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80वाँ UNGA सत्र: वैश्विक संतुलन हेतु संयुक्त राष्ट्र में सुधार जरूरी

80th UNGA Session: Reforms in the United Nations are essential for global balance

भारत के विदेश मंत्री द्वारा न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) के 80वें सत्र को संबोधित करते हुए यह स्पष्ट किया गया कि संयुक्त राष्ट्र को 21वीं सदी की बहुध्रुवीय वास्तविकताओं के अनुरूप बनाना अब केवल ‘सुधार’ नहीं बल्कि ‘पुनर्जागरण’ की आवश्यकता है। भारत ने यह भी संकेत दिया कि वह इन सुधारों को आगे बढ़ाने में सक्रिय और अधिक जिम्मेदार भूमिका निभाने के लिए तैयार है।

80वें UNGA के बारे में

  • 80वें UNGA सत्र की थीम, एकजुटता के साथ बेहतर: शांति, विकास और मानवाधिकारों के लिए 80 वर्ष और उससे अधिक’ (Better together: 80 years and more for peace, development and human rights), वर्तमान वैश्विक चुनौतियों को दर्शाती है।
  • विदेश मंत्री नेअमेरिका, यूरोपीय संघ और ब्रिक्स (BRICS) के विदेश मंत्रियों सहित कई समकक्षों के साथ द्विपक्षीय और बहुपक्षीय बैठकें की हैं। इन बैठकों में ग्लोबल साउथ की आवाज को मजबूत करने, रणनीतिक साझेदारी को गहरा करने और आतंकवाद से निपटने जैसे प्रमुख मुद्दों पर ध्यान केंद्रित किया गया है।

संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) के बारे में

  • संरचना: यह संयुक्त राष्ट्र का एकमात्र अंग है जिसमें सभी सदस्य देशों का समान प्रतिनिधित्व है – प्रत्येक देश का एक वोट।
  • कार्य और शक्तियाँ: UNGA के निर्णय, जिन्हें ‘संकल्प’ (Resolutions) कहा जाता है, नैतिक और राजनीतिक महत्व रखते हैं, लेकिन सदस्य देशों के लिए कानूनी रूप से बाध्यकारी नहीं होते हैं। इसके मुख्य कार्यों में बजट पर विचार करना, सुरक्षा परिषद के अस्थायी सदस्यों का चुनाव करना, और वैश्विक मुद्दों पर चर्चा करना शामिल है।
  • भारत की ऐतिहासिक भूमिका: भारत संयुक्त राष्ट्र के संस्थापक सदस्यों में से एक रहा है। इसने हमेशा संयुक्त राष्ट्र के शांति अभियानों में प्रमुखता से योगदान दिया है और उपनिवेशवाद एवं रंगभेद के खिलाफ एक मजबूत आवाज रहा है। गुटनिरपेक्ष आंदोलन (NAM) के एक नेता के रूप में, भारत ने विकासशील देशों के हितों की वकालत की है।

संयुक्त राष्ट्र सुधार की आवश्यकता क्यों?

  1. निर्णय लेने में गतिरोध और वीटो का असंतुलन: संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) का वीटो तंत्र आज सर्वाधिक विवादास्पद है। Moraes et al. (2025) के अनुसार, ‘P5 देशों के वीटो ने वैश्विक निर्णय प्रक्रिया को एकाधिकार में बदल दिया है।’ यूक्रेन, गाज़ा और सूडान जैसे मामलों में इसका प्रत्यक्ष उदाहरण देखा गया, जहाँ बहुमत के समर्थन के बावजूद कार्रवाई रोकी गई।
  2. 1945 की संरचना, 2025 की चुनौतियाँ: T. Shinyo (2024) इंगित करते हैं कि UNSC की संरचना अब भी द्वितीय विश्वयुद्ध की शक्ति-संतुलन पर टिकी है। आज के प्रमुख वैश्विक खिलाड़ी भारत, ब्राज़ील, जर्मनी, जापान और अफ्रीकी राष्ट्र प्रतिनिधित्व से वंचित हैं, जिससे संगठन की वैधता और प्रासंगिकता दोनों प्रभावित होती हैं।
  3. विश्वास और वित्तीय निर्भरता का संकट: संयुक्त राष्ट्र की फंडिंग का 42% से अधिक हिस्सा अमेरिका, जापान और जर्मनी जैसे सीमित दाताओं से आता है। यह निर्भरता नीतिगत स्वतंत्रता और निष्पक्षता पर प्रश्नचिह्न लगाती है।
  4. नौकरशाही और पारदर्शिता की कमी: हाल के UNDP ऑडिट में भ्रष्टाचार, कदाचार और धोखाधड़ी के 400 से अधिक मामले सामने आए। इससे वैश्विक दक्षिण में संयुक्त राष्ट्र की साख को गहरा नुकसान हुआ है।
  5. वैश्विक संस्थाओं की प्रतिस्पर्धा: G20, BRICS और अफ्रीकी संघ जैसे मंच अब बहुपक्षीय सहयोग के वैकल्पिक केंद्र बन चुके हैं। इनका उभार संयुक्त राष्ट्र की धीमी और अप्रभावी प्रक्रियाओं पर सीधा दबाव डालता है।

भारत की भूमिका: सुधारों के उत्प्रेरक के रूप में

  1. सुरक्षा परिषद का विस्तार और G4 पहल: भारत, ब्राज़ील, जर्मनी और जापान (G4) लंबे समय से सुरक्षा परिषद में नई स्थायी सीटों की माँग कर रहे हैं। भारत यह तर्क देता है कि 21वीं सदी की वास्तविकताओं के अनुरूप एक ‘भू-राजनीतिक पुनर्संतुलन’ आवश्यक है।
  2. ग्लोबल साउथ की आवाज़ को संस्थागत बनाना: भारत ने 2023–24 में ‘Voice of Global South’ समिट का नेतृत्व किया, जिसके माध्यम से जलवायु न्याय, ऋण राहत और सतत विकास जैसे विषयों पर विकासशील देशों की एक साझा आवाज़ बनी। यह पहल संयुक्त राष्ट्र के ढाँचे में संस्थागत ब्लॉक प्रतिनिधित्व की दिशा में एक कदम मानी जा रही है।
  3. बहुपक्षवाद और शांति स्थापना में विश्वसनीयता: भारत संयुक्त राष्ट्र शांति अभियानों में सबसे बड़ा योगदानकर्ता है 2,50,000 से अधिक सैनिक अब तक तैनात कर चुका है। यह नैतिक पूँजी भारत को सुरक्षा परिषद में अधिक प्रभावी भूमिका का नैतिक आधार प्रदान करती है।
  4. आतंकवादरोधी वैश्विक ढाँचे को मज़बूत करना: भारत ने लंबे समय से Comprehensive Convention on International Terrorism (CCIT) के पक्ष में आवाज़ उठाई है, जिससे आतंकवाद को वैश्विक मानवाधिकार और सुरक्षा मुद्दे के रूप में परिभाषित किया जा सके।
  5. सॉफ्ट पावर और सांस्कृतिक कूटनीति: अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस (177 देशों के समर्थन से पारित प्रस्ताव) भारत की वह कूटनीतिक क्षमता दर्शाता है जिससे वह वैश्विक सहमति बना सकता है।

प्रभावी सुधारों के लिए ठोस कदम

  1. पाठआधारित वार्ता (Text-based Negotiation): वर्तमान ‘संवादात्मक’ प्रक्रिया को Intergovernmental Negotiations (IGN) के तहत समयबद्ध चरणों में परिवर्तित किया जाए, ताकि वास्तविक प्रगति सुनिश्चित हो सके।
  2. वीटो के उपयोग पर सीमाएँ: नरसंहार या युद्ध अपराधों जैसी परिस्थितियों में वीटो पर नैतिक प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए। फ्रांस और मैक्सिको के ‘Code of Conduct on Veto Restraint’ का मॉडल अपनाया जा सकता है।
  3. योगदानआधारित प्रतिनिधित्व: जो देश शांति स्थापना, मानवीय सहायता या विकास में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं, उन्हें निर्णय-प्रक्रिया में अनुपातिक प्रतिनिधित्व मिले।
  4. जवाबदेही और पारदर्शिता: संयुक्त राष्ट्र निकायों की वार्षिक स्वतंत्र ऑडिट और प्रदर्शन रिपोर्ट सार्वजनिक की जानी चाहिए।
  5. ग्लोबल साउथ समन्वय मंच: विकासशील देशों के लिए एक स्थायी समन्वय मंच (जैसे ‘Global South Caucus’) स्थापित किया जाए जो UNSC और UNGA दोनों में नीति-निर्माण को प्रभावित कर सके।
  6. आवधिक समीक्षा और सुधार आयोग: हर 10 वर्षों में संस्थागत समीक्षा सुनिश्चित करने के लिए एक स्थायी UN Reform Commission का गठन किया जाए।

भारत के लिए अवसर एवं चुनौतियाँ

अवसर (Opportunities):

  • बढ़ता वैश्विक कद: भारत की तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था और भू-राजनीतिक प्रभाव UNGA में उसकी आवाज को अधिक वजन देते हैं।
  • सर्वसम्मतिनिर्माता की छवि: G20 की सफल अध्यक्षता ने एक ऐसे देश के रूप में भारत की छवि को मजबूत किया है जो विभाजित दुनिया में आम सहमति बना सकता है।
  • डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर (DPI): भारत का DPI मॉडल (आधार, UPI, CoWIN) विकासशील देशों के लिए एक सफल और कम लागत वाला समाधान प्रदान करता है, जिससे ‘ग्लोबल साउथ’ में भारत का नेतृत्व मजबूत होता है।

चुनौतियाँ (Challenges):

  • भूराजनीतिक ध्रुवीकरण: रूस-यूक्रेन संघर्ष और अमेरिका-चीन प्रतिद्वंद्विता के बीच संतुलन बनाना भारत के लिए एक बड़ी कूटनीतिक चुनौती है।
  • UNSC सुधारों पर प्रतिरोध: सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्य (P5) सुधारों के प्रति अनिच्छुक हैं। इसके अतिरिक्त, यूनाइटिंग फॉर कंसेंसस‘ (कॉफी क्लब) समूह, जिसमें पाकिस्तान और इटली जैसे देश शामिल हैं, G4 के स्थायी सदस्यता के दावे का विरोध करता है।
  • विकास और जलवायु के बीच संतुलन: अपनी विशाल आबादी की ऊर्जा और विकास आवश्यकताओं को पूरा करते हुए महत्वाकांक्षी जलवायु लक्ष्यों को प्राप्त करना एक निरंतर चुनौती है।

निष्कर्ष:

संयुक्त राष्ट्र अब ‘द्वितीय विश्वयुद्ध की संस्था’ से ‘वैश्विक शताब्दी की संस्था’ बनने की ओर संक्रमण के मोड़ पर है। यदि संगठन को प्रासंगिक और प्रभावी बनाए रखना है, तो संरचनात्मक समावेशन, निर्णय पारदर्शिता और प्रतिनिधित्व संतुलन आवश्यक है।
भारत का दृष्टिकोण स्पष्ट है: ‘सुधार या अप्रासंगिकता।’
इन सुधारों से न केवल वैश्विक शासन की वैधता बढ़ेगी, बल्कि अंतर्राष्ट्रीय शांति, सुरक्षा और विकास के आदर्शों को भी नई ऊर्जा मिलेगी।

 

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