध: यूक्रेन, पश्चिम एशिया
यूक्रेन युद्ध ने दिखाया कि ड्रोन हमले, साइबर हमले, और मनोरंजन व मीडिया पर नियंत्रण भी युद्ध का हिस्सा बन चुके हैं।
Cyberwarfare (साइबर युद्ध) अब हथियारों जितना ही घातक हो गया है।
दुश्मन को हराने के लिए अब उसके:
- बैंकिंग सिस्टम को हैक किया जाता है,
- बिजली सप्लाई रोकी जाती है,
- और सोशल मीडिया के ज़रिए अफवाहें फैलाकर जनता का मनोबल तोड़ा जाता है।
AI (कृत्रिम बुद्धिमत्ता) युद्ध में ऐसे-ऐसे काम कर रहा है,
जो पहले इंसानों के बस में नहीं थे, जैसे:
- ऑटोमैटिक टारगेट पहचानना
- खुद से हमला करने वाले ड्रोन
- बड़े डाटा विश्लेषण करके दुश्मन की रणनीति को पहले ही पकड़ लेना
सैटेलाइट आधारित युद्ध
सैटेलाइट अब सिर्फ मौसम या टीवी चैनल दिखाने के लिए नहीं हैं।
अब वे:
- दुश्मन की हरकतें लाइव ट्रैक करते हैं
- मिसाइल गाइडेंस सिस्टम को कंट्रोल करते हैं
- और कभी-कभी, दुश्मन के सैटेलाइट को ही निष्क्रिय कर सकते हैं
इससे यह साफ हो गया है कि अब युद्ध धरती से लेकर अंतरिक्ष तक फैल चुका है।
नया युद्ध मॉडल: बहुस्तरीय और अदृश्य संघर्ष
- आज के दौर में युद्ध केवल सीमाओं पर लड़े जाने वाले हथियारों के टकराव तक सीमित नहीं रह गया है। अब यह एक ऐसा जटिल, बहुस्तरीय (multi-layered) और अदृश्य युद्ध बन चुका है, जिसमें दुश्मन अकसर सामने दिखाई नहीं देता, लेकिन उसका असर हर स्तर पर महसूस होता है। यह युद्ध अब गोलियों और बमों से नहीं, बल्कि मन, मशीन और मीडिया के माध्यम से लड़ा जा रहा है।
- यह नया मॉडल तकनीक को हथियार बना देता है, जैसे कि साइबर हमले से बैंकिंग व्यवस्था ठप करना, या सोशल मीडिया पर झूठी खबरें फैलाकर समाज में भ्रम और अस्थिरता पैदा करना। अब सच्चाई और झूठ में फर्क करना भी एक रणनीतिक चुनौती बन चुका है, क्योंकि युद्ध में सूचना को ही अस्त्र बना दिया गया है। इसके अलावा, डेटा अब युद्ध का सबसे महत्वपूर्ण संसाधन बन गया है। जो यह तय करता है कि कौन-सी रणनीति कब और कहाँ अपनाई जाएगी।
- इस तरह का युद्ध लगातार चलता है। इसमें न कोई तय मोर्चा है, न कोई निश्चित समय सीमा। यह एक ऐसा संघर्ष है जो राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक और मनोवैज्ञानिक स्तर पर एक साथ लड़ा जाता है।
दुश्मन अब सिर्फ सीमाओं के पार नहीं, बल्कि हमारे डिजिटल सिस्टम, विचारों और समाज की संरचना के भीतर भी मौजूद हो सकता है।
इसलिए, यह युद्ध न केवल बहुस्तरीय है, जहाँ भौतिक, डिजिटल और मानसिक दुनिया आपस में जुड़ी हैं, बल्कि यह युद्ध अपने स्वरूप में अदृश्य और चालाक है, जो परंपरागत सुरक्षा दृष्टिकोण को पूरी तरह बदल देता है।
भारत को बदलाव के साथ चलना होगा
आज के बदलते वैश्विक सुरक्षा परिदृश्य में यह बात बिल्कुल स्पष्ट हो चुकी है कि भारत अब पुरानी रक्षा सोच पर नहीं चल सकता।
- युद्ध के स्वरूप में जो तकनीकी और रणनीतिक बदलाव आ रहे हैं, उनका असर इतना तेज़ है कि अगर भारत ने खुद को समय रहते नहीं बदला, तो वह पीछे छूट सकता है। इसलिए अब यह ज़रूरी हो गया है कि भारत अपने सैन्य दृष्टिकोण, हथियार खरीद नीति और रक्षा रणनीति की गहन समीक्षा करे।
- भारत को न केवल यह देखना होगा कि जो हथियार और सिस्टम आज खरीदे जा रहे हैं, क्या वे भविष्य की लड़ाइयों के लिए भी उपयोगी होंगे या नहीं, बल्कि यह भी पूछना होगा कि क्या हमारी सेनाएं AI, साइबर और ड्रोन आधारित युद्ध के लिए तैयार हैं।
- उदाहरण: चीन, जिसने J-20 जैसे स्टेल्थ फाइटर जेट, हाई-स्पीड ड्रोन, और उन्नत रडार सिस्टम खुद तैयार किए हैं। चीन की यह आत्मनिर्भरता उसे तेजी से आगे ले जा रही है, जबकि भारत अब भी विदेशों से हथियार खरीदने पर निर्भर है।
इसलिए भारत को अब केवल ‘तयशुदा हथियार खरीद’ से आगे बढ़कर स्वदेशी तकनीकी विकास, तेजी से उभरती टेक्नोलॉजी को अपनाने, और रक्षा अनुसंधान में निवेश करने की ज़रूरत है।
विशेष रूप से:
- मानव रहित हवाई वाहन (drones)
- हाइपरसोनिक मिसाइल
- AI-निर्देशित निगरानी तंत्र
- साइबर डिफेंस इंफ्रास्ट्रक्चर
इन सभी क्षेत्रों में भारत को तेजी से आगे बढ़ना होगा, वरना भविष्य के युद्धों में रणनीतिक रूप से कमजोर स्थिति में आ जाएगा।