विनायक दामोदर सावरकर भारतीय राजनैतिक विचारधारा के एक प्रभावशाली चिंतक रहे हैं। उन्होंने हिंदुत्व और राष्ट्रवाद को वैचारिक रूप से परिभाषित कर उसे एक संगठित रूप देने का प्रयास किया, जिससे आधुनिक भारत की राजनीति में गहरी छाप पड़ी। उनके विचारों ने राष्ट्र की सांस्कृतिक पहचान, धर्म और राष्ट्रवाद को लेकर बहस को एक नई दिशा दी है।
यह एक ऐसे वैचारिक शिल्पी थे, जिन्होंने भारतीय राजनीति को धार्मिक और सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के दृष्टिकोण से परिभाषित करने की चेष्टा की। उनका ‘हिंदुत्व’ का सिद्धांत न केवल राजनीतिक विमर्श का विषय बना, बल्कि समकालीन भारतीय राजनीति की धुरी बन गयी है।
- विनायक दामोदर सावरकर एक भारतीय राष्ट्रवादी और हिंदू महासभा के प्रमुख सदस्य थे, जो हिंदू राष्ट्रवाद के समर्थक रहे।
- उन्होंने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक ‘The Indian War of Independence, 1857’ (1909) में 1857 की क्रांति को ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के विरुद्ध पहला संगठित भारतीय प्रतिरोध बताया।
- उन्हें 1910 में गिरफ़्तार करके अंडमान की सेलुलर जेल (काला पानी) में भेजा गया, जहाँ उन्हें ‘अंडमान की अज्ञात कारावास’ की सजा दी गई।
- ‘हिंदुत्व: हू इज़ ए हिंदू?’ (1923) नामक पुस्तक में उन्होंने ‘हिंदुत्व’ शब्द की परिभाषा दी और इसे भारतीय संस्कृति और राष्ट्रवाद से जोड़ा।
दार्शनिक योगदान
सावरकर का दर्शन कई प्रमुख विचारों पर केंद्रित था:
- उन्होंने हिंदू हितों की रक्षा के लिए एक मजबूत, केंद्रीकृत राज्य की वकालत की।
- यह माना जाता है कि संस्कृति राष्ट्र निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है, तथा यह भी कहा जाता है कि एक राष्ट्र की पहचान उसकी सांस्कृतिक पहचान से होती है।
‘Six Glorious Epochs of Indian History’ पुस्तक की मुख्य बाते
पुस्तक ‘Six Glorious Epochs of Indian History’ सावरकर ने भारत के छह गौरवशाली युग की व्याख्या की हैं:
- चंद्रगुप्त मौर्य का शासन
जिसने विदेशी आक्रमणकारियों जैसे सेल्यूकस को पराजित किया। - पुष्यमित्र शुंग का शासन
मौर्य वंश के पतन के बाद हिंदू संस्कृति का पुनरुत्थान। - गुप्त विक्रमादित्य का शासन
शास्त्र, कला, विज्ञान और साहित्य का स्वर्ण युग। - राजा हर्षवर्धन का शासन
इस युग में भारत का अधिकांश हिस्सा एक छत्र में आया। - मुस्लिम शासन के विरुद्ध शक्तिशाली मराठों का काल
शिवाजी और मराठों द्वारा भारत में हिंदू सत्ता की पुनः स्थापना। - स्वतंत्रता संग्राम (माहात्मा गांधी के नेतृत्व में)
जिसमें ब्रिटिश सत्ता को अहिंसात्मक आंदोलन से चुनौती दी गई।
यह पुस्तक विदेशी आक्रमणों के विरुद्ध भारतीयों की वीरता और संघर्ष को उजागर करती है।
इस प्रकार, सावरकर ने भारत के वीर और आत्मगौरव से भरे युगों को इतिहास की ‘Six Glorious Epochs’ के रूप में प्रस्तुत किया है। उनका उद्देश्य भारतीयों में स्वाभिमान और राष्ट्रीय चेतना को पुनर्जीवित करना था।
राजनीतिक विचारधारा
सावरकर की राजनीतिक विचारधारा कई प्रमुख अवधारणाओं से चिह्नित है:
- हिंदुत्व: यह अवधारणा हिंदू राष्ट्रवाद को बढ़ावा देती है। यह हिंदुओं की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक एकता को एक विशिष्ट पहचान के रूप में रेखांकित करती है।
- द्वि–राष्ट्र सिद्धांत: सावरकर ने तर्क दिया कि हिंदू और मुसलमान दो अलग-अलग राष्ट्रों का प्रतिनिधित्व करते हैं, जिससे एक अलग मुस्लिम राज्य की मांग को बल मिला।
- उपनिवेशवाद विरोधी: उन्होंने ब्रिटिश शासन के खिलाफ सशस्त्र प्रतिरोध की वकालत की, उनका मानना था कि स्वतंत्रता के लिए क्रांतिकारी गतिविधियों की आवश्यकता है।
राजनीतिक गतिविधियाँ
सावरकर राजनीतिक आंदोलनों में सक्रिय रूप से शामिल थे:
- हिंदू महासभा की स्थापना: 1915 में स्थापित इस संगठन का उद्देश्य हिंदू हितों और एकता को बढ़ावा देना था।
- क्रांतिकारी गतिविधियाँ: वह अभिनव भारत सोसाइटी से जुड़े थे, जिसने ब्रिटिश अधिकारियों के खिलाफ साजिश रची थी।
- कारावास: सावरकर को 1909 में राजद्रोह के आरोप में गिरफ्तार किया गया। उन्हें आजीवन कारावास की सजा मिली और अंडमान द्वीप समूह की सेलुलर जेल में कैद कर दिया गया।
समाज और संस्कृति पर विचार
सावरकर के भारतीय समाज पर अलग विचार थे:
- उन्होंने हिंदू संस्कृति और पारंपरिक मूल्यों के पुनरुत्थान की वकालत की।
- पश्चिमीकरण की आलोचना की तथा इसके स्थान पर स्वदेशी परम्पराओं को बढ़ावा दिया।
- अन्य समुदायों से उत्पन्न खतरों का मुकाबला करने के लिए एकीकृत हिंदू पहचान के महत्व पर बल दिया गया।
आलोचना
सावरकर को आलोचना का सामना करना पड़ा:
- धर्म के आधार पर भारतीय पहचान की संकीर्ण परिभाषा को बढ़ावा देने के लिए उनकी आलोचना की गई है।
- सांप्रदायिक तनाव और विभाजनकारी राजनीति को बढ़ावा देने के आरोप के कारण उनकी विरासत विवादास्पद बनी हुई है।
सावरकर की विचारधाराओं, खासकर हिंदुत्व, ने भारत के राजनीतिक परिदृश्य को गहराई से प्रभावित किया है। कई लोगों द्वारा पूजित होने के बावजूद, वे उतने ही विवादास्पद भी हैं, जिनके कारण देश में राष्ट्रवाद और पहचान को लेकर बहसें चलती रहती हैं।
प्रमुख पुस्तकें
- The First War of Indian Independence – 1857
- Six Glorious Epochs of Indian History
- Hindutva: Who is a Hindu? (हिंदुत्व – हू इज़ ए हिंदू?)
- My Transportation for Life (माझी जन्मठेप)