भारत का ऊर्जा परिदृश्य एक परिवर्तनकारी बदलाव के दौर से गुज़र रहा है, और सरकार दशकों में पहली बार परमाणु ऊर्जा क्षेत्र को निजी कंपनियों के लिए खोलने की योजना बना रही है। यह कदम 2047 तक परमाणु ऊर्जा क्षमता को 1,00,000 मेगावाट तक बढ़ाने के देश के व्यापक दृष्टिकोण का हिस्सा है। हालाँकि, लागत में वृद्धि, लाइसेंसिंग में देरी और जन चिंताएँ जैसी चुनौतियाँ भारत में परमाणु ऊर्जा के विकास में बाधा डाल रही हैं। समय-सीमा को सुव्यवस्थित करने, आपूर्ति श्रृंखलाओं को मज़बूत करने और एक ऐसा नियामक ढाँचा बनाने की आवश्यकता है जो इस क्षेत्र में निवेश और जन विश्वास को बढ़ावा दे।
भारत की आर्थिक वृद्धि और सतत विकास लक्ष्यों में परमाणु ऊर्जा का योगदान
- जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता कम करना और नेट-जीरो लक्ष्य प्राप्त करना
- परमाणु ऊर्जा भारत की उस रणनीति का प्रमुख हिस्सा है जिसके तहत 2070 तक नेट-जीरो उत्सर्जन का लक्ष्य रखा गया है।
- सरकार का लक्ष्य है कि 2047 तक परमाणु ऊर्जा क्षमता 100,000 मेगावाट तक पहुँचे।
- वर्तमान में 8,180 मेगावाट की क्षमता को बढ़ाकर 2031-32 तक 22,480 मेगावाट किया जाना है।
- ऊर्जा मांगों की पूर्ति
- तेजी से औद्योगिकीकरण और शहरीकरण के बीच ऊर्जा की विश्वसनीय आपूर्ति सुनिश्चित करने में परमाणु ऊर्जा अहम स्तंभ है।
- पवन और सौर ऊर्जा के विपरीत, परमाणु संयंत्र 24×7 काम कर सकते हैं और लगातार बिजली उपलब्ध कराते हैं।
- वर्तमान में भारत की प्रति व्यक्ति बिजली खपत 1,395 kWh (2024) है, जो 2035 तक लगभग दोगुनी होने का अनुमान है।
- 2025-26 के केंद्रीय बजट में सरकार ने परमाणु ऊर्जा मिशन के लिए 20,000 करोड़ रुपये आवंटित किए हैं, जिसमें 2033 तक 5 भारत स्मॉल रिएक्टर्स (BSRs) लगाने की योजना है।
- सतत शहरीकरण और औद्योगिकीकरण
- 2031 तक भारत की शहरी जनसंख्या 600 मिलियन तक पहुँचने का अनुमान है।
- परमाणु ऊर्जा शहरों और उद्योगों में स्वच्छ और निर्बाध बिजली आपूर्ति में सहायक होगी।
- ऊर्जा-गहन उद्योग, जैसे स्टील और मैन्युफैक्चरिंग, परमाणु बिजली पर निर्भर रह सकते हैं।
- राजस्थान परमाणु ऊर्जा स्टेशन (यूनिट 7 और 8) जैसे आगामी प्रोजेक्ट इस दिशा में सहायक हैं।
- कूटनीतिक और आर्थिक विकास में सहयोग
- भारत का परमाणु ऊर्जा क्षेत्र घरेलू उपलब्धि के साथ-साथ वैश्विक स्तर पर कूटनीतिक शक्ति भी है।
- 2008 का भारत-अमेरिका नागरिक परमाणु समझौता एक ऐतिहासिक कदम था, जिसने भारत को कई परमाणु राष्ट्रों के साथ सहयोग का मार्ग प्रशस्त किया।
- रूस के साथ कुडनकुलम परमाणु ऊर्जा प्रोजेक्ट इसका प्रमुख उदाहरण है, जिसने भारत को उन्नत तकनीक और अवसंरचना उपलब्ध कराई।
- इन साझेदारियों से न केवल प्रोजेक्ट समयसीमा और सुरक्षा में सुधार हुआ, बल्कि स्थानीय विशेषज्ञता और आर्थिक लाभ भी मिले।
- रोजगार सृजन और कौशल विकास
- परमाणु ऊर्जा का विस्तार निर्माण, संचालन, रखरखाव और तकनीकी विकास में रोजगार के नए अवसर पैदा करता है।
- अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) के अनुसार, परमाणु ऊर्जा प्रति यूनिट बिजली उत्पादन में पवन ऊर्जा से 25% अधिक रोजगार देती है।
- परमाणु उद्योग में कार्यरत लोगों की आय अन्य नवीकरणीय क्षेत्रों के कर्मचारियों की तुलना में एक-तिहाई अधिक होती है।
- यह भारत के व्यापक लक्ष्य के अनुरूप है, जिसमें भविष्य की ऊर्जा मांगों के लिए औद्योगिक कार्यबल को मजबूत करना शामिल है।
भारत की परमाणु ऊर्जा वृद्धि में आने वाली प्रमुख चुनौतियाँ
- यूरेनियम आपूर्ति की समस्या
- भारत के पास घरेलू यूरेनियम भंडार सीमित है, जिससे परमाणु रिएक्टरों का लगातार संचालन प्रभावित होता है।
- भारत के पास लगभग 76,000 टन यूरेनियम है, जो मौजूदा और आने वाले परमाणु रिएक्टरों के लिए पर्याप्त नहीं है।
- इसलिए, भारत को ऑस्ट्रेलिया, कज़ाख़स्तान और कनाडा जैसे देशों से यूरेनियम आयात करना पड़ता है।
- लेकिन अंतरराष्ट्रीय राजनीति, वैश्विक कीमतों में उतार-चढ़ाव और लॉजिस्टिक समस्याएँ आपूर्ति को बाधित कर सकती हैं।
- थोरियम तकनीकी बाधाएँ
- भारत का महत्वाकांक्षी तीन-स्तरीय परमाणु कार्यक्रम थोरियम पर आधारित है।
- भारत के पास लगभग 8,46,000 टन थोरियम भंडार है, जो दुनिया का 25% है, लेकिन इसका उपयोग अभी बहुत कम हो रहा है।
- थोरियम के लिए जरूरी फास्ट ब्रीडर रिएक्टर (FBR) तकनीकी चुनौतियों के कारण अटके हुए हैं।
- ADSS (Accelerator-Driven Subcritical System) जो 2003 में प्रस्तावित हुआ था, अभी तक लागू नहीं हो पाया।
- वित्तीय और नियामकीय (Regulatory) बाधाएँ
- परमाणु ऊर्जा संयंत्र बनाने में बहुत अधिक पैसा, लंबा समय और बड़ी अवसंरचना की जरूरत होती है।
- काकरापार और कुडनकुलम जैसी परियोजनाएँ धन की कमी से प्रभावित हुई हैं।
- एक PHWR (Pressurised Heavy Water Reactor) बनाने की लागत लगभग ₹117 करोड़ प्रति मेगावाट होती है।
- इतनी अधिक लागत और अनिश्चित लाभ के कारण निजी कंपनियाँ निवेश से बचती हैं और नवीकरणीय ऊर्जा (सौर, पवन) में निवेश करना पसंद करती हैं।
- मंज़ूरी प्रक्रिया धीमी और जटिल है। भूमि अधिग्रहण और पर्यावरण अनुमति में देरी प्रोजेक्ट को सालों तक लटका देती है।
- उदाहरण: जैतापुर परमाणु परियोजना, जो दुनिया की सबसे बड़ी होनी थी, अभी भी अटकी हुई है।
- इसके अलावा, Civil Liability for Nuclear Damage Act, 2010 विदेशी कंपनियों को ज़िम्मेदारी के डर से भारत में तकनीक लाने से रोकता है।
- कुशल जनशक्ति की कमी
- भारत के परमाणु क्षेत्र में योग्य वैज्ञानिकों, इंजीनियरों और तकनीशियनों की भारी कमी है।
- भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र (BARC) जैसे संस्थानों में प्रशिक्षण क्षमता सीमित है।
- अनुभवी कर्मचारियों के रिटायर होने और नए लोगों की कमी से प्रोजेक्ट की गति धीमी पड़ रही है।
- कई प्रतिभाशाली भारतीय वैज्ञानिक बेहतर अवसरों के लिए अमेरिका, फ्रांस और चीन जैसे देशों में चले जाते हैं।
- पर्यावरण और अपशिष्ट प्रबंधन
- परमाणु अपशिष्ट (Nuclear Waste) का सुरक्षित निपटारा बड़ी चुनौती है।
- अभी भारत में अपशिष्ट को 5-7 साल संयंत्र में रखने के बाद भंडारण स्थलों पर भेजा जाता है, लेकिन लंबी अवधि का स्थायी समाधान नहीं है।
- 2010 में दिल्ली का मयापुरी विकिरण हादसा दर्शाता है कि अपशिष्ट नियंत्रण प्रणाली में खामियाँ हैं।
- World Nuclear Waste Report 2019 के अनुसार, अभी तक किसी भी देश के पास परमाणु कचरे का स्थायी निपटान केंद्र नहीं है।
- केवल फिनलैंड एक स्थायी अपशिष्ट भंडारण सुविधा बना रहा है।
- सुरक्षा चिंताएँ और जनता का अविश्वास
- मजबूत सुरक्षा मानकों के बावजूद, लोग परमाणु संयंत्रों पर पूरी तरह भरोसा नहीं करते।
- भारत के अधिकांश परमाणु संयंत्र अंतरराष्ट्रीय IAEA (International Atomic Energy Agency) की निगरानी में नहीं आते।
- 2011 की फुकुशिमा दुर्घटना ने लोगों की आशंकाएँ और बढ़ा दीं।
- उदाहरण: कुडनकुलम संयंत्र में विकिरण स्तर 2014 में 0.081 से घटकर 0.002 माइक्रो-सीवर्ट तक आ गया है, फिर भी स्थानीय लोग चिंतित हैं।
- इस कारण भूमि अधिग्रहण और स्थानीय समर्थन जुटाना मुश्किल हो जाता है।
भारत परमाणु ऊर्जा वृद्धि को तेज़ करने के उपाय
- निजी क्षेत्र की भागीदारी बढ़ाना: भारत को Atomic Energy Act, 1962 में संशोधन कर निजी कंपनियों को परमाणु रिएक्टर संचालन और यूरेनियम खनन में भाग लेने देना चाहिए। इससे निवेश बढ़ेगा, तकनीकी नवाचार होगा और प्रोजेक्ट जल्दी पूरे होंगे।
- घरेलू यूरेनियम खोज को बढ़ावा देना: जादूगुड़ा (झारखंड) जैसी खदानों से उत्पादन बढ़ाकर घरेलू आपूर्ति मजबूत करनी होगी। साथ ही, अमेरिका, रूस और फ्रांस जैसे देशों से दीर्घकालिक अनुबंध करने चाहिए।
- रणनीतिक परमाणु ईंधन भंडार बनाना: रूस, कज़ाख़स्तान और कनाडा जैसे देशों के साथ सहयोग कर स्थायी यूरेनियम आपूर्ति सुनिश्चित करनी चाहिए। साथ ही, थोरियम-आधारित ईंधन चक्र पर निवेश बढ़ाना चाहिए।
- नियामक ढाँचे में सुधार: परियोजना मंज़ूरी प्रक्रिया को तेज़ करने के लिए Atomic Energy Regulatory Board (AERB) को सुधारना होगा। एक स्वतंत्र National Nuclear Energy Authority (NNEA) और single-window clearance प्रणाली स्थापित करनी चाहिए।
- कुशल जनशक्ति विकसित करना: BARC और अन्य संस्थानों के विशेष प्रशिक्षण कार्यक्रमों को Skill India Mission से जोड़ना चाहिए। अंतरराष्ट्रीय सहयोग से विशेषज्ञता और सुरक्षा मानकों में सुधार होगा।
- AI और डिजिटल ट्विन तकनीक का उपयोग: परमाणु रिएक्टरों में Artificial Intelligence और Digital Twin तकनीक का इस्तेमाल करना चाहिए ताकि संचालन अधिक सुरक्षित और कुशल हो सके।
- न्यूक्लियर कचरा प्रबंधन सुधारना: भारत को केंद्रीकृत nuclear waste facility बनानी चाहिए और उन्नत पुन: प्रसंस्करण (reprocessing) तकनीकों में निवेश करना चाहिए। फिनलैंड का Onkalo repository इसका अच्छा उदाहरण है।
- जनजागरूकता और सामुदायिक भागीदारी: परमाणु ऊर्जा की सुरक्षा और फायदे बताने के लिए व्यापक अभियान चलाने चाहिए। स्थानीय समुदायों को सस्ती बिजली और विकास परियोजनाओं में हिस्सा देकर उनका विश्वास जीतना ज़रूरी है।
- थोरियम वैली मॉडल: आंध्र प्रदेश और केरल जैसे थोरियम-समृद्ध क्षेत्रों में Thorium Valley बनाना चाहिए, जहाँ अनुसंधान संस्थान, स्टार्टअप और खनन उद्योग मिलकर थोरियम तकनीक पर काम करें।
निष्कर्ष
भारत का परमाणु ऊर्जा क्षेत्र देश के सतत विकास और ऊर्जा सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण संभावनाएँ रखता है। प्रमुख चुनौतियों का समाधान करके, निजी क्षेत्र की भागीदारी को बढ़ावा देकर और तकनीकी प्रगति का लाभ उठाकर, देश अपनी पूर्ण परमाणु क्षमता का दोहन कर सकता है। रणनीतिक सुधारों और नवाचार पर ध्यान केंद्रित करके, भारत एक मज़बूत और स्वच्छ ऊर्जा भविष्य (एसडीजी 7) का मार्ग प्रशस्त कर सकता है, आर्थिक विकास को गति दे सकता है और वैश्विक जलवायु लक्ष्यों में योगदान दे सकता है। आने वाले वर्ष भारत के परमाणु ऊर्जा क्षेत्र की दिशा तय करने में महत्वपूर्ण होंगे, और इसके महत्वाकांक्षी लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए सक्रिय उपाय महत्वपूर्ण होंगे।
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