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भारत की संघीय संरचना: जम्मू-कश्मीर के संदर्भ में

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से जम्मू-कश्मीर को राज्य का दर्जा न देने के मुद्दे पर विस्तृत जवाब मांगा।

सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में केंद्र से जम्मू-कश्मीर को राज्य का दर्जा बहाल करने के मुद्दे पर विस्तृत जवाब मांगा है। शक्तियों के पृथक्करण के सिद्धांत के महत्व को ध्यान में रखते हुए, सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि उसके पास सारी विशेषज्ञता नहीं है और कुछ निर्णय सरकार द्वारा ही लिए जाने चाहिए।

सुप्रीम कोर्ट के दो मुख्य तर्क

 प्रथम, Zahoor Ahmed Bhat बनाम Union Territory of Jammu and Kashmir मामले में अदालत सुनवाई कर रही है। यह तर्क दिया गया है कि जम्मू-कश्मीर को राज्य का दर्जा नही मिलने से नागरिकों के अधिकारों को प्रभावित होते है।

नागरिकों के अधिकार कैसे प्रभावित होते हैं?

  1. जब कोई इलाका राज्य होता है, तो वहां की अपनी चुनी हुई विधानसभा और मुख्यमंत्री होते हैं।
  2. लेकिन जब वह केंद्र शासित प्रदेश (UT) बन जाता है, तो वहां की ज़्यादातर ताकत दिल्ली (केंद्र सरकार) और राज्यपाल/उपराज्यपाल के पास चली जाती है।
  3. इसका मतलब है कि वहां के लोगों को अपने रोज़मर्रा के फैसले खुद चुनकर बनाने का उतना अधिकार नहीं मिलता।
    इसलिए कहा जा रहा है कि यह लोगों के अधिकारों को कम करता है।

द्वितीय, तर्क यह है कि इससे संघवाद की आवश्यक विशेषताओं और संविधान की मूल संरचना का उल्लंघन हो रहा है

  • भारत का संविधान कहता है कि देश एक संघ (Union of States) है। यानी अलग-अलग राज्य मिलकर भारत बनाते हैं।
  • अगर किसी राज्य को अचानक केंद्र शासित प्रदेश बना दिया जाए और उसका राज्य का दर्जा छीन लिया जाए, तो यह संघीय ढांचे (Federal System) को कमजोर करता है।
  • संघवाद संविधान की मूल संरचना (Basic Structure) का हिस्सा है, यानी इसे तोड़ा नहीं जा सकता।

भारत में राज्य निर्माण प्रक्रिया

भारत का संविधान लचीला है। वह नए राज्यों को जगह दे सकता है, पुराने राज्यों को बदल सकता है, लेकिन भारत का नक्शा कभी ‘टूटकर अलग देशों’ में नहीं बदल सकता।

  1. भारत यूनियन ऑफ़ स्टेट्स क्यों है?
  • संविधान में ‘फेडरेशन’ (Federation) शब्द नहीं लिखा गया, बल्कि ‘यूनियन’ (Union) लिखा गया है।
  • इसका कारण यह है कि भारत को ‘अखंड’ (Indivisible) रखना था।
  • फेडरेशन (जैसे अमेरिका) वहाँ राज्य आपस में मिलकर संघ बनाते हैं और चाहे तो अलग भी हो सकते हैं।
  • यूनियन (भारत) यहाँ राज्य भारत से अलग नहीं हो सकते।
    अर्थात भारत में राज्यों को अधिकार हैं, लेकिन ‘भारत की एकता और अखंडता’ सबसे ऊपर है।
  1. राज्यों के निर्माण की 3 प्रक्रियाएँ

(a) प्रवेश (Admission)

  • इसका मतलब है किसी नए क्षेत्र को भारत में शामिल करना
  • शर्त: उस क्षेत्र का अपना राजनीतिक ढाँचा होना चाहिए और अंतरराष्ट्रीय कानून के हिसाब से स्वीकृति भी जरूरी है।
  • उदाहरण:
    • 1947- जम्मू-कश्मीर भारत में शामिल हुआ (महाराजा हरि सिंह के विलय पत्र से)।

(b) स्थापना (Establishment)

  • इसका मतलब है किसी क्षेत्र को अधिग्रहित करके नया राज्य बनाना।
  • यह अंतरराष्ट्रीय कानून के अनुसार होना चाहिए।
  • उदाहरण:
    • 1975- सिक्किम भारत का हिस्सा बना और उसे राज्य का दर्जा दिया गया।

(c) गठन (Formation)

  • इसका मतलब है मौजूदा राज्यों को बदलकर, तोड़कर, मिलाकर नया राज्य बनाना।
  • भारत में सबसे ज्यादा यही प्रक्रिया इस्तेमाल हुई है।
  • उदाहरण:
    • 1956- भाषाई आधार पर राज्यों का पुनर्गठन (States Reorganisation Act)।
    • 2000- झारखंड, छत्तीसगढ़ और उत्तराखंड का निर्माण।
    • 2014- आंध्र प्रदेश से तेलंगाना अलग हुआ।
    • 2019- जम्मू-कश्मीर को राज्य से बदलकर केंद्र शासित प्रदेश बनाया गया और लद्दाख को अलग केंद्र शासित प्रदेश बना दिया गया।
  1. अनुच्छेद 3 की शक्ति

संसद के पास खास अधिकार है:

  • राज्य को तोड़कर नया राज्य बना सकती है।
  • दो या अधिक राज्यों को मिलाकर नया बना सकती है।
  • राज्य की सीमाएँ बदल सकती है।
  • क्षेत्र बढ़ा/घटा सकती है।

लेकिन संसद किसी राज्य को पूरी तरह खत्म नहीं कर सकती

  • संसद जब भी ऐसा करती है:
    • राष्ट्रपति राज्य की विधानसभा से राय मांगता है।
    • लेकिन राज्य की राय बाध्यकारी (Binding) नहीं है।

यानी संसद अंतिम फैसला ले सकती है, भले ही राज्य सहमत न हो।

भारत के संघीय ढाँचे का डिजाईन  

भारत को संविधान में ‘संघ राज्यों का’ कहा गया है, जिसका अर्थ है कि यह अविभाज्य है और राज्यों को अलग होने की अनुमति नहीं है। अनुच्छेद 1 में प्रयुक्त शब्द ‘भारत’ एक सांस्कृतिक भावनात्मक अर्थ रखता है, जो विविधता में एकता का प्रतीक है।

भारत के संघीय ढाँचे की खासियत

  • भारत का संघीय ढाँचा यह सुनिश्चित करता है कि देश के संसाधन (पैसा, जमीन, अवसर) समान रूप से बँटे।
  • इससे कल्याणकारी राज्य (Welfare State) की अवधारणा मजबूत होती है यानी सरकार हर नागरिक का भला करे, सिर्फ अमीर या ताकतवर वर्ग का नहीं।
  • यही कारण है कि संघवाद (Federalism) को संविधान की मूल संरचना (Basic Structure) में शामिल किया गया है।
    अर्थात संघवाद भारत की रीढ़ है, इसे हटाया नहीं जा सकता।

अगर संघीय व्यवस्था हो तो क्या होगा?

  • अगर राज्यों को बराबरी से प्रतिनिधित्व और अधिकार न मिले, तो भारत का अस्तित्व खतरे में पड़ सकता है।
  • इसीलिए संसद में राज्यसभा (Council of States) बनाई गई है ताकि राज्यों का प्रतिनिधित्व हमेशा बना रहे।
  • राज्यसभा को स्थायी सदन बनाया गया है, यानी इसे कभी भंग (dissolve) नहीं किया जा सकता।

जम्मूकश्मीर के संदर्भ में

  • जब जम्मू-कश्मीर को राज्य का दर्जा नहीं दिया जाता, तो उसका सीधा असर संघीय ढाँचे पर पड़ता है।
  • क्योंकि वहाँ की जनता को पूरा प्रतिनिधित्व नहीं मिलता, और केंद्र का सीधा नियंत्रण बढ़ जाता है।
  • इसलिए अदालत और संविधान विशेषज्ञ मानते हैं कि जम्मू-कश्मीर को दोबारा राज्य का दर्जा दिया जाना चाहिए।
    ऐसा करना संघवाद की पवित्रता (Sanctity of Federalism) बनाए रखने के लिए ज़रूरी है।

आगे की राह  

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अनुच्छेद 370 और 35A हटाना सही था और इसे बरकरार रखा।

लेकिन साथ ही अदालत ने केंद्र सरकार को दो अहम निर्देश दिए:

  1. जम्मू-कश्मीर का राज्य का दर्जा दोबारा बहाल करना।
  2. वहाँ जल्द से जल्द विधानसभा चुनाव कराना।
  • जम्मू-कश्मीर में 2002 के बाद से विधानसभा चुनाव नहीं हुए हैं। अभी तक राज्य का दर्जा बहाल करने को लेकर सरकार ने कोई ठोस कदम नहीं उठाया है। अर्थात अभी भी केंद्र का सीधा नियंत्रण (Union Government + उपराज्यपाल) जारी है।
  • अगर जम्मू-कश्मीर को राज्य का दर्जा वापस मिलता है, तो यह संविधान की उस सोच के अनुरूप होगा जिसमें भारत ‘संघ राज्यों का’ है।
  • इससे संघवाद (Federalism) की मूल विशेषताएँ मजबूत होंगी यानी भारत की लोकतांत्रिक और संघीय व्यवस्था और पुख्ता हो जाएगी।
  • विशेषज्ञ और आलोचको के अनुसार, यदि वहाँ निर्वाचित मुख्यमंत्री और विधानसभा वापस आते है तो उपराज्यपाल (जो केंद्र का प्रतिनिधि होता है) की ताकत घट जाएगी।

(source-The Hindu)

 


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