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नॉम चोमस्की: ‘प्रोपेगेंडा मॉडल और अमेरिका की विदेश नीति पर सवाल

प्रमुख राजनीतिक आलोचक और दार्शनिक

नॉम चोमस्की का जन्म 7 दिसम्बर 1928, फिलाडेल्फ़िया, पेनसिल्वेनिया, USA में हुआ। यह आधुनिक भाषाविज्ञान (linguistics) के जनक माने जाते हैं। इन्होने भाषा-विज्ञान में Universal Grammar Theory दी, जिसके अनुसार सभी भाषाओं में कुछ सार्वभौमिक संरचनाएँ होती हैं।

नॉम चोमस्की सिर्फ़ भाषाविज्ञान के विद्वान ही नहीं, बल्कि एक प्रमुख राजनीतिक आलोचक और दार्शनिक भी हैं। उनकी राजनीतिक सोच और दार्शनिक योगदान को समझने के लिए विद्वानों ने कई दृष्टिकोण प्रस्तुत किए हैं।

राजनीतिक आलोचक और दार्शनिक

  1. अमेरिकी विदेश नीति की आलोचना
  • चोमस्की ने अमेरिका की विदेश नीति पर गहरा सवाल उठाया, खासकर वियतनाम युद्ध, लैटिन अमेरिका, इराक और मध्य पूर्व की नीतियों को लेकर।
  • American Power and the New Mandarins (1969) उनकी पहली बड़ी पुस्तक थी, जिसमें उन्होंने वियतनाम युद्ध और ‘बौद्धिक अभिजात वर्ग’ (intellectual elite) की भूमिका की आलोचना की।
  • चोमस्की का मानना है कि अमेरिका अपनी नीतियों के जरिए ‘वैश्विक प्रभुत्व’ (global hegemony) स्थापित करना चाहता है। उनकी किताब Hegemony or Survival: America’s Quest for Global Dominance (2003) इसी पर केंद्रित है।
  • अमेरिका खुद को लोकतंत्र और स्वतंत्रता का रक्षक बताता है, लेकिन विदेश नीति में अक्सर तानाशाही शासकों का समर्थन करता है यदि वे अमेरिकी हितों को पूरा करते हों।
  • Deterring Democracy (1991) में उन्होंने कहा कि अमेरिका लोकतंत्र को रोकता है जब वह उसके हितों के विरुद्ध जाता है।
  • वियतनाम युद्ध, चिली (1973), निकारागुआ (1980s), इराक युद्ध (2003) इन सब में उन्होंने अमेरिका को मानवाधिकारों और अंतरराष्ट्रीय कानून का उल्लंघन करने वाला बताया।
  1. मानवाधिकार का राजनीतिक उपयोग
  • चोमस्की के अनुसार अमेरिका ‘मानवाधिकार’ का उपयोग एक राजनीतिक उपकरण की तरह करता है।
  • The New Military Humanism (1999) में उन्होंने कोसोवो में नाटो हस्तक्षेप को साम्राज्यवादी बताया।
  1. आर्थिक और कॉर्पोरेट हित
  • अमेरिकी विदेश नीति का असली लक्ष्य लोकतंत्र फैलाना नहीं, बल्कि संसाधनों और आर्थिक हितों की रक्षा करना है।
  • लैटिन अमेरिका में उन्होंने देखा कि अमेरिका ने बहुराष्ट्रीय कंपनियों और आर्थिक प्रभुत्व को बचाने के लिए तख्तापलट का समर्थन किया।
  1. मीडिया पर आलोचना
  • Edward Herman के साथ लिखी किताब Manufacturing Consent (1988) में उन्होंने बताया कि मीडिया अक्सर ‘प्रोपेगेंडा मॉडल’ के जरिए सत्ता और कॉर्पोरेट हितों की सेवा करता है।
  • यह मॉडल बताता है कि मीडिया किस तरह से जनता की सोच को नियंत्रित करता है।
  • पाँच ‘फ़िल्टर’ (filters) बताते हैं जिनसे होकर ख़बरें जनता तक पहुँचती हैं:
    1. मीडिया का स्वामित्व (corporate ownership)
    2. विज्ञापन पर निर्भरता
    3. स्रोतों पर निर्भरता (government & corporate sources)
    4. आलोचना और दबाव (flak)
    5. वैचारिक नियंत्रण (जैसे साम्यवाद के खिलाफ ‘anti-communism’, बाद में ‘war on terror’)
  • चोमस्की का कहना है कि लोकतांत्रिक समाजों में मीडिया ‘अनुमति निर्माण’ (manufacturing consent) करता है यानी जनता को इस तरह तैयार करता है कि वे सत्ता की नीतियों को स्वीकार करें।
  • मीडिया युद्धों और विदेश नीति को वैध ठहराने का काम करता है।
  • वियतनाम युद्ध के समय मीडिया ने अमेरिका की नीति का बचाव किया।
  • इराक युद्ध (2003) में मीडिया ने ‘weapons of mass destruction’ के झूठे नैरेटिव को बढ़ावा दिया।
  • मीडिया की आलोचना सिर्फ़ राजनीतिक नहीं, बल्कि दार्शनिक है।
  • उनका तर्क है कि स्वतंत्र राय तभी संभव है जब सूचना स्वतंत्र और विविध स्रोतों से आए।
  • वे अनार्को-सिंडिकलिज़्म और लिबर्टेरियन सोशलिज़्म से प्रभावित रहे।
  1. मानवाधिकार और लोकतंत्र
  • The New Military Humanism (1999) में उन्होंने ‘मानवीय हस्तक्षेप’ (humanitarian intervention) की पश्चिमी नीति को साम्राज्यवादी राजनीति का नया रूप बताया।
  • वे ‘सच्चे लोकतंत्र’ की वकालत करते हैं, जहाँ लोग नीति-निर्माण में सक्रिय भाग लें, न कि केवल चुनावों तक सीमित रहें।

प्रमुख पुस्तकें

  • Syntactic Structures (1957)
  • Aspects of the Theory of Syntax (1965)
  • American Power and the New Mandarins (1969)
  • Manufacturing Consent (1988, Edward Herman के साथ)
  • The New Military Humanism (1999)

(Question June 2025, UGC NET Political Science)


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