• Anthony Giddens एक प्रसिद्ध ब्रिटिश समाजशास्त्री हैं, जिनका काम आधुनिक समाजशास्त्र (contemporary sociology) पर गहरा प्रभाव डालता है। उनका जन्म 1938 में हुआ और उन्होंने समाज, संस्कृति और राजनीति पर कई महत्वपूर्ण विचार दिए।
• Giddens का मुख्य उद्देश्य था क्लासिकल समाजशास्त्र (Marx, Weber, Durkheim) और आधुनिक समाजशास्त्र के बीच पुल बनाना। उन्होंने यह दिखाया कि समाज सिर्फ स्थिर नहीं है, बल्कि निरंतर बदलाव और विकास की प्रक्रिया में है।
प्रमुख योगदान
1. Structuration Theory (संरचनात्मक सिद्धांत)
• Giddens ने यह सिद्धांत पेश किया कि समाज दो चीज़ों का मिश्रण है: संरचना (Structure) और कार्रवाई (Agency)।
• संरचना = समाज के नियम, रीति-रिवाज और संस्थाएँ।
• कार्रवाई = व्यक्ति की गतिविधियाँ और निर्णय। उनका कहना है कि संरचना और कार्रवाई अलग नहीं हैं; व्यक्ति समाज की संरचनाओं को बनाता और उन्हें पालन करता है।
• उदाहरण: लोग नियमों का पालन करके समाज को चलाते हैं, लेकिन वही लोग नियमों को बदलने या नया नियम बनाने की शक्ति भी रखते हैं।
2. आधुनिकता (Modernity)
• Giddens ने आधुनिक समाज की विशेषताओं का अध्ययन किया।
• उन्होंने बताया कि आधुनिकता में प्रौद्योगिकी, वैश्वीकरण, और व्यक्तिगत स्वतंत्रता बहुत महत्वपूर्ण हैं।
• आधुनिक समाज स्थिर नहीं है; यह तेज़ी से बदलता है।
• उदाहरण: इंटरनेट और सोशल मीडिया ने लोगों के व्यवहार और सामाजिक संबंधों को पूरी तरह बदल दिया।
3. वैश्वीकरण (Globalization)
• Giddens ने वैश्वीकरण को समझाने में भी योगदान दिया।
• उनका कहना है कि आज के समय में दुनिया छोटे गाँव जैसी हो गई है।
• आर्थिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक और पर्यावरणीय मुद्दे अब सिर्फ एक देश तक सीमित नहीं हैं; वे पूरी दुनिया को प्रभावित करते हैं।
• उदाहरण: किसी देश की आर्थिक मंदी दूसरे देशों की अर्थव्यवस्था को प्रभावित कर सकती है।
Book: Capitalism and Modern Social Theory (मुख्य विचार)

• Anthony Giddens ने अपनी किताब Capitalism and Modern Social Theory में यह बताया कि कार्ल मार्क्स कैसे अपने युवावस्था से विकसित होकर एक बड़े सिद्धांतकार बने। उन्होंने इतिहास और समाज का अध्ययन किया और समझने की कोशिश की कि अलग-अलग समय (epochs) में आर्थिक ढाँचे कैसे बदलते गए और अंत में पूँजीवाद (Capitalism) तक पहुँचे।
मार्क्स के विचार मुख्य रूप से तीन बातों पर आधारित थे:
1. इतिहास का सिद्धांत – हर युग को इस आधार पर समझना कि उस समय की अर्थव्यवस्था कैसे संगठित थी।
2. पूँजीवाद की प्रवृत्ति – पूँजीवाद केवल अपने अस्तित्व को बनाए रखने में रुचि रखता है, चाहे इसके लिए कुछ भी करना पड़े।
3. मनुष्य की पहचान – मनुष्य की असली पहचान यह है कि वह सृजन (create) करता है।
इतिहास और अर्थव्यवस्था
मार्क्स का मानना था कि इतिहास निरंतर सृजन और विकास की प्रक्रिया है। हर पीढ़ी पिछली पीढ़ी पर निर्माण करती है। जैसे-जैसे संसाधन (पूँजी, प्राकृतिक संसाधन, श्रम) उपलब्ध होते जाते हैं, उद्योग और समाज विकसित होते जाते हैं।
• रोम (Rome) के समय से जब साम्राज्य टूटने लगा, तब दास-प्रथा पर आधारित अर्थव्यवस्था चल नहीं सकी और धीरे-धीरे यूरोप में सामंतवाद (Feudalism) उभरा।
• फिर धीरे-धीरे किसान (peasants) गाँवों से निकाले गए और शहरों में छोटे-छोटे घरों (boxes) में रहने पर मजबूर किए गए। यहीं से शोषण और भी बढ़ गया।
तकनीक और पूँजी
• तकनीक (Technology) बहुत पहले से मौजूद थी – भाप और बिजली से भी पहले।
• जब पूँजी (Capital) ने तकनीक की ताकत को पहचान लिया, तो उसने इसका इस्तेमाल उत्पादन बढ़ाने और ज़्यादा मुनाफ़ा कमाने के लिए किया।
• Jacques Ellul के अनुसार, तकनीक इतनी शक्तिशाली है कि उसे कोई सरकार रोक नहीं सकती। हर कोई बस उसके साथ दौड़ने पर मजबूर है।
मनुष्य की सृजन-शक्ति
मार्क्स कहते हैं पूरी विश्व-इतिहास वास्तव में मानव श्रम द्वारा मनुष्य का निर्माण है।
• हर इंसान में सृजन की एक प्राकृतिक इच्छा होती है – चाहे वह संतान पैदा करना हो, लिखना, संगीत बनाना, कला करना, या फिर रोज़गार कमाना हो।
• पूँजीवाद ने इस सृजनशीलता का शोषण किया, किसानों को शहरों में लाकर उन्हें मजबूर किया कि या तो काम करो या भूखे मरो।
प्रचार और भ्रम
लोगों को शहरों और कारखानों में खींचने का यह ज़बरदस्त upheaval (उथल-पुथल) केवल बल से नहीं हुआ।
• चर्च, अफवाहों, प्रचार-पुस्तिकाओं और अख़बारों द्वारा यह सपना बेचा गया कि शहरों और उद्योगों में बेहतर अवसर और अमीर बनने का मौका छिपा है।
• यह वास्तव में मजदूरों को नियंत्रित करने और पूँजीवाद को मज़बूत करने का तरीका था।
निष्कर्ष
मार्क्स ने पूँजीवाद को गहराई से समझाया और उसके काम करने के तरीके को उजागर किया। लेकिन उन्होंने यह नहीं देखा कि पूँजीवाद को बढ़ावा देने के पीछे अन्य सामाजिक और राजनीतिक शक्तियाँ भी काम कर रही थीं।