एर्नेस्ट गेलनर (1925–1995) ने राष्ट्र और राष्ट्रवाद का एक प्रभावशाली सिद्धांत प्रस्तुत किया।
प्रमुख विचार- ‘राष्ट्र, राष्ट्रवाद का परिणाम हैं– राष्ट्रवाद राष्ट्रों का परिणाम नहीं।’ अर्थात राष्ट्र प्राकृतिक या स्थायी इकाई नहीं हैं, बल्कि इतिहास में विशेष परिस्थितियों, खासकर औद्योगिकीकरण और आधुनिकीकरण के दौर में, निर्मित (constructed) किए गए हैं।
- यह दृष्टिकोण Constructivism कहलाता है, जो मानता है कि:राष्ट्र काल्पनिक (imagined), कृत्रिम (artificial), और ऐतिहासिक रूप से परिस्थितिजन्य (contingent) हैं। इन्हें राजनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक उद्देश्यों के लिए एलीट वर्ग द्वारा निर्मित किया गया।
Constructivism बनाम Primordialism
| पहलू | Constructivism (गेलनर) | Primordialism |
| राष्ट्र की उत्पत्ति | आधुनिक युग में निर्मित | प्राचीन काल से मौजूद |
| पहचान का स्वरूप | कृत्रिम, परिवर्तनशील | स्थायी, अपरिवर्तनीय |
| मुख्य आधार | सामाजिक-आर्थिक परिवर्तन (औद्योगिकीकरण) | जातीय, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक निरंतरता |
| राष्ट्रवाद का संबंध | राष्ट्रों को पैदा करता है | राष्ट्रों से उत्पन्न होता है |
गेलनर का राष्ट्रवाद सिद्धांत
औद्योगिकीकरण और उच्च संस्कृति (High Culture)
- औद्योगिक समाज को चाहिए:
- एक मानकीकृत भाषा
- सार्वभौमिक शिक्षा
- समान सांस्कृतिक मानक
- इस ‘उच्च संस्कृति’ (high culture) को फैलाने के लिए राष्ट्रीय शिक्षा प्रणाली और राजनीतिक संरचना की आवश्यकता होती है।
सांस्कृतिक एकरूपता की आवश्यकता
- अगर राज्य की सीमाएं और सांस्कृतिक सीमाएं मेल नहीं खातीं तो या तो सीमाएं बदलनी होंगी, या अल्पसंख्यकों को मुख्य संस्कृति में समायोजित करना होगा।
- यह समायोजन कभी-कभी स्वैच्छिक होता है, तो कभी बलपूर्वक (जैसे; जनसंख्या स्थानांतरण, सांस्कृतिक समाकलन)।
गेलनर के अनुसार, राष्ट्रवाद औद्योगिक समाज में राज्य और संस्कृति के बीच सामंजस्य बनाने की प्रक्रिया है। यह आधुनिकता का अपरिहार्य परिणाम है, न कि केवल एक विचारधारा।
Constructivist Consensus से अंतर
- अधिकांश कंस्ट्रक्टिविस्ट राष्ट्रवाद को अवैध ठहराते हैं, पर गेलनर राष्ट्रवाद को वैध और आवश्यक मानते हैं।
- वह Renan के ‘स्वेच्छा-आधारित’ (voluntarist) राष्ट्र दृष्टिकोण को अस्वीकार करते हैं, क्योंकि राष्ट्र केवल इच्छा शक्ति से नहीं बनते, बल्कि सामाजिक-आर्थिक ढांचे की सीमाओं में आकार लेते हैं।
उदारवाद और राष्ट्रवाद का संबंध
- गेलनर का मानना हा कि नागरिक समानता पाने के लिए सांस्कृतिक समानता जरूरी है। इसका अर्थ है कि नागरिकता के अधिकार तभी समान होंगे जब सभी नागरिकों के पास एक समान ‘सांस्कृतिक पूंजी’ (भाषा, शिक्षा, कौशल) होगी। इसलिए, एक सिविल सोसाइटी को कुछ हद तक राष्ट्रवादी होना पड़ेगा।
आलोचनाएँ और सीमाएँ
- विशेष राष्ट्र–निर्माण की व्याख्या की कमी: बहुत व्यापक श्रेणियों का उपयोग करते हैं, जिससे किसी एक राष्ट्र के विकास की गहरी ऐतिहासिक व्याख्या नहीं हो पाती।
- जातीय तत्व की उपेक्षा: राष्ट्रवाद की जड़ों में मौजूद ethnic identity को नज़रअंदाज़ करते हैं।
- धार्मिक और आक्रामक राष्ट्रवाद: इन आधुनिक समस्याओं को समझाने में सिद्धांत की सीमाएँ हैं।
- पूर्वी यूरोप की ऐतिहासिक समझ की कमी: ‘हाई कल्चर’ और राज्य परंपरा न होने का अनुमान लगाकर ऐतिहासिक तथ्यों को नज़रअंदाज़ किया।
महत्व और योगदान
गेलनर का मॉडल हमें यह समझने में मदद करता है कि राष्ट्रवाद और उदारवाद कभी-कभी एक-दूसरे के पूरक हो सकते हैं।आधुनिक राज्य क्यों सांस्कृतिक एकरूपता की ओर बढ़ते हैं।
यह सिद्धांत ‘लिबरल नेशनलिज्म’ की संभावना को भी दर्शाता है।
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