पृष्ठभूमि और ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य
शर्म अल-शेख, मिस्र के सिनाई प्रायद्वीप का एक तटीय शहर, पूर्व में एक शांत मछुआरा गाँव था जो अब ‘शांति का नगर’ और वैश्विक राजनीति के लिए एक प्रमुख मंच बन गया है। यह स्थान न केवल अपनी प्राकृतिक सुंदरता के लिए जाना जाता है, बल्कि दशकों से अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन तथा शांति वार्ताओं की मेज़बानी करने के लिए भी प्रसिद्ध है। यहाँ, 1999 के ‘शर्म अल-शेख मेमोरेंडम’ से लेकर 2005 में दूसरे इंतेफादा को समाप्त करने वाले ‘शांति शिखर सम्मेलन’ तक, इजराइल-फिलिस्तीन संघर्ष के कई ऐतिहासिक प्रयास हुए हैं, जिनमें संयुक्त राष्ट्र, अमेरिका, यूरोपीय संघ जैसी वैश्विक शक्तियां और क्षेत्रीय नेतृत्व शामिल रहा है।
आज, जब मध्य पूर्व एक बार फिर युद्ध एवं मानवीय संकट की विभीषिका झेल रहा है, शर्म अल-शेख शहर दोनों पक्षों के बीच वार्ता और संभावित समाधान के लिए फिर एक बार मंच बना है। हाल की शांति वार्ता ने विश्व समुदाय को नई आशाओं से भर दिया, लेकिन इसकी ऐतिहासिक पृष्ठभूमि को समझना उतना ही आवश्यक है जितना वर्तमान जटिलताओं व चुनौतियों को।
हालिया सम्मेलन की आवश्यकता और स्वरूप
2025 में आयोजित ताजा ‘शांति शिखर सम्मेलन’ की भूमिका इसलिए बेहद अहम है क्योंकि गाजा पट्टी में महीनों से चले सशस्त्र संघर्ष, हजारों मौतों, और विस्थापन के बाद विश्व समुदाय के लिए तत्काल हस्तक्षेप आवश्यक हो गया था। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और मिस्र के राष्ट्रपति अब्देल फतह अल-सीसी की संयुक्त अध्यक्षता में आयोजित इस सम्मेलन में 20 से अधिक देशों के शीर्ष नेताओं ने हिस्सा लिया। सम्मेलन की सबसे बड़ी उपलब्धि इजराइल और हमास के बीच बंधकों की रिहाई के बदले बंदियों की अदला-बदली थी, जो शांति प्रक्रिया का पहला चरण सिद्ध हुई।
बैठक के समापन पर जारी संयुक्त वक्तव्य में सभी पक्षों ने मानवाधिकारों, सुरक्षा और सम्मान की समानता की बात की। हालांकि इसमें फिलीस्तीनी राज्य की स्पष्ट चर्चा नहीं की गई, पर संयुक्त राष्ट्र, कतर, तुर्की और अमेरिका का सशक्त समर्थन शांति की दिशा में गंभीर माने जा रहे हैं।
वार्ता की उपलब्धियाँ और प्रतिबद्धताएँ
शर्म अल-शेख सम्मेलन के बाद अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने “एक साझा भविष्य जिसमें समस्त लोगों को शांति, सुरक्षा तथा आर्थिक समृद्धि मिले, भेदभाव के बिना” जैसी कल्पना का समर्थन किया। यह भाषा इजराइल और फिलीस्तीन दोनों को समान स्तर पर स्थापित करती है, फिलीस्तीनियों की पहचान व सम्मान के लिए एक वैश्विक स्वीकृति के रूप में देखी जा रही है।
बड़ी उपलब्धियों में—
- इजराइली बंधक और फिलीस्तीनी कैदियों की बड़ी अदला-बदली,
- मानवीय सहायता को सुचारू करने पर सहमति,
- गाजा के पुनर्निर्माण के लिए चरणबद्ध योजनाओं की तैयारी,
- क्षेत्रीय सुरक्षा और भविष्य के लिए आवश्यक वार्ताओं के प्रति प्रतिबद्धता,
- अमेरिका, मिस्र, कतर व तुर्की सहित विभिन्न देशों की दृढ़ भागीदारी शामिल है।
ट्रंप प्रशासन के नेतृत्व ने बीते महीनों की तुलना में भाषा और नीति में स्पष्ट बदलाव दिखाया—जहाँ एक ओर पहले गाजा को बलपूर्वक अन्यत्र भेजने की बातें होती थीं, वहीं अब फिलिस्तीनियों को भी वे ही अधिकार दिए जाने की बातें हो रही हैं जो इजराइलियों को मिलती हैं। अंतरराष्ट्रीय मंच पर यह परिवर्तन दूरगामी असर रखने वाला माना जा रहा है।
सम्मिलित पक्ष और उनकी जटिलताएँ
इस समिट में अमेरिकी, यूरोपीय एवं अरब नेतृत्व की स्पष्ट सक्रियता देखने को मिली, पर सबसे महत्वपूर्ण पक्ष यानी फिलिस्तीनी समाज को वाजिब स्थान नहीं मिला। फिलिस्तीनी प्रशासन के महमूद अब्बास को हालांकि ट्रंप से गर्मजोशी से मिलते देखा गया, पर असल मोल-भाव और निर्णय निर्माण प्रक्रिया में फिलिस्तीनी भागीदारी सीमित रही। इसी तरह, इजराइल की ओर से प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू पर घरेलू एवं वैश्विक दबाव दोनों रहे—लेकिन वे भी इस शांति प्रयास से उन राजनीतिक संकटों से पार पाने की कोशिश कर रहे हैं जो इजराइल में लंबे संघर्ष व विवादित न्यायिक संशोधन की वजह से उत्पन्न हुए हैं।
शांति वार्ता में हमास द्वारा संपूर्ण निरस्त्रीकरण, गाजा पर नियंत्रण छोड़ने, तथा ‘पुनर्गठित’ फिलिस्तीनी प्रशासन के लिए स्थान छोड़ने जैसे बिंदु स्पष्ट थे—परन्तु इन प्रस्तावों पर हमास की चुप्पी तथा उनके प्रतिरोध की आशंका बनी रही। इस कारण यह चिंता जताई गई कि वार्ता का यह चरण महज़ अस्थायी युद्धविराम तक सिमट सकता है।
शर्म अल-शेख की वार्ता के बाद सबसे बड़ी चुनौतियाँ निम्नलिखित हैं—
- हमास का निरस्त्रीकरण और गाजा प्रशासन से हटना—जो जटिल और जोखिम भरा है।
- गाजा का पुनर्निर्माण, विस्थापित लोगों का पुनर्वास, आधारभूत ढांचे की बहाली।
- सुरक्षा प्रतिबद्धताओं को सुनिश्चित करना, जिससे दुबारा संघर्ष की संभावना खत्म हो सके।
- गाजा की भावी राजनीति—क्योंकि अगर हमास या फिलिस्तीनी प्रशासन ही नहीं, तो कौन शासन करेगा?
- सामूहिक रूप से उन फौजों की तैनाती की जमीनी वास्तविकताएँ, जो शांति के बाद क्षेत्र में व्यवस्था बहाल करेंगी।
- रणनीतिक स्तर पर फिलिस्तीनी राज्य की मांग व इजराइल के पक्ष की जटिलता—संभावित समझौतों की अनिश्चितता।
इन तमाम बाधाओं के साथ ही, यह भी चिंता की जा रही है कि कहीं यह शिखर-सम्मेलन ‘विशिष्ट आयोजन’ बनकर न रह जाए, क्योंकि ठोस कार्यान्वयन के लिए निर्णायक इच्छाशक्ति और सबकी सहभागिता जरूरी है।
अमेरिका का प्रभाव, रणनीति और सीमाएँ
इस पूरे घटनाक्रम के केंद्र में अमेरिकी राष्ट्रपति का नेतृत्व रहा। ट्रंप के पास वर्तमान इजराइली नेतृत्व पर अभूतपूर्व दबाव और प्रभाव रहा है, जिससे संकट के दौर में सैन्य कार्रवाइयों को रोकने और राजनयिक समाधान निकलवाने की क्षमता दिखी है। लेकिन उनका दीर्घकालिक निवेश कितना रहेगा, यह संदेहास्पद है क्योंकि नोबेल शांति पुरस्कार न मिलने से उनकी रुचि घटती दिख रही है। दूसरी ओर नेटन्याहू भी अपनी घरेलू राजनीति को ध्यान में रखते हुए स्थायी समाधान की बजाय अस्थायी लाभ देख सकते हैं।
ऐतिहासिकता: ‘शांति का नगर’ और वार्ता स्थल
शर्म अल-शेख के ऐतिहासिक, राजनयिक और सांस्कृतिक महत्व को अनदेखा नहीं किया जा सकता। यह स्थान 1982 में इज़राइल से पुनः मिस्र को सौंपे जाने के बाद शांति और अंतरराष्ट्रीय संवाद का विशिष्ट केंद्र बना। यहाँ न केवल इजराइल-फिलिस्तीन के कई समझौते हुए, बल्कि संयुक्त राष्ट्र के पर्यावरण सम्मेलन (COP27), क्षेत्रीय आर्थिक मंच और अरब-यूरोपीय सहयोग के विभिन्न आयोजन भी हुए हैं। इन सभी आयोजनों ने शर्म-अल-शेख को ‘द सिटी ऑफ़ पीस’ के तौर पर स्थापित किया।
गाजा का पुनर्निर्माण और मानवीय पक्ष
शर्म अल-शेख समिट के बाद गाजा के पुनर्निर्माण की बात प्रमुख है क्योंकि पूरे इलाके में आधारभूत संरचनाएँ, स्कूल, अस्पताल और रिहायशी क्षेत्र पूरी तरह नष्ट हो चुके हैं। सम्मेलन में मानवीय सहायता के लिए संकल्प तो लिया गया, पर अमल में दीर्घकालिक प्रतिबद्धता और वास्तविक सहूलियतें उपलब्ध कराना बड़ी चुनौती बनी हुई है। विस्थापित लाखों लोगों की वापसी, पुनर्वास और रोज़गार की व्यवस्था के बगैर किसी भी संधि का शांति लक्ष्य अधूरा है।
आगे की राह और भविष्य की चुनौतियाँ
वार्ता के बाद ‘फेज़ 2’ के संबंध में ट्रंप प्रशासन द्वारा बार-बार घोषणाएँ तो हुईं, पर अमली जामा कब और कैसे पहनेगा, इसकी अनिश्चितता बरकरार है। यदि हमास असहयोग जारी रखे या इजराइल सुरक्षा को लेकर आक्रामक रुख दिखाए, तो स्थिति फिर विस्फोटक बन सकती है। अंतरराष्ट्रीय समुदाय के लिये सबसे बड़ी जिम्मेदारी यह है कि समिट की घोषणाओं को कागज़ी न रहने दें, बल्कि गाजावासियों के अधिकार, सुरक्षा, पुनर्स्थापना और राजनीतिक भविष्य को सुनिश्चित करें।
ऊपर से यदि क्षेत्रीय सहयोग के वादे भी अमल तक पहुँचते हैं तो ही ‘साझा भविष्य’ के विचार को असल दिशा मिलेगी। वैश्विक नेतृत्व—विशेषकर अमेरिका, मिस्र, तुर्की, कतर आदि—का कूटनीति, मानवीय सहायता और दबाव बनाए रखना, शांति की स्थिरता के लिए अनिवार्य है।
निष्कर्ष
शर्म अल-शेख वार्ता ने निश्चित तौर पर एक नई आशा जगाई है, जिसमें अंतर्राष्ट्रीय भागीदारी, मानवीय पक्ष और पुनर्निर्माण की प्रतिबद्धताएँ शामिल हैं। फिर भी, असल परीक्षा भविष्य के महीनों में होगी, जब युद्धविराम से आगे बढ़कर गाजा में ठोस राजनीतिक और सामाजिक समाधान, विस्थापितों की पुनर्वापसी, और दोनों पक्षों के अधिकारों व सुरक्षा को व्यावहारिक रूप देना अनिवार्य होगा। अन्यथा यह शिखर सम्मेलन भी शांति प्रयासों के लंबे इतिहास में केवल एक अध्याय बनकर रह जाएगा, न कि निर्णायक मोड़।
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