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एडवर्ड सईद/Edward Said: ओरिएंटलिज़्म/Orientalism

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एडवर्ड सईद एक फ़िलिस्तीनी-अमेरिकी साहित्यिक आलोचक, सिद्धांतकार और राजनीतिक कार्यकर्ता थे, जो खासकर अपनी 1978 की पुस्तक Orientalism के लिए जाने जाते हैं।

  • उनका तर्क था कि पश्चिमी विद्वता और संस्कृति में ‘पूर्व’ (Orient) की छवि को इस तरह गढ़ा गया कि वह पश्चिमी श्रेष्ठता और उपनिवेशवाद को वैध ठहराए। उन्होंने दिखाया कि यह प्रस्तुति केवल सांस्कृतिक नहीं बल्कि राजनीतिक और साम्राज्यवादी हितों से गहराई से जुड़ी हुई थी।
  • ‘ओरिएंटलिज़्म’ एडवर्ड सईद की सबसे प्रसिद्ध पुस्तक है, जिसमें उन्होंने यह बताया कि पश्चिम (यूरोप और अमेरिका) ने ‘पूर्व’ (एशिया, मध्य-पूर्व, उत्तरी अफ्रीका) को किस तरह से प्रस्तुत किया और समझा। उनका तर्क था कि यह प्रस्तुति केवल ज्ञान या शोध पर आधारित नहीं थी, बल्कि सत्ता, राजनीति और उपनिवेशवाद से गहराई से जुड़ी हुई थी।

मुख्य बिंदु:

  1. पूर्व की कल्पना: पश्चिमी विद्वानों, लेखकों, कलाकारों और राजनेताओं ने ‘पूर्व’ को एक रहस्यमयी, पिछड़ा, गैर-तार्किक और कमजोर क्षेत्र के रूप में पेश किया।
  2. सत्ता और ज्ञान का संबंध: सईद का कहना था कि पश्चिमी देशों द्वारा ‘पूर्व’ के बारे में जो ज्ञान बनाया गया, वह साम्राज्यवादी शासन और नियंत्रण को सही ठहराने का एक साधन था।
  3. सांस्कृतिक प्रभुत्व: यह प्रक्रिया केवल राजनीतिक या आर्थिक नहीं थी; इसमें साहित्य, कला, इतिहास, और भाषा के जरिए भी प्रभुत्व जमाया गया।
  4. अन्य (Other) की धारणा: पश्चिम ने खुद को श्रेष्ठ और सभ्य दिखाने के लिए ‘पूर्व’ को अपना ‘अन्य’ या विपरीत रूप में स्थापित किया।
  5. आधुनिक प्रभाव: सईद ने यह भी दिखाया कि यह दृष्टिकोण आज भी मीडिया, राजनीति और सांस्कृतिक संवाद में मौजूद है।

ओरिएंटलिस्ट क्या करते है?

सईद का ध्यान विशेष रूप से भाषाशास्त्र (philology) और मानवशास्त्र (anthropology) के उन विद्वानों पर था, जो पश्चिम एशिया (Southwest Asia) और उत्तर अफ्रीका (North Africa) की भाषाओं और संस्कृतियों पर शोध करते थे।

  1. पक्षपातपूर्ण शोध: उन्होंने दिखाया कि इन शोधकर्ताओं ने अपने अत्यधिक चुनिंदा और पक्षपाती अवलोकनों को ‘वैज्ञानिक’ निष्कर्षों के रूप में पेश किया। इस तरह वे स्वयं को इन क्षेत्रों पर ‘निष्पक्ष प्राधिकरण’ (objective authority) के रूप में स्थापित कर लेते थे।
  2. केवल अकादमिक नहीं: ओरिएंटलिस्ट सिर्फ विश्वविद्यालयों और शोध संस्थानों में ही सीमित नहीं थे। सईद ने लेखकों, कवियों, चित्रकारों, दार्शनिकों और राजनेताओं के कामों का भी विश्लेषण किया—जिनमें आर्थर बैल्फ़ोर (Arthur Balfour), विक्टर ह्यूगो (Victor Hugo) और यूजीन डेलाक्रॉआ (Eugène Delacroix) जैसे लोग शामिल हैं।

ओरिएंटलिस्ट वे लोग हैं जो ‘पूर्व’ के बारे में ज्ञान बनाते हैं, लेकिन अक्सर उस ज्ञान में पश्चिमी पक्षपात, श्रेष्ठता की भावना और राजनीतिक हित छिपे होते हैं।

यह झूठ के संग्रह से कहीं अधिक है

एडवर्ड सईद के अनुसार, ओरिएंटलिज़्म केवल कुछ मिथकों या झूठी धारणाओं का संग्रह भर नहीं है।
यह एक आपस में जुड़ा हुआ संस्थाओं, नीतियों, कथाओं और विचारों का तंत्र है।

  1. इसके दो रूप है प्रथम,अंतर्निहित ओरिएंटलिज़्म (Latent Orientalism): पश्चिम एशिया और उत्तर अफ्रीका के बारे में गहराई में जमी हुई, अप्रत्यक्ष धारणाएँ और विश्वास। द्वितीय, प्रत्यक्ष ओरिएंटलिज़्म (Manifest Orientalism): संस्थाओं द्वारा लागू की गई स्पष्ट नीतियाँ और विचारधाराएँ।
  2. सतत और सक्रिय प्रवाह:ओरिएंटलिज़्म को जीवित और प्रभावशाली बनाए रखने वाली चीज़ है विभिन्न क्षेत्रों के बीच उसका निरंतर और सक्रिय आदान-प्रदान।
    • विश्वविद्यालय और शोध संस्थान की खोजें विदेश और घरेलू नीतियों को प्रभावित करती हैं।
    • लोकप्रिय संस्कृति में दिखाई गई छवियाँ मीडिया में पश्चिम एशिया और उत्तर अफ्रीका की ख़बरों के फ्रेम को आकार देती हैं और इसका उल्टा भी होता है।
  3. संस्कृति, ज्ञान और सत्ता का संबंध: इन तीनों के बीच का रिश्ता समझना, ओरिएंटलिज़्म की व्यापकता और ताक़त को समझने की कुंजी है।

ओरिएंटलिज़्म क्यों महत्वपूर्ण है?

एडवर्ड सईद को अक्सर पोस्टकोलोनियल स्टडीज़ (उपनिवेशोत्तर अध्ययन) के क्षेत्र का संस्थापक माना जाता है। उनके विचारों ने संस्कृति अध्ययन (Cultural Studies), मानवशास्त्र (Anthropology), तुलनात्मक साहित्य (Comparative Literature) और राजनीति विज्ञान (Political Science) जैसे कई मानविकी क्षेत्रों को गहराई से प्रभावित किया।

  • इस पुस्तक की लोकप्रियता ने दुनिया भर में ओरिएंटलिस्ट रूढ़ियों के प्रति जागरूकता बढ़ाई।
  • 2003 तक यह 36 भाषाओं में अनुवादित हो चुकी थी और आज भी अधिकतर किताबों की दुकानों में उपलब्ध एक क्लासिक मानी जाती है।
  • मीडिया साक्षरता बढ़ने के बावजूद, पश्चिमी लोकप्रिय संस्कृति में ओरिएंटलिज़्म से जुड़ी धारणाएँ और चित्रण आज भी मौजूद हैं।
  • इसलिए, हमें लगातार यह चुनौती देनी चाहिए कि ओरिएंटलिज़्म किस तरह पश्चिम एशिया और उत्तर अफ्रीका के देशों और लोगों के प्रति हमारी सोच को आकार देता है।
  • यह किताब न केवल इतिहास को समझने का उपकरण है, बल्कि आज की मीडिया और राजनीतिक धारणाओं को परखने का भी एक महत्वपूर्ण तरीका है।

निष्कर्ष
‘ओरिएंटलिज़्म’ केवल एक किताब नहीं, बल्कि एक दृष्टिकोण है जिसने उपनिवेशवाद के पीछे छिपे सांस्कृतिक और वैचारिक ढांचे को उजागर किया। यह उपनिवेशोत्तर अध्ययन (Postcolonial Studies) की आधारशिला मानी जाती है।

किसने पश्चिमी प्रबोधन (Western Enlightenment) की एक मानवीय आलोचना विकसित की, जिसने इसके उपनिवेशवाद से संबंधों को उजागर किया और दमन की कथा (narrative of oppression), सांस्कृतिक एवं वैचारिक पक्षपातों को रेखांकित किया, जो उपनिवेशित लोगों को गैरपश्चिमी अन्य के रूप में प्रस्तुत करके उन्हें असशक्त करता था?- एडवर्ड सईद (Edward Said)

(UGC NET JUNE 2025)

 

 

 


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