मॉडल आंसर
प्रश्न : “जाति का राजनीतिकरण और राजनीति में जाति” पर चर्चा कीजिए।
उत्तर:
भारतीय राजनीति में जाति और लोकतंत्र का गहरा अंतर्संबंध है। जैसा कि राजनी कोठारी कहते हैं – “Caste provides the basic support for political mobilization in India.”
ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में देखें तो औपनिवेशिक जनगणना, Communal Award (1932) और Poona Pact ने जातीय पहचान को राजनीतिक आयाम दिया। स्वतंत्रता के बाद संविधान ने समानता व आरक्षण का प्रावधान किया। 1990 में मंडल आयोग की सिफारिशों ने पिछड़े वर्गों की राजनीति को निर्णायक मोड़ दिया।
जाति का राजनीतिकरण सामाजिक इकाई को राजनीतिक शक्ति में बदल देता है। संगठन निर्माण, आरक्षण की माँग और वोट बैंक की राजनीति ने दलित व पिछड़ी जातियों को सशक्तिकरण और प्रतिनिधित्व दिया। परन्तु यह प्रक्रिया कभी-कभी जातीय ध्रुवीकरण और विकास मुद्दों की उपेक्षा भी लाती है।
राजनीति में जाति का प्रभाव टिकट वितरण, गठबंधन निर्माण और नीतियों पर स्पष्ट दिखता है। उदाहरण स्वरूप, बिहार का MY (Muslim–Yadav) समीकरण, उत्तर प्रदेश की दलित–यादव राजनीति, तथा तमिलनाडु में द्रविड़ आंदोलन।
विचारक दृष्टिकोण –
- M.N. Srinivas की Dominant Caste Theory स्थानीय राजनीति को समझाती है।
- गेल ओमवेड्ट जाति राजनीति को मुक्ति और पहचान दोनों से जोड़ती हैं।
- अंबेडकर कहते हैं – “Political democracy cannot last unless there lies at the base of it social democracy.”
समकालीन संदर्भ में EWS आरक्षण (2019) ने जाति से आगे बढ़कर आर्थिक आधार को जोड़ा है। शहरीकरण और नई पीढ़ी विकास व रोज़गार की राजनीति को प्राथमिकता देती है, यद्यपि ग्रामीण राजनीति में जाति अब भी निर्णायक है।
निष्कर्षतः, जाति का राजनीतिकरण सामाजिक न्याय और प्रतिनिधित्व का माध्यम है, जबकि राजनीति में जाति का अति-प्रभाव लोकतंत्र की गुणवत्ता को चुनौती देता है। भविष्य की राजनीति को जातीय पहचान से आगे बढ़कर समानता, विकास और सुशासन पर केंद्रित होना चाहिए।