दक्षिण एशिया विश्व के सबसे अधिक जनसंख्या वाले और विविधतापूर्ण क्षेत्रों में से एक है। ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और सामाजिक रूप से इन देशों में गहरा संबंध रहा है। इसी साझा विरासत और भौगोलिक निकटता को एक संस्थागत रूप देने के उद्देश्य से 1985 में SAARC (South Asian Association for Regional Cooperation) की स्थापना हुई। इसकी स्थापना क्षेत्रीय सहयोग, आर्थिक साझेदारी, गरीबी उन्मूलन और शांति स्थापित करने के उद्देश्य से की गई थी। हालांकि 40 वर्षों के लंबे सफर के बाद भी SAARC अपने उद्देश्यों की प्राप्ति में संतोषजनक सफलता प्राप्त नहीं कर पाया। यह निबंध SAARC की उपलब्धियों, चुनौतियों और उसके भविष्य की संभावनाओं का आलोचनात्मक मूल्यांकन प्रस्तुत करता है।
परिचय: दक्षिण एशिया का भू-राजनीतिक महत्व
दक्षिण एशिया न केवल विश्व की लगभग एक चौथाई जनसंख्या का घर है, बल्कि यह आर्थिक, सांस्कृतिक और सामरिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण क्षेत्र है। यहाँ गरीबी, बेरोज़गारी, जलवायु परिवर्तन, सीमा विवाद, आतंकवाद और राजनीतिक अस्थिरता जैसी चुनौतियाँ साझा रूप में मौजूद हैं। अतः किसी भी क्षेत्रीय संस्था की सफलता इस क्षेत्र के भविष्य को गहराई से प्रभावित करती है। SAARC इसी क्षेत्रीय सहयोग का एक प्रयास है।
SAARC की उपलब्धियाँ: संघर्षों के बीच सहयोग के द्वार
1. संस्थागत ढाँचा तैयार करना
SAARC ने दक्षिण एशिया के देशों को एक साझा मंच उपलब्ध कराया। शिखर सम्मेलनों, मंत्रिस्तरीय बैठकों और Technical Committees के माध्यम से देशों के बीच संवाद बढ़ाने में इसकी भूमिका महत्वपूर्ण रही।
2. SAFTA (South Asian Free Trade Area)
2006 में लागू SAFTA ने क्षेत्रीय व्यापार को बढ़ावा देने का प्रयास किया। यद्यपि व्यापार का स्तर बहुत ऊँचा नहीं, फिर भी इसने टैरिफ कमी और बाज़ार खोलने की दिशा में पहल की।
3. सामाजिक क्षेत्र में सहयोग
शिक्षा, स्वास्थ्य, गरीबी उन्मूलन, युवा मामलों, विज्ञान और तकनीक के क्षेत्रों में SAARC ने कई कार्यक्रम शुरू किए।
- SAARC University (दिल्ली)
- SAARC Disaster Management Centre
4. सांस्कृतिक और मानवीय पहल
SAARC Literary Awards, सांस्कृतिक उत्सव, छात्र-शिक्षक विनिमय और खेल प्रतियोगिताओं ने क्षेत्रीय पहचान मजबूत की।
इन उपलब्धियों के बावजूद SAARC का प्रभाव सीमित रहा है।
SAARC की विफलताएँ और चुनौतियाँ
1. भारत–पाकिस्तान तनाव: सबसे बड़ा अवरोध
दक्षिण एशिया में भारत एक प्रमुख शक्ति है। पाकिस्तान के साथ उसके संबंध दशकों से तनावपूर्ण हैं—सीमा विवाद, आतंकवाद, राजनीतिक अस्थिरता आदि कारणों से।
2016 के बाद SAARC Summit आयोजित न हो पाना इसी द्विपक्षीय तनाव का प्रत्यक्ष प्रमाण है।
2. आतंकवाद का मुद्दा
क्षेत्र में आतंकवाद और उग्रवाद ने सहयोग को कमजोर किया। SAARC Convention on Terrorism तो है, परंतु राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी के चलते प्रभावी अमल नहीं हो सका।
3. आंतरिक राजनीतिक अस्थिरता
अफगानिस्तान की स्थिति, श्रीलंका की आर्थिक संकट, नेपाल की राजनीतिक अस्थिरता—इन सब ने SAARC के कार्यों को प्रभावित किया।
4. आर्थिक एकीकरण का अभाव
EU या ASEAN की तुलना में SAARC में आर्थिक एकीकरण बहुत कमजोर है।
- सदस्य देशों के बीच व्यापार केवल 5% के आसपास है।
- कस्टम बाधाएँ, प्रोटेक्शनिज्म और विश्वास की कमी इसका प्रमुख कारण हैं।
5. संस्थागत कमजोरी
SAARC Secretariat के पास सीमित वित्त, सीमित शक्ति और राजनीतिक निर्भरता है। यह देशों पर निर्णय लागू नहीं कर सकता, केवल सुझाव दे सकता है।
6. चीन की बढ़ती भूमिका
दक्षिण एशिया में चीन का प्रभुत्व (Belt and Road Initiative) SAARC देशों के बीच नए power dynamics पैदा करता है, जिससे भारत की भूमिका चुनौतीपूर्ण हो जाती है।
SAARC बनाम BIMSTEC: क्या SAARC अप्रासंगिक हो रहा है?
2014 के बाद SAARC निष्क्रिय-सा हो गया है। भारत ने BIMSTEC, IORA जैसे मंचों को प्राथमिकता देना शुरू किया है क्योंकि इन मंचों में पाकिस्तान शामिल नहीं है।
BIMSTEC की सक्रियता तथा Indo-Pacific की रणनीति ने भी SAARC को पीछे धकेला है।
लेकिन यह भी सत्य है कि दक्षिण एशिया की समस्याएँ—जैसे गरीबी, आतंकवाद, जल संकट, जलवायु परिवर्तन—SAARC जैसे मंच के बिना समाधान नहीं पा सकतीं।
SAARC का भविष्य: क्या पुनर्जीवन संभव है?
1. राजनीतिक इच्छाशक्ति का निर्माण
यदि भारत और पाकिस्तान संवाद का मार्ग पुनः खोलें, तो SAARC पुनर्जीवित हो सकता है।
2. ‘मिनीलैटरल’ सहयोग
कुछ मुद्दों पर 3–4 देशों के छोटे समूहों में सहयोग शुरू किया जा सकता है—जैसे ऊर्जा, व्यापार, पर्यावरण, जल प्रबंधन। यह ASEAN में सफल मॉडल है।
3. आर्थिक सहयोग को प्राथमिकता
- SAFTA को प्रभावी बनाया जाए
- Non-Tariff Barriers कम हों
- क्षेत्रीय value chains विकसित हों
4. आतंकवाद के खिलाफ संयुक्त रणनीति
आतंकवाद मुक्त South Asia SAARC की सफलता का आधार बन सकता है।
5. टेक्नोलॉजी और डिजिटल सहयोग
- डिजिटल पेमेंट इंटरऑपरेबिलिटी
- छात्र-शिक्षक ई-प्लेटफॉर्म
- ऑनलाइन स्वास्थ्य परामर्श
- आपदा प्रबंधन के लिए AI आधारित प्रणाली
6. लोगों के बीच संपर्क (People-to-People Connectivity)
साहित्य, संस्कृति, कला, खेल और शिक्षा के ब्रिज SAARC को वास्तविक रूप से एकजुट कर सकते हैं।
निष्कर्ष
SAARC एक ऐसा मंच है जिसके पास दक्षिण एशिया की विशाल जनसंख्या के भविष्य को बदलने की क्षमता है। हालांकि राजनीतिक बाधाएँ और द्विपक्षीय विवाद इसके मार्ग की सबसे बड़ी चुनौतियाँ हैं, फिर भी इसकी प्रासंगिकता समाप्त नहीं हुई है। दक्षिण एशिया की समस्याएँ साझा हैं—अतः समाधान भी साझा होने चाहिए। SAARC तभी सफल होगा जब सदस्य देशों में विश्वास, राजनीतिक इच्छाशक्ति और सहयोग की भावना विकसित होगी।
क्षेत्रीय सहयोग आज के वैश्वीकरण युग में आवश्यक है। SAARC केवल एक संगठन नहीं, बल्कि दक्षिण एशिया के लोगों के बेहतर भविष्य का सपना है—जिसका पुनर्जीवन पूरे क्षेत्र के लिए स्थायी शांति, समृद्धि और सहयोग की दिशा में निर्णायक कदम हो सकता है।
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