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भारत- तालिबान संबंध: आदर्शवाद और ब्यावहारिकता के बीच संतुलन

अफ़ग़ानिस्तान का राजनीतिक परिदृश्य सदैव दक्षिण एशिया की भू-राजनीति का केंद्र रहा है। भारत के लिए यह न केवल एक पड़ोसी देश है, बल्कि ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और रणनीतिक दृष्टि से भी अत्यंत महत्त्वपूर्ण रहा है।

तालिबान की सत्ता में वापसी (2021) ने भारत की विदेश नीति के सामने एक नई चुनौती रख दी —

क्या भारत को नैतिक मूल्यों (लोकतंत्र, मानवाधिकार, महिला अधिकार) पर टिके रहना चाहिए या फिर व्यवहारिकता अपनाते हुए तालिबान से संपर्क बनाए रखना चाहिए?

भारत ने इस द्वंद्व के बीच “संतुलित व्यवहारिक नीति” (Pragmatic Balance) अपनाई — जिसमें न तो तालिबान को औपचारिक मान्यता दी गई, और न ही अफ़ग़ान जनता से रिश्ते तोड़े गए।

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

भारत और अफ़ग़ानिस्तान के संबंध प्राचीन काल से ही व्यापार, संस्कृति और बौद्ध धर्म के माध्यम से जुड़े रहे हैं।

लेकिन 1990 के दशक में तालिबान के उदय ने इस संबंध में तनाव पैदा किया।

  • 1996–2001: तालिबान का पहला शासन काल
    भारत ने तालिबान सरकार को मान्यता नहीं दी और नॉर्दर्न एलायंस का समर्थन किया।
    तालिबान के पाकिस्तान से निकट संबंध और कश्मीर में आतंकवादी गतिविधियों ने भारत की सुरक्षा चिंताओं को बढ़ाया।
  • 2001–2021: तालिबान शासन समाप्त होने के बाद भारत बना अफ़ग़ानिस्तान का सबसे बड़ा क्षेत्रीय विकास साझेदार।
    भारत ने 3 अरब डॉलर से अधिक की सहायता दी —
    संसद भवन, सलमा बाँध, ज़रांज-देलाराम राजमार्ग जैसी परियोजनाएँ इसका प्रतीक हैं।

इस अवधि में भारत ने अफ़ग़ानिस्तान में लोकतंत्र, शिक्षा और महिलाओं की भागीदारी को मजबूत किया।

तालिबान की पुनर्वापसी (2021) और भारत की प्रतिक्रिया

2021 में जब अमेरिका ने अफ़ग़ानिस्तान छोड़ा और तालिबान ने दोबारा सत्ता संभाली, तो भारत ने अत्यंत संतुलित और सावधान नीति अपनाई।

भारत की प्रमुख चिंताएँ थीं:

  • अफ़ग़ान भूमि का उपयोग भारत विरोधी आतंकवाद के लिए न हो।
  • पाकिस्तान और चीन का अत्यधिक प्रभाव न बढ़े।
  • अफ़ग़ान जनता के प्रति भारत की सकारात्मक छवि बनी रहे।

भारत ने तालिबान को औपचारिक मान्यता नहीं दी, परंतु “व्यावहारिक संपर्क” (functional engagement) बनाए रखा।

मानवीय सहायता, दवाइयाँ, अनाज और कोविड वैक्सीन के माध्यम से भारत ने अपनी “people-centric diplomacy” को जारी रखा।

भारत की वर्तमान नीति: व्यवहारिक कूटनीति (Pragmatic Diplomacy)

भारत का दृष्टिकोण अब पूर्णतः वास्तविकता-आधारित (Realpolitik) हो गया है।

इसके प्रमुख तत्व हैं

  1. सीमित राजनयिक उपस्थिति:
    2022 में भारत ने काबुल में अपना दूतावास पुनः खोला (तकनीकी टीम के साथ)।
  2. मानवीय सहायता:
    UN और अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं के माध्यम से अफ़ग़ान जनता तक मदद पहुँचाना।
  3. क्षेत्रीय समन्वय:
    रूस, ईरान, और मध्य एशिया के साथ मिलकर अफ़ग़ानिस्तान में स्थिरता की दिशा में प्रयास।
  4. आतंकवाद पर सतर्कता:
    यह सुनिश्चित करना कि अफ़ग़ान भूमि का उपयोग भारतीय हितों के विरुद्ध न हl
  5.  रचनात्मक सहभागिता (Constructive Engagement):
    तालिबान शासन से प्रत्यक्ष वार्ता के बजाय जनता-केंद्रित कूटनीति जारी रखनी चाहिए।
    1. क्षेत्रीय सहयोग:
      ईरान, रूस, और मध्य एशियाई देशों के साथ बहुपक्षीय मंचों पर मिलकर कार्य करना।
    2. आतंकवाद पर निगरानी:
      भारतीय एजेंसियों को अफ़ग़ान क्षेत्र से आने वाले आतंकी नेटवर्क पर सख्त निगरानी रखनी चाहिए।
    3. मानवीय सहायता और शिक्षा:
      छात्रवृत्ति, स्वास्थ्य सेवा और कृषि सहायता के माध्यम से भारतीय प्रभाव को बनाए रखना।

      • रणनीतिक हित: अफ़ग़ानिस्तान में स्थिरता भारत के मध्य एशिया संपर्क का मार्ग है।
      • आर्थिक हित: चाबहार बंदरगाह और INSTC परियोजना के लिए अफ़ग़ानिस्तान का महत्व।
      • सांस्कृतिक हित: बौद्ध और ऐतिहासिक जुड़ाव भारत–अफ़ग़ान संबंधों की नींव हैं।
      • सुरक्षा हित: आतंकवाद-मुक्त क्षेत्रीय माहौल भारत के राष्ट्रीय हित में है।भारत के हित

      आगे की राह (Way Forward)

    निष्कर्ष (Conclusion)

    भारत की विदेश नीति सदैव “वसुधैव कुटुम्बकम्” के सिद्धांत पर आधारित रही है।

    तालिबान के साथ संबंधों में भारत ने न तो आदर्शवाद का त्याग किया, न ही व्यवहारिकता की अनदेखी की।

    आज भारत की नीति का सार यही है —

    “तालिबान से दूरी नहीं, परंतु सावधानी;

    अफ़ग़ान जनता से सहयोग, पर आतंकवाद से शून्य सहनशीलता।”

    भारत का यह संतुलित दृष्टिकोण न केवल दक्षिण एशिया की स्थिरता के लिए आवश्यक है, बल्कि विश्व मंच पर भारत की जिम्मेदार वैश्विक शक्ति (Responsible Power) की छवि को भी मजबूत करता है।


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