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रोनाल्ड एल. वॉट्स का संघवाद संबंधी दृष्टिकोण

मानव इतिहास में शासन की कई प्रणालियाँ विकसित हुईं। किसी समाज ने राजशाही अपनाई, किसी ने साम्राज्य बनाए, तो कहीं केंद्रीकृत एकात्मक सरकारें चलीं। लेकिन जब देशों का विस्तार बड़ा हुआ, विविधता बढ़ी और अलग-अलग क्षेत्रों की पहचान बनी रही, तब यह महसूस हुआ कि केवल एक केंद्रीकृत व्यवस्था से सबको संतुष्ट नहीं किया जा सकता। जिस कारण संघीय व्यवस्था की आवयश्कता महसूस होने लगी।
Ronald L. Watts अपनी पुस्तक Comparing Federal Systems in the 1990s में इसी प्रश्न को गहराई से समझाते हैं कि अलग-अलग देशों ने संघीय व्यवस्था क्यों और कैसे अपनाई, इसमें क्या समानताएँ और अंतर हैं, और 1990 के दशक में यह किस तरह बदल रही थी।

संघीय प्रणाली की परिभाषा और मूल सिद्धांत

संघीय प्रणाली (Federal System) का सबसे बड़ा लक्षण है सत्ता का विभाजन और साझेदारी।इसमें दो स्तर की सरकारें होती हैं

 1 राष्ट्रीय (केन्द्रीय)
 2 प्रांतीय/राज्यीय

दोनों की संवैधानिक स्थिति स्वतंत्र होती है। कोई स्तर दूसरे को खत्म नहीं कर सकता। दोनों स्तर जनता के प्रति जवाबदेह होते हैं।

Watts बताते हैं कि संघीयता कोई “एक ढाँचा” नहीं है। यह एक सिद्धांत है विविधता के भीतर एकता (Unity in Diversity)। इसे अलग-अलग देशों ने अपनी परिस्थितियों के अनुसार ढाला है।

संघीय बनाम एकात्मक प्रणाली

एकात्मक प्रणाली

केन्द्र के पास सारी शक्ति होती है।
राज्य/प्रांत केवल प्रशासनिक इकाइयाँ हैं।
संविधान केन्द्र को सर्वोच्च मानता है।
उदाहरण: फ्रांस, जापान।

संघीय प्रणाली

शक्ति का संवैधानिक बँटवारा।
केन्द्र और राज्य दोनों के पास वास्तविक अधिकार।
विवाद सुलझाने के लिए न्यायपालिका।
उदाहरण: अमेरिका, भारत, जर्मनी।

Watts कहते हैं कि यह भेद हमेशा स्पष्ट नहीं होता। कई देश “अर्ध-संघीय” (quasi-federal) या “संघीय-एकात्मक मिश्रित” मॉडल अपनाते हैं।

संघीय व्यवस्था क्यों बनती है? Watts ने कई कारण बताए:

भौगोलिक विस्तार – बड़े देशों में दूर-दराज़ इलाकों तक एक ही केन्द्र से शासन मुश्किल होता है।
सांस्कृतिक विविधता – अलग भाषाएँ, धर्म, जातीय समूह, जिन्हें अपनी पहचान चाहिए।
राजनीतिक समझौता – कभी-कभी स्वतंत्र राज्यों के मिलकर एक राष्ट्र बनाने से संघीयता पैदा होती है (जैसे अमेरिका, स्विट्जरलैंड)।
आर्थिक सहयोग– संसाधनों का साझा उपयोग और संतुलित विकास।
सुरक्षा की जरूरत – बाहरी खतरे से बचने के लिए छोटे राज्य मिलकर एक मजबूत ढाँचा बनाते हैं।

संघीय व्यवस्थाओं की मुख्य विशेषताएँ

Watts बताते हैं कि हर संघीय प्रणाली अलग है, लेकिन कुछ साझा बिंदु हैं:

लिखित संविधान – ताकि शक्तियों का स्पष्ट बँटवारा हो।
द्विसदनीय विधायिका (Bicameral Legislature) – ऊपरी सदन (राज्य परिषद) राज्यों का प्रतिनिधित्व करता है।
स्वतंत्र न्यायपालिका – केन्द्र–राज्य विवाद सुलझाने के लिए।
वित्तीय संघवाद – कर व संसाधनों का बँटवारा।
संशोधन की प्रक्रिया – संविधान बदलना आसान न हो, ताकि दोनों स्तर सुरक्षित रहें।

संघीयता के लाभ

विविधता का सम्मान – अलग-अलग समूह अपनी पहचान बनाए रख सकते हैं।
स्थानीय लोकतंत्र – स्थानीय समस्याएँ स्थानीय स्तर पर सुलझाई जा सकती हैं।
केंद्र का बोझ कम – हर समस्या केन्द्र तक नहीं जाती।
साझा विकास – समन्वय से बड़े स्तर पर प्रगति।
रचनात्मक प्रतियोगिता – राज्य एक-दूसरे से सीखते हैं और आगे बढ़ते हैं।

संघीयता की चुनौतियाँ

शक्ति संघर्ष – केन्द्र और राज्यों में अधिकारों को लेकर विवाद।
आर्थिक असमानता – अमीर और गरीब राज्यों में अंतर।
अलगाववाद – कभी-कभी राज्य स्वतंत्रता की माँग करते हैं (जैसे क्यूबेक, कश्मीर)।
निर्णय प्रक्रिया की जटिलता– एक नीति पर कई स्तरों से सहमति लेनी पड़ती है।
राजनीतिक अस्थिरता – जब क्षेत्रीय दल बहुत मजबूत हो जाते हैं।

1990 के दशक की नई स्थितियाँ

Watts की किताब में बताया गया है कि 1990 का दशक संघीय प्रणालियों के लिए बेहद खास था।

जिसके वह कई कारण बताते है,जो इस प्रकार है.

सोवियत संघ का विघटन (1991) – 15 नए स्वतंत्र देश बने। कई ने संघीयता का प्रयोग किया।
यूरोपियन यूनियन (EU) – यह पारंपरिक संघीय ढाँचा नहीं, बल्कि सदस्य देशों का अनोखा मिलन था।
कनाडा और क्यूबेक – अलगाववाद और “रेफरेंडम” ने संघीय ढाँचे को चुनौती दी।
भारत – 1980–90 के दशक में क्षेत्रीय दलों और गठबंधन सरकारों ने संघीयता को मजबूत किया।
जर्मनी का पुन:एकीकरण (1990) – पूर्व और पश्चिम जर्मनी के मिलन ने संघवाद को नया आकार दिया।

संघीयता के मॉडल के उदाहरण

अमेरिका

सबसे पुरानी संघीय व्यवस्था (1789)।
संविधान छोटा लेकिन स्थिर।
राज्यों को व्यापक अधिकार।
सर्वोच्च न्यायालय संघीय विवाद सुलझाता है।

कनाडा

केन्द्र अधिक शक्तिशाली।
प्रांतों की अलग पहचान, खासकर क्यूबेक।
अंग्रेज़ी–फ्रेंच द्विभाषिक ढाँचा।

भारत

संविधान में संघीयता, लेकिन केन्द्र मजबूत।
भाषाई राज्यों का निर्माण, फिर भी एकता बनी रही।
आपातकालीन प्रावधान केन्द्र को बड़ी शक्ति देते हैं।

जर्मनी

“सहकारी संघवाद” (Cooperative Federalism)।
केन्द्र और राज्य मिलकर नीति बनाते हैं।
राज्यों का शिक्षा, पुलिस जैसे मामलों पर बड़ा नियंत्रण।

स्विट्जरलैंड

छोटे-छोटे कैंटन मिलकर बना संघ।
प्रत्यक्ष लोकतंत्र की परंपरा।
स्थानीय स्वायत्तता बहुत मजबूत।

यूरोपियन यूनियन

न तो पूरी तरह संघीय, न ही एकात्मक।
साझा संसद, साझा मुद्रा (यूरो), लेकिन सदस्य देशों की संप्रभुता भी बरकरार।

वित्तीय संघवाद

Watts ने विशेष रूप से वित्तीय संघवाद की चर्चा की।
कर और संसाधनों का बँटवारा संघीय ढाँचे की सफलता की कुंजी है।
यदि राज्यों को पर्याप्त संसाधन न मिलें तो संघीयता कमजोर पड़ती है।
अमीर–गरीब राज्यों के बीच संतुलन बनाने के लिए “अनुदान” (grants) और “वित्तीय हस्तांतरण” (transfers) जरूरी हैं।

संघीयता और लोकतंत्र

संघीयता नागरिकों को कई स्तरों पर भागीदारी का मौका देती है।
यह लोकतंत्र को गहराई और स्थायित्व देती है।
लेकिन यदि राज्यों के बीच असमानता बहुत बढ़े या सहयोग की भावना घटे, तो लोकतंत्र खतरे में पड़ सकता है।

निष्कर्ष

Ronald Watts की पुस्तक हमें सिखाती है कि संघीय प्रणाली कोई “तैयार नुस्खा” नहीं है। यह प्रत्येक देश की ऐतिहासिक परिस्थितियों, भौगोलिक आकार, सामाजिक संरचना और राजनीतिक समझौतों पर निर्भर करती है।
1990 के दशक का अनुभव यह बताता है कि संघीयता हमेशा गतिशील रहती है। कहीं यह विविधता को संभालने का साधन बनती है, तो कहीं अलगाववाद की चुनौती से जूझती है। लेकिन लोकतंत्र के लिए यह एक अमूल्य ढाँचा है क्योंकि यह साझेदारी, सहयोग और सहमति की संस्कृति को मजबूत बनाती है।

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