- अक्तूबर 2024 में भारत और चीन के बीच सैन्य वापसी (डिसइंगेजमेंट) समझौता हुआ था। जो दोनों देशों के बीच तनाव को अस्थायी रूप से कमकरने में सहायक सिद्ध हुआ है। हालाँकि यह समझौता उनकी द्विपक्षीयसमस्याओं, रणनीतिक और भू–राजनीतिक चुनौतियों, का दीर्घकालिकसमाधान करने में असमर्थ है। चीन की बढ़ती क्षेत्रीय महत्त्वाकांक्षाएँ औरवैश्विक प्रभाव भारत के लिए गंभीर चुनौती हैं। भारत के पास दो मार्ग है;प्रथम, आंतरिक सुधारों और बहुपक्षीय वैश्विक भागीदारी के माध्यम सेचीन की चुनौती का प्रतिकार करे। द्वितीय, भारत अपनी क्षेत्रीय भूमिकाको बढाते हुए चीन के साथ संबंधो का पुन: मूल्याकन करे। भविष्य मेंभारत–चीन संबंधों की दिशा सतर्क और संतुलित कूटनीति पर निर्भरकरेगी। जिसके लिए भारत को आत्मनिर्भरता (आत्मनिर्भर भारत) औरआर्थिक पुनरुत्थान को प्राथमिकता देना होगा, ताकि वैश्विकप्रतिस्पर्धात्मकता को सुदृढ़ किया जा सके।
भारत और चीन के बीच चुनौतियां
भारत–चीन संबंधों में सीमा विवाद, व्यापार असंतुलन, और भू–राजनीतिकप्रतिद्वंद्विता जैसे प्रमुख मुद्दे शामिल रहते हैं। वास्तविक नियंत्रण रेखा(LAC) पर अनसुलझे सीमा विवाद, विशेष रूप से गलवान घाटी संघर्ष(जून 2020), द्विपक्षीय विश्वास को कमजोर कर रहे हैं। व्यापार असंतुलनरहा है, वित्त वर्ष 2024 में भारत का व्यापार घाटा 85 बिलियन अमेरिकीडॉलर तक पहुँच गया, जिसमें आयात 101.74 बिलियन डॉलर औरनिर्यात मात्र 16.65 बिलियन डॉलर था। भारत के घरेलू उद्योगों पर चीनीडंपिंग और सस्ते उत्पादों का नकारात्मक प्रभाव पड़ा है। सीमावर्ती क्षेत्र मेंचीन का आक्रामक दृष्टिकोण रहता है, जैसे तिब्बत क्षेत्र में 600 से अधिक“शियाओकांग गाँव” बनाना, भारत की सुरक्षा के लिए चुनौती बना हुआहै। पाकिस्तान के प्रति चीन का समर्थन, खासकर चीन–पाकिस्तानआर्थिक गलियारा (CPEC), भारत की संप्रभुता का उल्लंघन करता है।इसके अलावा, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) और परमाणुआपूर्तिकर्ता समूह (NSG) में भारत की सदस्यता का चीन द्वारा विरोध, भारत की वैश्विक आकांक्षाओं को बाधित कर रहा है।
ब्रह्मपुत्र नदी पर चीन द्वारा बाँध निर्माण और जल संसाधनों का प्रबंधनभारत के पूर्वोत्तर राज्यों के लिए जल सुरक्षा को लेकर तनाव बढ़ा रहा है।हिंद–प्रशांत क्षेत्र में चीन के सैन्यीकरण और भारत की क्वाड भागीदारी नेभू–राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता को बढ़ावा दिया है। साइबर सुरक्षा खतरों नेचीन से जुड़े साइबर हमले और डेटा चोरी भारत की सुरक्षा चिंताओं कोउजागर करता हैं। 2020 में, भारत ने सुरक्षा कारणों से TikTok औरWeChat जैसे 59 चीनी ऐप्स पर प्रतिबंध लगाया। इन मुद्दों के समाधानके लिए प्रभावी संवाद और संतुलित रणनीतियों की आवश्यकता बनी हुईहै।
भारत और चीन में सहयोग के क्षेत्र
• भारत और चीन के बीच बहुपक्षीय क्षेत्रों में गहन और पूरक सहयोगरहता है। वित्त वर्ष 2024 में द्विपक्षीय व्यापार का कुल मूल्य 118.40 बिलियन अमेरिकी डॉलर था, जिसमें भारत ने 16.65 बिलियन डॉलरका निर्यात किया और 101.74 बिलियन डॉलर का आयात किया।चीन भारत को 70% API की आपूर्ति करता है, जबकि भारतवैश्विक वैक्सीन वितरण में अग्रणी है। अवसंरचना विकास में दोनोंदेश AIIB और NDB जैसे मंचों के माध्यम से साझेदारी कर रहे हैं, जिसमें जुलाई 2024 में चीन–कलकत्ता सेवा (CCS) की शुरुआतव्यापार संपर्क सुधारने में महत्त्वपूर्ण रही।
• जलवायु परिवर्तन के क्षेत्र में, दोनों देशों ने पेरिस समझौते के तहतअक्षय ऊर्जा और कार्बन न्यूट्रलिटी को बढ़ावा देने की प्रतिबद्धताजताई है। 2022 में चीन ने 105 गीगावाट सौर फोटोवोल्टिक क्षमतास्थापित की, जबकि भारत ने 2024 तक 203.18 गीगावाटनवीकरणीय ऊर्जा क्षमता हासिल कर 2030 तक 500 गीगावाट कालक्ष्य तय किया है। विज्ञान और प्रौद्योगिकी में, BRICS STI फ्रेमवर्क के तहत AI, अंतरिक्ष अनुसंधान और 5G में सहयोग बढ़रहा है। चीन AI और 5G में अग्रणी है, जबकि भारत IT सेवाओं मेंमजबूत है।
• सांस्कृतिक और शैक्षिक सहयोग ने आपसी समझ को गहरा कियाहै। दिसंबर 2024 में कैलाश मानसरोवर यात्रा और सीमा व्यापारसहित ‘छह आम सहमति’ पर सहमति हुई। दोनों देश SCO के तहतआतंकवाद–रोधी अभ्यास और सीमावर्ती उग्रवाद समाधान में साथकाम कर रहे हैं। इन विविध सहयोग क्षेत्रों ने दोनों देशों के संबंधों कोव्यापक और रणनीतिक दिशा दी है।
कैसे करे चीन को संतुलित
• भारत–चीन संबंधों को संतुलित करने के लिये भारत को आत्मनिर्भरताऔर आपूर्ति शृंखला विविधीकरण पर ध्यान केंद्रित करना होगा।
• घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देते हुए, भारत वैश्विक कंपनियों कोआकर्षित कर सकता है। इलेक्ट्रिक वाहनों के उत्पादन के लियेचीनी फर्मों के साथ संयुक्त उद्यम पर विचार किया जा सकता है।
• हरित ऊर्जा के क्षेत्र में, भारत चीन के साथ BRICS मंचों पर सहयोगकर सकता है, जबकि जर्मनी और जापान जैसे देशों के साथ ग्रीनहाइड्रोजन और सौर प्रौद्योगिकी साझेदारी को मजबूत कर सकताहै।
• सीमा पर बुनियादी ढाँचा विकास और कूटनीतिक वार्ता के संतुलनसे, चीन की आक्रामक रणनीतियों का मुकाबला किया जा सकताहै। ASEAN और दक्षिण कोरिया जैसे साझेदारों के साथ व्यापारबढ़ाकर, भारत चीनी आयात पर निर्भरता कम कर सकता है।
• भारत को तकनीकी क्षेत्रों में स्वदेशी नवाचार को बढ़ावा देना चाहिएऔर कृषि और AI जैसे गैर–संवेदनशील क्षेत्रों में भारत चीन कीविशेषज्ञता का लाभ उठा सकता है।
• हिंद महासागर क्षेत्र में, क्वाड नौसैनिक अभ्यासों और सागरमालापरियोजना के माध्यम से रणनीतिक संतुलन सुनिश्चित किया जासकता है।
• वस्त्र और हस्तशिल्प उद्योगों को पुनर्जीवित कर, ई–कॉमर्स औरODOP योजनाओं के तहत वैश्विक ब्रांडिंग से निम्न–तकनीकी क्षेत्रोंमें चीनी आयात पर निर्भरता घटाई जा सकती है। इन नीतियों सेभारत चीन को संतुलित कर सकता है और स्वयं की आत्मनिर्भरताको सुदृढ़ कर सकता है।
निष्कर्ष
भारत–चीन संबंधों की जटिलता को देखते हुए, एक दीर्घकालिक, बहुआयामी और रणनीतिक दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है। इनसंबंधों में तालमेल और संघर्ष, दोनों ही मौजूद हैं। व्यापार, जलवायुकार्रवाई और बहुपक्षीय सहयोग जैसे क्षेत्र अवसर प्रदान करते हैं, जबकिसीमा विवाद, व्यापार असंतुलन और भू–राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता जैसीचुनौतियाँ बनी रहती हैं। भारत को आत्मनिर्भरता और आपूर्ति शृंखलाविविधीकरण पर ध्यान केंद्रित करते हुए रणनीतिक सतर्कता बनाए रखनीचाहिए। इसके साथ ही, गठबंधनों को सुदृढ़ करना, घरेलू नवाचार कोबढ़ावा देना और आर्थिक समुत्थानशक्ति को मजबूत करना आवश्यक है।एक व्यावहारिक, संतुलित और बहुआयामी दृष्टिकोण अपनाकर, भारत नकेवल अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा कर सकता है बल्कि क्षेत्रीय स्थिरताको भी बढ़ावा दे सकता है।
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