• एक प्रसिद्ध भारतीय लेखक और शिक्षक हैं। वे कोलंबिया यूनिवर्सिटी (अमेरिका) में “भारतीय राजनीति और बौद्धिक इतिहास” (Indian Politics and Intellectual History) के प्रोफेसर हैं। उन्होंने JNU (नई दिल्ली) से पीएच.डी. की है और पहले ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटीऔर लंदन यूनिवर्सिटी में भी पढ़ा चुके हैं। कविराज Subaltern Studies नाम के एक प्रसिद्ध शोध समूह के सदस्य भी हैं, जो आम लोगों के इतिहास को समझने की कोशिश करता है।
• भारत के एक जाने-माने राजनीतिक सोचवाले लेखक, इतिहासकार और साहित्य के जानकार हैं। उन्होंने भारत की राजनीति, राष्ट्रवाद, आधुनिकता और संस्कृति पर गहराई से लिखा है। उनका मानना है कि भारत की आधुनिकता और राष्ट्रवाद, यूरोप जैसे देशों से अलग और खास है।
• उनकी किताबों में यह साफ दिखाई देता है कि भारत की राजनीति सिर्फ सत्ता या सरकार का मामला नहीं है, बल्कि यह एकसांस्कृतिक और सामाजिक सोच से जुड़ी हुई है। वे कहते हैं कि भारत जैसे विविधता भरे देश में लोकतंत्र, समाज और राष्ट्र कोस्थानीय परंपराओं और अनुभवों से समझना चाहिए।
• उनका यह भी मानना है कि भारत में लोकतंत्र सिर्फ एक नियम या व्यवस्था नहीं, बल्कि लोगों के लिए एक भावनात्मक जुड़ाव है। उन्होंने यह भी बताया कि भारत की सिविल सोसाइटी (नागरिक समाज) पश्चिमी देशों से अलग है, जो धर्म, जाति और भाषा जैसे पहलुओं से बनी है।
• उनकी सोच हमें यह समझने में मदद करती है कि भारत ने पश्चिम के विचारों को अपनाया, लेकिन उन्हें अपने समाज और संस्कृति के अनुसार बदला जैसे निजी जीवन की सोच, राष्ट्र की कल्पना और राजनीति की भाषा।
मुख्य विचार
• पश्चिमी आधुनिकता की आलोचना: कविराज कहते हैं कि यह मानना गलत है कि आधुनिकता एक एकरूप और सार्वभौमिक प्रक्रिया है जो पश्चिम से बाकी दुनिया में फैली है। भारत जैसे देशों में स्थानीय समाज, परंपराएँ और इतिहास आधुनिकता को अपने तरीके से ढालते हैं।
• अनेक आधुनिकताएँ (Multiple Modernities): उनका मुख्य तर्क यह है कि भारत में आधुनिकता एक ही रूप में नहीं आई। बल्कि यहाँ की सांस्कृतिक परंपराओं के माध्यम से इसे नया रूप दिया गया। परिणामस्वरूप, भारत में एक मिश्रित और विशिष्ट आधुनिकताविकसित हुई।
• औपनिवेशिक प्रभाव: भारतीय आधुनिकता की जड़ें औपनिवेशिक शासन में भी हैं। भारत में आधुनिक संस्थाएँ (जैसे संसद, नौकरशाही, लोकतंत्र) भीतर से नहीं पनपीं, बल्कि उन्हें बाहर से थोपा गया। इससे समाज में परंपरा और आधुनिकता के बीच टकराव उत्पन्न हुआ।
• राजनीतिक संस्थाएँ और भारतीय समाज: भारतीय लोकतंत्र, राष्ट्रवाद और राज्य की संस्थाएँ—ये सभी पश्चिम से आई अवधारणाएँ थीं, लेकिन इन्हें भारतीय संदर्भ में नया अर्थ दिया गया। उदाहरणस्वरूप, भारतीय लोकतंत्र में जाति, धर्म और समुदाय की गहरी भूमिका है, जो पश्चिमी सोच से अलग है।
• सांस्कृतिक अनुवाद (Cultural Translation): ‘अधिकार’, ‘बराबरी’, और ‘व्यक्तिवाद’ जैसे आधुनिक विचार भारतीय समाज में स्थानीय भाषाओं और परंपराओं के जरिए व्याख्यायित हुए। इससे एक नई वैचारिक आधुनिकता बनी जो ना पूरी तरह पारंपरिक थी और ना ही पूरी तरह पश्चिमी।
पुस्तके
• The Invention of Private Life (2015)
Trajectories of the Indian State (2014)
Trajectories of the Indian State (2014)
• The Enchantment of Democracy and India (2011)
The Imaginary Institution of India (2010)
Civil Society: History and Possibilities (2001, सह-संपादक: सुनील खिलनानी)
The Imaginary Institution of India (2010)
Civil Society: History and Possibilities (2001, सह-संपादक: सुनील खिलनानी)
• Politics in India (1999, संपादित)
The Unhappy Consciousness: Bankimchandra Chattopadhyay and the Formation of Nationalist Discourse in India (1995)
The Unhappy Consciousness: Bankimchandra Chattopadhyay and the Formation of Nationalist Discourse in India (1995)
• Negotiating Democracy and Religious Pluralism (2021, सह-संपादक: Karen Barkey और Vatsal Naresh)