भारत सरकार ने देश की राष्ट्रीय सुरक्षा नीति में निर्णायक परिवर्तन किए हैं। पुलवामा हमले के बाद बालाकोट स्ट्राइक, और हाल ही में पाकिस्तान के आतंकी लॉन्चपैड्स पर हमला, भारत की बदली हुई रणनीति को दर्शाते हैं। इस लेख में भारत के बदलते सुरक्षा सिद्धांतो का विश्लेषण किया गया है।
राष्ट्रीय सुरक्षा सिद्धांत क्या होता है?
- एक समग्र राष्ट्रीय सुरक्षा सिद्धांत किसी भी राष्ट्र के लिए एक ऐसा रणनीतिक ढांचा होता है जो उसकी सुरक्षा से जुड़े सभी आयामों को एकीकृत करता है।
- एक राष्ट्रीय सुरक्षा सिद्धांत राजनेताओं को देश के भू-राजनीतिक हितों की पहचान करने और उन्हें प्राथमिकता देने में सहायता करता है। इसमें देश की सभी सैन्य, कूटनीतिक, आर्थिक और सामाजिक नीतियां शामिल हैं जिनका उद्देश्य देश के राष्ट्रीय सुरक्षा हितों की रक्षा करना और उन्हें बढ़ावा देना है।
- भारत जैसे विविध और जटिल भू-राजनीतिक परिवेश वाले देश के लिए यह सिद्धांत अत्यंत आवश्यक हो जाता है। यह न केवल नीति निर्माताओं को राष्ट्रीय हितों की पहचान करने और उनकी प्राथमिकता तय करने में मार्गदर्शन प्रदान करता है, बल्कि तीनों सेनाओं के बीच संयुक्तता सुनिश्चित करता है और अंतर-सेवा संघर्ष की संभावनाओं को भी कम करता है।
- भारत की कई सीमाएं ऐसी हैं जो झरझरी (porous) हैं और जिन्हें हथियारों की तस्करी, मादक पदार्थों के अवैध व्यापार और मानव तस्करी जैसे अपराधों के लिए उपयोग किया जाता है।
- भारत को बाहरी राज्य प्रायोजित आतंकवाद के साथ-साथ आंतरिक रूप से कट्टरपंथी उग्रवाद का भी सामना करना पड़ता है।
- इन खतरों से प्रभावी ढंग से निपटने के लिए केवल सैन्य प्रतिक्रिया पर्याप्त नहीं होती। बल्कि एक स्पष्ट, दीर्घकालिक और व्यापक राष्ट्रीय सुरक्षा सिद्धांत की आवश्यकता होती है, जो राजनीतिक, कूटनीतिक, आर्थिक और तकनीकी पहलुओं को भी समाहित करे।
इस तरह का सिद्धांत न केवल सुरक्षा बलों की भूमिका और उत्तरदायित्वों को स्पष्ट करेगा, बल्कि समन्वय और संसाधनों के कुशल उपयोग को भी बढ़ावा देगा। एक सुदृढ़ राष्ट्रीय सुरक्षा नीति भारत को आने वाले दशक में अधिक सक्षम, सतर्क और रणनीतिक रूप से सशक्त राष्ट्र बना सकती है।
हमे राष्ट्रीय सुरक्षा सिद्धांत क्यों चाहिए
- राष्ट्रीय सुरक्षा उद्देश्यों की स्पष्टता: संपूर्णता, नागरिकों की सुरक्षा, क्षेत्रीय प्रभाव और आर्थिक समृद्धि को सुनिश्चित करने के लिए।
- समग्र सुरक्षा दृष्टिकोण: सैन्य तैयारी, कूटनीतिक जुड़ाव, आर्थिक अनुशासन, सामाजिक एकता और पारिस्थितिकीय स्थिरता का समावेश करने के लिए।
- राष्ट्रीय सुरक्षा संरचना को मजबूत करना: राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार को सशक्त बनाना, विभिन्न सुरक्षा एजेंसियों के बीच समन्वय बढ़ाना, और साइबर सुरक्षा जैसे क्षेत्रों में तकनीकी क्षमताओं को बढाने के लिए।
- रणनीतिक संचार और पारदर्शिता: जनता को सरकार की राष्ट्रीय सुरक्षा प्रतिबद्धताओं के बारे में आश्वस्त करने और सुरक्षा संस्थानों में सार्वजनिक विश्वास बढ़ाने के लिए।
डोक्त्रिन 2.0 या राष्ट्रीय सुरक्षा सिद्धांत
भारत का नया सुरक्षा सिद्धांत, जिसे अक्सर “डोक्त्रिन 2.0” या “राष्ट्रीय सुरक्षा सिद्धांत” कहा जाता है, एक समग्र दृष्टिकोण है जो देश की आंतरिक और बाहरी सुरक्षा को मजबूत करने पर केंद्रित है। यह सिद्धांत सैन्य, कूटनीतिक, आर्थिक, साइबर और आंतरिक सुरक्षा जैसे विभिन्न क्षेत्रों को एकीकृत करता है।
क्या परिवर्तन हुए है?
- ‘जोखिम लेने की नीति’ (Risk-Taking Appetite): अब भारत रक्षात्मक नहीं, बल्कि आक्रामक रणनीति अपना रहा है। इस नीति में सरप्राइज स्ट्राइक्स, अग्रसक्रिय कार्रवाई और आतंकवादियों के खिलाफ बिना सीमा की चिंता किए कार्रवाई शामिल है।
- कश्मीर नीति का रूपांतरण: अनुच्छेद 370 को हटाना एक ऐतिहासिक कदम था जिसने भारत की संप्रभुता को पुनः परिभाषित किया और पाकिस्तान की नैरेटिव को ध्वस्त किया।
- अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में मजबूती: भारत की विदेश नीति अब सुरक्षा और रणनीति के इर्द-गिर्द केंद्रित है। पश्चिमी देशों के साथ सहयोग बढ़ा है, और फ्रांस, अमेरिका, जापान जैसे देशों के साथ सामरिक समझौते हुए हैं।
- अभाव और असफलता: हालांकि सरकार ने रणनीतिक दृष्टि से कई पहल किए हैं, परंतु रक्षा आधुनिकीकरण में अपेक्षित प्रगति नहीं हुई। मेक इन इंडिया के तहत सैन्य साजो-सामान के उत्पादन में अभी भी विदेशी निर्भरता बनी हुई है।
अब वर्तमान सरकार के लिए सुरक्षा मुद्दे सिर्फ सीमित नीति चर्चा नहीं, बल्कि चुनावी विमर्श का हिस्सा बन चुके हैं।
नई सुरक्षा सिद्धांत के तीन मूल सिद्धांत
- भारत की शर्तों पर जवाब (Response on India’s Terms): भारत अब आतंकवादी हमलों का समय, प्रकार और प्रतिक्रिया की तीव्रता खुद तय करेगा। जवाबी कार्रवाई किसी दबाव या डर से नहीं, बल्कि भारत की रणनीतिक इच्छा और योजना के अनुसार होगी।
- न्यूक्लियर ब्लैकमेल को अस्वीकार (No Tolerance for Nuclear Blackmail): पाकिस्तान द्वारा परमाणु हथियारों की धमकी को भारत अब दबाव की रणनीति नहीं मानेगा। भारत का रुख स्पष्ट है – परमाणु हथियारों की आड़ में आतंकवाद की छूट नहीं मिलेगी।
- आतंकवादियों और उन्हें समर्थन देने वाले राष्ट्रों में कोई भेद नहीं (No Distinction Between Terrorists and State Sponsors): भारत अब आतंकवादियों, उनके मास्टरमाइंड्स, और जो सरकारें उन्हें समर्थन देती हैं – उन सभी को एक ही श्रेणी में रखेगा। कोई ‘गुड टेररिस्ट, बैड टेररिस्ट’ का भेद स्वीकार नहीं किया जाएगा।
राष्ट्रीय सुरक्षा सिद्धांत के प्रमुख तत्व
- रणनीतिक प्राथमिकताओं की पहचान: देश की सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण क्षेत्रों और खतरों की स्पष्ट पहचान।
- साइबर सुरक्षा और तकनीकी खतरों का समाधान: डिजिटल खतरों, एआई-आधारित युद्ध और साइबर जासूसी से निपटने के लिए रणनीतियाँ।
- सीमा सुरक्षा और आतंकवाद विरोधी उपाय: सैन्य तत्परता और खुफिया संचालन को मजबूत करना।
- कूटनीतिक और आर्थिक सुरक्षा: विदेश नीति और व्यापार सुरक्षा उपायों को रक्षा योजना में एकीकृत करना।
अब तक राष्ट्रीय सुरक्षा को मजबूत करने हेतु प्रयास
अपने नागरिकों, अर्थव्यवस्था और संस्थानों सहित भारत की सुरक्षा और रक्षा को केंद्र सरकार की जिम्मेदारी माना जाता है।
भारत सरकार ने राष्ट्रीय सुरक्षा के सभी पहलुओं को मजबूत करने के लिए एक व्यापक दृष्टिकोण अपनाया है, जो इस प्रकार हैं:
- राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद (NSC) 1998
- परमाणु सिद्धांत 1999
राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद (NSC) 1998 | National Security Council (NSC) 1998
- अप्रैल 1998 में श्री के.सी. पंत की अध्यक्षता में NSC की रूपरेखा तय करने हेतु टास्क फोर्स गठित की गई।
- प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में एक शीर्ष सलाहकार निकाय के रूप में NSC की स्थापना हुई।
- इसमें वित्त, रक्षा, गृह और विदेश मंत्रालय शामिल किए गए ताकि समन्वित रणनीतिक योजना बन सके।
- इसका मुख्य उद्देश्य दीर्घकालीन राष्ट्रीय सुरक्षा योजनाएं बनाना व अत्याधुनिक उपकरणों को एकीकृत करना।
- राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (NSA) की जिम्मेदारियों को समझने के लिए एक ढांचा प्रदान करता है। साथ ही NSC औपचारिक और अनौपचारिक माध्यमों से सुरक्षा से जुड़े मुद्दों का समन्वय करता है।
परमाणु सिद्धांत 1999/ Nuclear Doctrine 1999
- परमाणु हथियार, साथ ही सामूहिक विनाश के अन्य हथियार, मानवता और अंतर्राष्ट्रीय शांति और स्थिरता के लिए सबसे बड़ा खतरा हैं।
- दक्षिण एशिया में परमाणु स्थिरता का निर्धारण करने में भारत का परमाणु सिद्धांत एक महत्वपूर्ण कारक है, विशेष रूप से क्योंकि सिद्धांत को व्यापक रूप से संयमित माना जाता है।
- भारत में “न्यूनतम विश्वसनीय परमाणु निवारण” का सिद्धांत और “पहले उपयोग नहीं” की नीति दंड द्वारा निवारण के बजाय इनकार द्वारा निवारण की अवधारणा पर आधारित है।
- इसके अतिरिक्त, भारत परमाणु हथियारों का उपयोग या उपयोग करने की धमकी नहीं देगा “उन राज्यों के खिलाफ जिनके पास परमाणु हथियार नहीं हैं या परमाणु हथियार शक्तियों के साथ गठबंधन नहीं हैं।”
- हालांकि भारत या भारतीय सेना पर कहीं भी बड़े जैविक या रासायनिक हमले की स्थिति में परमाणु हथियारों से जवाबी कार्रवाई करने का विकल्प भारत के पास रहेगा।
- परमाणु कमान प्राधिकरण के माध्यम से केवल नागरिक राजनीतिक नेतृत्व ही परमाणु जवाबी हमले को अधिकृत कर सकता है।
- परमाणु कमान प्राधिकरण एक राजनीतिक परिषद और एक कार्यकारी परिषद से बना है। राजनीतिक परिषद की अध्यक्षता प्रधानमंत्री द्वारा की जाती है। यह एकमात्र निकाय है जो परमाणु हथियारों के उपयोग को अधिकृत कर सकता है।
- राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार कार्यकारी परिषद की अध्यक्षता करता है। यह परमाणु कमान प्राधिकरण की निर्णय लेने की प्रक्रिया में सूचना का योगदान देता है और राजनीतिक परिषद द्वारा दिए गए आदेशों का पालन करता है।
- भारत ने वैश्विक, सत्यापन योग्य और गैर-भेदभावपूर्ण परमाणु निरस्त्रीकरण के माध्यम से परमाणु हथियारों से मुक्त दुनिया बनाने की अपनी प्रतिबद्धता को बनाए रखा है।
सूत्रात्मक अंतर्दृष्टि
- भारत की नई सुरक्षा नीति में “स्पष्टता”, “साहस”, और “सामरिक विस्तार” की झलक है।
- यह बदलाव न केवल भारतीय सेना, बल्कि विदेश मंत्रालय, आंतरिक मंत्रालय और प्रधानमंत्री कार्यालय के समन्वय का परिणाम है।
- आलोचना यह भी है कि यदि केवल प्रतिक्रिया या हमलावर रुख ही नीति हो, तो यह लम्बे समय में तनाव बढ़ा सकता है।
निष्कर्ष:
भारत की नई सुरक्षा नीति अधिक आक्रामक, रणनीतिक और वैश्विक स्तर पर भारत के प्रभाव को बढ़ाने वाली रही है। भविष्य की सरकारों पर यह दबाव रहेगा कि वे भी इसी स्तर पर सुरक्षा और रणनीति के क्षेत्र में कार्य करें।
“राष्ट्रीय सुरक्षा अब केवल नीति नहीं, राजनीतिक पूंजी है”