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माइकल सैंडल और समुदायवाद

माइकल जे. सैंडल (Michael J. Sandel) एक प्रमुख अमेरिकी राजनीतिक दार्शनिक और हार्वर्ड विश्वविद्यालय में प्रोफेसर हैं, जिन्हें सामुदायिकता (communitarianism) के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए व्यापक रूप से जाना जाता है। वे नैतिकता, न्याय और लोकतंत्र के सवालों पर गहन और विचारोत्तेजक लेखन के लिए प्रसिद्ध हैं। नीचे माइकल सैंडल के जीवन, उनके सामुदायिक दर्शन, प्रमुख कार्यों, और समकालीन प्रभाव पर विस्तृत जानकारी दी गई है:

जीवन और शिक्षा

• जन्म: 5 मार्च, 1953, मिनियापोलिस, मिनेसोटा, अमेरिका में।
• शिक्षा:
• सैंडल ने ब्रैंडिस विश्वविद्यालय से स्नातक की डिग्री (1975) हासिल की, जहाँ वे फी बीटा कप्पा सम्मान प्राप्त करने वाले छात्र थे।
• उन्होंने ऑक्सफर्ड विश्वविद्यालय से दर्शनशास्त्र में पीएचडी (1981) पूरी की, जहाँ वे रोड्स स्कॉलर थे। उनकी थीसिस का विषय था उदारवादी नैतिकता और जॉन रॉल्स का न्याय सिद्धांत।
• कैरियर:
• सैंडल 1980 से हार्वर्ड विश्वविद्यालय में पढ़ा रहे हैं, जहाँ वे ऐनी टी. और रॉबर्ट एम. बास प्रोफेसर ऑफ गवर्नमेंट हैं।
• उनका कोर्स Justice हार्वर्ड में सबसे लोकप्रिय पाठ्यक्रमों में से एक है, जिसे लाखों लोग ऑनलाइन मंचों जैसे edX और PBS के माध्यम से देख चुके हैं।

सामुदायिक दर्शन में योगदान

सैंडल को सामुदायिकता के दार्शनिक धारे के अग्रणी विचारकों में गिना जाता है, विशेष रूप से उदारवाद (liberalism) के प्रति उनकी आलोचनाओं के लिए। उनके विचार इस विश्वास पर आधारित हैं कि व्यक्ति की पहचान और नैतिक मूल्य उनके सामुदायिक संदर्भों—परिवार, संस्कृति, और सामाजिक रिश्तों—से गहरे जुड़े हैं। उनके प्रमुख योगदान हैं:

1. जॉन रॉल्स की आलोचना:
• सैंडल का पहला प्रमुख कार्य, Liberalism and the Limits of Justice (1982), जॉन रॉल्स के A Theory of Justice (1971) की आलोचना पर केंद्रित है। रॉल्स ने तर्क दिया था कि न्याय के सिद्धांत एक “मूल स्थिति” (original position) में तटस्थ व्यक्तियों द्वारा चुने जा सकते हैं, जो अपनी सामाजिक स्थिति से अनभिज्ञ होते हैं।
• सैंडल ने रॉल्स के “अनावृत स्व” (unencumbered self) की अवधारणा को चुनौती दी, यह तर्क देते हुए कि व्यक्ति कभी भी पूरी तरह तटस्थ नहीं हो सकते। उनकी पहचान और नैतिक प्राथमिकताएँ समुदायों, परंपराओं और साझा मूल्यों से आकार लेती हैं। उदाहरण के लिए, एक व्यक्ति अपने परिवार या सांस्कृतिक पृष्ठभूमि के प्रति कर्तव्यों को केवल “स्वतंत्र पसंद” के रूप में नहीं देखता, बल्कि ये कर्तव्य उनकी पहचान का हिस्सा होते हैं।
• सैंडल का कहना है कि रॉल्स का उदारवाद सामुदायिक बंधनों की उपेक्षा करता है, जो नैतिक और राजनीतिक जीवन का आधार हैं।
2. नागरिक गणतंत्रवाद (Civic Republicanism):
• सैंडल ने गणतंत्रवादी विचारधारा को पुनर्जनन दिया, जो स्व-शासन और नागरिक गुणों पर जोर देती है। उनकी पुस्तक Democracy’s Discontent (1996) में वे तर्क देते हैं कि अमेरिकी लोकतंत्र ने व्यक्तिगत स्वतंत्रता को प्राथमिकता देकर सामुदायिकता और नागरिक जुड़ाव को कमजोर किया है।
• वे “प्रक्रियात्मक उदारवाद” (procedural liberalism) की आलोचना करते हैं, जो तटस्थता और व्यक्तिगत अधिकारों पर केंद्रित है, और इसके बजाय एक ऐसे लोकतंत्र की वकालत करते हैं जो सामान्य भलाई और साझा नैतिक उद्देश्यों को बढ़ावा दे।
• उदाहरण के लिए, वे सुझाव देते हैं कि स्थानीय समुदायों और नागरिक संगठनों को मजबूत करके लोग अपने समाज को आकार देने में अधिक सक्रिय भूमिका निभा सकते हैं।
3. नैतिकता और बाजार:
• सैंडल की पुस्तक What Money Can’t Buy: The Moral Limits of Markets (2012) में वे नवउदारवादी विचारधारा की आलोचना करते हैं, जो सब कुछ को बाजार के लेन-देन में बदल देती है। वे तर्क देते हैं कि कुछ चीजें—जैसे स्वास्थ्य, शिक्षा, या मित्रता—को बाजार की ताकतों के अधीन नहीं करना चाहिए, क्योंकि इससे सामुदायिक मूल्य और मानवीय गरिमा कमजोर होती है।
• उदाहरण के लिए, वे सवाल उठाते हैं कि क्या जेल की सजा को पैसों से “खरीदा” जा सकता है या क्या बच्चों को पढ़ाई के लिए पैसे देने से शिक्षा का नैतिक मूल्य कम होता है।

प्रमुख कार्य

सैंडल के लेखन और व्याख्यान सामान्य पाठकों और विद्वानों दोनों के लिए सुलभ हैं। उनके कुछ महत्वपूर्ण कार्य हैं:

• Liberalism and the Limits of Justice (1982)*: रॉल्स के उदारवाद पर उनकी आलोचना और सामुदायिक दृष्टिकोण की नींव।
• Democracy’s Discontent: America in Search of a Public Philosophy (1996)*: अमेरिकी लोकतंत्र में व्यक्तिवाद और सामुदायिकता के बीच तनाव की पड़ताल।
• Justice: What’s the Right Thing to Do? (2009)*: नैतिकता और न्याय के सवालों पर एक लोकप्रिय किताब, जो उनके हार्वर्ड कोर्स पर आधारित है। इसमें वे कांत, बेंथम, और अरस्तू जैसे दार्शनिकों के विचारों को समकालीन मुद्दों से जोड़ते हैं।
• What Money Can’t Buy: The Moral Limits of Markets (2012)*: बाजारवाद के सामाजिक और नैतिक प्रभावों की आलोचना।
• The Tyranny of Merit: What’s Become of the Common Good? (2020)*: योग्यतावाद (meritocracy) की आलोचना, जिसमें वे तर्क देते हैं कि यह सामाजिक असमानता और अलगाव को बढ़ाता है।

समकालीन प्रभाव

सैंडल का प्रभाव दर्शनशास्त्र से परे सामाजिक और राजनीतिक बहसों तक फैला है:

• शिक्षा और सार्वजनिक संवाद:
• उनका Justice कोर्स और इसके ऑनलाइन संस्करण ने दुनिया भर में लाखों लोगों को दर्शनशास्त्र और नैतिकता से परिचित कराया है। वे जटिल विचारों को रोजमर्रा के उदाहरणों (जैसे ट्रॉली समस्या या सकारात्मक कार्रवाई) से समझाने में माहिर हैं।
• वे बीबीसी रीथ व्याख्यान और टेड टॉक्स जैसे मंचों पर नियमित रूप से बोलते हैं, जिससे वैश्विक दर्शकों तक उनकी पहुँच बढ़ी है।
• नीतिगत बहसें:
• सैंडल के विचार सार्वजनिक नीतियों, जैसे स्वास्थ्य देखभाल, शिक्षा सुधार, और सामुदायिक विकास, में चर्चाओं को प्रभावित करते हैं। उदाहरण के लिए, वे ऐसी नीतियों की वकालत करते हैं जो सामाजिक एकजुटता को बढ़ावा दें, जैसे सामुदायिक केंद्र या नागरिक शिक्षा।
• उनकी योग्यतावाद की आलोचना ने शिक्षा और रोजगार में अवसरों की असमानता पर नई बहस छेड़ी है, विशेष रूप से अमेरिका और यूरोप में।
• वैश्विक प्रासंगिकता:
• सैंडल के विचार भारत जैसे देशों में भी प्रासंगिक हैं, जहाँ सामुदायिक मूल्य (जैसे परिवार और परंपरा) और आधुनिक व्यक्तिवाद के बीच तनाव मौजूद है। उनकी बाजार की सीमाओं पर चर्चा भारत में निजीकरण और सामाजिक कल्याण की बहसों से जुड़ती है।
• वे पूर्वी एशियाई देशों (जैसे चीन और सिंगापुर) में भी पढ़े जाते हैं, जहाँ सामुदायिकता और सामूहिक कल्याण परंपरागत रूप से महत्वपूर्ण रहे हैं।

आलोचनाएँ

सैंडल के विचारों की भी आलोचना हुई है:

• उदारवादियों द्वारा: कुछ उदारवादी, जैसे स्टीफन मेसेडो, तर्क देते हैं कि सैंडल उदारवाद की तटस्थता को गलत समझते हैं। उदारवाद भी सामुदायिक जीवन को बढ़ावा दे सकता है, जैसे स्वैच्छिक संगठनों के माध्यम से।
• अस्पष्टता: आलोचकों का कहना है कि सैंडल का “सामान्य भलाई” का विचार अस्पष्ट है। यह स्पष्ट नहीं है कि विवादास्पद मुद्दों (जैसे समलैंगिक विवाह या धार्मिक स्वतंत्रता) पर सामुदायिक मूल्य कैसे तय होंगे।
• परंपरा पर निर्भरता: कुछ प्रगतिशील विचारक सैंडल पर परंपराओं को अधिक महत्व देने का आरोप लगाते हैं, जो कभी-कभी अन्यायपूर्ण हो सकती हैं (जैसे पितृसत्तात्मक प्रथाएँ)।

व्यक्तिगत शैली

सैंडल अपनी संवादात्मक और सुलभ शिक्षण शैली के लिए प्रसिद्ध हैं। वे सोक्रेटिक पद्धति का उपयोग करते हैं, जिसमें वे छात्रों या दर्शकों से सवाल पूछकर बहस को प्रोत्साहित करते हैं। उनकी किताबें और व्याख्यान रोजमर्रा की भाषा में लिखे जाते हैं, जिससे गैर-विशेषज्ञ भी जटिल दार्शनिक मुद्दों को समझ सकते हैं।

भारत के संदर्भ में प्रासंगिकता

भारत में सैंडल के विचार कई मायनों में प्रासंगिक हैं:

• सामुदायिकता बनाम व्यक्तिवाद: भारत में परिवार, जाति, और धार्मिक समुदाय जैसे सामुदायिक ढांचे अभी भी मजबूत हैं। सैंडल का दृष्टिकोण इन बंधनों को समझने और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के साथ संतुलित करने में मदद कर सकता है।
• बाजार और नैतिकता: भारत में निजीकरण (जैसे शिक्षा और स्वास्थ्य में) और सामाजिक कल्याण के बीच बहस सैंडल के बाजार की सीमाओं पर विचारों से प्रेरित हो सकती है।
• लोकतंत्र और नागरिकता: सैंडल का नागरिक गणतंत्रवाद भारत जैसे विविध लोकतंत्र में प्रासंगिक है, जहाँ साझा मूल्यों को बनाए रखते हुए विविधता का सम्मान करना एक चुनौती है।

निष्कर्ष

माइकल सैंडल सामुदायिकता के सबसे प्रभावशाली समकालीन विचारकों में से एक हैं, जिन्होंने उदारवाद, बाजारवाद, और योग्यतावाद की सीमाओं को उजागर करके वैश्विक दार्शनिक बहस को समृद्ध किया है। उनकी रॉल्स की आलोचना, सामुदायिक बंधनों पर जोर, और नैतिकता की खोज ने व्यक्तियों और समुदायों के बीच संबंधों को समझने का एक नया दृष्टिकोण दिया है। भारत जैसे देशों में, जहाँ सामुदायिक मूल्य और आधुनिकता एक साथ चलते हैं, सैंडल के विचार सामाजिक एकता और न्याय की दिशा में मार्गदर्शन कर सकते हैं।

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