On Coalition Government (1945) में माओ ने कहा: “राजनीतिक कार्य सभी आर्थिक कार्यों का जीवन-रक्त है।”/ (Political work is the lifeblood of all economic work.)
उन्होंने यह भी कहा कि यह कथन विशेष रूप से उस समय में सटीक बैठता है जब सामाजिक और आर्थिक व्यवस्था मूलभूत बदलाव से गुजर रही हो।
माओ ज़ेडोंग कौन थे?
- माओ ज़ेडोंग ने चीन के जनवादी गणराज्य के अध्यक्ष और चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के अध्यक्ष के रूप में कार्य किया।
- माओ ने निरंतर क्रांति की बात की और क्रांति को किसान वर्ग के माध्यम से आगे बढ़ाया, ना कि केवल मज़दूर वर्ग के ज़रिए।
माओ की प्रमुख रचनाएँ
- On Guerrilla Warfare, 1937
- On Practice, 1937
- On Contradiction, 1937
- On Protracted War, 1938
- On New Democracy, 1940

महत्वपूर्ण तथ्य
- माओ ने चीन में The Long March किया।
- The Long March माओ ज़ेडोंग द्वारा तब किया गया था जब कम्युनिस्टों को राष्ट्रवादियों (Nationalists) से हार का सामना करना पड़ रहा था। जीवित रहने के लिए पीछे हटना ही एकमात्र विकल्प था।
- 1963 में माओ ने Socialist Education Movement की शुरुआत की, जिसे बाद में Cultural Revolution (सांस्कृतिक क्रांति) का अग्रदूत माना गया।
- माओ ने बीजिंग के प्रभावशाली अधिकारियों को हटाकर और संदिग्ध निष्ठाओं से सफाई कर सांस्कृतिक क्रांति की नींव रखी।
- माओ ज़ेडोंग ने यह कथन किया था कि “राजनीतिक कार्य सभी आर्थिक कार्यों का जीवन-रक्त है”। इस कथन का अर्थ है कि किसी भी समाज में आर्थिक विकास या आर्थिक योजनाओं की सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि राजनीतिक दृष्टिकोण और संगठनात्मक ढांचा कितना सशक्त और संगठित है।
- माओ के अनुसार, आर्थिक क्रांति अपने आप में संभव नहीं है जब तक कि उसके पीछे राजनीतिक क्रांति और नेतृत्व न हो।
- उनके विचार में, राजनीतिक जागरूकता और कार्यकर्ता की भागीदारी के बिना किसी भी आर्थिक नीति को जमीनी स्तर तक लागू करना असंभव है।

माओ ज़ेडॉन्ग के प्रमुख राजनीतिक विचार
- निरंतर क्रांति की अवधारणा (Theory of Continuous Revolution): क्रांति एक निरंतर प्रक्रिया है, जिसमें पूंजीवादी प्रवृत्तियों के विरुद्ध लगातार संघर्ष ज़रूरी है।
- किसान–आधारित क्रांति (Peasant-Centric Revolution): माओ ने मार्क्स से अलग रास्ता अपनाया — उन्होंने किसानों को क्रांति का मुख्य बल माना (जबकि मार्क्स ने मजदूरों को प्राथमिकता दी)।
- नव जनवादी क्रांति (New Democratic Revolution): यह एक दो-चरणीय क्रांति थी: पहले साम्राज्यवाद और सामंती व्यवस्था का अंत, फिर समाजवाद की ओर बढ़ना।
- मास लाइन (Mass Line): “जनता से सीखो, जनता के लिए नीति बनाओ”। नीति निर्माण जन-संवाद और सहभागिता पर आधारित होनी चाहिए।
- गुरिल्ला युद्ध (Guerrilla Warfare): असंगठित, असमान शक्ति वाले युद्ध की रणनीति, जो ग्रामीण क्षेत्रों से शहरी क्षेत्रों में फैलती है।
- विरोधाभास का सिद्धांत (Theory of Contradictions): समाज में विरोधाभासों को क्रांति का स्रोत माना गया। प्रमुख और गौण विरोधों को पहचानना आवश्यक।
- सांस्कृतिक क्रांति (Cultural Revolution, 1966-76): माओ का प्रयास था “पुराने विचारों” को समाप्त कर पार्टी को शुद्ध करना; रेड गार्ड्स का नेतृत्व किया।
- स्वावलंबन (Self-Reliance – Zili Gengsheng): विदेशी सहायता पर निर्भरता को ख़ारिज करते हुए देश की आत्मनिर्भरता को बल दिया।
- जन युद्ध (People’s War): ग्रामीण जनता को संगठित करके सत्ता पर नियंत्रण हासिल करना।
- आंतरिक संघर्ष पर जोर (Focus on Internal Class Struggle): यहां तक कि समाजवाद की अवस्था में भी, वर्ग संघर्ष ज़रूरी माना गया।
निष्कर्ष
माओ ज़ेडोंग की यह सोच मार्क्सवाद-लेनिनवाद की परंपरा में आती है, जहाँ राज्य और राजनीति को केंद्रीय भूमिका दी जाती है। उनके अनुसार, राजनीतिक चेतना और क्रांतिकारी नेतृत्व के बिना आर्थिक परिवर्तन अधूरा और अस्थायी होता है।
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