- अक्सर यह सवाल उठता है कि क्या राजनीतिक दल उम्मीदवारों का चयन, नीतियों का निर्माण और नेतृत्व के उभरने की प्रक्रियाओं में पूरी पारदर्शिता और लोकतांत्रिक नियमों का पालन कर रहे हैं।
- इस सम्बन्ध में राजनीतिक दलों के भीतर लोकतांत्रिक कार्यप्रणाली को लागू करने में चुनाव आयोग (ECI) की भूमिका लगातार चर्चा का विषय बनी हुई है। इस मुद्दे पर अनेक आयोगों और समितियों ने रिपोर्टें और सिफारिशें दी हैं, लेकिन अभी भी इसकी व्यवहारिक कार्यान्वयन में चुनौतियाँ बनी हुई हैं।
अब भारत में आंतरिक दलगत लोकतंत्र कमजोर हो रहा है, वंशवादी राजनीति और राजनीतिक परिवारों में सत्ता का केंद्रीकरण राष्ट्रीय और क्षेत्रीय दोनों ही दलों के लिए आम विषय हो गया है। जैसे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (INC) में अधिकांश नियुक्तियाँ नामित (nominated) रूप में होती हैं, भारतीय जनता पार्टी (BJP) में व्यवहार में निर्णय शीर्ष नेतृत्व द्वारा नियंत्रित होते हैं, आम आदमी पार्टी (AAP) के निर्णय प्रक्रिया भी केंद्रीकृत हो गई है, अन्य क्षेत्रीय दल (जैसे DMK, RJD, TRS, SP, BJD) आदि इनमें वंशवादी प्रवृत्ति अधिक स्पष्ट हो गयी है, जिनके नेता का चयन प्रायः परिवार के भीतर ही होने लगी है।
आंतरिक दलगत लोकतंत्र क्या है?
यह किसी राजनीतिक दल के संगठन, संरचना और कार्यप्रणाली में लोकतांत्रिक मूल्यों के अनुपालन को दर्शाता है। इसका सीधा प्रभाव इस बात पर पड़ता है कि उम्मीदवारों का चयन कैसे होता है, नेताओं का चुनाव कैसे होता है, नीतियों का निर्माण किस प्रकार किया जाता है, और दल की वित्तीय व्यवस्था कितनी पारदर्शी है।

भारत में आंतरिक दलगत लोकतंत्र के कानूनी और संस्थागत ढांचे (Legal and Institutional Framework)
| क्रमांक | कानूनी / संस्थागत प्रावधान | मुख्य विशेषताएँ | आंतरिक लोकतंत्र पर प्रभाव |
| 1️⃣ | जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 (Representation of the People Act, 1951) | – धारा 29A के तहत सभी राजनीतिक दलों को धर्मनिरपेक्षता, समाजवाद और लोकतंत्र के सिद्धांतों का पालन करना आवश्यक। – ‘लोकतंत्र’ शब्द का तात्पर्य दलों के अंदर आंतरिक लोकतंत्र से है। | – कानून में ‘आंतरिक लोकतंत्र’ की परिभाषा स्पष्ट न होने से इसका प्रवर्तन कमजोर। – केवल औपचारिक प्रतिबद्धता तक सीमित। |
| 2️⃣ | निर्वाचन चिह्न (आरक्षण और आवंटन) आदेश, 1968 (Election Symbols (Reservation and Allotment) Order, 1968) | – दल में विभाजन की स्थिति में ECI यह तय करता है कि कौन-सा गुट पार्टी का चिन्ह रखेगा। – निर्णय इस आधार पर होता है कि किस गुट को अधिकांश निर्वाचित विधायकों व पदाधिकारियों का समर्थन प्राप्त है। | – लोकतांत्रिक समर्थन को महत्व देता है, न कि पारिवारिक उत्तराधिकार को। – सत्ता का केंद्रीकरण कम करने में सहायक। |
| 3️⃣ | विधि आयोग की 255वीं रिपोर्ट, 2015 (255th Law Commission Report) | – पार्टी की संरचना, आंतरिक चुनाव और उम्मीदवार चयन के नियम तय करने की सिफारिश। – गैर-अनुपालन की स्थिति में ECI को पार्टी का पंजीकरण रद्द करने की शक्ति देने का सुझाव। | – दलों में संस्थागत लोकतंत्र को बढ़ावा। – जवाबदेही और पारदर्शिता की दिशा में सुधारात्मक कदम। |
| 4️⃣ | संविधान समीक्षा हेतु राष्ट्रीय आयोग (NCRWC), 2001 (National Commission to Review the Working of the Constitution) | – राजनीतिक दलों के पंजीकरण, कार्यप्रणाली और गठबंधन व्यवस्था को नियंत्रित करने के लिए व्यापक कानून बनाने की अनुशंसा। | – राजनीतिक दलों की कार्यप्रणाली को विनियमित कर लोकतांत्रिक मूल्यों को सशक्त करने की दिशा में कदम। |
भारत में आंतरिक दलगत लोकतंत्र की आवश्यकता (Need of Internal Party Democracy in India)
- वंशवाद और भाई–भतीजावाद पर अंकुश (Checks Dynasticism & Nepotism): यह एक ही परिवार या छोटे समूह में सत्ता के केंद्रीकरण को कम करता है और वंशवादी राजनीति पर नियंत्रण रखता है।
वंशवादी राजनीति (Dynastic Politics) का अर्थ है; जब सत्ता और नेतृत्व एक ही परिवार में पीढ़ी-दर-पीढ़ी हस्तांतरित होते हैं, जिससे संबंधित व्यक्ति प्रमुख पदों पर काबिज हो जाते हैं। एक अध्ययन के अनुसार, भारत में 5,294 वर्तमान विधायकों (MPs, MLAs, MLCs) में से 1,174 नेता 989 राजनीतिक परिवारों से आते हैं, और यह प्रवृत्ति लगभग सभी प्रमुख दलों में दिखाई देती है। - लोकतंत्र को सशक्त बनाना (Strengthens Democracy): यह लोकतंत्र के ‘विद्यालय’ के रूप में कार्य करता है; नागरिकों में लोकतांत्रिक संस्कृति और मूल्य विकसित करता है।
- योग्यता आधारित व्यवस्था को बढ़ावा (Promotes Meritocracy): यह समर्पित और लोकप्रिय जमीनी कार्यकर्ताओं को उनकी योग्यता और सदस्य समर्थन के आधार पर ऊपर आने का अवसर देता है।
- प्रतिनिधित्व में सुधार (Enhances Representation): यह सुनिश्चित करता है कि पार्टी अपने सदस्यों और जनता की आकांक्षाओं से जुड़ी रहे, जिससे वह अधिक प्रतिनिधिक (representative) बने।
- दल में एकता को बढ़ावा (Promotes Party Unity): समावेशी निर्णय प्रक्रिया (inclusive decision-making) से अधिक सर्वसम्मति बनती है और गुटबाजी (factional fights) कम होती है।
भारत में आंतरिक दलगत लोकतंत्र की कमी के कारण (Factors Contributing to the Lack of Internal Party Democracy)
- सत्ता का केंद्रीकरण (Concentration of Power): सत्ता अक्सर एक ही नेता या छोटे ‘हाई कमांड’ समूह के हाथों में केंद्रित रहती है। इससे स्थानीय इकाइयों (local units) की भूमिका कमजोर पड़ जाती है और वफादारी (loyalty) को विचारधारा (ideology) से अधिक महत्व दिया जाता है। इसके परिणामस्वरूप असहमति और आंतरिक बहस को दबा दिया जाता है।
- भाई–भतीजावाद और पक्षपात (Nepotism & Favouritism): अधिकांश राजनीतिक दल ‘परिवारिक उद्यमों’ की तरह कार्य करते हैं, जहाँ नेतृत्व वंशानुगत होता है। पार्टी में प्रवेश और अवसरों पर नियंत्रण राजनीतिक परिवारों के हाथ में होता है, जिससे पार्टी की पहचान एक ही परिवार से जुड़ जाती है।
- कानूनी खामियाँ (Legal Loopholes): भारत में ऐसा कोई ठोस कानूनी ढांचा नहीं है जो राजनीतिक दलों के भीतर लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं को अनिवार्य बनाता हो। उम्मीदवार चयन या नेतृत्व चुनाव में आंतरिक लोकतांत्रिक चुनाव की कोई बाध्यता नहीं है, यह एक बड़ी कानूनी कमी है।
- चुनावी कारण (Electoral Considerations): दल अक्सर केंद्रीकृत नियंत्रण को यह कहकर उचित ठहराते हैं कि वंशवादी नेतृत्व पार्टी की एकता और स्पष्ट ब्रांड प्रदान करता है। आंतरिक चुनाव कराने से गुटबाजी बढ़ने और चुनावी संभावनाएँ घटने का डर दिखाया जाता है।
- आंतरिक मांग की कमी (Lack of Demand from Within): भारत की सामंती (feudal) राजनीतिक संस्कृति में परिवार-प्रधान नेतृत्व के प्रति वफादारी को प्रतिष्ठा का प्रतीक माना जाता है। जो लोग सुधार की बात करते हैं, उन्हें निलंबन या निष्कासन (suspension/expulsion) का सामना करना पड़ता है।
भारत में आंतरिक दलगत लोकतंत्र को कैसे प्रोत्साहित किया जा सकता है? (How can Internal Party Democracy be Fostered in India?)
संस्थागत सुधार (Institutional Reforms within Parties)
- दिनेश गोस्वामी समिति (1990) और इंद्रजीत गुप्ता समिति (1998) ने भी दलों के कार्य में पारदर्शिता बढ़ाने की सिफारिश की थी।
- राजनीतिक दलों को अपने पारदर्शी नियम अपनाना चाहिए।
- नियमित आंतरिक चुनाव (internal elections) स्वतंत्र पर्यवेक्षण (independent oversight) के साथ कराए जाने चाहिए।
- सदस्य सहभागिता के लिए विचार-विमर्श मंच (deliberative forums) बनाए जाने चाहिए।
विधायी सुधार (Legislative Reforms)
- जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 में संशोधन कर उम्मीदवार चयन की लोकतांत्रिक प्रक्रिया को अनिवार्य किया जाना चाहिए।
- यदि दल इस नियम का पालन न करें, तो जुर्माना, मान्यता रद्द (de-recognition) या चुनाव चिन्ह की वापसी (symbol withdrawal) जैसी दंडात्मक कार्यवाही की जाए।
नागरिक समाज की भूमिका (Civil Society Interventions)
- सिविल सोसाइटी संगठनों को नियमित रूप से दलों की आंतरिक लोकतंत्र पर रैंकिंग और निगरानी करनी चाहिए।
- जन-जागरूकता अभियान चलाकर पार्टी लोकतंत्र को चुनावी बहस का मुद्दा बनाना चाहिए।
- मतदाताओं के दबाव से दलों को लोकतांत्रिक सुधारों की दिशा में प्रेरित किया जा सकता है।
व्यवहारिक परिवर्तन (Behavioral Shifts)
- दलों को वंशानुगत निष्ठा (lineage) की जगह कार्यकुशलता और सदस्य समर्थन के आधार पर कार्यकर्ताओं को पुरस्कृत करना चाहिए।
- पार्टी सदस्यों को अपने लोकतांत्रिक अधिकारों की मांग और नेतृत्व से जवाबदेही (accountability) सुनिश्चित करने का सामर्थ्य दिया जाना चाहिए।
निष्कर्ष
भारत में आंतरिकदलगतलोकतंत्र (Internal Party Democracy) का अभाव केवल राजनीतिक दलों की समस्या नहीं है बल्कि यह पूरे लोकतांत्रिक तंत्र की गुणवत्ता को प्रभावित करता है। जब राजनीतिक दल स्वयं लोकतांत्रिक नहीं होते, तो वे शासन प्रणाली में भी पारदर्शिता, जवाबदेही और भागीदारी जैसे मूल्यों को प्रभावी रूप से लागू नहीं कर पाते। वंशवाद (dynastic politics), सत्ता का अत्यधिक केंद्रीकरण (concentration of power), और पारिवारिक वर्चस्व (familial dominance) ने भारत की अधिकांश पार्टियों को ‘लोकतांत्रिक संस्थाओं’ के बजाय ‘निजी राजनीतिक संगठनों’ में बदल दिया है। इसका परिणाम यह हुआ कि योग्यता आधारित नेतृत्व (merit-based leadership), नवाचारपूर्ण नीतियाँ (innovative policies) और आंतरिक विमर्श (internal deliberation) जैसी लोकतांत्रिक प्रक्रियाएँ कमजोर हो गई हैं।
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