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भारत और अफगानिस्तान के द्विपक्षीय संबंध: क्षेत्रीय शक्ति-संतुलन की नई दिशा

India-Afghanistan bilateral relations: A new direction for regional power balance

भारत और अफगानिस्तान के बीच जारी हालिया संयुक्त बयान ने दक्षिण एशियाई कूटनीति में नई हलचल पैदा कर दी है। इसमें सीमा पार आतंकवाद और क्षेत्रीय स्थिरता से संबंधित कई विषय पर संवाद किये गये। अफगानिस्तान के विदेश मंत्री मुतक्की ने भी अपनी यात्रा के दौरान यह कहा कि ‘भारत और अफगानिस्तान का रिश्ता किसी तीसरे देश के खिलाफ नहीं है; बल्कि यह विकास और मानवीय सहायता पर केंद्रित है।’ भारत ने इस वार्ता के माध्यम से अफगानिस्तान में मानवीय सहायता, शिक्षा, स्वास्थ्य और बुनियादी ढांचे में सहयोग बढ़ाने का संकल्प दोहराया।

इस लेख में गत बीस वर्षों के दौरान भारत और अफगानिस्तान द्वारा संचालित विकास परियोजनाओं और पहलों का विश्लेषण किया गया है तथा उनके निष्कर्षों पर चर्चा की गई है। सन् 2001 के बाद से भारत और अफगानिस्तान ने अनेक क्षेत्रों में व्यापक सहयोग किया है। भारत ने जानबूझकर सैन्य कार्रवाइयों और ‘हार्ड पावर’ का प्रयोग नहीं किया; इसके बजाय उसने सहयोग, मित्रता और विकास को प्राथमिकता दी। भारत ने सलमा बाँध, जरांज–डेलाराम राजमार्ग, शैक्षिक संस्थानों, और इंदिरा गांधी बाल स्वास्थ्य संस्थान जैसी प्रमुख अवसंरचनात्मक परियोजनाओं में उल्लेखनीय निवेश किया है।

पिछले दो दशकों में भारत ने अफगान जनता के लिए एक विश्वसनीय सहयोगी के रूप में स्वयं को प्रमाणित किया है। अफगान जनमानस भारतीय प्रशासन की कुशलता और ईमानदारी से अत्यधिक संतुष्ट है।

ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक पृष्ठभूमि

भारत और अफगानिस्तान के संबंध गहरे ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और सभ्यतागत जुड़ाव पर आधारित हैं। दोनों देशों के बीच हजारों वर्षों से व्यापार, धर्म, शिक्षा और संस्कृति के माध्यम से संपर्क रहा है।

  • भारत दक्षिण एशिया की प्रमुख शक्तियों में से एक है, और अफगानिस्तान में उसका प्रमुख उद्देश्य 2001 के बाद की अफगान सरकार का समर्थन करना रहा है। हालाँकि, अफगानिस्तान से अमेरिकी सेना की वापसी की घोषणा के बाद वहाँ की राजनीतिक और सुरक्षा स्थिति ने भारत की नीति को गहराई से प्रभावित किया।
  • तीस वर्षों की अस्थिरता और संकट के बावजूद 2003 के बाद अफगान अर्थव्यवस्था ने लगभग 9 प्रतिशत की औसत वृद्धि दर दर्ज की। इस आर्थिक वृद्धि ने अफगान समाज में रोजगार के अवसर बढ़ाए और अन्य देशों के साथ व्यापारिक संबंधों के विस्तार का मार्ग प्रशस्त किया।
    आधुनिक काल में, इन संबंधों को 2011 के भारतअफगानिस्तान रणनीतिक साझेदारी समझौते (Strategic Partnership Agreement) ने औपचारिक और संस्थागत रूप दिया।
  • यह साझेदारी दक्षिण एशिया में भारत की ‘Neighbourhood First’ और ‘Connect Central Asia’ नीति का केंद्रीय स्तंभ रही।

दोनों देशो ने 2016 से 2020 तक की कई महत्वपूर्ण यात्राओं तय की है:

  • प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2016 में सलमा बांध (अफगानभारत मैत्री बांध) का उद्घाटन किया, यह प्रतीक है भारत की विकास-उन्मुख नीति का।
  • उसी वर्ष उन्होंने अफगान संसद भवन का उद्घाटन किया, जिसे भारत ने लगभग ₹970 करोड़ की लागत से बनाया।
  • राष्ट्रपति अशरफ गनी ने 2017 और 2018 में भारत का दौरा किया, जिसमें दोनों देशों के बीच व्यापार और विकास साझेदारी की समीक्षा हुई।

इन यात्राओं ने ‘भरोसे और परस्पर सम्मान’ की कूटनीतिक नींव को सुदृढ़ किया।

भारत और अफगानिस्तान के बीच यह संयुक्त बयान नयी दिल्ली में आयोजित द्विपक्षीय वार्ता के बाद जारी किया गया था।
दोनों देशों ने इसमें –

  • आतंकवाद के खिलाफ सहयोग,
  • क्षेत्रीय शांति और विकास, तथा
  • मानवीय सहायता और व्यापारिक संपर्कों के विस्तार
    पर जोर दिया।

विदेश मंत्री एस. जयशंकर और अफगान समकक्ष अमीर खान मुतक्की के बीच हुई बातचीत में भारत ने पुनः यह दोहराया कि वह ‘अफगानिस्तान की स्थिरता, संप्रभुता और लोकतांत्रिक ढांचे’ का समर्थन करता है।

सांस्कृतिक और जनसंपर्क संबंध

भारत और अफगानिस्तान के बीच:

  • इंडियाअफगानिस्तान कल्चरल वीक (2017),
  • संगीत और नृत्य दलों का आदानप्रदान,
  • और India-Afghanistan Foundation (2007) जैसे संस्थागत मंचों ने सांस्कृतिक सहयोग को गहराया।

यह soft power diplomacy का उदाहरण है, जहाँ संस्कृति और शिक्षा को विदेश नीति के साधन के रूप में प्रयोग किया गया।

अफगानिस्तान को प्रायः नई दिल्ली सुरक्षा दृष्टिकोण से देखती है। भारत और पाकिस्तान, दोनों ही, अफगान राजनीति में प्रभाव बनाए रखना चाहते हैं। पाकिस्तान को लगता है कि भारत उसके पश्चिमी सीमांत पर तनाव पैदा करना चाहता है, जबकि भारत का उद्देश्य अफगान मामलों में पाकिस्तान के प्रभाव को सीमित करना है (Junaid & Malik, 2021)।

अवसंरचनात्मक विकास

भारत ने अफगानिस्तान में सड़क, सिंचाई, रेलवे, ऊर्जा संचार और जलाशय निर्माण जैसे अनेक बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं में बड़े निवेश किए हैं।
इनमें दो प्रमुख उदाहरण हैं —

  1. जरांजडेलाराम राजमार्ग, और
  2. सलमा बाँध परियोजना (Afghan-India Friendship Dam)

स्कॉट के अनुसार, जरांज–डेलाराम राजमार्ग का निर्माण भारत के लिए दो महत्त्वपूर्ण उद्देश्यों को पूरा करता है —

  • पहला, अफगानिस्तान को समुद्र तक पहुँचने का वैकल्पिक मार्ग प्रदान करता है जिससे पाकिस्तान पर उसकी निर्भरता घटती है;
  • दूसरा, यदि पाकिस्तान भारत को स्थलीय मार्ग से व्यापार की अनुमति नहीं देता, तो भारत मुंबईचाबहारअफगानिस्तान मार्ग के माध्यम से व्यापार कर सकता है।

भारत ने अफगानिस्तान में छोटे स्तर के विकास कार्यक्रम भी चलाए हैं — जैसे स्वास्थ्य केंद्र, विद्यालय, पशुधन केंद्र, पुल, बोरवेल और सार्वजनिक शौचालय आदि।
इनका उद्देश्य था – स्थानीय समुदायों की भागीदारी को बढ़ाना और आधारभूत संरचना में सुधार करना।

  • 2001 के बाद से भारत ने स्वास्थ्य, विमानन, शिक्षा और खाद्य सहायता के क्षेत्रों में भी अफगानिस्तान को मानवीय मदद दी है।
    भारत ने इंदिरा गांधी बाल चिकित्सा अस्पताल (Kabul) का पुनर्निर्माण किया और नियमित रूप से चिकित्सकीय दल भेजे जो विभिन्न प्रांतों में स्वास्थ्य सेवाएँ प्रदान करते रहे।
  • भारत ने बर्लिन सम्मेलन में 800 मिलियन डॉलर का योगदान देने का वादा किया था, ताकि सलमा बाँध परियोजना को पूरा किया जा सके। यह परियोजना अफगानिस्तान में जल भंडारण और सिंचाई व्यवस्था को सुदृढ़ करने के लिए बनाई गई थी, जिसे भारतीय इंजीनियरों ने तैयार किया।
  • 2003 में हरी नदी पर 5 मीटर ऊँचा बाँध बनाया गया। इसके अलावा, अफगान सरकार के अनुरोध पर दो अतिरिक्त विद्युत उपकेंद्रदोशी और चारिकार — स्थापित किए गए, ताकि पुल-ए-खुमरी से काबुल तक 220 किलोवोल्ट ट्रांसमिशन लाइन को सहायता मिल सके।
  • दोशी में ट्रांसफार्मर क्षमता बढ़ाई गई और चारिकार में तीसरा 16 MVA ट्रांसफार्मर लगाया गया। दोनों उपकेंद्र 2016 में कार्यरत हो गए।
  • इसी वर्ष भारत ने काबुल के ऐतिहासिक स्टोर पैलेस (Stor Palace) का भी पुनरुद्धार कराया, जो अफगान विदेश मंत्रालय के अंतर्गत आता है।
    प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति अशरफ गनी ने 22 अगस्त 2016 को इस इमारत का संयुक्त रूप से उद्घाटन किया (Hashimy, 2022)।

आर्थिक और वाणिज्यिक विकास

भारत यह मानता है कि अफगानिस्तान मध्य, दक्षिण और पश्चिम एशिया को जोड़ने वाला आर्थिक मार्ग केंद्र (Economic Hub) है। अफगानिस्तान का रणनीतिक और व्यावसायिक दोनों दृष्टियों से भारत के लिए अत्यधिक महत्त्व है।

  • भारत अफगानिस्तान के लिए दक्षिण एशिया का सबसे बड़ा बाजार है।
    किरित के. नायर के लेख ‘India’s Role in Afghanistan: Post-2014 Strategy, Policy and Implementation’ के अनुसार, भारत ने अफगानिस्तान में आर्थिक वृद्धि, शांति और स्थिरता को प्रोत्साहित करने के लिए अनेक क्षेत्रों में बहुआयामी परियोजनाएँ शुरू की हैं। भारत ने बल प्रयोग से परहेज़ करते हुए असैनिक साधनों का उपयोग किया है।

महत्वपूर्ण पहलें:

  • एयरफ्रेट कॉरिडोर (2017) → कृषि उत्पादों के लिए नया निर्यात मार्ग।
  • चाबहार पोर्ट (ईरान) → पाकिस्तान को बाईपास करते हुए भारत-अफगान-ईरान त्रिपक्षीय व्यापार को नई दिशा।
  • ‘Passage to Prosperity’ व्यापार सम्मेलन → निजी निवेश व औद्योगिक सहयोग के नए अवसर।

भारत विशेष रूप से खनन और प्राकृतिक संसाधन क्षेत्रों में अफगानिस्तान में अपनी व्यापारिक उपस्थिति को बढ़ाना चाहता है (Wang, 2018)।

इन पहलों से भारत ने अफगानिस्तान को ‘लैंडलॉक्ड’ स्थिति से मुक्त कर क्षेत्रीय संपर्क (regional connectivity) को मजबूत किया।

भारत के प्रमुख निर्यात — कृत्रिम रेशे, परिधान, औषधीय उत्पाद, अनाज, दुग्ध और पोल्ट्री उत्पाद।

अफगानिस्तान के प्रमुख निर्यात — सूखे और ताजे फल

भारत ने व्यापारिक अवसरों का विस्तार करने के लिए कई पहलें कीं:

  • मार्च 2003 में भारतअफगान वरीयता व्यापार समझौता (Preferential Trade Agreement) पर हस्ताक्षर किए गए।
  • भारत ने 38 सूखे फलों पर 50–100% तक शुल्क छूट दी।
  • नवंबर 2011 में भारत ने अफगान वस्तुओं पर मूल सीमा शुल्क समाप्त कर दिया (शराब और तंबाकू को छोड़कर), जिससे उन्हें भारतीय बाजार में शुल्कमुक्त प्रवेश मिला।

ईरान के चाबहार बंदरगाह के चालू होने से अफगान निर्यात को नया ट्रांज़िट मार्ग मिला, जिससे भारत और अन्य वैश्विक बाजारों से संपर्क आसान हुआ।

AFISCO नामक भारतीय संघ (जिसमें सार्वजनिक और निजी इस्पात व खनन कंपनियाँ शामिल हैं) ने हजिगाक लौहअयस्क क्षेत्र के लिए अनुबंध प्राप्त किया।

  • भारत, अफगानिस्तान और ईरान के बीच त्रिपक्षीय व्यापार समझौते से भारत की क्षेत्रीय भूमिका और स्पष्ट हुई है।
  • भारत अब तक $2 बिलियन से अधिक सहायता देकर अफगान पुनर्निर्माण में पाँचवाँ सबसे बड़ा दाता देश बन गया है।
  • 2019–2020 में द्विपक्षीय व्यापार US$ 1.5 बिलियन तक पहुँचा।
    2017 के बाद से एयर फ्रेट कॉरिडोर के माध्यम से 1000 उड़ानों में $216 मिलियन मूल्य का व्यापार हुआ।
    2018 में चाबहार बंदरगाह पूरी तरह चालू हुआ।
  • भारत ने अफगानिस्तान की मानव विकास, अवसंरचना और स्वास्थ्य सेवाओं के लिए $3 बिलियन से अधिक की सहायता दी है, जिससे वह अफगानिस्तान का सबसे विश्वसनीय साझेदार बन गया है (Nandan & Kumar, 2022)।

राजनीतिक संलग्नता (Political Engagement)

  • भारत की रणनीति यह रही है कि वह अफगानिस्तान की राजनीतिक प्रणाली में प्रभावशाली भूमिका निभाए।
    भारत की आर्थिक पहलों का उद्देश्य केवल विकास ही नहीं, बल्कि अफगान राजनीति में दीर्घकालिक उपस्थिति बनाए रखना भी रहा है।
  • भारत ने आर्थिक सहयोग के माध्यम से अपनी राजनीतिक स्थिति को सशक्त किया, जिससे काबुल सरकार और अफगान जनता दोनों के बीच उसका विश्वास बढ़ा।
  • 1996–2001 के बीच तालिबान शासन के दौरान भी भारत ने अफगानिस्तान के साथ राजनयिक संपर्क बनाए रखा।
    2001 में तालिबान की पराजय (जिसमें पाकिस्तान का प्रत्यक्ष समर्थन था) के बाद भारत ने नई अफगान सरकार के साथ मित्रतापूर्ण राजनीतिक संबंध स्थापित करने का अवसर देखा।
  • भारत का लक्ष्य केवल पाकिस्तान से प्रतिस्पर्धा करना नहीं था, बल्कि एक प्रगतिशील और लोकतांत्रिक काबुल प्रशासन को प्रोत्साहित करना भी था।
    इससे भारत की क्षेत्रीय शक्ति के रूप में स्थिति और मजबूत होती गई (Muttaqi & ÇAĞLAR, 2021)।
  • अफगानिस्तान ऐतिहासिक रूप से शक्ति संघर्षों और क्षेत्रीय प्रतिस्पर्धा का केंद्र रहा है।
    कई बार कू (coup), प्रतिनिधि युद्ध (proxy warfare) और स्थानीय समूहों को हथियार उपलब्ध कराने जैसी नीतियों ने अफगानिस्तान की स्थिरता और शासन संरचना को प्रभावित किया।
  • पाकिस्तान को हमेशा भारत-अफगान निकटता से संदेह रहा, क्योंकि उसे अपने क्षेत्रीय और जातीय एकीकरण पर खतरा महसूस होता है।
    इतिहासकार विलियम डैलरिम्पल ने भारत, पाकिस्तान और अफगानिस्तान के संबंधों को ‘पारस्परिक अविश्वास और प्रतिस्पर्धा का घातक त्रिकोण’ बताया है।

भारतीय विदेश मंत्री एस.एम. कृष्णा ने 2009 में संयुक्त राष्ट्र महासभा के दौरान वॉल स्ट्रीट जर्नल को दिए साक्षात्कार में कहा

-’भारत का दृढ़ मत है कि किसी भी संकट, विशेषकर अफगान संकट का समाधान युद्ध नहीं है।’

नई दिल्ली का यह रुख दर्शाता है कि वह अफगान सरकार के समावेशी लोकतंत्र निर्माण के प्रयासों का समर्थन करती है।
भारत विभिन्न वार्ताओं, सम्मेलनों और बागी समूहों के पुनर्समावेश (Reintegration) की प्रक्रियाओं में सक्रिय रूप से शामिल रहा है (D’Souza, 2011)।

अफगानिस्तान और भारत के बीच संबंधों को सशक्त करने की नीतियाँ

2001 के बाद भारत की अफगानिस्तान-नीति के पीछे अनेक उद्देश्य रहे हैं —

  • इस्लामी कट्टरवाद और उग्रवाद के प्रसार को रोकना,
  • एक एकीकृत, स्वायत्त, विविधतापूर्ण और शांतिपूर्ण अफगानिस्तान का निर्माण करना,
  • क्षेत्रीय स्तर पर व्यापार, परिवहन और ऊर्जा सहयोग को बढ़ावा देना, तथा
  • अफगानिस्तान में दीर्घकालिक भागीदारी सुनिश्चित करना।

भारत ने अपनी पुरानी सैन्यआधारित नीति (जैसे उत्तरी गठबंधन को समर्थन देना) से हटकर एक नई सहयोगप्रधान सक्रिय नीति अपनाई।
भारत ने सैन्य कार्रवाइयों में भाग लेने से जानबूझकर परहेज़ किया और आक्रामक साधनों से दूरी बनाए रखी।

भारत की सॉफ्ट पावर नीति (Soft Power Strategy) का उद्देश्य अफगान जनता के साथ पुराने सांस्कृतिक व ऐतिहासिक संबंधों को सुदृढ़ कर राजनीतिक प्रभाव बढ़ाना है।
इस नीति का अंतिम लक्ष्य अफगान समाज की क्षमताओं को मज़बूत करना और एक सुरक्षित, लोकतांत्रिक और सामंजस्यपूर्ण अफगानिस्तान का निर्माण करना है (Ahmad, 2021)।

 

 


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