• भारत के संविधान के अनुच्छेद 17 द्वारा अस्पृश्यता का उन्मूलन करदिया गया है और किसी भी रूप में इसके व्यवहार पर पूर्ण प्रतिबंधलगा दिया गया है। इस अनुच्छेद के माध्यम से सदियों से चली आरही अस्पृश्यता की प्रथा को कानूनी रूप से दंडनीय अपराध घोषितकिया गया है।
क्या गांधी हमेशा से ही अस्पृश्यता के विरुद्ध रहे हैं?
• गांधी ने मात्र 12 वर्ष की आयु से ही अस्पृश्यता विरोधी गतिविधियों की शुरुआत कर दी थी। एक बार जब उन्होंने अपने घर की शौचालय सफाई करने वाली महिला उका को छू लिया, तो उनकी माँ ने उन्हें शुद्धिकरण की प्रक्रिया से गुजरने को कहा। गांधी ने अपनी माँ के विचारों का विरोध करते हुए कहा कि उनकी सोच गलत है, क्योंकि किसी भी मनुष्य को छूना पाप नहीं हो सकता।
• 1889 में दक्षिण अफ्रीका में गांधी ने अपनी पत्नी कस्तूरबा को लगभग घर से निकाल देने का निर्णय ले लिया था, क्योंकि उन्होंने एक ईसाई अतिथि के मल-मूत्र के बर्तन साफ़ करने से इनकार कर दिया था। यह घटना गांधी के श्रम के सम्मान और जातीय भेदभाव के विरोध की भावना को दर्शाती है।
• 1915 में, जब गांधी ने अहमदाबाद आश्रम में एक अछूत परिवार को रहने की अनुमति दी, तो उन्हें अपने सहयोगियों और समाज के लोगों के तीव्र विरोध का सामना करना पड़ा। बावजूद इसके, गांधी अपने सिद्धांतों पर अडिग रहे।
अस्पृश्यता उन्मूलन में गांधी की भूमिका
• 1921 में अहमदाबाद में आयोजित स्पेशल क्लासेज कॉन्फ्रेंस में गांधी ने कहा कि “रामायण में वर्णित वह प्रसंग, जिसमें एक तथाकथित अछूत ने अपनी नौका में प्रभु राम को गंगा पार कराया, यह दर्शाता है कि कोई भी व्यक्ति जन्म से अछूत नहीं हो सकता।”
• 1920 में आरंभ हुए असहयोग आंदोलन में गांधी ने अस्पृश्यता के विरोध को एक प्रमुख उद्देश्य के रूप में शामिल किया।
• गांधी द्वारा 1920 में स्थापित राष्ट्रीय विश्वविद्यालय ‘गुजरात विद्यापीठ‘ ने यह निर्णय लिया कि उन्हीं विद्यालयों को मान्यता दी जाएगी, जो अछूत विद्यार्थियों को प्रवेश देंगे। यह एक क्रांतिकारी और साहसिक कदम था।
• 1925 में वायकोम सत्याग्रह के दौरान गांधी ने सक्रिय भागीदारी निभाई। उन्होंने स्वयं वायकोम की यात्रा की और आंदोलनकारियों को नैतिक समर्थन दिया। गांधी की इस भागीदारी से रूढ़िवादी हिंदू समाज के कुछ वर्ग उनसे नाराज हो गए, पर गांधी अपने सिद्धांतों पर अडिग रहे।
वायकोम सत्याग्रह क्या था?
• वायकोम सत्याग्रह (1924–25) भारत के स्वतंत्रता संग्राम के सामाजिक और राजनीतिक आंदोलनों में से एक था। इसका मुख्य उद्देश्य था अछूतों (दलितों) को मंदिर की सड़कों पर चलने का अधिकार दिलाना।
• यह आंदोलन त्रावणकोर रियासत (वर्तमान केरल) के वायकोम कस्बेमें हुआ था।
• इसका नेतृत्व केरल के समाज सुधारक श्री नारायण गुरु के शिष्यों और अनुयायियों ने किया।
• ई. वी. रामास्वामी नायकर (पेरियार) ने आंदोलन में सक्रिय भागीदारी निभाई और उसे नई दिशा दी।
• आंदोलन को महात्मा गांधी का नैतिक समर्थन प्राप्त था। हालाँकि उनके और पेरियार के बीच कुछ रणनीतिक मतभेद थे, फिर भी गांधी ने आंदोलन को धार्मिक और नैतिक वैधता प्रदान की।
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