in , ,

लॉयड रूडोल्फ (Lloyd I. Rudolph)

लॉयड रूडोल्फ (Lloyd I. Rudolph), शिकागो विश्वविद्यालय के प्रोफेसर और प्रसिद्ध राजनीतिक वैज्ञानिक थे। उनका निधन 16जनवरी 2016 को कैलिफोर्निया में प्रोस्टेट कैंसर से हुआ। उनकी उम्र 88 साल थी।
उनकी शैक्षणिक यात्रा ज़्यादातर उनकी पत्नी सुज़ैन होएबर रूडोल्फ (Susanne Hoeber Rudolph) के साथ रही। दोनों ने मिलकर भारत पर लंबे समय तक शोध किया और कई महत्वपूर्ण किताबें लिखीं। 2014 में भारत सरकार ने उन्हें संयुक्त रूप से पद्म भूषण से सम्मानित किया।

भारत के अध्ययन में योगदान

उनकी प्रसिद्ध किताब The Modernity of Tradition (1967) ने यह दिखाया कि भारत की पारंपरिक संस्थाएँ (जैसे जाति) केवल पिछड़ी नहीं थीं, बल्कि उन्होंने आधुनिक कार्य भी संभाले। उन्होंने भारतीय राजनीति, राज्य-निर्माण, गांधीवादी विचार और भारतीय समाज में परंपरा व आधुनिकता के संबंधों पर गहरा काम किया।

Modernity of Tradition: Political Development in India, 1967

लॉयड और सुसैन रुडॉल्फ (Rudolph) ने 1967 में अपनी किताब में यह साबित किया कि परम्परा और आधुनिकता विरोधी नहीं बल्कि एक-दूसरे को सहारा दे सकते हैं।
उन्होंने दिखाया कि भारत जैसे समाज में ‘जाति’ जैसी पारम्परिक संस्थाएँ भी आधुनिक राजनीति में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। उदाहरण के लिए, जाति समूह भी राजनीतिक दलों के आधार बन सकते हैं। यानी जाति जैसी परम्परागत चीज़ भी आधुनिक लोकतंत्र में काम कर सकती है।
उनकी यह सोच बहुत प्रभावशाली रही और भारतीय राजनीति के अध्ययन में इसे क्लासिक (classic) दर्जा मिला। उन्होंने यह भी चेतावनी दी कि आधुनिक राजनीति और संस्कृति के जटिल संबंधों को बहुत साधारण ढंग से न समझा जाए।

Gandhi: The Traditional Roots of Charisma1983

गाँधी का करिश्मा (प्रभाव) भारतीय परम्पराओं और आदर्शों से गहराई से जुड़ा था।
गाँधी का राजनीतिक प्रभाव इस बात पर आधारित था कि वे अपने दैनिक जीवन और सार्वजनिक कामों में उन सांस्कृतिक आदर्शों को जी पाते थे, जिनकी भारतीय समाज में बहुत इज़्ज़त थी।
बहुत से भारतीय उन आदर्शों का सम्मान करते थे, लेकिन अपने निजी जीवन में उन्हें निभा नहीं पाते थे। गाँधी ने आत्म-नियंत्रण (self-control) जैसे हिन्दू आदर्शों को अपनाकर अपने आसपास के माहौल को भी नियंत्रित किया और इस कारण लोगों को आकर्षित किया।
उन्होंने परम्परा को नया जीवन दिया और साथ ही उसके कुछ पुराने दोषपूर्ण पहलुओं को तोड़ा भी।
नतीजा यह हुआ कि गाँधी का आंदोलन एक नैतिक और समावेशी राष्ट्रवादी आंदोलन बन गया।

In Pursuit of Lakshmi: The Political Economy of the Indian State, 1987

इसमें उन्होंने स्वतंत्र भारत के राजनीतिक अर्थशास्त्र का विश्लेषण किया। उन्होंने दिखाया कि भारत की स्थिति विरोधाभासी है यह एक साथ विकसित भी है और अविकसित भी, अमीर भी और गरीब भी, मज़बूत भी और कमज़ोर भी।
भारत का राजनीतिक ढांचा पश्चिमी देशों की तरह वर्ग-आधारित नहीं है, बल्कि यहाँ जाति, धर्म, भाषा और अन्य सामाजिक समूह राजनीति और अर्थव्यवस्था दोनों को प्रभावित करते हैं। राज्य(government) ने स्वतंत्रता के बाद विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, लेकिन वह पूरी तरह स्वायत्त नहीं रह सका क्योंकि समाज के अलग-अलग समूह लगातार अपनी माँगें रखते रहे। इसीलिए भारत की राजनीति और अर्थव्यवस्था का रिश्ता जटिल है यह न तो पूरी तरह लोकतांत्रिक आदर्शों से चलता है, न ही पश्चिमी मॉडल से।

उनकी अन्य किताबों में शामिल हैं:

Education and Politics in India (1972)
Gandhi: The Traditional Roots of Charisma (1983)
In Pursuit of Lakshmi: The Political Economy of the Indian State (1987)
Reversing the Gaze: The Amar Singh Diary (2000)
Postmodern Gandhi and Other Essays (2006)
Explaining Indian Democracy: A Fifty-Year Perspective (2008, तीन खंडों में)


Discover more from Politics by RK: Ultimate Polity Guide for UPSC and Civil Services

Subscribe to get the latest posts sent to your email.

What do you think?

भारत-अफ्रीका संबंधों में साझेदारी का नया दौर

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 17