दक्षिण-पूर्व एशिया के दो प्रमुख देशों थाइलैंड और कंबोडिया के बीच हालिया कूटनीतिक तनाव एक बार फिर इस क्षेत्र की नाजुक भौगोलिक-सामरिक स्थिति की ओर ध्यान आकर्षित करता है। जुलाई 2025 में थाइलैंड के पूर्व प्रधानमंत्री थक्सिन शिनावात्रा की कंबोडिया यात्रा और उनके भव्य स्वागत को लेकर उठी राजनीतिक प्रतिक्रिया, दोनों देशों के बीच एक नए संघर्ष का संकेत बन गई है। जबकि यह विवाद अभी तक सैन्य संघर्ष का रूप नहीं ले पाया है, परंतु इसकी प्रतिध्वनि दोनों देशों की आंतरिक राजनीति, आपसी संबंधों, क्षेत्रीय स्थिरता और वैश्विक शक्तियों के समीकरणों तक जा पहुँची है।
विवाद की शुरुआत जुलाई 2025 में उस समय हुई जब थाईलैंड के पूर्व प्रधानमंत्री थक्सिन शिनावात्रा ने कंबोडिया का दौरा किया। कंबोडिया के प्रधानमंत्री हुन मानेत (हुन सेन के पुत्र) ने उन्हें राज्य अतिथि जैसा स्वागत दिया और सार्वजनिक रूप से उनके साथ फोटो साझा की। थक्सिन थाई राजनीति में एक विवादास्पद व्यक्तित्व रहे हैं। उन पर भ्रष्टाचार के कई आरोप हैं और वे लम्बे समय तक देश से निर्वासन में भी रहे थे। उनकी कंबोडिया यात्रा को थाईलैंड की वर्तमान सरकार और विपक्ष दोनों ने असंवेदनशील और कूटनीतिक अपमान के रूप में देखा।थाई विदेश मंत्रालय ने कंबोडिया सरकार से औपचारिक आपत्ति दर्ज की और इसे ‘थाईलैंड की संप्रभुता के प्रति असम्मान’ बताया। जवाब में, कंबोडिया ने इसे एक सामान्य ‘राजनीतिक संबंध’ करार दिया।
थाईलैंड और कंबोडिया के संबंध ऐतिहासिक रूप से जटिल रहे हैं। दोनों देशों के बीच सीमा विवाद, विशेष रूप से ‘प्रीह विहेयर मंदिर’ (Preah Vihear Temple) को लेकर कई बार तनाव उत्पन्न हो चुका है। 1962 में अंतरराष्ट्रीय न्यायालय ने मंदिर को कंबोडिया का हिस्सा माना, परंतु आसपास के क्षेत्रों को लेकर विवाद बना रहा। 2008 में यह विवाद एक बार फिर उभरा और दोनों सेनाओं के बीच झड़पें भी हुईं।इसके अलावा, थाईलैंड हमेशा से कंबोडिया में चीन की बढ़ती उपस्थिति को लेकर आशंकित रहा है। वहीं, कंबोडिया, थाईलैंड की घरेलू राजनीति में सैन्य शासन और राजशाही के प्रभाव को लेकर असहजता जताता रहा है।
घटनाक्रम और कूटनीतिक प्रतिक्रियाएं – जुलाई 2025: थक्सिन की यात्रा और भव्य स्वागत। – थाई सरकार द्वारा विरोध दर्ज किया गया। – कंबोडिया द्वारा इसे व्यक्तिगत दौरा बताया गया। – ASEAN की ओर से संयम बरतने की अपील। – चीन द्वारा कंबोडिया की ‘राजनीतिक स्वतंत्रता’ का समर्थन। |
आसियान लंबे समय से क्षेत्रीय शांति और सहयोग के लिए कार्य कर रहा है, परंतु थाईलैंड-कंबोडिया विवाद से ASEAN(दक्षिण-पूर्व एशियाई राष्ट्र संघ) की एकता पर प्रश्नचिन्ह लगते हैं। यह संगठन ‘गैर-हस्तक्षेप’ की नीति अपनाता है, जिससे वह सदस्य देशों के आंतरिक मामलों में सीधे हस्तक्षेप नहीं कर सकता। किंतु सीमा विवादों, राजनयिक अपमान और सैन्य तनाव की स्थिति में आसियानकी निष्क्रियता पर आलोचना होती रही है।वर्तमान विवाद आसियानको यह सोचने पर मजबूर करता है कि क्या संगठन को अपने चार्टर और नीति-निर्देशों में बदलाव कर, अधिक सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए।
कंबोडिया दक्षिण-पूर्व एशिया में चीन का सबसे घनिष्ठ सहयोगी बन चुका है। चीन ने सिहानोकविल (Sihanoukville) में बंदरगाह, हवाई अड्डे, और सैन्य आधार जैसी कई रणनीतिक परियोजनाओं में निवेश किया है। थाईलैंड के साथ तनाव की स्थिति में चीन खुले तौर पर कंबोडिया का समर्थन कर सकता है। थक्सिन शिनावात्रा स्वयं चीन समर्थक माने जाते हैं, और उनकी कंबोडिया यात्रा को भी चीन के समर्थन से जोड़कर देखा जा रहा है। इससे थाईलैंड की राजनीतिक व्यवस्था में चीन विरोधी भावना और प्रबल हो सकती है। यह पूरा घटनाक्रम दक्षिण-पूर्व एशिया में चीन के ‘proxy politics’ का उदाहरण माना जा सकता है।
भारत पर इस विवाद के प्रभाव की बात करें तो भारत आसियान के साथ गहरे आर्थिक और रणनीतिक संबंध रखता है। थाईलैंड और कंबोडिया दोनों भारत की ‘एक्ट ईस्ट पॉलिसी’ के तहत प्रमुख साझेदार हैं। इस विवाद के कारण भारत को कई मोर्चों पर चुनौती का सामना करना पड़ सकता है,जैसे: थाईलैंड और कंबोडिया दोनों के साथ द्विपक्षीय संतुलन बनाकर रखना,चीन के प्रभाव को संतुलित करना,बिमस्टेक और मेकांग-गंगा सहयोग जैसे मंचों पर सामंजस्य साधना,पूर्वोत्तर भारत के लिए व्यापारिक गलियारों (जैसे IMT ट्राईलेटरल हाइवे) पर प्रत्यक्ष प्रभाव आदि।
भारत को इस क्षेत्र में अपनी राजनयिक सक्रियता बढ़ाने की आवश्यकता है, ताकि वह न केवल चीन के प्रभाव को संतुलित कर सके, बल्कि क्षेत्रीय शांति में भी सहायक बन सके।भारत को भी इस घटनाक्रम पर निकटता से नज़र रखने की ज़रूरत है और क्षेत्रीय स्थिरता के लिए आसियान के साथ मिलकर कार्य करना चाहिए। कूटनीतिक स्तर पर भारत को थाईलैंड और कंबोडिया दोनों के साथ सक्रिय संपर्क बनाए रखने चाहिए ताकि कोई भी रणनीतिक संतुलन न बिगड़े।
अंत में यह कहा जा सकता है कि थाईलैंड और कंबोडिया का यह नया विवाद केवल द्विपक्षीय तनाव नहीं है, बल्कि यह दक्षिण-पूर्व एशिया में बढ़ती भू-राजनीतिक प्रतिस्पर्धा, चीन के प्रभाव और आसियान की भूमिका पर भी सवाल उठाता है। भारत जैसे क्षेत्रीय शक्ति को इस अवसर का उपयोग करके शांति, सहयोग और संतुलन की दिशा में कार्य करना चाहिए, ताकि भविष्य में इस प्रकार के संघर्षों से क्षेत्रीय व्यवस्था प्रभावित न हो।