• जूडिथ बटलर (Judith Butler) एक प्रसिद्ध अमेरिकी दार्शनिक, नारीवादी चिंतक और सामाजिक सिद्धांतकार हैं। उनका जन्म 24 फरवरी 1956 को अमेरिका में हुआ। वे विशेष रूप से लिंग (Gender), यौनिकता (Sexuality), पहचान (Identity), और समाज में शक्ति संबंधों (Power Relations) के अध्ययन के लिए जानी जाती हैं। बटलर का कार्य क्वीयर थ्योरी (Queer Theory) और पोस्टमॉडर्न फेमिनिज्म (Postmodern Feminism) में क्रांतिकारी माना जाता है।
• लिंग (Gender) और यौनिक पहचान (Sexual Identity) मानविकी और सामाजिक विज्ञान में अध्ययन का एक महत्वपूर्ण विषय हैं। समाजशास्त्र, नारीवादी अध्ययन और क्वीर थ्योरी में यह विषय विशेष महत्व रखता है। पारंपरिक दृष्टिकोण में लिंग को केवल जन्मजात (Biological) माना जाता था और इसे पुरुष और महिला की दो श्रेणियों में बाँटा जाता था। इस दृष्टिकोण के अनुसार, महिलाओं और पुरुषों के बीच व्यवहार का अंतर प्राकृतिक और जन्मजात है।
• जूडिथ बटलर की पुस्तक Gender Trouble: Feminism and the Subversion of Identity (1990) ने इस सोच को चुनौती दी। बटलर का मुख्य तर्क है कि लिंग कोई स्थिर या जन्मजात गुण नहीं है, बल्कि यह सामाजिक और सांस्कृतिक क्रियाओं के माध्यम से निर्मित और बार-बार प्रदर्शन किया जाने वाला अवधारणा है। उनके विचार नारीवादी विमर्श, क्वीर थ्योरी और पोस्टमॉडर्न फेमिनिज्म में क्रांतिकारी साबित हुए। यह लेख बटलर के विचारों, उनके तर्क, आलोचनाओं और उनके सामाजिक और अकादमिक प्रभाव का विस्तृत विवेचन प्रस्तुत करता है।
1 पारंपरिक नारीवादी दृष्टिकोण
• परंपरागत नारीवादी विमर्श में लिंग और सेक्स के बीच स्पष्ट भेद माना जाता था।
• Sex (जैविक लिंग): जन्मजात शारीरिक और जैविक विशेषताएँ।
• Gender (लैंगिक पहचान): समाज और संस्कृति द्वारा निर्धारित व्यवहार और भूमिकाएँ।
इस दृष्टिकोण के अनुसार, पुरुष और महिला का व्यवहार समाज में पूर्वनिर्धारित होता है। नारीवादी आंदोलन का उद्देश्य इस असमानता को दूर करना था, जैसे शिक्षा, रोजगार और राजनीतिक अधिकारों में समानता लाना।
सीमाएँ
हालांकि, इस दृष्टिकोण की सीमाएँ भी थीं:
1. लिंग को स्थिर और जन्मजात मानना।
2. सामाजिक और सांस्कृतिक निर्माण की जटिलताओं को अनदेखा करना।
3. लिंग की बहुलता और तरलता को स्वीकार न करना।
इन सीमाओं के कारण, पारंपरिक नारीवादी दृष्टिकोण समाज में लैंगिक पहचान की जटिलताओं को समझने में असमर्थ था।
2. बटलर का दृष्टिकोण
लिंग का प्रदर्शनवाद (Gender Performativity)
• बटलर के अनुसार, लिंग कोई जन्मजात गुण नहीं है, बल्कि यहसामाजिक और सांस्कृतिक क्रियाओं के माध्यम से बार-बार प्रदर्शन किया जाने वाला व्यवहार है। इसे उन्होंने “Performativity” कहा।
मुख्य बिंदु:
• लिंग का निर्माण किसी व्यक्ति के भीतर नहीं, बल्कि समाज और संस्कृति में होता है।
• हम अपने व्यवहार, भाषा और सामाजिक इंटरैक्शन के माध्यम से लिंग की पहचान का निर्माण करते हैं।
• यह निर्माण निरंतर होता है, यानी लिंग स्थिर नहीं रहता।
उदाहरण:
• किसी महिला का सौम्य व्यवहार, चुप रहना या कोमल आवाज़ का उपयोग केवल जैविक नहीं है; यह सामाजिक अपेक्षाओं और संस्कृति के अनुसार बार-बार प्रदर्शन किया गया व्यवहार है।
• पुरुष का साहसी, बोल्ड या दृढ़ व्यवहार भी इसी तरह समाज और संस्कृति द्वारा निर्मित है।
बाइनरी लिंग प्रणाली की आलोचना
समाज अक्सर लिंग को केवल पुरुष और महिला की दो श्रेणियों में बाँटता है। यह बाइनरी:
1. सामाजिक नियम तय करता है।
2. लोगों को उनके “लिंग रोल” के अनुसार सीमित करता है।
बटलर के अनुसार, यह बाइनरी प्रणाली कृत्रिम और सामाजिक रूप से बनाए गए नियमों पर आधारित है। लिंग बहुआयामी है समाज केवल दो लिंग मानकर लोगों की पहचान और व्यवहार को सीमित करता है।
लिंग और सत्ता
बटलर का तर्क है कि लिंग का प्रदर्शन केवल व्यक्तिगत विकल्प नहीं है। यह सामाजिक संरचना और शक्ति संबंधों द्वारा नियंत्रित होता है।
उदाहरण:
• किसी महिला को सार्वजनिक स्थान पर बोलने से रोकना या किसी पुरुष को नृत्य करने की अनुमति न देना, समाज के लिंग नियमों का उदाहरण है।
• यह दर्शाता है कि लिंग केवल बायोलॉजिकल नहीं, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक दबावों के अधीन है।
3. बटलर और नारीवादी आंदोलन
पारंपरिक नारीवाद
• समानता पर आधारित।
• महिलाओं को पुरुषों के समान अवसर देने का प्रयास।
• लिंग को स्थिर और जन्मजात मानता था।
बटलर का योगदान
• स्थिर लिंग की अवधारणा को चुनौती दी।
• समानता की बहस को सामाजिक निर्माण और पहचान के प्रश्न तक विस्तारित किया।
• नारीवादी अध्ययन में बहुलता (Multiplicity), तरलता (Fluidity), और प्रदर्शन (Performance) को केंद्र में रखा।
प्रभाव: बटलर ने न केवल नारीवाद, बल्कि क्वीर थ्योरी, सिनेमा अध्ययन और सांस्कृतिक अध्ययन में भी नए दृष्टिकोण पेश किए।
4. आलोचना और विवाद
आलोचना
• बटलर के विचार जटिल और अमूर्त माने जाते हैं।
• उनका तर्क “सामाजिक प्रदर्शन” पर केंद्रित होने के कारण व्यावहारिक नीतियों में लागू करना कठिन है।
विवाद
• कुछ आलोचक मानते हैं कि बटलर ने लिंग की स्थिर पहचान को पूरी तरह खारिज कर दिया।
• इससे सामाजिक संरचना और नियमों पर प्रश्न उठता है।
उदाहरण: बटलर के दृष्टिकोण से, यदि लिंग केवल प्रदर्शन है, तो कानूनी और राजनीतिक नीतियों में लिंग आधारित भेदभाव को नियंत्रित करना चुनौतीपूर्ण हो जाता है।
निष्कर्ष
जूडिथ बटलर की Gender Trouble ने लिंग और पहचान पर हमारे दृष्टिकोण को मौलिक रूप से बदल दिया।
1. लिंग कोई स्थिर और जन्मजात गुण नहीं है।
2. लिंग का निर्माण सामाजिक प्रदर्शन और सांस्कृतिक क्रियाओं के माध्यम से होता है।
3. पुरुष और महिला की बाइनरी प्रणाली सामाजिक निर्माण है।
4. नारीवादी और लैंगिक अध्ययन में बहुलता और तरलता की आवश्यकता है।
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