1884-85 के बर्लिन सम्मेलन में जब बिस्मार्क यूरोप में किसी बड़े युद्ध को टालने के लिए अफ्रीकी महाद्वीप के बंटवारे का प्लान लेकर आया था तब किसी ने नहीं सोचा था कि अफ्रीका इस दंश से कभी नहीं निकल सकेगा।एक ऐसा महाद्वीप जहां की सीमा रेखाएं जमीन पर नहीं बल्कि जनजातियों की परंपराओं की भिन्नता से विभाजित थी ,उस महाद्वीप का यूरोपीय राष्ट्रवाद के मानदंडों पर विभाजन एवं सीमांकन करने से अफ्रीकी महाद्वीप आज 141 वर्ष बाद भी नहीं उभर पाया है।हालांकि इस दिशा में इन नए नवेले अफ्रीकी देशों ने प्रयास अवश्य किए और इन्हीं प्रयासों में सबसे ईमानदार प्रयास पश्चिमी अफ्रीकी राज्यों के आर्थिक समुदाय (ECOWAS) के 1975 में गठन के रूप में हुआ था।आज यह संगठन अपनी स्थापना के 50 वर्ष पूरे कर रहा है।इस संगठन की 50वीं वर्षगांठ पर इसके गठन,इसकी अफ्रीकी एकीकरण और अफ्रीकी राष्ट्रीयता के उभार में सफलता-असफलता,इसकी चुनौतियों और भविष्य की संभावनाओं पर विचार करना अवश्यंभावी हो जाता है।
पश्चिमी अफ्रीकी राज्यों के आर्थिक समुदाय (ECOWAS) संगठन के बारे में:
यह पश्चिम अफ्रीका में स्थित पंद्रह देशों का एक क्षेत्रीय राजनीतिक और आर्थिक संघ है।इसकी स्थापना 1975 में लागोस संधि पर हस्ताक्षर के माध्यम से हुई थी।आज, इस संगठन के 15 सदस्य थे : बेनिन, बुर्किना फ़ासो, केप वर्डे, कोट डी आइवर, गाम्बिया, घाना, गिनी, गिनी बिसाऊ, लाइबेरिया, माली, नाइजर, नाइजीरिया, सिएरा लियोन, सेनेगल और टोगो।इस क्षेत्र में लगभग 40 करोड़ लोग रहते हैं।इन देशों में से बुर्किना फासो, माली और नाइजर ने जनवरी 2024 में संगठन से हटने की घोषणा की , तथा सहेल राज्यों के गठबंधन नामक एक अलग गुट का गठन किया।इस प्रकार अब केवल 12 देश इसके सदस्य रह गए हैं।इसका मुख्यालय अबुजा, नाइजीरिया में अवस्थित है।
इसकी स्थापना अपने सदस्य देशों के लिए आर्थिक आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देने हेतु एक बड़े व्यापारिक समूह के निर्माण के दृष्टिकोण से प्रेरित थी।इस संगठन का मुख्य लक्ष्य अपने सदस्य देशों के बीच आर्थिक सहयोग और एकीकरण को बढ़ावा देना है ताकि क्षेत्र में जीवन स्तर में सुधार हो और स्थिरता को बढ़ावा मिले।
साहेल क्षेत्र-
• यह पश्चिमी और उत्तर-मध्य अफ्रीका का अर्धशुष्क क्षेत्र है, जो सेनेगल से पूर्व की ओर सूडान तक फैला हुआ है । • यह उत्तर में सहारा रेगिस्तान और दक्षिण में आर्द्र सवाना की बेल्ट के बीच एक संक्रमणकालीन क्षेत्र बनाता है। • यह उत्तरी सेनेगल, दक्षिणी मॉरिटानिया, माली, बुर्किना फासो, दक्षिणी नाइजर, उत्तर-पूर्वी नाइजीरिया , दक्षिण-मध्य चाड और सूडान तक फैला है।
अलायंस ऑफ साहेल स्टेट्स- • सितंबर, 2023 में माली, बुर्किना फासो और नाइजर के मंत्रिस्तरीय प्रतिनिधिमंडल ने माली की राजधानी ‘बमाको’ में पारस्परिक रक्षा समझौते की घोषणा की। • इसके पश्चात अलायंस ऑफ साहेल स्टेट्स अस्तित्व में आया। • इसमें पांच देश शामिल हैं- माली, बुर्किना फासो, नाइजर, मॉरिटानिया, चाड। • यह इन देशों के बीच पारस्परिक रक्षा और सहायता के लिये एक रूपरेखा प्रदान करता है।
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संगठन की संरचना:
इस संगठन की संरचना बहुस्तरीय है जिसमें शिखर सम्मेलन, मंत्रिपरिषद, आयोग, न्यायालय और क्षेत्रीय संसद जैसी संस्थाएँ कार्यरत हैं। यह संरचना संगठन के निर्णयों की पारदर्शिता और क्रियान्वयन को सुनिश्चित करती है। इसके अतिरिक्त, क्षेत्रीय शांति और सुरक्षा सुनिश्चित करने हेतु इकोवास ने एक शांति और सुरक्षा तंत्र भी विकसित किया है।
संगठन की सफलता और चुनौतियां:
पिछले पचास वर्षों में इकोवास ने कुछ उल्लेखनीय उपलब्धियाँ दर्ज की हैं। इस संगठन ने क्षेत्रीय व्यापार को सुविधाजनक बनाने के लिए सीमा शुल्क नियंत्रण में ढील दी है, साथ ही मुक्त व्यापार क्षेत्र की दिशा में कई प्रयास किए हैं। इसके अलावा, यह संगठन राजनीतिक अस्थिरता और तख्तापलट की घटनाओं के समय हस्तक्षेप करके लोकतांत्रिक संस्थाओं की रक्षा करता रहा है। लाइबेरिया, सिएरा लियोन और हाल में माली तथा बुर्किना फासो में इकोवास की शांति सेनाएँ तैनात की गईं जिससे वहां लोकतंत्र की बहाली की दिशा में कुछ सकारात्मक परिणाम सामने आए।
हालांकि, सफलता की इन कहानियों के समानांतर, संगठन को गंभीर आलोचनाओं और चुनौतियों का भी सामना करना पड़ा है। सबसे बड़ी चुनौती इसके निर्णयों के प्रभावी क्रियान्वयन की रही है। कई बार सदस्य राष्ट्र संगठन के निर्देशों की अवहेलना करते रहे हैं। इसके अतिरिक्त, सदस्य देशों के बीच राजनीतिक अस्थिरता, सैन्य तख्तापलट, आतंकवाद और सीमावर्ती संघर्षों ने संगठन की विश्वसनीयता और क्षमताओं पर प्रश्न चिह्न लगाए हैं। उदाहरण के लिए, हाल के वर्षों में माली, बुर्किना फासो और नाइजर में सैन्य शासन की स्थापना ने इकोवास की लोकतांत्रिक प्रतिबद्धताओं को चुनौती दी है।
एक अन्य महत्वपूर्ण चुनौती संगठन की वित्तीय निर्भरता है। इकोवास के अधिकतर कार्यक्रम बाहरी वित्त पोषण पर निर्भर करते हैं, जिससे उसकी स्वतंत्रता और निर्णय लेने की क्षमता प्रभावित होती है। इसके अतिरिक्त, संगठन के भीतर अंगीकृत भाषाओं, प्रशासनिक दक्षताओं और विकास के स्तर में भी विषमता दिखाई देती है, जो इसकी कार्यक्षमता को प्रभावित करती है।
फिर भी इस संगठन की सफलता का विश्लेषण क्षेत्रीय चुनौतियों के संदर्भ में ही किया जाना चाहिए।जहां एक ओर इस संगठन ने इस्लामिक कट्टरपंथ,सैनिक तानाशाही का विस्तार आदि को रोकने का कार्य किया है तो दूसरी ओर लोकतांत्रिक मूल्यों ,आर्थिक उन्नति को सुनिश्चित किया है।
भविष्य की संभावनाऐं:
भविष्य की संभावनाओं की बात करें तो इकोवास के समक्ष व्यापक अवसर भी हैं। क्षेत्रीय व्यापार को और अधिक सुगम बनाने, अवसंरचना को विकसित करने और युवा आबादी को रोजगार उपलब्ध कराने जैसे लक्ष्य इसके भविष्य के लिए निर्णायक होंगे। साथ ही, अफ्रीकी महाद्वीप की आकांक्षाओं के अनुरूप एकजुटता को बढ़ावा देना भी इसकी प्राथमिकता होनी चाहिए।
अंतरराष्ट्रीय मंच पर इकोवास की भूमिका लगातार बढ़ रही है। यह न केवल पश्चिम अफ्रीका की समस्याओं का समाधान ढूंढने का प्रयास कर रहा है, बल्कि वैश्विक संगठनों के साथ सहयोग कर विकास, जलवायु परिवर्तन, और स्वास्थ्य सेवाओं जैसे क्षेत्रों में भी सक्रिय भागीदारी निभा रहा है। भारत जैसे देशों के साथ इसके संबंध और व्यापारिक सहयोग भी हाल के वर्षों में बढ़े हैं। भारत ने इस क्षेत्र में शिक्षा, स्वास्थ्य, अवसंरचना और डिजिटल प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में सहयोग बढ़ाया है।
भारत और इकोवास:
भारत और इकोवास के संबंधों को और प्रगाढ़ बनाने की आवश्यकता है क्योंकि भारत अफ्रीका की आकांक्षाओं में एक प्राकृतिक साझेदार के रूप में देखा जाता है। दोनों पक्षों के बीच द्विपक्षीय व्यापार, तकनीकी सहयोग, और निवेश को बढ़ावा देने से न केवल आपसी संबंध मजबूत होंगे, बल्कि पश्चिम अफ्रीका के विकास में भी गति आएगी।
वर्तमान में संगठन जिन संकटों से गुजर रहा है, वे इसके अस्तित्व की परीक्षा हैं। माली, बुर्किना फासो और नाइजर द्वारा संगठन से नाता तोड़ना, सैन्य शासन की पुनर्स्थापना, और आपसी अविश्वास, इन सबने इकोवास की कार्यप्रणाली को कमजोर किया है। ऐसे में संगठन को अपनी रणनीति, कार्यशैली और प्राथमिकताओं की पुनर्समीक्षा करनी होगी।
यदि इकोवास अपने ढांचे को मजबूत बनाते हुए, निर्णयों के क्रियान्वयन को सुनिश्चित कर सके, और सदस्य देशों के बीच पारस्परिक विश्वास को बहाल कर सके, तो यह संगठन न केवल अफ्रीका के लिए, बल्कि समूचे वैश्विक दक्षिण के लिए एक प्रेरणास्रोत बन सकता है। इसके लिए एक सशक्त, समावेशी, और उत्तरदायी नेतृत्व की आवश्यकता है जो संगठन को 21वीं सदी की जटिलताओं में मार्गदर्शन दे सके।
आगे की राह:
अंततः, इकोवास के पचास वर्षों का सफर एक ऐसे संगठन की कहानी है जो समय-समय पर संकटों से जूझता रहा है, परंतु फिर भी अपने मूल उद्देश्यों की ओर अग्रसर रहा है। यह एक ऐसे भविष्य की अपेक्षा करता है जहाँ क्षेत्रीय एकता और सहयोग के माध्यम से पश्चिम अफ्रीका के नागरिकों को समृद्धि, स्थायित्व और गरिमा प्राप्त हो। इसके लिए न केवल संगठन, बल्कि उसके सभी सदस्य राष्ट्रों को एकजुट होकर कार्य करना होगा, तभी इकोवास की आगामी यात्रा सफल हो सकेगी।
प्रारंभिक परीक्षा हेतु मॉडल प्रश्न:
1- पश्चिमी अफ्रीकी राज्यों के आर्थिक समुदाय (ECOWAS) के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार करें: 1- इस संगठन में पश्चिमी अफ्रीका में अवस्थित सभी देश सदस्य हैं। 2- भारत इस संगठन का पर्यवेक्षक राष्ट्र है। 3- इस संगठन का मुख्यालय नाइजर में स्थित है। उपर्युक्त में से कितने कथन सत्य हैं? (a) केवल एक (b) केवल दो (c) सभी तीन (d) उपर्युक्त में से कोई नहीं Answer- a
2-निम्नलिखित देशों पर विचार करें: 1- माली 2- नाइजीरिया 3- बुर्किना फासो उपर्युक्त में से कितने देश वर्तमान में अलायंस ऑफ साहेल स्टेट्स और इकोवास (ECOWAS) संगठन दोनों के अंतर्गत आते हैं? (a) केवल 1 और 2 (b) केवल 2 (c) केवल 2 और 3 (d) केवल 3 Answer- b
मुख्य परीक्षा हेतु मॉडल प्रश्न:
अफ्रीकी महाद्वीप की औपनिवेशिक विरासत से मुक्ति और आर्थिक – कूटनीतिक आत्मनिर्भरता सुनिश्चित करने में पश्चिमी अफ्रीकी राज्यों के आर्थिक समुदाय (ECOWAS) संगठन की भूमिका का आलोचनात्मक मूल्यांकन कीजिए। |