विवाद का कारण क्या है?
हाल ही में सरकार ने चुनाव आयुक्त नियुक्ति कानून, 2023 पास किया। इसमें प्रधानमंत्री, एक कैबिनेट मंत्री और विपक्ष के नेता से बनी समिति चुनाव आयुक्त नियुक्त करती है। विपक्ष का कहना है कि इस प्रक्रिया से सरकार को ज़्यादा ताक़त मिल जाती है और निष्पक्षता पर असर पड़ता है।
चुनाव आयोग (EC) के सामने चुनौतियाँ क्या हैं?
7 अगस्त को राहुल गांधी ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की, जिसमें उन्होंने कर्नाटक की महादेवपुरा विधानसभा सीट में बड़े पैमाने पर वोटर लिस्ट में गड़बड़ी और महाराष्ट्र चुनाव में धांधली का आरोप लगाया। साथ ही, सुप्रीम कोर्ट ने भी बिहार में हो रहे विशेष सारांश पुनरीक्षण (SIR) पर सवाल उठाए। इन सब कारणों से चुनाव आयोग (EC) चर्चा में आ गया और विवाद खड़ा हो गया।
वोटर लिस्ट पर प्रश्नचिन्ह
पिछले साल महा विकास अघाड़ी (MVA) ने आरोप लगाया कि महाराष्ट्र में बीजेपी ने लाखों फर्जी वोटर जोड़ दिए हैं। राहुल गांधी ने भी बेंगलुरु और कर्नाटक की सीटों पर इसी तरह की धांधली का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि वोटर लिस्ट में फर्जी नाम, मृतक लोग, गलत पते और दो-दो जगह पंजीकरण जैसी गड़बड़ियाँ पाई गई हैं। इसी कारण, चुनाव आयोग ने बिहार में SIR (Special Summary Revision) शुरू किया ताकि वोटर लिस्ट को साफ किया जा सके। लेकिन विपक्ष ने इस प्रक्रिया पर भरोसा नहीं जताया।
सुप्रीम कोर्ट की प्रतिकिर्या
14 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट ने EC को आदेश दिया कि वह वोटर लिस्ट सार्वजनिक करे और उसमें से हटाए गए नामों के कारण बताए। अदालत ने कहा कि बिना पारदर्शिता के यह प्रक्रिया लोकतंत्र के खिलाफ है। क्योंकि बहुत सारे मजदूर और प्रवासी लोग वोट डालने के लिए अपने गाँव नहीं जा पाते। इसलिए वे वोटिंग प्रक्रिया से बाहर हो जाते हैं। यह लोकतंत्र के लिए बड़ी चुनौती है क्योंकि इनकी आवाज़ भी महत्वपूर्ण है।
भारत चुनाव/निर्वाचन आयोग
- चुनाव आयोग की स्थापना 25 जनवरी, 1950 को संविधान के अनुसार की गई थी।
- भारतीय संविधान का भाग 15 चुनावों से संबंधित है जिसमें चुनावों के संचालन के लिये एक आयोग की स्थापना करने की बात कही गई है।
- संविधान के अनुच्छेद 324 से 329 तक चुनाव आयोग और सदस्यों की शक्तियों, कार्य, कार्यकाल, पात्रता आदि से संबंधित हैं।
भारत निर्वाचन आयोग एक स्वायत्त संवैधानिक निकाय है जो भारत में संघ और राज्य चुनाव प्रक्रियाओं का संचालन करता है। यह देश में लोकसभा, राज्यसभा, राज्य विधानसभाओं, राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के चुनाव का संचालन करता है।
निर्वाचन आयोग की संरचना
16 अक्तूबर 1989 को राष्ट्रपति ने आदेश जारी करके इसमें तीन सदस्य कर दिए (एक मुख्य चुनाव आयुक्त + दो चुनाव आयुक्त)। कुछ समय बाद इसे फिर से एक सदस्यीय कर दिया गया। लेकिन 1 अक्तूबर 1993 से यह दोबारा तीन सदस्यीय आयोग बन गया और तब से आज तक ऐसा ही है।
- निर्वाचन आयोग का मुख्य दफ़्तर (सचिवालय) नई दिल्ली में स्थित है।
- मुख्य निर्वाचन आयुक्त (Chief Election Commissioner – CEC) और अन्य चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति राष्ट्रपति करते हैं।
- मुख्य निर्वाचन अधिकारी आमतौर पर IAS रैंक का अधिकारी होता है।
- इनका कार्यकाल 6 साल या 65 वर्ष की आयु तक होता है – जो भी पहले आ जाए।
- इन्हें सुप्रीम कोर्ट के जज के बराबर दर्जा, वेतन और भत्ते मिलते हैं।
- मुख्य चुनाव आयुक्त को उसके पद से हटाने की प्रक्रिया वही है, जो सुप्रीम कोर्ट के जज को हटाने के लिए अपनाई जाती है। यानी सीधे-सीधे सरकार नहीं हटा सकती, इसके लिए संसद की विशेष प्रक्रिया अपनानी पड़ती है।
निर्वाचन आयोग क्या है?
भारत निर्वाचन आयोग, जिसे चुनाव आयोग के नाम से भी जाना जाता है, एक स्वायत्त संवैधानिक निकाय है जो भारत में संघ और राज्य चुनाव प्रक्रियाओं का संचालन करता है।
यह देश में लोकसभा, राज्यसभा, राज्य विधानसभाओं, राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के चुनाव का संचालन करता है।
- भारतीय संविधान का भाग 15 चुनावों से संबंधित है जिसमें चुनावों के संचालन के लिये एक आयोग की स्थापना करने की बात कही गई है।
- चुनाव आयोग की स्थापना 25 जनवरी, 1950 को संविधान के अनुसार की गई थी।
- संविधान के अनुच्छेद 324 से 329 तक चुनाव आयोग और सदस्यों की शक्तियों, कार्य, कार्यकाल, पात्रता आदि से संबंधित हैं।
संविधान में चुनावों से संबंधित अनुच्छेद
324 | चुनाव आयोग में चुनावों के लिये निहित दायित्व: अधीक्षण, निर्देशन और नियंत्रण। |
325 | धर्म, जाति या लिंग के आधार पर किसी भी व्यक्ति विशेष को मतदाता सूची में शामिल न करने और इनके आधार पर मतदान के लिये अयोग्य नहीं ठहराने का प्रावधान। |
326 | लोकसभा एवं प्रत्येक राज्य की विधानसभा के लिये निर्वाचन वयस्क मताधिकार के आधार पर होगा। |
327 | विधायिका द्वारा चुनाव के संबंध में संसद में कानून बनाने की शक्ति। |
328 | किसी राज्य के विधानमंडल को इसके चुनाव के लिये कानून बनाने की शक्ति। |
329 | चुनावी मामलों में अदालतों द्वारा हस्तक्षेप करने के लिये बार (BAR) |
निर्वाचन आयोग के कार्य
- चुनाव आयोग भारत में लोकसभा, राज्यसभा, राज्य विधानसभाओं, राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के चुनाव की संपूर्ण प्रक्रिया का अधीक्षण, निर्देशन और नियंत्रण करता है।
- इसका सबसे महत्त्वपूर्ण कार्य आम चुनाव या उप-चुनाव कराने के लिये समय-समय पर चुनाव कार्यक्रम तय करना है।
- यह निर्वाचक नामावली (Voter List) तैयार करता है तथा मतदाता पहचान पत्र (EPIC) जारी करता है।
- यह मतदान एवं मतगणना केंद्रों के लिये स्थान, मतदाताओं के लिये मतदान केंद्र तय करना, मतदान एवं मतगणना केंद्रों में सभी प्रकार की आवश्यक व्यवस्थाएँ और अन्य संबद्ध कार्यों का प्रबंधन करता है।
- यह राजनीतिक दलों को मान्यता प्रदान करता है उनसे संबंधित विवादों को निपटाने के साथ ही उन्हें चुनाव चिह्न आवंटित करता है।
- निर्वाचन के बाद अयोग्य ठहराए जाने के मामले में आयोग के पास संसद और राज्य विधानसभाओं के सदस्यों की बैठक हेतु सलाहकार क्षेत्राधिकार भी है।
- यह राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों के लिये चुनाव में ‘आदर्श आचार संहिता’ जारी करता है, ताकि कोई अनुचित कार्य न करे या सत्ता में मौजूद लोगों द्वारा शक्तियों का दुरुपयोग न किया जाए।
- यह सभी राजनीतिक दलों के लिये प्रति उम्मीदवार चुनाव अभियान खर्च की सीमा निर्धारित करता है और उसकी निगरानी भी करता है।
निर्वाचन आयोग के सामने प्रमुख चुनौतियाँ
- हालाँकि निर्वाचन आयोग ने कई सुधारों की सिफारिश की है, फिर भी इसके सामने कई गंभीर चुनौतियाँ बनी हुई हैं। सबसे बड़ी समस्या है राजनीति का अपराधीकरण – चुनावों में धनबल, बाहुबल और अपराधियों की भागीदारी बढ़ती जा रही है। राज्यों की सरकारें भी चुनाव से पहले बड़े पैमाने पर अधिकारियों का स्थानांतरण कर देती हैं और चुनाव प्रचार में सरकारी संसाधनों का दुरुपयोग होता है, जिससे आचार संहिता का उल्लंघन होता है।
- दूसरी चुनौती यह है कि आयोग के पास राजनीतिक दलों के आंतरिक लोकतंत्र या उनकी वित्तीय पारदर्शिता को नियंत्रित करने की पर्याप्त शक्ति नहीं है। हाल के वर्षों में आयोग की निष्पक्षता पर सवाल उठने लगे हैं और यह आरोप लगने लगे हैं कि चुनाव आयोग सरकार के दबाव में काम करता है। मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य आयुक्तों की नियुक्ति प्रक्रिया भी पारदर्शी नहीं है, क्योंकि इसमें मौजूदा सरकार का दखल ज़्यादा होता है।
- इसके अलावा, EVM मशीनों पर भी कई बार सवाल उठाए जाते हैं – जैसे मशीन खराब होना, हैकिंग के आरोप, या वोट सही से दर्ज न होना। इससे जनता का विश्वास कमज़ोर होता है। निचले स्तर की नौकरशाही का सत्ताधारी दल के साथ मिलीभगत करना भी आयोग के लिए चिंता का विषय है।
- इसीलिए ज़रूरी है कि निर्वाचन आयोग के पास और कानूनी अधिकार हों और उसमें केवल योग्य, सक्षम और निष्पक्ष लोग नियुक्त किए जाएँ। द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग ने सिफारिश की थी कि मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति के लिए एक कॉलेजियम प्रणाली बनाई जाए, जिसमें प्रधानमंत्री, लोकसभा अध्यक्ष, विपक्ष के नेता, कानून मंत्री और राज्यसभा के उपाध्यक्ष शामिल हों। इससे नियुक्ति की प्रक्रिया अधिक निष्पक्ष और पारदर्शी हो सकेगी।
निर्वाचन आयोग की चुनावी सुधारों पर सिफारिशें (2020)
- वर्ष 2020 में निर्वाचन आयोग (ECI) ने कई सुधार सुझाए। इसमें मुख्य विचार यह था कि मतदाता पंजीकरण की प्रक्रिया को सरल और आधुनिक बनाया जाए। आयोग ने कहा कि नए मतदाताओं के पंजीकरण और पता बदलने जैसी सेवाओं के लिए अलग-अलग फॉर्म की बजाय केवल एक ही फॉर्म इस्तेमाल होना चाहिए, ताकि भ्रम कम हो और प्रक्रिया तेज़ हो सके। इसके अलावा, आयोग ने यह भी सुझाव दिया कि 17 साल की उम्र में ही छात्रों को स्कूल या कॉलेज स्तर पर ऑनलाइन पंजीकरण का मौका मिलना चाहिए, ताकि 18 साल के होते ही वे स्वतः मतदाता सूची में शामिल हो जाएँ। आयोग ने मतदाताओं को नामांकित करने के लिए साल में चार कट-ऑफ तिथियों (जनवरी, अप्रैल, जुलाई, अक्तूबर) की सिफारिश की।
- ECI ने यह भी प्रस्ताव रखा कि मतदाताओं की सुविधा के लिए पहचान पत्र (EPIC) का इलेक्ट्रॉनिक संस्करण उपलब्ध कराया जाए। साथ ही, भविष्य में मतदान को और आसान बनाने के लिए नई मतदान विधियों (जैसे ऑनलाइन या रिमोट वोटिंग) की संभावना पर काम किया जाए। IIT मद्रास, आधार से जुड़ी रिमोट वोटिंग प्रणाली पर प्रोटोटाइप तैयार कर रहा है। राजनीतिक दलों के लिए आयोग ने सुझाव दिया कि उम्मीदवारों को ऑनलाइन नामांकन की सुविधा मिले और दलों पर भी खर्च की सीमा तय हो। एक और अहम सिफारिश यह थी कि सोशल मीडिया और प्रिंट मीडिया पर भी मतदान से 48 घंटे पहले ‘मौन अवधि’ लागू की जाए, ताकि मतदाताओं पर आखिरी समय में दबाव न डाला जा सके।
चुनाव कानून (संशोधन) विधेयक, 2021 की प्रमुख विशेषताएँ
- दिसंबर 2021 में संसद ने चुनाव कानून (संशोधन) विधेयक, 2021 पारित किया। इसका उद्देश्य मतदाता सूची की पारदर्शिता और शुद्धता बढ़ाना था। इसमें मुख्य बदलाव यह था कि मतदाता सूची को आधार से जोड़ा जाए, ताकि किसी व्यक्ति का नाम दो अलग-अलग जगहों पर न चढ़ सके। इससे फर्जी वोटिंग और फर्जी पहचान रोकने में मदद मिलेगी।
- इसके अलावा, विधेयक ने चार क्वालिफाइंग डेट्स (जनवरी, अप्रैल, जुलाई, अक्तूबर) तय कीं ताकि 18 साल की उम्र पूरी करने वाले लोग तुरंत मतदाता सूची में शामिल हो सकें। इससे उन युवाओं को फायदा होगा जो पहले केवल 1 जनवरी की कट-ऑफ तारीख के कारण मतदाता सूची से बाहर रह जाते थे। एक और बड़ा सुधार यह था कि सेवा मतदाताओं (जैसे सेना के जवान या विदेश में तैनात सरकारी कर्मचारी) के लिए नियमों को लैंगिक रूप से तटस्थ बनाया गया। पहले केवल ‘पत्नी’ लिखा जाता था, अब इसे बदलकर ‘जीवनसाथी’ कर दिया गया, ताकि महिलाओं और पुरुषों दोनों पर समान रूप से लागू हो।
निष्कर्ष
हाल में चुनाव आयोग पर आरोप है कि वोटर लिस्ट में गड़बड़ी और फर्जी नाम जोड़े गए। नए नियुक्ति कानून से विपक्ष को लगता है कि सरकार चुनाव आयोग पर असर डाल रही है। जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया है कि वोटर लिस्ट की पारदर्शिता बनाए रखी जाए। दूसरी ओर प्रवासी मजदूर वोट डालने से वंचित रह जाते हैं, जो एक बड़ी समस्या है।
निर्वाचन आयोग भारत के लोकतंत्र की रीढ़ है, लेकिन इसे और मजबूत बनाने के लिए चुनावी सुधार ज़रूरी हैं। तकनीक, पारदर्शिता और निष्पक्षता को बढ़ावा देकर ही चुनाव प्रक्रिया को विश्वसनीय और जनता के भरोसे के लायक बनाया जा सकता है।
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