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Ontology (सत्ता मीमांसा)

Ontology क्या है?

Ontology दर्शन (Philosophy) की एक शाखा है, जो सबसे बुनियादी और गहरे सवालों से जुड़ी होती है
क्या सच में अस्तित्व में है?
जो चीजें हमें दिखाई देती हैं, वे क्या वाकई में हैं?
जो हमें दिखाई नहीं देतीं, क्या वे भी हैं?

Ontology का उद्देश्य यह जानना होता है कि दुनिया में कौन-कौन सी चीजें हैं और वे वास्तव में कैसी हैं। यह केवल यह नहीं पूछती कि कोई चीज़ है या नहीं, बल्कि यह भी समझने की कोशिश करती है कि उसकाअस्तित्व किस प्रकार का है।

मान लीजिए कोई पूछे
क्या आत्मा होती है?
क्या सपने सच होते हैं?
क्या समय कोई चीज है, या बस एक मानव कल्पना?

इन सभी सवालों की जड़ Ontology में है।

Ontology का इतिहास

Ontology शब्द की शुरुआत 17वीं सदी में हुई, लेकिन इसकी जड़ें अरस्तू (Aristotle) के दर्शन में मिलती हैं। उन्होंने इसे First Philosophy यानी प्रथम दर्शन कहा था वह ज्ञान जो बाकी सभी ज्ञानों का आधार हो। बाद में जर्मन दार्शनिकों जैसे Jacob Lorhard और Christian Wolff ने इसे एक अलग विषय के रूप में स्थापित किया।
18वीं सदी में Kant और Hume ने इसकी आलोचना की, क्योंकि उनका मानना था कि हम बिना अनुभव के चीजों के बारे में नहीं कह सकते। यानी केवल सोचकर किसी चीज़ के अस्तित्व को तय नहीं किया जा सकता।

Heidegger और Husserl का योगदान

Edmund Husserl ने Ontology को अनुभव (experience) से जोड़ दिया। उनका मानना था कि चीज़ों का अस्तित्व हम तब तक नहीं समझ सकते जब तक हम यह न समझें कि हम उन्हें अनुभव कैसे करते हैं। यानी किसी चीज़ के अस्तित्व को समझने के लिए हमें सबसे पहले यह देखना होगा कि हम उसे अपने मन और चेतना में कैसे देखते हैं। उन्होंने Ontology को दो हिस्सों में बांटा:
Formal Ontology: चीज़ों का सामान्य अस्तित्व (जैसे वस्तुएँ, गुण आदि)
Regional Ontology: किसी विशेष क्षेत्र से जुड़ी चीज़ें (जैसे प्रकृति, धर्म, गणित)
Martin Heidegger ने Husserl से आगे बढ़कर Ontology को एक नए स्तर पर रखा। उन्होंने कहा कि दर्शन को यह समझना चाहिए किBeing (अस्तित्व) का मतलब क्या होता है। Heidegger के अनुसार, हम इंसानों को केवल चीज़ों को जानने वाले प्राणी की तरह नहीं देख सकते। हम खुद भी होने वाले हैं। इसलिए हमें Being कीतलाश इंसान के अनुभव, भावना, डर, समय और मृत्यु के बीच में करनी चाहिए।
Heidegger ने इंसान के अस्तित्व को Dasein कहा यानी जो इस दुनिया में मौजूद है, और अपने अस्तित्व को समझने की कोशिश करता है। Husserl ने जहां Ontology को चेतना के अनुभव से जोड़ा, वहीं Heidegger ने उसे अस्तित्व के अनुभव से जोड़ा।

Ontology के प्रकार

कई दार्शनिक मानते हैं कि बहुत सारी चीज़ें अस्तित्व में हैं (जैसे आत्मा, भगवान, भावनाएँ, संख्याएँ) इन्हें rich ontology कहा जाता है।
कुछ दार्शनिक कहते हैं कि सिर्फ वही चीज़ें अस्तित्व में हैं जिन्हें हम देख या छू सकते हैं (जैसे पत्थर, पानी, शरीर) इसे sparse ontology कहा जाता है।

निष्कर्ष

Ontology कोई साधारण विषय नहीं है। यह हमें चीजों के अस्तित्व के बारे में सोचने के लिए मजबूर करती है वह भी बहुत गहराई से। यह केवल भगवान, आत्मा, या सपनों तक सीमित नहीं है यह हमारे विचार, भावनाएँ, भाषा, समय, यहां तक कि हमारे होने को भी प्रश्न में ले आती है।
Heidegger और Husserl जैसे दार्शनिकों ने इस विषय को अनुभव और अस्तित्व के स्तर पर ले जाकर यह समझाया कि केवल चीजों को गिनना और मान लेना ही Ontology नहीं है, बल्कि हमें यह समझना होगा कि हम चीजों को अनुभव कैसे करते हैं और हमाराहोना क्या मायने रखता है।

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