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पितृभूमि और पुण्यभूमि: सावरकर की हिंदुत्व परिभाषा

Hindutva by Savarkar

पितृभूमिऔरपुण्यभूमि की अवधारणा विनायक दामोदर सावरकर (वी. डी. सावरकर) द्वारा दी गई थी। यह विचार उनके हिंदुत्व संबंधी लेखन का एक केंद्रीय सिद्धांत है, जिसे उन्होंने अपनी पुस्तक हिंदुत्व: हू इज़ हिंदू?” (1923) में स्पष्ट रूप से प्रस्तुत किया था।

वीर सावरकर एक अत्यंत प्रभावशाली, लेकिन विवादास्पद क्रांतिकारी, विचारक, लेखक और स्वतंत्रता सेनानी रहे हैं। उनका पूरा नाम विनायक दामोदर सावरकर  था।

पितृभूमि और पुण्यभूमि क्या है?

बिंदु / पक्षपितृभूमि (Fatherland)पुण्यभूमि (Holy Land / Sacred Land)
परिभाषावह भूमि जहाँ पूर्वजों का जन्म हुआ होवह भूमि जहाँ धर्म का जन्म या आध्यात्मिक केंद्र स्थित हो
सावरकर की दृष्टि मेंभारत को पितृभूमि मानने वाला व्यक्तिभारत को पुण्यभूमि मानने वाला व्यक्ति
हिंदू की पहचानजिसकी पितृभूमि भारत होऔर जिसकी पुण्यभूमि भी भारत हो
उदाहरण: हिंदू धर्म✔ भारत पितृभूमि है✔ भारत ही पुण्यभूमि भी है (जैसे – वाराणसी, अयोध्या आदि)
उदाहरण: बौद्ध, जैन, सिख✔ भारत पितृभूमि है✔ भारत ही पुण्यभूमि भी है
उदाहरण: इस्लाम✔ भारत पितृभूमि हो सकती है (यदि पूर्वज भारत के हों)✖ पुण्यभूमि नहीं (मक्का-मदीना है, भारत नहीं)
उदाहरण: ईसाई धर्म✔ भारत पितृभूमि हो सकती है✖ पुण्यभूमि नहीं (येरुशलम, वेटिकन आदि)
राजनीतिक उद्देश्यराष्ट्र की सांस्कृतिक एकता को परिभाषित करनाधार्मिक पहचान को राष्ट्र से जोड़ना
समाज पर प्रभावसांस्कृतिक राष्ट्रवाद को बलधर्म के आधार पर राष्ट्र की सीमा तय करने की कोशिश
आलोचनाकेवल पूर्वजों से राष्ट्र की भावना जुड़ी नहीं हो सकतीइससे धार्मिक अल्पसंख्यकों को बाहर रखा जा सकता है

 

हिंदुत्व क्या है?

पितृभूमि और पुण्यभूमि की अवधारणा वी. डी. सावरकर द्वारा दी गई एक सांस्कृतिक-राष्ट्रवादी परिभाषा है, जिसका उद्देश्य “हिंदू” की पहचान को केवल धार्मिक नहीं, बल्कि सांस्कृतिक, ऐतिहासिक और भौगोलिक रूप से परिभाषित करना था।

हिंदू वह है जिसकी पितृभूमि और पुण्यभूमि दोनों भारतवर्ष में हो।

अर्थात्, सावरकर के अनुसार कोई भी व्यक्ति तभी हिंदू कहलाएगा यदि:

  1. उसके पूर्वज भारत से संबंधित हों (पितृभूमि)
  2. उसका धर्म भी यहीं से उत्पन्न हुआ हो (पुण्यभूमि)

सावरकर इस अवधारणा को राष्ट्र और सांस्कृतिक एकता की दृष्टि से प्रस्तुत करते हैं:

  • उन्होंने हिंदू पहचान को राष्ट्रीयता से जोड़ा।
  • वह चाहते थे कि भारत के “राष्ट्रत्व” की परिभाषा सांस्कृतिक और ऐतिहासिक आधार पर हो, न कि केवल नागरिकता के आधार पर।

हिंदुत्व का मुख्य उद्देश्य

  • भारत को एक सांस्कृतिक राष्ट्र माना जाए,
  • जहां हिंदू सभ्यता, संस्कृति और मूल्यों को आधार बनाया जाए,
  • और राष्ट्र को इन सांस्कृतिक आधारों पर एकजुट किया जाए।

यह विचार धर्म से ज़्यादा संस्कृति और राष्ट्रीयता से जुड़ा हुआ है।

आलोचना

  • इस विचारधारा को एक्सक्लूसिव राष्ट्रवाद के रूप में देखा गया, जहाँ गैर-हिंदू समुदायों को राष्ट्र की मुख्यधारा से बाहर कर दिया गया।
  • महात्मा गांधी, नेहरू और अन्य धर्मनिरपेक्ष नेताओं ने इस विचार का विरोध किया।

पुस्तके

  1. The First War of Indian Independence – 1857
    (Originally written in Marathi, later translated into English)
    – Describes the 1857 uprising as the first organized struggle for India’s independence.
  2. Hindutva: Who is a Hindu? (1923)
    – Defines “Hindutva” not just as a religion, but as a cultural and national identity based on common ancestry and sacred land.
  3. Six Glorious Epochs of Indian History
    – Analyzes six heroic periods in Indian history, highlighting the resistance against foreign invasions.
  4. My Transportation for Life (Original: “Majhi Janmathep”)
    – An autobiographical account of Savarkar’s imprisonment in the Cellular Jail, Andaman (1911–1921).

 

 


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