तियानजिन सम्मेलन 2025, जो शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के अधीन तियानजिन, चीन में अगस्त के अंत और सितंबर के आरंभ में आयोजित हुआ, समकालीन अंतरराष्ट्रीय राजनीति के गहन और बहुध्रुवीय बदलते परिदृश्य में एक अहम मील का पत्थर साबित हुआ। इस सम्मेलन ने यूरेशियाई क्षेत्र के भीतर एकता, सुरक्षा और सहयोग के नए आयाम खोले, सामूहिक रणनीतिक समन्वय के लिए मंच तैयार किया, और निष्पक्ष, बहुपक्षीय विश्व व्यवस्था को आगे बढ़ाने की दिशा में संयुक्त राष्ट्र की केंद्रीय भूमिका को पुनर्स्थापित किया। सम्मेलन की शुरुआत में ही चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने एससीओ विकास बैंक के गठन का प्रस्ताव रखा, जिसने आर्थिक सहयोग और तकनीकी नवाचार जैसे क्षेत्रों में मिली-जुली भागीदारी के नए युग की नींव रखी। भारत, चीन और रूस जैसे महाशक्तिशाली देशों की सहभागिता ने सम्मेलन के वैश्विक प्रभाव को अत्यधिक बढ़ाया, जिसमें आतंकवाद, क्षेत्रीय स्थिरता, आर्थिक समावेशन और नई सुरक्षा संरचना जैसे ज्वलंत मुद्दों को केंद्रीय मंच प्राप्त हुआ।
सम्मेलन के उद्घाटन भाषण में शी जिनपिंग ने रेखांकित किया कि एससीओ का मूल दर्शन है — समान सहयोग का खुलेपन, किसी तीसरे पक्ष को निशाना न बनाना, और सभी देशों की स्वतंत्रता एवं विशिष्टता का सम्मान। उन्होंने स्पष्ट किया कि प्रतियोगिता के बजाय सहयोग को प्राथमिकता दी जाएगी, और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, कृषि, स्वास्थ्य सेवा, जलवायु परिवर्तन जैसे प्राथमिक क्षेत्रों में रणनीतिक साझेदारी को आगे बढ़ाया जाएगा। भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने संबोधन में आतंकवाद को विश्व मानवता के लिए सर्वाधिक गंभीर जोखिम बताया। पहलगाम में हाल ही में हुए आतंकी हमले का उल्लेख करते हुए उन्होंने आतंकवाद के विरुद्ध एकजुट व सुदृढ़ वैश्विक प्रयासों को आवश्यक बताया। मोदी ने क्षेत्रीय स्थिरता, आर्थिक साझेदारी, और सदस्य राष्ट्रों के बीच संचार एवं तकनीकी साझेदारी को मजबूत बनाने पर बल दिया। उनके रूस, मालदीव और म्यांमार के शीर्ष नेताओं के साथ हुए द्विपक्षीय संवादों ने क्षेत्रीय साझेदारी के महत्व को और विस्तार दिया।
रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने भारत और चीन की मध्यस्थता की सराहना की, जो यूक्रेन संकट को हल करने में मदद कर रही है। उन्होंने पश्चिमी देशों पर अपनी सुरक्षा नीतियों को दूसरों के लागत पर लागू करने का आरोप लगाते हुए निष्पक्षता और बहुध्रुवीयता की वकालत की। पुतिन ने रेखांकित किया कि एससीओ के भीतर बढ़ते आर्थिक सहयोग के साथ सदस्य देशों के बीच व्यापार नेशनल मुद्रा में किया जा रहा है, जिससे सदस्य देशों को वित्तीय स्वतंत्रता और लचीलापन मिला है। चीन ने शिखर सम्मेलन के दौरान दिखाया कि 2024-2025 में एससीओ की अध्यक्षता कैसे क्षेत्रीय विकास को गति दे सकती है। इस विषय में भारत की भूमिका निर्णायक रही — प्रधानमंत्री मोदी ने इसका प्रमाण दिसंबर में होने वाले 23वें शिखर सम्मेलन के लिए पुतिन के आतिथ्य प्राप्ति की प्रतीक्षा को लेकर दिया। इस संदर्भ में यह स्पष्ट हुआ कि भारत और रूस की विशेष रणनीतिक साझेदारी एससीओ के भीतर गहरा और व्यापक स्वरूप ले रही है।
एससीओ सम्मेलन की सबसे अहम उपलब्धियों में एससीओ विकास बैंक की स्थापना की दिशा में सहमति, आतंकवाद के विरुद्ध सदस्य देशों की प्रतिबद्धता, क्षेत्रीय संबंधों में पारस्परिकता, और वैश्विक मंच पर एससीओ की भूमिका को नए सिरे से स्थापित करना शामिल रहा। सदस्य देशों ने तियानजिन घोषणापत्र को सार्वजनिक रूप से अपनाया, जिसमें आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस सहित अन्य क्षेत्रों में सहयोग की संकल्पना को प्रमुखता दी गई। महामारी के बाद की दुनिया की चुनौतियों — स्वास्थ्य, जलवायु परिवर्तन, खाद्य सुरक्षा, और तकनीकी असमानता — से निपटने के उपायों पर भी प्रस्ताव पारित किए गए। सदस्य देशों के बीच द्विपक्षीय बैठकें कई स्तरों पर सक्रीय रहीं; भारत, चीन, रूस, मालदीव, म्यांमार की सरकारों ने विकास, सुरक्षा, और शिक्षा जैसे विषयों पर संवाद बढ़ाया। गठबंधन में 10 सदस्य देशों के अलावा दो पर्यवेक्षक और 14 संवाद साझेदारों की सहभागिता रही, जिसने इसे वृहद्-भौगोलिक और राजनीतिक मंच का स्वरूप दिया।
हालांकि सम्मेलन के कई उजले पक्ष रहे, कुछ कमियां भी रहीं। सबसे बड़ी सीमितता यह रही कि आतंकवाद के मुद्दे पर व्यापक प्रतिबद्धता के बावजूद व्यवहारिक कार्रवाई पर मतभेद कायम रहे। पाकिस्तान के प्रतिनिधि सम्मेलन के दौरान कई बार अपनी असहमति प्रदर्शित करते देखे गए, जिसका प्रभाव सांझा रणनीति पर पड़ा। इसके अतिरिक्त, सदस्य देशों के बीच नीतिगत असहमति भी सतह पर आई, जैसे आर्थिक समावेशन संबंधी प्राथमिकताओं के भिन्न दृष्टिकोण; चीन, भारत और रूस के बीच कभी-कभार कूटनीतिक तनातनी ने कुछ महत्त्वपूर्ण निर्णयों को विलंबित किया। ऐसे में आर्थिक विकास, तकनीकी नवाचार, और क्षेत्रीय सहयोग के एजेंडा में अपेक्षित तेजी नहीं आ पाई; तियानजिन घोषणापत्र के प्रावधान लागू करने में एकरूपता का अभाव दिखा।
भविष्य की राह देखते हुए, तियानजिन सम्मेलन ने यह साफ कर दिया है कि एससीओ आगामी वर्षों में वैश्विक नेतृत्व, सुरक्षा, और आर्थिक विकास के क्षेत्र में निर्णायक भूमिका निभा सकता है। लेकिन इसे अपने आपसी मतभेद दूर करने होंगे, तकनीकी क्षेत्र में नवाचार को खुली भागीदारी से आगे बढ़ाना होगा, और आतंकवाद पर जीरो टॉलरेंस नीति को व्यवहारिक स्तर पर स्थापित करना होगा। एससीओ विकास बैंक की दिशा में हुई प्रगति को सदस्य देशों के लिए वित्तीय सशक्तिकरण, इन्फ्रास्ट्रक्चर विकास और व्यापार वृद्धि का वाहक बनाना होगा, तब जाकर यह संस्था वास्तविक क्षेत्रीय बदलाव का सूत्रधार बन सकेगी।
इसके साथ ही, जलवायु परिवर्तन, स्वास्थ्य और खाद्य सुरक्षा को लेकर बहुपक्षीय सहयोग को आगे बढ़ाना, तकनीकी क्षेत्र में नवाचार जैसे आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस को नीति निर्धारण में शामिल करना, और आपसी कूटनीतिक तनावों को पारदर्शिता के साथ हल करना, यह सब अगले वर्षों के लिए जरूरी दिशा-निर्देश तय करता है। सदस्य देशों के बीच परस्पर विश्वास, नीतिगत एकरूपता, और वैश्विक चुनौतियों का साझा समाधान — यही एससीओ की दीर्घकालिक मजबूती और प्रासंगिकता का आधार होगा। भारत, चीन, रूस, पाकिस्तान, अन्य यूरोपीय और एशियाई देशों के प्रतिनिधियों ने सम्मेलन के मंच से यही संदेश देने की कोशिश की — कि बहुध्रुवीय, निष्पक्ष और समानहितकारी अभ्यास आधुनिक विश्व व्यवस्था का आधार होगा।
सारांशतः, तियानजिन शंघाई सहयोग सम्मेलन 2025 ने वैश्विक राजनीति में सामूहिक नेतृत्व, क्षेत्रीय सुरक्षा, आर्थिक सहयोग और तकनीकी नवाचार जैसे पहलुओं को नया आयाम दिया। सम्मेलन ने यह रेखांकित किया कि इतनी बड़ी बहुपक्षीय समिति के भीतर नीति निर्माण कठिन है, किंतु यदि सदस्य देश सहयोग, बहुपक्षीयता और निष्पक्षता पर टिके रहेंगे, तो एससीओ न केवल यूरेशियाई क्षेत्र, बल्कि पूरी दुनिया की बदलती भूराजनीति में एक विशाल शक्ति के रूप में उभर सकता है। इस सम्मेलन ने जहां नई संभावनाओं के द्वार खोले, वहीं आंतरिक सीमाओं और व्यवहारिक चुनौतियों को उजागर भी किया। भविष्य में, इन दोनों पक्षों को संतुलित एवं व्यावहारिक तौर पर समन्वित करना ही–एससीओ की प्रासंगिकता और प्रभावशीलता का आधार बनेगा।
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