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Lord Acton :”शक्ति भ्रष्ट करती है, और पूर्ण शक्ति पूर्ण रूप से भ्रष्ट करती है

Lord Acton, जिनका पूरा नाम John Emerich Edward Dalberg-Acton, 1st Baron Acton था, 19वीं सदी के एक प्रसिद्ध ब्रिटिश इतिहासकार और राजनीतिशास्त्री थे। उन्हें मुख्य रूप से इतिहास और राजनीति में नैतिक दृष्टिकोण अपनाने के लिए जाना जाता है।
Lord Acton का जन्म 10 जनवरी 1834 को इंग्लैंड के न्यूकैसल-ऑन-टाइन शहर में हुआ। उनका परिवार प्रतिष्ठित और कैथोलिक ईसाई परंपरा से जुड़ा हुआ था। बचपन से ही Acton पढ़ाई और इतिहास में रुचि रखते थे।
उनकी शिक्षा कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में हुई, जहाँ उन्होंने इतिहास और राजनीतिक विज्ञान का अध्ययन किया। इसके बाद उन्होंने जर्मनी में भी शिक्षा प्राप्त की और वहाँ की राजनीतिक और दार्शनिक विचारधाराओं का गहन अध्ययन किया। उनके बचपन और शिक्षा ने उन्हें स्वतंत्र सोच और नैतिक दृष्टिकोण वाला व्यक्ति बनाया।

Lord Acton ने कई महत्वपूर्ण रचनाएँ और पत्र

Essays on Freedom and Power – शक्ति, लोकतंत्र और व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर विचार।
Lectures on Modern History – आधुनिक इतिहास और यूरोपके राजाओं, चर्च और राजनीतिक सत्ता का विश्लेषण।
The History of Freedom in Antiquity – प्राचीन सभ्यताओं में स्वतंत्रता और सत्ता के संतुलन का अध्ययन।
पत्राचार (Letters) – 1887 में बिशप मंडेल क्रेइटन को लिखा गया पत्र विशेष रूप से प्रसिद्ध है।

Power tends to corrupt; absolute power corrupts absolutely” ,

ब्रिटिश इतिहासकार जॉन डलबर्ग-एक्टन (Lord Acton) का यह प्रसिद्ध कथन “Power tends to corrupt; absolute power corrupts absolutely” , राजनीति, समाजशास्त्र और नैतिकता के अध्ययन में एक महत्वपूर्ण विचार है। यह कथन हमें यह समझने में मदद करता है कि शक्ति का केंद्रीकरण और उसका दुरुपयोग कैसे समाज और व्यक्तित्व पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है।

कथन का अर्थ

Lord Acton का यह कथन इस विचार को व्यक्त करता है कि जैसे-जैसे किसी व्यक्ति या समूह के पास शक्ति बढ़ती है, वैसे-वैसे उसकी नैतिकता और ईमानदारी में गिरावट आने की संभावना बढ़ जाती है। जब किसी के पास पूर्ण (absolute) शक्ति होती है, तो उस व्यक्ति के लिए भ्रष्टाचार और दुरुपयोग की संभावना और भी अधिक हो जाती है। यह कथन हमें यह चेतावनी देता है कि शक्ति का केंद्रीकरण और उसका दुरुपयोग समाज और व्यक्तित्व पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है।

ऐतिहासिक संदर्भ

यह कथन Lord Acton ने 5 अप्रैल 1887 को बिशप मंडेल क्रेचटन (Bishop Mandell Creighton) को लिखे एक पत्र में लिखा था। इस पत्र में, Acton ने चर्च और राज्य के नेताओं के कार्यों का नैतिक मूल्यांकन करते समय पक्षपातपूर्ण दृष्टिकोण की आलोचना की थी। उन्होंने यह तर्क दिया कि शक्ति के पदों पर बैठे व्यक्तियों के कार्यों को विशेष छूट नहीं दी जानी चाहिए, बल्कि उन पर समान नैतिक मानकों का पालन किया जाना चाहिए। Acton का मानना था कि “पदाधिकारी का पदाधिकारी को पवित्र नहीं बनाता,” अर्थात् किसी व्यक्ति का पद उसके कार्यों को नैतिक रूप से सही नहीं ठहरा सकता।

विचार का गहरा विश्लेषण

1. शक्ति और भ्रष्टाचार का संबंध

शक्ति व्यक्ति को निर्णय लेने की स्वतंत्रता और नियंत्रण प्रदान करती है। यह स्वतंत्रता यदि बिना किसी जिम्मेदारी के हो, तो व्यक्ति के लिए अपने व्यक्तिगत लाभ के लिए शक्ति का दुरुपयोग करना आसान हो जाता है। इससे भ्रष्टाचार की संभावना बढ़ जाती है।

2. पूर्ण शक्ति और पूर्ण भ्रष्टाचार

जब किसी व्यक्ति या समूह के पास पूर्ण शक्ति होती है, तो उस पर कोई नियंत्रण या जवाबदेही नहीं होती। ऐसे में, वह व्यक्ति अपने निर्णयों में नैतिकता और न्याय की अनदेखी कर सकता है, क्योंकि उसे किसी से डर या जवाबदेही नहीं होती। इससे पूर्ण भ्रष्टाचार की स्थिति उत्पन्न होती है।

3. इतिहास में उदाहरण

इतिहास में कई उदाहरण मिलते हैं जहाँ शक्ति के केंद्रीकरण ने भ्रष्टाचार और अत्याचार को जन्म दिया। जैसे, नाजी जर्मनी में हिटलर का शासन, सोवियत संघ में स्टालिन का शासन, और उत्तर कोरिया में किम जोंग उन का शासन, जहाँ पूर्ण शक्ति के दुरुपयोग से लाखों लोगों की जान गई।

Lord Acton के अन्य विचार

Lord Acton के अन्य महत्वपूर्ण विचारों में शामिल हैं:

महान व्यक्ति लगभग हमेशा बुरे होते हैं, भले ही वे प्रभाव का प्रयोग करते हों, अधिकार का नहीं।
ऐसा कोई भी पद नहीं है जो उसके धारक को पवित्र बना दे।
इतिहास विवादों का निर्णायक है, वह जो कुछ भी देखता है, उसका शासक है।

ये विचार Acton के लोकतंत्र, स्वतंत्रता और नैतिकता के प्रति प्रतिबद्धता को दर्शाते हैं।

निष्कर्ष

Lord Acton का यह कथन हमें यह समझने में मदद करता है कि शक्ति का केंद्रीकरण और उसका दुरुपयोग समाज और व्यक्तित्व पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है। यह हमें यह चेतावनी देता है कि शक्ति के साथ जिम्मेदारी और जवाबदेही भी आवश्यक है। समाज में शक्ति के संतुलित वितरण और प्रभावी निगरानी से ही हम भ्रष्टाचार और अत्याचार से बच सकते हैं।


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