पीएम मोदी ने 2 जुलाई से 9 जुलाई तक अफ्रीकी और दक्षिण अमेरिकी देशों की यात्रा का दौरा शुरू किया है। इस दौरे का उद्देश्य भारत के वैश्विक दृष्टिकोण को आगे बढ़ाना, ग्लोबल साउथ के साथ साझेदारी मजबूत करना और अटलांटिक देशों से संबंधों को सुदृढ़ करना है।
‘ग्लोबल साउथ‘ क्या है?
- ‘ग्लोबल साउथ’ शब्दावली उन देशों के लिए प्रयुक्त की जाती है, जो प्रौद्योगिकी और सामाजिक विकास के मामले में कम विकसित माने जाते हैं। ये देश मुख्यतः दक्षिणी गोलार्द्ध में स्थित हैं। इसमें अफ्रीका, एशिया और लैटिन अमेरिका के देश शामिल हैं।
- ब्रांट रिपोर्ट (Brandt Report) में विश्व के देशों को ग्लोबल नॉर्थ और ग्लोबल साउथ के रूप में वर्गीकृत किया गया था। इस वर्गीकरण के लिए देशों में प्रौद्योगिकी की प्रगति, सकल घरेलू उत्पाद (GDP) जैसे मापदंडों को आधार बनाया गया था।

साझा विकास और दक्षिण–दक्षिण सहयोग: भारत की सक्रियता
- इस यात्रा का प्रमुख उद्देश्य भारत की वैश्विक दक्षिण (Global South) नीति को मज़बूती देना है।
- भारत अफ्रीका और लैटिन अमेरिकी देशों के साथ रणनीतिक गठबंधन को आगे बढ़ाना चाहता है।
- भारत इन क्षेत्रों में चीन और पश्चिमी देशों के प्रभाव को संतुलित करने हेतु अपनी उपस्थिति बढ़ा रहा है।
- भारत खुद को विकासशील देशों की आवाज़ के रूप में स्थापित कर रहा है।
- भारत इन देशों में बुनियादी ढांचे, स्वास्थ्य, कृषि, डिजिटल तकनीक, ऊर्जा और रक्षा क्षेत्रों में निवेश बढ़ा रहा है।
- भारत की मदद से 70 अफ्रीकी देशों में 180 से अधिक विकास परियोजनाएँ संचालित हो रही हैं।
- भारत ने G20 की अध्यक्षता में अफ्रीकी यूनियन को सदस्यता दिलाने में भूमिका निभाई।
- BRICS और IBSA जैसे मंचों के जरिए भारत दक्षिणी गोलार्ध के नेतृत्व को आगे बढ़ा रहा है।
- यह यात्रा 2024 में प्रस्तावित ग्लोबल साउथ समिट 0 की पृष्ठभूमि तय करने के लिए की जा रही है।
- भारत अब पारंपरिक साझेदारों (अमेरिका-यूरोप) से आगे बढ़कर नए साझेदार (गयाना, पराग्वे, ब्राज़ील, घाना आदि) की खोज कर रहा है।
- योग, शिक्षा, डिजिटल पेमेंट (UPI), और आयुर्वेद जैसे क्षेत्रों के ज़रिए भारत अपनी सॉफ्ट पावर बढ़ा रहा है।
‘ग्लोबल साउथ‘ विश्व व्यवस्था को नया आकार दे रहा है?
- आर्थिक संवृद्धि: संयुक्त राष्ट्र व्यापार और विकास (पूर्ववर्ती UNCTAD) की रिपोर्ट के अनुसार वैश्विक व्यापार में 40% हिस्सेदारी ग्लोबल साउथ के देशों की है।
- चीन, भारत जैसे देशों की तीव्र आर्थिक संवृद्धि ने वैश्विक आर्थिक संरचना को बदल दिया है।
- वैकल्पिक संस्थानों को मजबूत करना: जैसे-न्यू डेवलपमेंट बैंक (NDB) और ब्रिक्स आकस्मिक आरक्षित व्यवस्था (CRA) मजबूत बहुपक्षीय संस्था के रूप में उभर रही हैं।
- मुखर कूटनीति: जैसे- ग्लोबल साउथ के देशों के प्रयास से जलवायु परिवर्तन पर COP-27 सम्मेलन में ‘लॉस एंड डैमेज फंड’ की स्थापना की गई।
- ग्लोबल साउथ के देश संयुक्त राष्ट्र और अन्य वैश्विक संगठनों में सुधारों के लिए भी दबाव डाल रहे हैं। इसमें G77 समूह प्रमुख भूमिका निभा रहा है।
- जनसांख्यिकीय बल: ग्लोबल साउथ में दुनिया की अधिकांश आबादी रहती है, जिनमें कई राष्ट्र जनसांख्यिकीय लाभांश की स्थिति में हैं।
वाइब्रेंट साउथ-साउथ कोऑपरेशन जैसी पहलों के माध्यम से सहयोग को बढ़ावा दिया जा रहा है, आदि।
वैश्विक दक्षिण के समक्ष चुनौतियां
- वैश्विक मंचों पर कम प्रतिनिधित्व : उदाहरणार्थ संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता से अफ्रीका और लैटिन अमेरिका को बाहर रखा जाना।
- उच्च सार्वजनिक ऋण: उदाहरणार्थ यूएनसीटीएडी की ‘ए वर्ल्ड ऑफ डेट रिपोर्ट 2024’ के अनुसार, विकासशील देशों में सार्वजनिक ऋण विकसित देशों की तुलना में दोगुनी दर से बढ़ रहा है।
- अप्रचलित वैश्विक शासन और वित्तीय संस्थाएं: उदाहरण के लिए, WTO की अक्रियाशील अपीलीय विवाद निपटान प्रणाली, विश्व बैंक और IMF जैसी ब्रेटन वुड्स संस्थाओं में कम प्रतिनिधित्व।
- जलवायु परिवर्तन के प्रति अनुपातहीन संवेदनशीलता। उदाहरण के लिए, WMO की ‘दक्षिण–पश्चिम प्रशांत क्षेत्र में जलवायु की स्थिति 2023 रिपोर्ट‘ के अनुसार , वैश्विक उत्सर्जन में केवल 0.02% की हिस्सेदारी के बावजूद प्रशांत द्वीप समूह बढ़ते समुद्र स्तर के कारण उच्च जोखिम में हैं।
- वैश्विक उत्तर से विचलन: उदाहरण के लिए लोकतंत्र, मानवाधिकार और जलवायु शासन के एजेंडे आदि की व्याख्या पर आम सहमति का अभाव।
- इसके अलावा, वैश्विक उत्तर के भू-राजनीतिक संघर्ष वैश्विक दक्षिण को प्रभावित करते हैं। उदाहरण के लिए रूस-यूक्रेन संघर्ष के कारण खाद्य और तेल की कीमतों में मुद्रास्फीति हुई है।
भारत के लिए वैश्विक दक्षिण का महत्व
- अंतर्राष्ट्रीय प्रभाव: वैश्विक दक्षिण भारत के अंतर्राष्ट्रीय प्रभाव और उसके आर्थिक परिवर्तन और विकास के लिए एक महत्वपूर्ण आधार है।
- रणनीतिक विचार: वैश्विक दक्षिण के साथ संबंध भारत की “बहुदिशात्मक संरेखण” रणनीति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।
- इससे चीन के प्रभाव को कम करने में भी मदद मिलती है।
- आर्थिक विकास: वैश्विक दक्षिण प्रचुर संसाधन उपलब्ध करा सकता है तथा भारतीय उत्पादों के निर्यात के लिए विशाल बाजार उपलब्ध करा सकता है।

वैश्विक दक्षिण में अब तक भारत की स्थिति
- भारत अपने ऐतिहासिक योगदान, जनसंख्या बल और तेज आर्थिक विकास के दम पर वैश्विक मंच पर उभरता नेतृत्व है।
- 1950 के दशक में भारत ने NAM के ज़रिए स्वतंत्र आवाज़ बनाई, लेकिन 1960 के बाद उसकी भूमिका सीमित हो गई और चीन-रूस ने जगह ले ली।
- 2000 के बाद भारत की विदेश नीति ने नई दिशा पकड़ी।
- G20 की अध्यक्षता और अफ्रीकी संघ को शामिल करना भारत की बड़ी कूटनीतिक जीत रही।
- ISRO, UPI और कोविड वैक्सीनेशन ने भारत की तकनीकी क्षमता को वैश्विक मंच पर स्थापित किया।
इन उपलब्धियों के बावजूद इस क्षेत्र में भारत के समक्ष कई चुनौतिया मौजूद है।
वैश्विक दक्षिण का नेतृत्व करने में भारत के लिए चुनौतियाँ
- वैश्विक दक्षिण एक विविध क्षेत्र है, जिसमें भिन्न-भिन्न आर्थिक, राजनीतिक और सामाजिक हित हैं, जिसके कारण एकीकृत रुख अपनाना कठिन हो जाता है।
- विकास वित्त, बुनियादी ढांचे, व्यापार, परियोजनाओं की डिलीवरी आदि में चीन की प्रतिस्पर्धा और हस्तक्षेप, जैसे बीआरआई, चेक बुक कूटनीति।
- वैश्विक दक्षिण का प्रतिनिधित्व करने का प्रयास करते हुए अमेरिका, रूस जैसी शक्तियों के साथ रणनीतिक साझेदारी को संतुलित करना कूटनीतिक रूप से चुनौतीपूर्ण हो सकता है।
- इसके अलावा, इससे इसकी विश्वसनीयता भी कम हो सकती है, क्योंकि इसे पारंपरिक गुटनिरपेक्ष आंदोलन (एनएएम) के सिद्धांतों से दूर जाने के रूप में देखा जा सकता है।
- भारत की सीमित राष्ट्रीय शक्ति और खराब विनिर्माण उद्योग, साथ ही कम विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी नवाचार और श्रम गुणवत्ता, वैश्विक दक्षिण की जटिलताओं का समाधान करने में चुनौतियां पेश करते हैं।
- भारत को जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता और अपनी जलवायु प्रतिबद्धताओं को पूरा करने में चुनौतियों के लिए आलोचना का सामना करना पड़ रहा है। उदाहरण के लिए पश्चिमी देशों ने भारत की आलोचना की, जब उसने COP 26 में कोयले को “चरणबद्ध तरीके से समाप्त” करने की प्रतिबद्धता का विरोध किया।
आगे की राह
भारत स्वयं को वैश्विक दक्षिण की आवाज के रूप में कैसे स्थापित करने का प्रयास करते रहना चाहिए।
इसके निम्नलिखित मार्ग हो सकते है;
- कनेक्टिविटी और आर्थिक अंतर-संबंधों को बढ़ाना:स्वास्थ्य, आवास, पर्यावरण और शिक्षा सहित विभिन्न क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर बुनियादी ढांचे के विकास से लेकर समुदाय से संबंधित परियोजनाओं को शुरू करके।
- क्षमता निर्माण और वैश्विक दक्षिण के प्रथम प्रत्युत्तरदाता के रूप में उभरना: जैसे भारत-संयुक्त राष्ट्र क्षमता निर्माण पहल, कोविड-19 के दौरान वैक्सीन मैत्री पहल।
- वैश्विक जलवायु एजेंडा का नेतृत्व करना: उदाहरण के लिए अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (आईएसए) और आपदा प्रतिरोधक गठबंधन (सीडीआरआई) का समर्थन करना, साझा लेकिन विभेदित जिम्मेदारियों (सीबीडीआर) का समर्थन करना
- वैश्विक दक्षिण के लिए प्रासंगिक मुद्दों की वकालत: उदाहरणार्थ, अफ्रीकी संघ को जी-20 में शामिल करना।
- बहुपक्षीय संस्थाओं में सुधार : जैसे संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता का विस्तार करने की मांग।
- लोकतंत्र और मानवाधिकार जैसे मुद्दों पर वैकल्पिक तंत्र: जैसे पंचशील, गुजराल सिद्धांत और गुटनिरपेक्ष आंदोलन के सिद्धांत पर आधारित।
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