1. परिचय
एंटोनियो ग्राम्शी (1891–1937) इटली के एक महान चिंतक, राजनीतिक नेता और समाजवादी-सम्यवादी सिद्धांतकार थे।
• उन्होंने मुसोलिनी के फासीवाद का जमकर विरोध किया।
• इसी कारण 1926 में उन्हें जेल में डाल दिया गया।
• जेल में रहते हुए उन्होंने 30 से अधिक कॉपियाँ लिखीं। इन्हीं को हम Prison Notebooks के नाम से जानते हैं।
• ये नोटबुक्स न सिर्फ राजनीति और इतिहास का विश्लेषण करती हैं, बल्कि संस्कृति, शिक्षा, राष्ट्रवाद और दर्शन को भी समझने का नया तरीका देती हैं।
• द्वितीय विश्व युद्ध और फासीवाद की हार के बाद ही ये लेखन प्रकाशित हो पाए।
2. ग्राम्शी का योगदान
ग्राम्शी की सोच परंपरागत मार्क्सवाद से अलग थी।
• क्लासिकल मार्क्सवाद ज़्यादा आर्थिक ढाँचे पर ध्यान देता था।
• लेकिन ग्राम्शी ने कहा कि सत्ता बनाए रखने में संस्कृति, विचारधारा और शिक्षा की भूमिका भी उतनी ही महत्वपूर्ण है।
• इसलिए वे आज आधुनिक मार्क्सवादी और नव-मार्क्सवादी चिंतन के बड़े स्तंभ माने जाते हैं।
3. ग्राम्शी की मुख्य अवधारणाएँ
(क) सांस्कृतिक वर्चस्व / हेजेमनी (Cultural Hegemony)
• हेजेमनी का मतलब है किसी वर्ग का दूसरों पर सिर्फ आर्थिक या राजनीतिक नहीं, बल्कि वैचारिक और नैतिक नेतृत्व।
• शासक वर्ग केवल पुलिस या सेना से नहीं, बल्कि लोगों कीसहमति और मानसिकता पर राज करता है।
• वह अपनी सोच को इतना सामान्य बना देता है कि लोग उसे सहीऔर स्वाभाविक मान लें।
उदाहरण: पूँजीवादी समाज में लोग मानते हैं कि “प्रतिस्पर्धा जरूरी है” या “धन कमाना ही सफलता है।” यह पूँजीवादी हेजेमनी का असर है।
(ख) राजनीतिक समाज और सिविल सोसाइटी
ग्राम्शी ने राज्य को दो भागों में बाँटा:
1. राजनीतिक समाज (Political Society)
• इसमें पुलिस, सेना, अदालत, कानून आते हैं।
• यह मुख्यतः बल और दमन से काम करता है।
2. सिविल सोसाइटी (Civil Society)
• इसमें परिवार, शिक्षा, मीडिया, धर्म, यूनियन, क्लब आदि आते हैं।
• यहाँ शासन सहमति और विचारधारा से चलता है।
शासक वर्ग इन दोनों को मिलाकर सत्ता कायम रखता है।
मजदूर वर्ग को सिविल सोसाइटी में वैचारिक संघर्ष करना होगा।
(ग) शिक्षा और बौद्धिक वर्ग (Intellectuals)
• ग्राम्शी ने कहा कि हर वर्ग अपने बौद्धिक प्रतिनिधि पैदा करता है।
दो प्रकार
1. पारंपरिक बौद्धिक (Traditional Intellectuals) जैसे शिक्षक, पादरी, लेखक। ये खुद को निष्पक्ष मानते हैं लेकिन अक्सर शासक वर्ग की विचारधारा को आगे बढ़ाते हैं।
2. ऑर्गेनिक बौद्धिक (Organic Intellectuals) जो सीधे किसी वर्ग से निकलते हैं और उसके हितों की वैचारिक लड़ाई लड़ते हैं।
मजदूर वर्ग तभी सफल होगा जब वह अपने ऑर्गेनिक इंटेलेक्चुअल्सतैयार करेगा।
शिक्षा प्रणाली का लोकतांत्रिक और जनपक्षीय होना जरूरी है।
(घ) आर्थिक नियतिवाद (Economic Determinism) की आलोचना
• क्लासिकल मार्क्सवाद कहता था कि समाज की दिशा सिर्फ अर्थव्यवस्था तय करती है।
• ग्राम्शी ने कहा कि यह अधूरा दृष्टिकोण है।
• असल में समाज में संस्कृति, विचारधारा, राजनीति और शिक्षा भी निर्णायक भूमिका निभाते है इसलिए क्रांति सिर्फ आर्थिक स्तर पर नहीं, बल्कि सांस्कृतिक और वैचारिक स्तर पर भी लड़ी जानी चाहिए।
(ङ) दार्शनिक भौतिकवाद और ऐतिहासिक दृष्टिकोण
• ग्राम्शी ने दार्शनिक भौतिकवाद की कठोरता की आलोचना की।
• उन्होंने कहा कि हर विचार और संस्था को उसके ऐतिहासिक संदर्भ में समझना चाहिए।
• इसे उन्होंने “Historicist Absolute” कहा। कोई भी सोच स्थायी नहीं, बल्कि इतिहास और परिस्थितियों से तय होती है।
(च) वार ऑफ मूवमेंट और वार ऑफ पोज़िशन
• वार ऑफ मूवमेंट: सीधी क्रांति, अचानक हमला (जैसे 1917 की रूसी क्रांति)।
• वार ऑफ पोज़िशन: लंबा संघर्ष, जिसमें समाज की विचारधारा और संस्कृति को धीरे-धीरे बदला जाए। यूरोप जैसे देशों में जहाँ लोकतंत्र और सिविल सोसाइटी मज़बूत है, वहाँ “वार ऑफ पोज़िशन” ही सफल रणनीति है।
(छ) निष्क्रिय क्रांति (Passive Revolution)
• जब सामाजिक-आर्थिक बदलाव ऊपर से होता है, लेकिन जनता उसमें सक्रिय रूप से शामिल नहीं होती।
• उदाहरण: इटली का Risorgimento आंदोलन। इससे व्यवस्था बदलती है लेकिन असली बराबरी नहीं आती।
(ज) कॉमन सेंस और गुड सेंस
• कॉमन सेंस: आम लोगों के बिखरे और विरोधाभासी विचार (जैसे अंधविश्वास और आधुनिक सोच साथ-साथ)।
• गुड सेंस: आलोचनात्मक, वैज्ञानिक और संगठित सोच।
मजदूर वर्ग को कॉमन सेंस से आगे बढ़कर गुड सेंस अपनाना होगा।
(झ) पार्टी और “मॉडर्न प्रिंस”
• ग्राम्शी ने मजदूर वर्ग की पार्टी को Modern Prince कहा।
• यह विचार मिकियावेली की किताब The Prince से प्रेरित है।
• पार्टी केवल राजनीतिक संगठन नहीं, बल्कि नई नैतिक और सांस्कृतिक हेजेमनी बनाने का केंद्र है।
4. ग्राम्शी का प्रभाव
• वामपंथ (Left): खासकर नव-मार्क्सवाद (Neo-Marxism) पर गहरा असर।
• क्रिटिकल थ्योरी और सांस्कृतिक अध्ययन: मीडिया, शिक्षा, साहित्य, लोकप्रिय संस्कृति के अध्ययन में उनकी सोच बहुत उपयोगी।
• राजनीति विज्ञान: हेजेमनी की अवधारणा को केंद्र और दक्षिणपंथी विचारकों ने भी अपनाया।
• “Political Correctness” जैसी धारणा भी उनकी सांस्कृतिक लड़ाई की सोच को दर्शाती है।
5. आधुनिक संदर्भ में ग्राम्शी
• मीडिया और सोशल मीडिया आज की “हेजेमनी” बनाने वाले मुख्य औज़ार हैं।
• भारत में जाति, धर्म और सांस्कृतिक मूल्य सत्ता बनाए रखने में अहम भूमिका निभाते हैं।
• अगर असली लोकतंत्र चाहिए तो शिक्षा, मीडिया और संस्कृति में वैचारिक बदलाव लाना होगा।
6. निष्कर्ष
ग्राम्शी की प्रिजन नोटबुक्स हमें बताती हैं कि
• सत्ता केवल बल से नहीं, बल्कि सहमति और विचारधारा से भी टिकती है।
• मजदूर वर्ग को सफलता तभी मिलेगी जब वह नई सांस्कृतिक और वैचारिक हेजेमनी बनाएगा।
• इसके लिए शिक्षा, पार्टी और बौद्धिक वर्ग की अहम भूमिका है।
ग्राम्शी ने मार्क्सवाद को आर्थिक संघर्ष से आगे बढ़ाकर सांस्कृतिक और वैचारिक संघर्ष का रूप दिया।
इसी कारण वे आज भी दुनिया के सबसे प्रभावशाली समाजवादी चिंतकों में गिने जाते हैं।
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