पुस्तक: India’s Naval Diplomacy: Contours and Constraints
लेखक: पी. वी. राव (P.V. Rao)
प्रकाशक: Routledge India
प्रकाशन वर्ष: 2022
पुस्तक India’s Naval Diplomacy: Contours and Constraints भारतीय नौसेना की कूटनीतिक भूमिका, उसकी सीमाओं और संभावनाओंपर केंद्रित है। इसमें भारत की समुद्री रणनीति, उसकी भौगोलिक महत्ता, भारतीय नौसेना की विकास यात्रा, और क्षेत्रीय तथा वैश्विक समुद्री सुरक्षाढांचे में इसकी भूमिका को विस्तार से समझाया गया है।
भारत की नौसैनिक कूटनीति (Naval Diplomacy) एक महत्त्वपूर्णरणनीतिक उपकरण के रूप में उभरी है, जिसका उद्देश्य न केवल राष्ट्रीयसुरक्षा को सुदृढ़ करना है, बल्कि विदेश नीति को भी बढ़ावा देना है। इससंदर्भ में, भारतीय नौसेना न केवल एक सैन्य बल है, बल्कि यह क्षेत्रीयस्थिरता, सामरिक गठबंधन, और समुद्री व्यापार मार्गों की सुरक्षा में भीएक प्रमुख भूमिका निभाती है।
नौसैनिक कूटनीति की पृष्ठभूमि
▪ नौसैनिक कूटनीति सैन्य कूटनीति का एक उपखंड है, जो समुद्रीशक्ति के माध्यम से राष्ट्रीय विदेश नीति उद्देश्यों को पूरा करने काप्रयास करता है। प्रसिद्ध विद्वान केन बूथ (Ken Booth) ने नौसेनाकी तीन प्रमुख भूमिकाएँ बताई हैं। भारतीय नौसेना इन तीनोंभूमिकाओं को विभिन्न स्तरों पर निभाती रही है।
तीन प्रमुख भूमिकाएँ:
▪ भारत की नौसेना 1971 के युद्ध के बाद से एक प्रमुख शक्ति के रूप मेंउभरी। इस युद्ध में भारतीय नौसेना ने पाकिस्तान की नौसेना कोनिर्णायक रूप से हराया और अपनी सामरिक क्षमता को प्रदर्शितकिया। 21वीं सदी में भारत की नौसेना ने केवल सैन्य अभियानों तकही सीमित न रहकर मानवीय सहायता और आपदा राहत (HADR), समुद्री सुरक्षा, और सामरिक साझेदारियों में भी सक्रिय भूमिकानिभाई।
1. भारतीय नौसेना की सैन्य भूमिका:
▪ भारत की नौसेना समुद्री सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए विभिन्नसैन्य अभ्यासों और अभियानों में संलग्न रहती है।
▪ पाकिस्तान और चीन जैसे पड़ोसियों के साथ बढ़ते तनाव को ध्यानमें रखते हुए नौसेना को सतर्क रहना पड़ता है।
▪ मालाबार अभ्यास (Malabar Exercise) जैसे संयुक्त नौसैनिकयुद्धाभ्यास क्षेत्रीय और वैश्विक समुद्री सुरक्षा में भारत की बढ़तीभूमिका को दर्शाते हैं।
2. भारतीय नौसेना की राजनयिक भूमिका:
▪ भारतीय नौसेना की ‘Look East’ और ‘Act East’ नीति के तहत, दक्षिण–पूर्व एशियाई देशों के साथ समुद्री सहयोग बढ़ाया गयाहै।
▪ हिंद–प्रशांत क्षेत्र (Indo-Pacific) में बढ़ती भू–राजनीतिकगतिविधियों को संतुलित करने के लिए भारत की नौसेनाअमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया और ASEAN देशों के साथसहयोग कर रही है।
▪ हिंद महासागर नौसेना संगोष्ठी (Indian Ocean Naval Symposium – IONS) जैसे बहुपक्षीय मंच भारत कीकूटनीतिक पहल को दर्शाते हैं।
3. भारतीय नौसेना की पुलिसिंग और मानवीय सहायता भूमिका:
▪ भारतीय नौसेना ने सोमालियाई जलदस्युता (Piracy) को रोकनेके लिए कई अभियानों में भाग लिया है।
▪ प्राकृतिक आपदाओं के दौरान, जैसे 2004 की सुनामी और 2015 के नेपाल भूकंप के बाद, भारतीय नौसेना ने राहत और बचावकार्यों में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
▪ समुद्री व्यापार मार्गों की सुरक्षा के लिए भारतीय नौसेना निरंतरगश्त करती रहती है।
नौसैनिक का विस्तार क्षेत्र
1. मालक्का जलडमरूमध्य (Malacca Straits): यह क्षेत्र भारत कीसमुद्री सुरक्षा के लिए रणनीतिक रूप से महत्त्वपूर्ण है। भारत कीनौसेना इस क्षेत्र में गश्त और सहयोगी सैन्य अभ्यासों के माध्यम सेअपनी उपस्थिति बनाए रखती है।
2. हिंद–प्रशांत क्षेत्र: भारत की ‘Indo-Pacific Oceans Initiative’ और QUAD (भारत, अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया) गठबंधन इसक्षेत्र में भारत की कूटनीति को दर्शाते हैं।
3. अफ्रीकी तट: भारतीय नौसेना ने अफ्रीका के तटीय देशों के साथरणनीतिक सहयोग बढ़ाने की दिशा में पहल की है। रेड सी और हॉर्नऑफ अफ्रीका क्षेत्र में भारतीय नौसेना की सक्रियता को वैश्विकस्तर पर सराहा गया है।
4. मध्य–पूर्व और खाड़ी क्षेत्र: यह क्षेत्र भारत की ऊर्जा सुरक्षा के लिएअत्यंत महत्वपूर्ण है। भारतीय नौसेना की ‘Operation Sankalp’ जैसी पहलें खाड़ी क्षेत्र में सुरक्षा को बढ़ाने में सहायक रही हैं।
समीक्षाएँ और बहस
• कई विद्वानों का मानना है कि भारतीय नौसेना को अधिक आक्रामकरणनीति अपनानी चाहिए, जबकि कुछ विशेषज्ञों का कहना है किभारत को एक संतुलित और कूटनीतिक दृष्टिकोण बनाए रखनाचाहिए।
• चीन और भारत के बीच नौसैनिक शक्ति संतुलन को लेकर भी बहसजारी है। कुछ रणनीतिकारों का तर्क है कि भारत को दक्षिण चीनसागर में अधिक सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए, जबकि अन्य इसेअनावश्यक टकराव मानते हैं।
• अमेरिका और अन्य पश्चिमी देशों के साथ भारत की नौसैनिकसाझेदारियों को लेकर भी मतभेद हैं। कुछ विश्लेषकों का मानना हैकि भारत को आत्मनिर्भरता बढ़ाने पर ध्यान देना चाहिए, जबकिअन्य कहते हैं कि बहुपक्षीय सहयोग आवश्यक है।
नौसैनिक कूटनीति की चुनौतियाँ
▪ भारतीय नौसेना के लिए वित्तीय संसाधनों की उपलब्धता एक बड़ीचुनौती है। चीन और अमेरिका जैसी बड़ी नौसेनाओं की तुलना मेंभारतीय नौसेना को सीमित संसाधनों में कार्य करना पड़ता है।
▪ चीन की ‘String of Pearls’ रणनीति, जिसके तहत उसने हिंदमहासागर क्षेत्र में कई नौसैनिक अड्डे विकसित किए हैं, भारत केलिए एक रणनीतिक चुनौती बन गई है।
▪ भारत की नौसैनिक कूटनीति कई देशों के साथ गठबंधनों पर निर्भर है, लेकिन इन देशों के बीच विभिन्न रणनीतिक हितों के कारण कुछमुद्दों पर सहमति बनाना कठिन होता है।
▪ समुद्री विवादों को हल करने में अंतरराष्ट्रीय कानूनों का अनुपालनकरना आवश्यक होता है, जिससे कई बार भारत की रणनीतिककार्रवाई सीमित हो जाती है।
निष्कर्ष
भारतीय नौसेना केवल एक सैन्य शक्ति ही नहीं, बल्कि एक कूटनीतिकसाधन के रूप में भी उभरी है। इसका उद्देश्य न केवल भारत की समुद्रीसुरक्षा सुनिश्चित करना है, बल्कि क्षेत्रीय स्थिरता, आर्थिक विकास औरवैश्विक सहयोग को भी बढ़ावा देना है। हालाँकि, चीन का बढ़ता समुद्रीप्रभाव, बजटीय सीमाएँ और अन्य भू–राजनीतिक चुनौतियाँ भारतीयनौसेना के लिए कुछ कठिनाइयाँ प्रस्तुत करती हैं।
भविष्य में, भारत को अपनी नौसेना को और सुदृढ़ करने, नई प्रौद्योगिकियोंमें निवेश करने और रणनीतिक साझेदारियों को और गहरा करने कीआवश्यकता होगी ताकि वह हिंद–प्रशांत क्षेत्र में एक प्रमुख शक्ति के रूपमें अपनी स्थिति को बनाए रख सके।