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भारत की पड़ोसी कूटनीति की पुनर्परिभाषा: चुनौतियाँ और संभावनाएँ

दक्षिण एशिया में भारत की नीतियाँ

भारत भौगोलिक रूप से दक्षिण एशिया का केंद्र है और इसकी सुरक्षा, ऊर्जा, और आर्थिक समृद्धि का सीधा संबंध इसके पड़ोसी देशों की स्थिरता से है। परंतु हाल के वर्षों में पड़ोस में उत्पन्न अस्थिरता, जैसे – श्रीलंका का आर्थिक पतन, बांग्लादेश में राजनीतिक संकट, म्यांमार में सैन्य तख़्तापलट, और अफगानिस्तान में तालिबान शासन ने भारत की नीतियों को चुनौती दी है।

दक्षिण एशिया में भारत की विदेश नीति, विशेषकर पड़ोसी प्रथम नीति (Neighbourhood First Policy), क्षेत्रीय शांति, स्थिरता और आर्थिक एकीकरण के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। हाल के वर्षों में नेपाल, बांग्लादेश, श्रीलंका और म्यांमार जैसे पड़ोसी देशों में बढ़ती राजनीतिक अस्थिरता, आर्थिक संकट, और चीन के प्रभाव में वृद्धि ने भारत की रणनीतिक प्राथमिकताओं को प्रभावित किया है। यह लेख भारत की पड़ोसी कूटनीति की वर्तमान स्थिति, चुनौतियों और सुधारात्मक उपायों का विश्लेषण करता है।

पड़ोस में उभरती चुनौतियाँ

व्यापक राजनीतिक अस्थिरता: पड़ोसी देशों में दीर्घकालिक राजनीतिक अस्थिरता एक सतत् चुनौती पेश करती है, जिससे प्रायः शासन में शून्यता, आंतरिक संघर्ष एवं अनिश्चितता का माहौल बनता है।

  • स्थिर शासन का अभाव दीर्घकालिक द्विपक्षीय संबंधों में बाधा डालता है और महत्त्वपूर्ण मुद्दों पर क्षेत्रीय एकीकरण एवं सहयोग के प्रयासों को कमज़ोर करता है।
  • उदाहरण के लिये, बांग्लादेश हाल ही में राजनीतिक अशांति की स्थिति में रहा है, जिसमें विरोध प्रदर्शन, विवादास्पद चुनाव और एक गहरे ध्रुवीकृत राजनीतिक माहौल शामिल है।
  • यह निरंतर अस्थिरता सुसंगत नीति-निर्माण में बाधा डालती है तथा भारत की पूर्वी सीमा पर एक अप्रत्याशित सुरक्षा स्थिति उत्पन्न करती है।

अफगानिस्तान में कट्टरपंथ का पुनरुत्थान: अफगानिस्तान पर तालिबान के नियंत्रण ने एक जटिल सुरक्षा और मानवीय संकट उत्पन्न कर दिया है जिसके महत्त्वपूर्ण क्षेत्रीय परिणाम होंगे।

  • शासन की नीतियों, विशेष रूप सेमहिलाओं और अल्पसंख्यकों के प्रति, ने अंतर्राष्ट्रीय अलगाव को जन्म दिया है, जबकि देश अंतर्राष्ट्रीय आतंकवादी समूहों के लिये एक संभावित सुरक्षित आश्रय स्थल बना हुआ है।
  • यह स्थिति क्षेत्रीय स्थिरता के लिये एक सीधा खतरा है तथा इसने पड़ोसी देशों को अपनी सुरक्षा और कूटनीतिक स्थिति का पुनर्मूल्यांकन करने के लिये विवश किया है।
  • संयुक्त राष्ट्र ने एकगंभीर मानवीय स्थिति की सूचना दी है, जहाँ आबादी के एक बड़े हिस्से को सहायता की आवश्यकता है, साथ ही मानवाधिकारों से जुड़ी चिंताएँ, विशेष रूप से महिलाओं के अधिकारों का व्यवस्थित रूप से हनन, जारी है।

आर्थिक कमज़ोरी और ऋण का संजाल: भारत के कई पड़ोसी देश गंभीर आर्थिक संकटों से जूझ रहे हैं, जो असहनीय कर्ज़ के भार से और भी बदतर हो गए हैं, जिससे क्षेत्रीय अस्थिरता उत्पन्न हो रही है।

  • इन आर्थिक कमज़ोरियों का प्रायः बाह्य ताकतों द्वारा फायदा उठाया जाता है, जिससे संबंधित देशों की रणनीतिक स्वायत्तता समाप्त हो जाती है।
  • उदाहरण के लिये, वर्ष 2022 में श्रीलंका अपने गंभीर आर्थिक संकट के बाद, स्थिरता के संकेत प्रदर्शित कर रहा है। हालाँकि, विश्व बैंक इस बात पर बल देता है कि गरीबी अभी भी उच्च स्तर पर बनी हुई है।
  • साथ ही, आय असमानता और असमान विकास जैसी सामाजिक-आर्थिक असमानताएँ, नेपाल की तरह राजनीतिक अशांति को बढ़ावा देती हैं तथाबांग्लादेश की तरह कट्टरपंथ को बढ़ावा दे सकती हैं।

चीन का बढ़ता सामरिक प्रभाव: दक्षिण एशिया में चीन का बढ़ता आर्थिक, राजनीतिक और सैन्य प्रभाव भारत के लिये एक कठिन सामरिक चुनौती प्रस्तुत करता है।

  • अपनी बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) के माध्यम से, चीन ने इस क्षेत्र में अपनी उपस्थिति बहुत हद तक बढ़ा दी है, प्रायः बड़े पैमाने पर अवसंरचना परियोजनाओं के माध्यम से जो आर्थिक निर्भरताएँ उत्पन्न करती हैं।
  • इसका एक प्रमुख उदाहरण चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (CPEC) है, जो BRI की एक प्रमुख परियोजना है जिसमें 60 अरब डॉलर से अधिक का निवेश है।
  • इसी प्रकार, श्रीलंका और मालदीव जैसे देशों में चीन के बड़े पैमाने पर अवसंरचना निवेश एवं ऋणों ने ऋण-संजाल कूटनीति तथा हिंद महासागर क्षेत्र के लिये इसके दीर्घकालिक सामरिक निहितार्थों को लेकर चिंताएँ उत्पन्न की हैं।

दीर्घकालीन रोहिंग्या शरणार्थी संकट: रोहिंग्याशरणार्थी संकट एक गंभीर मानवीय और सुरक्षा चुनौती का प्रतिनिधित्व करता है, विशेष रूप से बांग्लादेश के लिये, जहाँ दस लाख से अधिक शरणार्थी रहते हैं।

  • यह संकट संसाधनों पर दबाव डालता है, सामाजिक तनाव उत्पन्न करता है और क्षेत्रीय अस्थिरता की संभावना रखता है।
  • म्याँमार के रखाइन प्रांत में स्थायी समाधान का अभावऔर जारी अस्थिरता रोहिंग्याओं की पीड़ा को बढ़ा रही है तथा क्षेत्रीय स्थिरता के लिये दीर्घकालिक चुनौती पेश कर रही है।

बढ़ता जलवायु परिवर्तन और पर्यावरणीय क्षरण: दक्षिण एशिया जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के प्रति विश्व के सबसे संवेदनशील क्षेत्रों में से एक है, जिसमें समुद्र का बढ़ता स्तर, चरम मौसमी घटनाएँ और जल की कमी शामिल है।

  • येपर्यावरणीय चुनौतियाँ लाखों लोगों की आजीविका के लिये खतरा हैं, संसाधनों की प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ाती हैं तथा आंतरिक तथा सीमा पार विस्थापन का कारण बन सकती हैं।
  • इन मुद्दों की सीमा पारीय प्रकृति क्षेत्रीय सहयोग को अनिवार्य बनाती है, जो प्रायःराजनीतिक तनावों से बाधित होता है।
  • बदलते मौसम पैटर्न केवर्ष 2050 तक 80 करोड़ से अधिक लोगों पर सीधे प्रभाव पड़ने की उम्मीद है और यह दक्षिण एशियाई देशों की अर्थव्यवस्थाओं पर बोझ डालता रहेगा।
  • हालिया आँकड़े अरब सागर में चक्रवातों कीआवृत्ति और तीव्रता में वृद्धि तथा पूरे उपमहाद्वीप में भीषण हीट-वेव्स का संकेत देते हैं, जो जलवायु अनुकूलन एवं समुत्थानशीलता के उपायों की तत्काल आवश्यकता को रेखांकित करता है।

भारत पर प्रभाव

  • राष्ट्रीय सुरक्षा पर बढ़ता बोझ (सीमा-पार आतंकवाद और घुसपैठ)।
  • आर्थिक एकीकरण और Act East Policy में बाधाएँ।
  • शरणार्थियों की आमद से सामाजिक-राजनीतिक तनाव।
  • ऊर्जा सुरक्षा परियोजनाओं (जैसे TAPI पाइपलाइन) में विलंब।
  • क्षेत्रीय नेतृत्व और प्रभाव में चीन को चुनौती।

भारत की सुधारात्मक रणनीतियाँ

भारत अपनी कूटनीति को जनकेंद्रित और समावेशी बनाने के लिए निम्न उपाय अपना सकता है—

  1. क्षेत्रीय संस्थागत सहयोग SAARC और BIMSTEC का पुनर्जीवन
  • SAARC (South Asian Association for Regional Cooperation): दक्षिण एशियाई देशों के लिए एक साझा मंच था, लेकिन भारत-पाकिस्तान तनाव के कारण यह निष्क्रिय हो गया। भारत यदि SAARC को सक्रिय करता है तो यह गरीबी उन्मूलन, आतंकवाद-रोधी सहयोग और क्षेत्रीय व्यापार बढ़ाने में मदद करेगा।
  • BIMSTEC (Bay of Bengal Initiative for Multi-Sectoral Technical and Economic Cooperation): यह SAARC की तुलना में अधिक सक्रिय है और इसमें दक्षिण एशिया + दक्षिण-पूर्व एशिया के देश आते हैं। भारत इसे ऊर्जा सहयोग, समुद्री सुरक्षा और ब्लू इकोनॉमी के लिए महत्वपूर्ण मंच बना सकता है।
    भारत अगर दोनों मंचों को पारंपरिक विवादों से आगे बढ़कर विकास सहयोग पर केंद्रित करता है, तो यह भारत की नेतृत्वकारी भूमिका को और मजबूत करेगा।
  1. कनेक्टिविटी और व्यापार गलियारे
  • भौतिक कनेक्टिविटी: भारत-म्यांमार-थाईलैंड त्रिपक्षीय राजमार्ग, ट्रांस-एशियन रेलवे नेटवर्क, और नॉर्थ-ईस्ट इंडिया से दक्षिण-पूर्व एशिया तक हाईवे भारत को ब्रिज नेशन बना सकते हैं।
  • डिजिटल कनेक्टिविटी: UPI, रुपे कार्ड, और डिजिटल भुगतान ढांचा क्षेत्रीय व्यापार को तेज़, पारदर्शी और सुरक्षित बनाएगा।
  • आर्थिक गलियारे: BBIN (Bangladesh-Bhutan-India-Nepal) मोटर व्हीकल एग्रीमेंट, ईरान के चाबहार पोर्ट और अंतर्राष्ट्रीय नॉर्थ-साउथ ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर भारत की रणनीतिक स्थिति को मज़बूत करेंगे।
  • ‘Connectivity = Strategic Influence’। जिस देश के पास बेहतर व्यापार व संपर्क मार्ग होंगे, वही क्षेत्रीय शक्ति बनेगा।
  1. जलवायु और आपदा प्रबंधन सहयोग
  • जलवायु परिवर्तन: दक्षिण एशिया दुनिया का सबसे संवेदनशील क्षेत्र है (बाढ़, चक्रवात, हिमनद पिघलना)। भारत यदि सोलर एलायंस (ISA) और कोलिशन फॉर डिजास्टर रेज़िलिएंट इन्फ्रास्ट्रक्चर (CDRI) को पड़ोसी देशों में लागू करे, तो यह ‘क्षेत्रीय सुरक्षा ढाल’ बन सकता है।
  • आपदा सहयोग: उपग्रह-आधारित प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली, साझा राहत बल, और जल संसाधन प्रबंधन क्षेत्रीय आपसी विश्वास को मजबूत करेंगे।
  • भारत इस क्षेत्र का ‘Climate First Responder’ बन सकता है, जैसा कि अमेरिका सुरक्षा के मामले में है।
  1. स्वास्थ्य और शिक्षा कूटनीति
  • स्वास्थ्य: कोविड-19 महामारी के दौरान भारत ने ‘वैक्सीन मित्रता (Vaccine Maitri)’ अभियान चलाया। इसे आगे बढ़ाते हुए भारत क्षेत्रीय हेल्थ सेक्योरिटी आर्किटेक्चर बना सकता है, जिसमें दवाइयों, वैक्सीन, और डॉक्टरों का साझा नेटवर्क हो।
  • शिक्षा: भारतीय विश्वविद्यालयों में SAARC और BIMSTEC देशों के छात्रों के लिए अधिक छात्रवृत्तियाँ, डिजिटल लर्निंग प्लेटफॉर्म, और स्किल ट्रेनिंग हब स्थापित करना।
  • शिक्षा और स्वास्थ्य कूटनीति भारत को एक सॉफ्ट पावर सुपरपावर बनाएगी।
  1. सांस्कृतिक एवं ज्ञान कूटनीति
  • सांस्कृतिक: बौद्ध सर्किट (भारत-नेपाल-श्रीलंका), आयुर्वेद और योग, साझा भाषा-साहित्य और फिल्म महोत्सव।
  • ज्ञान कूटनीति: डिजिटल लाइब्रेरी, रिसर्च नेटवर्क और इंडो-पैसिफिक थिंक-टैंक सहयोग।
  • साझा संस्कृति राजनीतिक तनाव कम करने का माध्यम है। भारत अपनी सभ्यतागत पूंजी (Civilizational Capital) से क्षेत्रीय नेतृत्व कर सकता है।
  1. डिजिटल कूटनीति
  • आधार, UPI, Co-WIN, डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर को पड़ोसी देशों के साथ साझा करना।
  • यह डिजिटल कॉमन इकोसिस्टम बनाएगा, जिससे व्यापार, शिक्षा, स्वास्थ्य और गवर्नेंस सब कुछ आसान होगा।
  • भारत का ‘India Stack’ मॉडल अफ्रीका और एशिया में पहले से ही रुचि जगा रहा है।
  • डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर भारत का ‘21वीं सदी का सबसे बड़ा एक्सपोर्ट हो सकता है।

सामूहिक दृष्टिकोण

इन सभी उपायों को मिलाकर भारत एक ‘Inclusive Regional Order’ बना सकता है, जहाँ—

  • SAARC और BIMSTEC संस्थागत ढाँचा देंगे,
  • कनेक्टिविटी और व्यापार आर्थिक मजबूती देंगे,
  • जलवायु और स्वास्थ्य सहयोग मानव सुरक्षा देंगे,
  • सांस्कृतिक और डिजिटल कूटनीति सॉफ्ट पावर देंगे।

इस प्रकार, भारत की रणनीति केवल भौगोलिक शक्ति (geo-politics) पर नहीं, बल्कि जनकेंद्रित सहयोग (people-centric diplomacy) पर आधारित होगी।

निष्कर्ष

भारत की पड़ोसी कूटनीति एक निर्णायक मोड़ पर है। केवल शक्ति-आधारित दृष्टिकोण पर्याप्त नहीं होगा, बल्कि विश्वास, सहानुभूति और साझा समृद्धि पर आधारित कूटनीति आवश्यक है। भारत यदि क्षेत्रीय सहयोग को प्राथमिकता देता है, तो न केवल अपनी सुरक्षा और ऊर्जा आवश्यकताओं को पूरा कर सकेगा, बल्कि दक्षिण एशिया में स्थिरता और शांति का नेतृत्वकर्ता भी बन सकेगा।

 

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