भारत-जापान संबंधों की नींव सदियों पुरानी सांस्कृतिक और ऐतिहासिक साझेदारी पर टिकी है, किंतु आज वैश्विक व्यवस्था के बदलते स्वरूप में इन संबंधों को नए मायने मिल रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आगामी जापान यात्रा इस पुरानी दोस्ती को नई विश्व व्यवस्था में और अधिक प्रासंगिक बनाएगी। यह यात्रा एक ऐसे समय में हो रही है जब एशिया और विश्व में सामरिक और आर्थिक संतुलन तीव्रता से बदल रहा है, चीन की बढ़ती प्रभावशाली आक्रामकता और अमेरिका के ताज़ा आर्थिक राष्ट्रवाद की नीति के बीच भारत जापान की भूमिका नई सीमाएं गढ़ रही है।
जापान ने भारत में अगले दशक के लिए लगभग 10 ट्रिलियन येन निवेश का ऐलान किया है। यह निवेश भारत के इन्फ्रास्ट्रक्चर, विनिर्माण, स्वच्छ ऊर्जा और तकनीक क्षेत्र में सहयोग को बढ़ाएगा। इस घोषणा का अर्थ सिर्फ आर्थिक नहीं, बल्कि रणनीतिक है; जापान यह संकेत दे रहा है कि भारत अब एशिया के भविष्य का निर्धारक शक्ति केंद्र बनने की राह पर है। मुंबई-अहमदाबाद शिंकानसेन (बुलेट ट्रेन) परियोजना, उन्नत तकनीक हस्तांतरण और भारत के क्लीन एनर्जी मिशन जैसे साझेदारी के आयाम भविष्य की विश्व व्यवस्था में भारत-जापान की संयुक्त भूमिका को नई ऊँचाई देते हैं।
रणनीतिक स्तर पर दोनों देशों ने 2008 के सुरक्षा सहयोग जॉइंट डिक्लेरेशन को और अधिक समकालीन बनाने का प्रस्ताव रखा है, जिसमें रक्षा, आपूर्ति श्रृंखला, सेमीकंडक्टर, दवाएं और क्लीन एनर्जी जैसी क्षेत्र शामिल हैं। यह साझेदारी दोनों देशों को एशिया और इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में एक मजबूत, मुक्त एवं नियम-आधारित व्यवस्था कायम करने में अग्रणी बनाती है। डिजिटल साझेदारी के तहत आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और स्टार्टअप ईकोसिस्टम में सहयोग का विस्तार भी दोनों देशों के आर्थिक-रणनीतिक रिश्तों को विस्तार देगा। जापान का भारत में इस स्तर पर निवेश, न केवल चीन के विकल्प की रणनीति को दर्शाता है, बल्कि वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में भारत को स्थायी और प्रमुख स्थान देने का भी संकेत है।
अमेरिका की भूमिका इस मौजूदा समीकरण को और जटिल बनाती है। मोदी की जापान यात्रा के बाद उनकी चीन यात्रा का कार्यक्रम यह दर्शाता है कि भारत, एक तरफ़ पुराने सहयोगियों के साथ विश्वास बनाए रखते हुए, दूसरी ओर चीन के साथ संवाद कायम रखने की रणनीति को अपनाए हुए है। चीन के साथ पिछले कुछ वर्षों में गलवान संघर्ष जैसे तनाव आ चुके हैं, किंतु हालिया वार्ता, वीजा नियमों में ढील और व्यापार सुगमता की कोशिशें इस रिश्ते में धीरे-धीरे स्थिरता ला रही हैं। ऐसे समय में भारत की नीति स्पष्ट रूप से संतुलन साधने की है—जहां टोक्यो में आर्थिक सुरक्षा और इंडो-पैसिफिक की स्थिरता पर फोकस है, वहीं बीजिंग में मौजूदा तनाव को मैनेज करने का प्रयास किया जाता है।
अमेरिकी नेतृत्व, विशेषकर राष्ट्रपति ट्रंप की नीति में अनिश्चितता के कारण, भारत-वाशिंगटन संबंधों की विश्वसनीयता धुंधली हो गई है। पहले बुश से लेकर बाइडन तक के राष्ट्रपति भारत को इंडो-पैसिफिक रणनीति का अभिन्न हिस्सा मानते थे, लेकिन टैरिफ और विसंगतिपूर्ण बयानबाज़ी ने रिश्तों में अस्थिरता ला दी है। क्वाड (भारत-ऑस्ट्रेलिया-जापान-अमेरिका) की रणनीति को भी इससे खतरा है, क्योंकि इसकी सफलता अमेरिकी सहभागिता पर निर्भर करती है। जापान और भारत जैसे देशों के लिए यह सवाल अब और प्रासंगिक है कि वैश्विक स्थिरता और आर्थिक सुरक्षा के लिए किन साझेदारों के साथ आगे बढ़ना चाहिए।
भारत-जापान संबंध आज केवल आर्थिक या सामरिक साझेदारी तक सीमित नहीं रह गए हैं, बल्कि यह रिश्ता विश्व राजनीति में नए अर्थ लेकर सामने आया है। जापान के लिए भारत एक विशाल, तेज़ी से बढ़ता उपभोक्ता बाजार है, जो बदलती वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में परिवर्तन का स्थायी केंद्र बन सकता है। वहीं, भारत के लिए जापान एक ऐसा साझेदार है जो न केवल निवेश, टेक्नोलॉजी और इंफ्रास्ट्रक्चर में तीव्र सहयोग करता है, बल्कि अंतरराष्ट्रीय मंचों पर लोकतांत्रिक मूल्यों और समुद्री सुरक्षा की साझा आधारशिला भी प्रस्तुत करता है।
भारत-जापान 2+2 बैठक भारत और जापान ने अभी तक अपनी तीसरी 2+2 विदेश और रक्षा मंत्रिस्तरीय बैठक आयोजित की हैं। भारत में हुई पिछली बैठक में बढ़ते भू-राजनीतिक तनाव और हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन की आक्रामकता के संदर्भ में हुई चर्चा में विभिन्न क्षेत्रों में द्विपक्षीय सहयोग को गहरा करने पर ध्यान केंद्रित किया गया। 2+2 बैठकें दो देशों के विदेश और रक्षा मंत्रियों के बीच उच्च स्तरीय राजनयिक वार्ता होती हैं। यह प्रारूप रणनीतिक सुरक्षा और रक्षा मुद्दों पर गहन चर्चा की सुविधा प्रदान करता है, जिसका उद्देश्य द्विपक्षीय संबंधों को बढ़ाना और आपसी चिंताओं का समाधान करना है, जिससे संघर्षों को सुलझाने और मज़बूत साझेदारी बनाने में सहायता मिल सकती है |
यह यात्रा अस्थिर वैश्विक राजनीति में भारत की रणनीतिक लचीलापन और स्पष्टता को दर्शाती है, जहां भारत बिना किसी दबाव के अपने हितों को प्राथमिकता दे रहा है। टोक्यो की कूटनीति भारत को सहयोग, संसाधन और साझा रणनीति देती है, जबकि वाशिंगटन की अनिश्चितता और बीजिंग की प्रतिस्पर्धा के बीच भारत अपनी स्वतंत्र रणनीतिक स्वायत्तता को कायम रखने में सफल रहा है। जापान के साथ संबंधों की मजबूती यह संकेत देती है कि यदि विश्व व्यवस्था में कोई स्थायी और भरोसेमंद समर्थन है, तो वह सहयोगी सिद्धांत, साझा लोकतांत्रिक मूल्य और दीर्घकालिक निवेश नीति में ही मिल सकता है।
इस परिप्रेक्ष्य में, भारत-जापान संबंधों की पुरानी दोस्ती आज नई वैश्विक व्यवस्था में भारत की विदेश नीति का मार्गदर्शक बनी हुई है। यह दोस्ती समय की कसौटी पर खरी उतर कर केवल पुराने इतिहास की गवाही नहीं देती, बल्कि भविष्य की दिशा और निर्णायक भूमिका भी तय करती है। अत: भारत-जापान का यह संबंध न केवल हिंद-प्रशांत क्षेत्र में लोकतांत्रिक, खुली और न्यायपूर्ण व्यवस्था कायम करने का इंजन है, बल्कि विश्व स्तर पर स्थायित्व, आर्थिक तरक्की, और सामरिक संतुलन के नए मानकों का सृजन भी कर रहा है।
इस स्थिति में भारत न पूर्वजों की पुरानी मित्रता पर निर्भर है, न अनिश्चित वैश्विक ध्रुवों से बंधा है, बल्कि अपनी कूटनीतिक लचीलापन, विविधता और स्पष्ट नीति के साथ विश्व व्यवस्था में निर्णायक हस्ताक्षर करने को तैयार है। भारत-जापान साझेदारी का संदेश स्पष्ट है—पुरानी दोस्ती नई चुनौतियों और अवसरों में भी उतनी ही मजबूती से आगे बढ़ सकती है, जितनी उसने अतीत में दिखाई थी। यही भारत की नई विश्व व्यवस्था में उसकी सबसे बड़ी ताकत और जापान के साथ स्थायी सहयोग की गारंटी है।
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