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भारत एक लोकतांत्रिक गणराज्य है, जिसका शासन तंत्र संघीय और संसदीय प्रणाली पर आधारित है। इसकी राजनीतिक संरचना बहुस्तरीय और विकेन्द्रीकृत है, जिसमें केंद्र और राज्य सरकारों के बीच अधिकारों का स्पष्ट विभाजन है। भारतीय राज्य अपने बहुलवादी समाज की विविधता को प्रदर्शित करता है, जिसमें संस्कृति, भाषा और धर्म की अनेक परंपराएँ समाहित हैं। यही विविधता भारत की सामाजिक और आर्थिक नीतियों की नींव है।
भारत एक संघीय लोकतांत्रिक गणराज्य है। संविधान में केंद्र और राज्यों के बीच शक्तियों का विभाजन किया गया है-
- संघ सूची (Union List) – रक्षा, विदेश नीति, मुद्रा नीति जैसे राष्ट्रीय विषय केंद्र के पास हैं।
- राज्य सूची (State List) – कृषि, स्वास्थ्य, शिक्षा, पुलिस आदि राज्य विषय हैं।
- समवर्ती सूची (Concurrent List) – श्रम, पर्यावरण, सामाजिक सुरक्षा आदि पर केंद्र और राज्य दोनों कानून बना सकते हैं।
इससे भारत की आर्थिक नीति में सहकारी संघवाद (Cooperative Federalism) की अवधारणा विकसित हुई, जहाँ केंद्र और राज्य मिलकर आर्थिक विकास का नेतृत्व करते हैं।
आर्थिक नियोजन की अवधारणा और विकास
आर्थिक नियोजन का अर्थ है, विकास की प्राथमिकताओं को निर्धारित करना और उपलब्ध संसाधनों का सर्वोत्तम उपयोग करके उन्हें प्राप्त करना।
भारत में नियोजन का विचार स्वतंत्रता से पहले ही प्रारंभ हो गया था।
- 1934 में प्रसिद्ध इंजीनियर एम. विश्वेश्वरैया ने अपनी पुस्तक “Planned Economy for India” में वैज्ञानिक आर्थिक नियोजन का सुझाव दिया।
- 1938 में राष्ट्रीय योजना समिति का गठन हुआ, जिसकी अध्यक्षता जवाहरलाल नेहरू ने की।
- 1940 में उद्योगपतियों द्वारा बॉम्बे योजना प्रस्तुत की गई, जिसने औद्योगिक विकास के लिए निजी क्षेत्र के योगदान को रेखांकित किया।
इन प्रारंभिक पहलों ने भारत में योजनाबद्ध विकास के लिए मार्ग प्रशस्त किया।
योजना आयोग की स्थापना (1950)
स्वतंत्रता के बाद भारत में नियोजन को औपचारिक रूप से 1950 में स्थापित योजना आयोग के माध्यम से लागू किया गया। इसका मुख्य कार्य था-
- संसाधनों का आकलन,
- पंचवर्षीय योजनाओं का निर्माण,
- और विकास के लक्ष्यों को प्राप्त करने हेतु रणनीति बनाना।
आयोग सरकार का सलाहकार अंग था, जो समय-समय पर प्रगति का मूल्यांकन कर नीतिगत सुधार सुझाता था।
भारत की पंचवर्षीय योजनाओं का इतिहास
| क्रमांक | अवधि | मुख्य उद्देश्य | प्रमुख पहल | परिणाम |
| 1 | 1951–56 | कृषि, सिंचाई, ऊर्जा | भाखड़ा नांगल बांध | 3.6% वृद्धि |
| 2 | 1956–61 | भारी उद्योग | महालनोबिस मॉडल | औद्योगिक आधार स्थापित |
| 3 | 1961–66 | आत्मनिर्भरता | हरित क्रांति का आरंभ | 2.4% वृद्धि |
| 4 | 1969–74 | स्थिरता व आत्मनिर्भरता | बैंक राष्ट्रीयकरण | 3.3% वृद्धि |
| 5 | 1974–79 | गरीबी उन्मूलन | बीस सूत्री कार्यक्रम | 4.8% वृद्धि |
| 6 | 1980–85 | गरीबी हटाना, आधुनिकीकरण | IRDP योजना | 5.7% वृद्धि |
| 7 | 1985–90 | भोजन, कार्य, उत्पादकता | रोजगार विस्तार | 6% वृद्धि |
| 8 | 1992–97 | उदारीकरण के बाद सुधार | मानव संसाधन विकास | 6.8% वृद्धि |
| 9 | 1997–2002 | न्याय व समानता के साथ विकास | ग्रामीण सशक्तिकरण | 5.4% वृद्धि |
| 10 | 2002–07 | गरीबी घटाना | NREGA (2005) | 7.7% वृद्धि |
| 11 | 2007–12 | समावेशी विकास | शिक्षा, स्वास्थ्य | 7.9% वृद्धि |
| 12 | 2012–17 | तेज़ व टिकाऊ विकास | ऊर्जा, पर्यावरण | 6.8% वृद्धि |
इन योजनाओं ने भारत की अर्थव्यवस्था को कृषि प्रधान से औद्योगिक और सेवा क्षेत्र प्रधान बनाने में अहम भूमिका निभाई।
नई आर्थिक नीति (1991)
1991 में भारत ने एक बड़े आर्थिक संकट का सामना किया। विदेशी मुद्रा भंडार घटने और आयात-निर्यात असंतुलन के कारण तत्काल सुधार आवश्यक हो गया। तब तत्कालीन वित्त मंत्री डॉ. मनमोहन सिंह और प्रधानमंत्री पी.वी. नरसिम्हा राव ने नई आर्थिक नीति (NEP) लागू की।
इस नीति के तीन स्तंभ थे-
- उदारीकरण (Liberalization) – उद्योगों पर सरकारी नियंत्रण में कमी।
- निजीकरण (Privatization) – सार्वजनिक उपक्रमों में निजी निवेश की अनुमति।
- वैश्वीकरण (Globalization) – विदेशी निवेश और व्यापार को प्रोत्साहन।
परिणाम:
- विदेशी निवेश में वृद्धि हुई,
- औद्योगिक उत्पादकता बढ़ी,
- शहरीकरण और तकनीकी विकास को गति मिली।
आलोचना:
- आय और क्षेत्रीय असमानताएँ बढ़ीं,
- कृषि क्षेत्र को अपेक्षाकृत कम लाभ मिला।
मानव विकास सूचकांक (HDI) और सामाजिक विकास
भारत की आर्थिक वृद्धि के बावजूद मानव विकास का स्तर अपेक्षाकृत कम रहा है।
2020 के दशक में भारत का HDI लगभग 0.63 रहा, जो असमानता के समायोजन के बाद घटकर 0.45 तक आ जाता है।
मुख्य चुनौतियाँ:
- लिंग असमानता और पितृसत्तात्मक दृष्टिकोण,
- कम स्वास्थ्य व्यय,
- गरीबी और बेरोज़गारी।
सरकार ने कई सकारात्मक कदम उठाए जैसे;
- शिक्षा का अधिकार अधिनियम,
- मनरेगा (NREGA),
- आरक्षण नीतियाँ और महिला सशक्तिकरण योजनाएँ।
इन पहलों ने सामाजिक समावेशन और समान अवसरों की दिशा में प्रगति की।
नीति आयोग : एक थिंक टैंक के रूप में
2015 में योजना आयोग को समाप्त कर नीति आयोग (NITI Aayog) की स्थापना की गई।
यह एक थिंक टैंक के रूप में कार्य करता है, जो सरकार को विकास रणनीतियों पर सुझाव देता है।
इसकी मुख्य भूमिकाएँ हैं;
- सहकारी संघवाद को बढ़ावा देना,
- राज्यों की भागीदारी सुनिश्चित करना,
- और सरकारी कार्यक्रमों की निगरानी व मूल्यांकन करना।
नीति आयोग के साथ-साथ कुछ महत्वपूर्ण संस्थान-
- GST परिषद (2017)
- अंतर-राज्य परिषद (अनुच्छेद 263)
- RBI मौद्रिक नीति समिति (2016)
- राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (2013)
- राष्ट्रीय हरित अधिकरण (2010)
ये सभी संस्थाएँ मिलकर भारत में संतुलित, पारदर्शी और टिकाऊ विकास को सुनिश्चित करती हैं।
निष्कर्ष
भारत की अर्थव्यवस्था ने योजनाबद्ध विकास से लेकर बाजार-संचालित प्रणाली तक लंबी यात्रा तय की है।
जहाँ पहले लक्ष्य आत्मनिर्भरता था, वहीं आज उद्देश्य समावेशी और टिकाऊ विकास है।
नीति आयोग और आधुनिक आर्थिक नीतियों के माध्यम से भारत न केवल आर्थिक रूप से सशक्त हो रहा है, बल्कि सामाजिक न्याय और समान अवसरों की दिशा में भी निरंतर आगे बढ़ रहा है।
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