भारतीय डायस्पोरा विश्व के लगभग हर कोने में फैला हुआ है और वह भारत के लिए मात्र एक प्रवासी समुदाय नहीं, बल्कि देश की विदेश नीति, आर्थिक विकास और सांस्कृतिक धरोहर का एक अनमोल हिस्सा है। यह वैश्विक समुदाय भारत की छवि को व्यापक रूप से मजबूत करता है तथा विभिन्न देशों के साथ भारत के संबंधों को सुदृढ करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। 2025 के आंकड़ों के अनुसार, विश्व में भारतीय प्रवासी की संख्या लगभग 3.5 करोड़ के आसपास है, जो विश्व के सबसे बड़े प्रवासी समुदायों में से एक है। इन लोगों ने जहाँ आर्थिक क्षेत्रों में अद्भुत योगदान दिया है, वहीं राजनयिक, सांस्कृतिक और सामाजिक दृष्टि से भी भारत की वैश्विक प्रतिष्ठा को ऊँचा उठाया है।
इतिहास में जब भारत औपनिवेशिक शासन के अधीन था, उस दौरान लाखों भारतीयों ने बेहतर जीवन की तलाश में विभिन्न उपनिवेशों, जैसे मॉरीशस, फिजी, दक्षिण अफ्रीका, कैरेबियन, और दक्षिण-पूर्व एशिया के देशों में पलायन किया। ये प्रवासी न केवल आर्थिक श्रमकार रहे, बल्कि उन्होंने जहाँ भी बसे वहां की संस्कृति, नीति और सामाजिक व्यवस्था में अपनी विशेष छाप छोड़ी। स्वतंत्रता के बाद से, भारतीय डायस्पोरा का स्वरूप बदला है और अब वे उच्च शिक्षा, तकनीकी विशेषज्ञता और व्यवसायों के क्षेत्र में प्रमुख भूमिका निभाने लगे हैं। अब प्रवासी भारतीय मुख्य रूप से अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, संयुक्त अरब अमीरात, और यूरोप में उच्च पदों पर कार्यरत हैं, जो भारत और उन देशों के बीच कूटनीतिक तथा आर्थिक सेतु का काम करते हैं।
आर्थिक दृष्टि से भारतीय डायस्पोरा भारत की अर्थव्यवस्था के स्तंभों में से एक है। प्रत्येक वर्ष विश्वभर से प्रवासी भारतीयों द्वारा भेजी गई रेमिटेंस की राशि भारत की विदेशी मुद्रा भंडार को मजबूत करती है। वर्ष 2024 में यह राशि लगभग 129 बिलियन अमेरिकी डॉलर थी, जो वैश्विक धन प्रेषण में शीर्ष स्थान रखती है। इसके अतिरिक्त, प्रवासी भारतीय वैश्विक व्यापारिक जगत में भारत के उद्यमियों और स्टार्टअप्स के लिए निवेश और सहयोग का रास्ता बनाते हैं, जिससे भारत की वैश्विक आर्थिक साख मजबूत होती है।
राजनयिक क्षेत्र में भारतीय डायस्पोरा की भागीदारी उल्लेखनीय है। विभिन्न देशों में भारतीय मूल के लोग नीति निर्माण, शासन प्रशासन, शिक्षा और विज्ञान के क्षेत्रों में नेतृत्व कर रहे हैं। अमेरिका की पूर्व उपराष्ट्रपति कमला हैरिस, ब्रिटेन के पूर्व प्रधानमंत्री ऋषि सुनक और कनाडा में विभिन्न सांसद भारतीय मूल के हैं। ये नेता न केवल अपने मेजबान देशों के लिए मूल्यवान हैं, बल्कि वे भारत के प्रति स्नेह और सहयोग को भी बढ़ावा देते हैं। प्रवासी भारतीय समुदाय अक्सर मेजबान देशों की सरकारों, विधायिकाओं और सामाजिक संगठनों में भारत के हितों की पैरवी करता है। उदाहरण के लिए, अमेरिका में भारत-अमेरिका परमाणु समझौते को सफल बनाने में प्रवासी भारतीयों ने अहम भूमिका निभाई थी। इसके साथ ही, संयुक्त राष्ट्र और अन्य वैश्विक मंचों पर भी प्रवासी भारतीय भारत के लिए मजबूत समर्थन प्रदान करते हैं।
संस्कृतिक रूप से डायस्पोरा भारत की संस्कृति का विश्व भर में प्रसार करने में मदद करता है। भारतीय पर्व-त्योहार जैसे दीपावली, होली, गुरुपर्व आदि का आगमन और उत्सव मेजबान देशों की सांस्कृतिक विविधता में सम्मिलित हो चुका है। योग और आयुर्वेद के माध्यम से भारत ने एक स्वास्थ्य और जीवन शैली का वैश्विक ब्रांड बनाया है, जिसका श्रेय प्रवासी भारतीयों के सांस्कृतिक समर्पण को जाता है। बॉलीवुड और भारतीय संगीत ने विश्व संगीत मंच पर अपनी गहरी छाप छोड़ी है। भारतीय भोजन भी विदेशों में खूब प्रसिद्धि पा चुका है। इन सब सांस्कृतिक तत्वों ने भारत की सकारात्मक छवि का निर्माण किया है और वैश्विक समुदायों में भारतीयों के लिए सम्मान व सहानुभूति बढ़ाई है।
समसामयिक उदाहरणों में, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा चलाए गए ‘हाउडी मोदी’, ‘विक्टोरिया फाउंडेशन इन ऑस्ट्रेलिया’, ‘मैडिसन स्क्वायर गार्डन कार्यक्रम’ जैसे आयोजन प्रवासी भारतीयों को भारत के विकास और विदेश नीति में सक्रिय भागीदार बनाने की पहल हैं। इन कार्यक्रमों का उद्देश्य प्रवासी भारतीयों को भारत की विविध योजनाओं से जोड़ा रखना और उनकी क्षमताओं व संसाधनों का लाभ देश को पहुंचाना है। इसके अतिरिक्त, डिजिटल इंडिया, मेक इन इंडिया, स्टार्टअप इंडिया जैसे कार्यक्रमों में प्रवासी तत्वों ने निवेश, तकनीकी सहयोग और वैश्विक नेटवर्किंग के माध्यम से योगदान दिया है। कोविड-19 महामारी के दौरान भी भारतीय डायस्पोरा ने भारत की सहायता के लिए महत्वपूर्ण धनराशि और चिकित्सा सामग्री उपलब्ध कराई।
वैश्विक स्तर पर विदेश नीति में भारतीय डायस्पोरा की भूमिका अत्यंत प्रभावशाली रही है। वे भारत के “सॉफ्ट पावर” के महान वाहक हैं, जो अपनी सांस्कृतिक पहचान, व्यावसायिक क्षमता और नेतृत्व के माध्यम से विदेशों में भारत के प्रति सकारात्मक मानसिकता और समर्थन उत्पन्न करते हैं। कई बार, वे मेजबान देशों की राजनीति और अर्थव्यवस्था में ऐसा प्रभाव स्थापित करते हैं जो द्विपक्षीय समझौतों, आर्थिक सहयोग, रक्षा समझौतों और वैश्विक मंचों पर भारत के पक्ष में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। भारत सरकार ने भी पिछले दशकों में डायस्पोरा को ‘स्मार्ट पावर’ के रूप में पहचानते हुए उन्हें विदेश नीति का अभिन्न अंग बनाया है। प्रवासी भारतीयों की संभावनाओं से लाभान्वित होने के लिए लगातार नीति निर्माण, सुविधाएं, और संसाधन उपलब्ध कराए जा रहे हैं।
हालांकि, कुछ चुनौतियां भी विद्यमान हैं। प्रवासी भारतीय समुदाय में सांस्कृतिक, भाषाई और सामाजिक विविधता होने के कारण समन्वय की जटिलताएं होती हैं। कुछ देशों में नस्लवाद, भेदभाव और स्थानीय राजनीतिक संघर्ष प्रवासी भारतीयों की समस्याएं हैं। इसके अतिरिक्त, खालिस्तानवाद जैसे अलगाववादी आंदोलन प्रवासी समुदाय की सकारात्मक छवि को प्रभावित करते हैं। खाड़ी देशों में प्रवासी श्रमिकों की ये लड़ाई कि उन्हें न्यूनतम मजदूरी, मानवीय और सामाजिक सुरक्षा मिले, यह भी एक बड़ा प्रश्न है। इन चुनौतियों को ध्यान में रखते हुए भारत सरकार ने विभिन्न सहायता केंद्र, न्यायिक सहायता, अपने दूतावासों में प्रवासी सेवाएं और विशेष प्रवासी सुरक्षा कार्यक्रम आरंभ किए हैं।
इतिहास में देखें तो भारतीय प्रवासी केवल वहाँ के श्रमिक या कारोबारियों तक सीमित नहीं रहे। महात्मा गांधी ने दक्षिण अफ्रीका में कई वर्ष बिताकर अहिंसा और सत्याग्रह के सिद्धांतों को स्थापित किया, जो भारत की स्वतंत्रता संग्राम की कड़ी में अत्यंत महत्वपूर्ण थे। स्वामी विवेकानंद जैसे महान नेताओं ने विदेशों में भारतीय चिंतन और संस्कृति को बढ़ावा दिया। 20वीं सदी में भारत की स्वतंत्रता आंदोलन में अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा में बसे भारतीय समुदायों ने भी महत्वपूर्ण योगदान दिया। यह परंपरा आधुनिक काल में भी कायम है, जहाँ प्रवासी भारतीय वैश्विक मंचों पर भारत के लिए आवाज उठाते हैं।
भारतीय डायस्पोरा भारत के लिए सिर्फ आर्थिक या सांस्कृतिक नहीं, बल्कि एक मजबूत सामाजिक और कूटनीतिक ताकत भी हैं। वे विश्व की बदलती वैश्विक रीतियों में भारत की भूमिका को मजबूती प्रदान करने में सक्षम हैं। प्रवासी भारतीयों के माध्यम से भारत ने न केवल अपनी सांस्कृतिक विरासत को सहेजा है, बल्कि वैश्विक व्यापार, विज्ञान-प्रौद्योगिकी, शिक्षा और अंतरराष्ट्रीय मामलों में विस्तृत प्रभाव स्थापित किया है। सरकार द्वारा प्रवासी भारतीय दिवस, इ-माइग्रेट सिस्टम, और विभिन्न नेटवर्किंग प्लेटफॉर्म के माध्यम से इनकी भागीदारी को प्रोत्साहित किया जा रहा है। इस प्रकार, भारतीय डायस्पोरा देश के विदेश संबंधों के अघोषित, शक्तिशाली और प्रभावशाली एंबेसेडर के रूप में कार्य करते हैं।
इस प्रकार, भारतीय प्रवासी न केवल भारत की वैश्विक पहचान के स्तंभ हैं, बल्कि वे देश के राजनीतिक-आर्थिक- सांस्कृतिक ताने-बाने को मजबूत करते हुए भारत को विश्व की अग्रणी शक्तियों में से एक बनाने की महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। भारत को चाहिए कि वह इस अनमोल सामाजिक-राजनयिक-आर्थिक संसाधन का समुचित सदुपयोग करे, जिससे वैश्विक परिदृश्य में देश की सशक्त, सकारात्मक और स्थायी छवि स्थापित हो। प्रवासी भारतीयों के साथ निरंतर संवाद, सहयोग, और समन्वय से भारत की विदेश नीति नई ऊँचाइयां प्राप्त कर सकती है और विश्व समुदाय में देश का बलिदान सम्मानित हो सकता है।
Discover more from Politics by RK: Ultimate Polity Guide for UPSC and Civil Services
Subscribe to get the latest posts sent to your email.


