World Affairs के Volume 104, Number 2 में छपे एक “Pricing in World War III” ने सबका ध्यान अपनी ओर आकर्षित कर लिया है, जिसमे ताइवान की सुरक्षा, चीन की संभावित आक्रामकता, और अमेरिका की रणनीतिक भूमिका पर गहन विचार किया गया है।
चीन लगातार अपनी सैन्य और आर्थिक शक्ति को बढ़ा रहा है, और इस विस्तारवादी नीति का एक प्रमुख लक्ष्य ताइवान पर नियंत्रण प्राप्त करना है। यदि चीन ताइवान पर कब्जा कर लेता है, तो इससे न केवल पूर्वी एशिया में शक्ति संतुलन में बड़ा बदलाव आएगा, बल्कि इससे अमेरिका और उसके सहयोगियों की रणनीतिक स्थिति भी कमजोर हो सकती है।
पूर्वी एशिया में चीन की शक्ति वृद्धि
ताइवान पर नियंत्रण प्राप्त करने से चीन को पश्चिमी प्रशांत क्षेत्र में अपनी सैन्य उपस्थिति मजबूत करने का एक महत्वपूर्ण आधार मिल जाएगा। यह क्षेत्र अमेरिका के लिए रणनीतिक रूप से अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि यहां से जापान, दक्षिण कोरिया और फिलीपींस जैसे प्रमुख सहयोगी देशों तक उसकी सैन्य पहुंच बनी रहती है।
यदि चीन इस क्षेत्र में अपना प्रभुत्व स्थापित कर लेता है, तो अमेरिका की सैन्य गतिविधियों को संचालित करना और अपने सहयोगियों की सुरक्षा सुनिश्चित करना कठिन हो जाएगा।
इसके अलावा, दक्षिण चीन सागर में पहले से ही चीन की बढ़ती गतिविधियां अमेरिका के लिए एक प्रमुख चिंता का विषय हैं।
ताइवान पर नियंत्रण से चीन की समुद्री सीमा और व्यापार मार्गों पर पकड़ और भी मजबूत हो जाएगी, जिससे अमेरिका की हिंद-प्रशांत रणनीति को गंभीर चुनौती मिलेगी।
वैश्विक अर्थव्यवस्था पर संभावित प्रभाव
ताइवान पर चीन का कब्जा वैश्विक अर्थव्यवस्था को गंभीर रूप से प्रभावित कर सकता है। पश्चिमी प्रशांत क्षेत्र विश्व व्यापार के प्रमुख मार्गों में से एक है। यदि चीन इस क्षेत्र में अपनी शक्ति स्थापित कर लेता है, तो वह इन समुद्री मार्गों को बाधित कर सकता है, जिससे वैश्विक व्यापार में भारी रुकावट आ सकती है।
इसके अतिरिक्त, कई देश अपने व्यापार के लिए ताइवान जलडमरूमध्य (Taiwan Strait) पर निर्भर हैं। यह जलमार्ग एशिया से अमेरिका और यूरोप तक माल ढुलाई के लिए आवश्यक है। यदि चीन इस क्षेत्र पर नियंत्रण करता है, तो वह इन व्यापार मार्गों पर अपनी नीतियों को थोप सकता है, जिससे वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में गंभीर व्यवधान उत्पन्न हो सकता है।
ताइवान के लोकतंत्र पर संकट
ताइवान एक जीवंत लोकतंत्र है, जहाँ नागरिक स्वतंत्रता, अभिव्यक्ति की आज़ादी और मानवाधिकारों को अत्यधिक महत्व दिया जाता है। यदि चीन ताइवान पर कब्जा कर लेता है, तो ताइवान की स्वतंत्र और लोकतांत्रिक व्यवस्था समाप्त हो सकती है।
हांगकांग का उदाहरण इस बात का स्पष्ट प्रमाण है कि चीन की शासन-व्यवस्था के अधीन आने के बाद लोकतांत्रिक स्वतंत्रताएँ किस प्रकार सीमित की जाती हैं।
ताइवान के लोग अपनी स्वतंत्रता और लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध हैं, लेकिन चीन की बढ़ती सैन्य शक्ति और आक्रामक रणनीति के चलते उनकी संप्रभुता को निरंतर खतरा बना हुआ है।
अमेरिका की रणनीतियाँ
अमेरिका का प्रमुख उद्देश्य चीन को पूर्वी एशिया में पूर्ण प्रभुत्व प्राप्त करने से रोकना है। इसके लिए अमेरिका को एक मजबूत क्षेत्रीय गठबंधन बनाए रखना आवश्यक है।
जापान, दक्षिण कोरिया, भारत, ऑस्ट्रेलिया और दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों (ASEAN) के साथ मिलकर अमेरिका एक संतुलनकारी शक्ति के रूप में कार्य कर रहा है।
इस रणनीति के तहत अमेरिका न केवल ताइवान को सैन्य सहायता प्रदान कर रहा है, बल्कि वह ताइवान की रक्षा क्षमताओं को मजबूत करने के लिए भी प्रयासरत है।
अमेरिका की हिंद-प्रशांत रणनीति का मुख्य उद्देश्य इस क्षेत्र में स्वतंत्रता और खुलापन सुनिश्चित करना है, ताकि चीन की विस्तारवादी नीति को संतुलित किया जा सके।
चिप उद्योग: वैश्विक तकनीकी प्रभुत्व की लड़ाई
ताइवान विश्व के सबसे उन्नत सेमीकंडक्टर चिप्स का लगभग 90 प्रतिशत उत्पादन करता है। ताइवान सेमीकंडक्टर मैन्युफैक्चरिंग कंपनी (TSMC) दुनिया की सबसे प्रमुख चिप निर्माण कंपनी है। यदि चीन ताइवान पर नियंत्रण प्राप्त कर लेता है, तो यह अमेरिका और अन्य पश्चिमी देशों की तकनीकी प्रगति को गंभीर रूप से बाधित कर सकता है।
चिप्स का उपयोग स्मार्टफोन, कंप्यूटर, रक्षा प्रणाली और उन्नत तकनीकी उपकरणों में होता है। यदि चीन इस उत्पादन पर कब्जा कर लेता है, तो उसे वैश्विक तकनीकी आपूर्ति श्रृंखला पर महत्वपूर्ण नियंत्रण मिल जाएगा। इससे न केवल अमेरिका की राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरा होगा, बल्कि वैश्विक अर्थव्यवस्था भी प्रभावित होगी।
हालांकि, ताइवान की चिप निर्माण क्षमता पूरी तरह से पश्चिमी घटकों और बौद्धिक संपदा (Intellectual Property) पर निर्भर है। चीन के लिए ताइवान के सेमीकंडक्टर उद्योग को पूर्ण रूप से नियंत्रित करना कठिन होगा, क्योंकि इस उद्योग को संचालित करने के लिए आवश्यक तकनीक और सामग्री पश्चिमी देशों से आती है।
निष्कर्ष
यदि चीन ताइवान पर कब्जा कर लेता है, तो इससे क्षेत्रीय और वैश्विक स्तर पर व्यापक परिवर्तन हो सकते हैं। यह अमेरिका की रणनीतिक स्थिति को कमजोर करेगा, वैश्विक व्यापार मार्गों को बाधित करेगा, और तकनीकी क्षेत्र में चीन को बढ़त दिला सकता है। अमेरिका और उसके सहयोगियों के लिए यह आवश्यक है कि वे ताइवान की रक्षा क्षमताओं को मजबूत करें और चीन की विस्तारवादी नीतियों को संतुलित करने के लिए एकजुट रहें।
ताइवान का भविष्य न केवल पूर्वी एशिया की स्थिरता, बल्कि वैश्विक सुरक्षा और आर्थिक संरचना के लिए भी अत्यंत महत्वपूर्ण है।