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एम. एन. श्रीनिवास : book Social Change in Modern India

किताब के बारे में

एम. एन. श्रीनिवास एक बड़े भारतीय समाजशास्त्री थे। उन्होंने Social Change in Modern India नाम की किताब 1963 में लिखी। इसमें उन्होंने बताया कि भारत का समाज कैसे बदलता है। वह कहते हैं कि समाज बदलने के दो बड़े तरीके हैं:

1. संस्कृतिकरण (Sanskritization)
जब कोई छोटी या निचली जाति, ऊँची जातियों के तौर-तरीके अपनाती है। जैसे उनका पहनावा, त्योहार, पूजा-पाठ, खान-पान और रीति-रिवाज़।
इससे उनकी सामाजिक इज़्ज़त बढ़ सकती है, लेकिन पूरे समाज की जाति-व्यवस्था नहीं बदलती।
यह केवल पद-स्तर का बदलाव है, यानी सीढ़ी पर एक पायदान ऊपर चढ़ना।
2. पाश्चात्यकरण (Westernization)
जब भारतीय समाज में पश्चिम (यूरोप) के तौर-तरीके, तकनीक, शिक्षा और प्रशासन आते हैं। लेकिन यह असर हर जगह और हर जाति पर बराबर नहीं पड़ता।
जो लोग पढ़े-लिखे थे, शहर में रहते थे और पहले से ऊँचे पद पर थे, उन्हें इसका सबसे ज़्यादा फायदा मिला।
फिर भी, इससे निचली जातियों को भी कुछ नए मौक़े मिले, और “पिछड़ा वर्ग आंदोलन” शुरू हुआ।

ब्रिटिश शासन का असर

अंग्रेज़ों ने जाति-व्यवस्था को और सख़्त बना दिया।
उन्होंने ब्राह्मणों और धर्म की भूमिका को ज़्यादा महत्व दिया।
इससे समाज में ऊँच-नीच और भी गहरी हो गई।

मुख्य विचार

श्रीनिवास कहते हैं कि समाज में दर्जा (status) सिर्फ पैसे और राजनीति से नहीं आता, बल्कि धार्मिक और सांस्कृतिक चीज़ों से भी तय होता है।
अगर कोई जाति आर्थिक रूप से ताक़तवर बनती है, तो वह ऊँची जातियों की पूजा-पाठ, रीति-रिवाज़ और जीवन-शैली भी अपनाती है।
जैसे: ब्राह्मण पुरोहित बुलाना, बड़े मंदिरों में पूजा करना, संस्कृत त्योहार मनाना, और धार्मिक किताबें पढ़ना।
उन्होंने दिखाया कि भारत में बदलाव एक जैसा नहीं होता,यह जगह, जाति और मौक़ों के हिसाब से अलग-अलग होता है।
उन्होंने यह भी बताया कि पश्चिमी असर को भारतीय समाज ने पूरी तरह कॉपी नहीं किया, बल्कि अपने हिसाब से बदला।
उन्होंने मार्क्सवादी सोच (जो कहती है कि समाज सिर्फ आर्थिक कारणों से बदलता है) को चुनौती दी।

एम. एन. श्रीनिवास

एम. एन. श्रीनिवास भारत के एक प्रसिद्ध समाजशास्त्री थे। उनका जन्म 16 नवंबर 1916 को मैसूर के एक आयंगार ब्राह्मण परिवार में हुआ।
उन्होंने 1936 में मैसूर विश्वविद्यालय से सामाजिक दर्शनशास्त्र में बी.ए. (ऑनर्स) किया। उस समय इस विषय में समाजशास्त्र और सामाजिक मानवशास्त्र भी पढ़ाया जाता था।
इसके बाद वे बंबई विश्वविद्यालय में एम.ए. करने गए और 1938 में“Marriage and Family among the Kannada Castes in Mysore State” विषय पर शोध-निबंध लिखकर एम.ए. समाजशास्त्र की डिग्री प्राप्त की। बाद में यह काम 1944 में किताब के रूप में छपा।
1944 में उन्होंने प्रो. जी.एस. घूर्ये के मार्गदर्शन में दक्षिण भारत केकुर्ग लोगों पर शोध करके पीएच.डी. की उपाधि पाई। इसके बाद वे ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में उच्च अध्ययन के लिए गए, जहाँ वे मशहूर सामाजिक मानवशास्त्रियों ए.आर. रैडक्लिफ-ब्राउन औरई.ई. ईवांस-प्रिचार्ड से प्रभावित हुए।
उन्होंने ऑक्सफोर्ड में Religion and Society among the Coorgs of South India विषय पर डी.फिल. (D.Phil.) की थीसिस लिखी, जो 1952 में किताब के रूप में प्रकाशित हुई। इसी किताब में उन्होंने पहली बार संस्कृतिकरण’ (Sanskritization) का विचार दिया।
एम. एन. श्रीनिवास का निधन 1999 में हुआ।


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