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मिशेल फूको (Michel Foucault) का सत्ता और ज्ञान का सिद्धांत

मिशेल फूको (1926–1984) फ्रांसीसी दार्शनिक और समाजशास्त्री थे। उनकी प्रसिद्ध कृतियाँ हैं – Madness and Civilization (1961), Discipline and Punish (1975) और The History of Sexuality (1976)।
फूको का सबसे प्रमुख विचार सत्ता/ज्ञान” (Power/Knowledge) है। वे कहते हैं कि सत्ता (Power) और ज्ञान (Knowledge) अलग-अलग नहीं बल्कि आपस में गहरे जुड़े हुए हैं। सत्ता नया ज्ञान पैदा करती है और ज्ञान सत्ता को मज़बूत करता है।

फूको के अनुसार:

सत्ता केवल दबाती या रोकती नहीं है बल्कि वह उत्पादक (productive) भी है।
सत्ता यह तय करती है कि समाज में कौन सा ज्ञान “सत्य” माना जाएगा।
ज्ञान और सत्ता का यह चक्र हर जगह काम करता है – अस्पताल, जेल, स्कूल, परिवार और चर्च जैसे संस्थानों में।

सत्ता और ज्ञान का संबंध

पारंपरिक विचारधारा सत्ता को ऊपर से नीचे तक लागू होने वाली शक्ति मानती थी (जैसे राजा, सरकार, क़ानून)। लेकिन फूको कहते हैं कि सत्ता केवल शीर्ष पर नहीं बल्कि सभी स्तरों पर घूमती रहती है।
ज्ञान सत्ता से अलग नहीं हो सकता।
सत्ता यह तय करती है कि क्या जानना योग्य है और किसे जानने का अधिकार है।
जो लोग सत्ता में होते हैं (राजनीतिक, शैक्षणिक या धार्मिक) वही यह ठहराते हैं कि समाज में कौन-सा ज्ञान “सत्य” कहलाएगा।
यह प्रक्रिया केवल बड़े स्तर पर ही नहीं, बल्कि रोज़मर्रा की छोटी-छोटी गतिविधियों में भी दिखती है।

उदाहरण:

डॉक्टर के पास चिकित्सा संबंधी ज्ञान है, इसलिए उसे रोगी पर सत्ता मिलती है।
शिक्षक सही ज्ञान का स्रोत माने जाते हैं, इसलिए विद्यार्थी उनके नियम मानते हैं।
चर्च के पादरी के पास धार्मिक सत्य का अधिकार है, इसलिए लोग उनके आदेशों को मानते हैं।

सत्ता के मुख्य प्रकार (Foucault’s Types of Power)

फूको ने सत्ता के तीन प्रमुख रूप बताए:

1. सार्वभौमिक सत्ता (Sovereign Power)

यह सत्ता राजा या शासक के अधिकार से जुड़ी थी।
इसका प्रतीक था मार डालने या जीने देने का अधिकार।
उदाहरण: पुराने समय में सार्वजनिक फाँसी या यातना, जहाँ लोग राजा की शक्ति को प्रत्यक्ष देखते थे।
आधुनिक युग में यह सत्ता कमज़ोर हो गई और उसकी जगह नए रूप आए।

2. अनुशासनात्मक सत्ता (Disciplinary Power)

यह सत्ता शरीर को मशीन मानकर काम करवाने पर आधारित है।
इसके तीन तत्व हैं:
1. निगरानी (Surveillance) – जैसे कि हर समय देखा जा रहा हो। इससे लोग खुद ही नियंत्रित हो जाते हैं।
2. मानकीकरण (Normalising Judgment) – जो “सामान्य नियम नहीं मानता, उसे “असामान्य” या अपराधी घोषित किया जाता है।
3. परीक्षण और वर्गीकरण (Examination) – व्यक्ति की जांच, अंकन और वर्गीकरण किया जाता है। उदाहरण – स्कूल
छात्र सोचते हैं कि वे हमेशा शिक्षक द्वारा देखे जा रहे हैं।
स्कूल नियम बनाते हैं घंटी पर प्रतिक्रिया देना, हाथ उठाकर बोलना, ड्रेस पहनना।
परीक्षा और रिपोर्ट कार्ड के ज़रिए छात्रों को वर्गीकृत किया जाता है।

3. जीव-सत्ता (Biopower)

यह सत्ता शरीर को जैविक प्रक्रिया (biological process) मानकर आबादी को नियंत्रित करती है।
स्वास्थ्य, स्वच्छता, फिटनेस, यौन व्यवहार जैसे क्षेत्रों में सामान्य शरीर की परिभाषा बनाई जाती है।
लोग खुद ही अपने शरीर को नियंत्रित करते हैं,जैसे स्वास्थ्य नियम मानना, स्वच्छता रखना, डाइट करना।

सत्ता और ज्ञान का व्यावहारिक प्रयोग

फूको ने सत्ता/ज्ञान को सबसे स्पष्ट रूप से अस्पताल, जेल, स्कूल और आश्रम (asylum) में देखा।

अस्पताल/डॉक्टर – डॉक्टर का ज्ञान ही उसे रोगी पर सत्ता देता है। डॉक्टर यह तय करता है कि कौन स्वस्थ है और कौन बीमार।
जेल/पुलिस – अपराधियों को केवल दंड नहीं दिया जाता बल्कि अनुशासन सिखाया जाता है ताकि वे समाज में “सामान्य” जीवन जी सकें।
स्कूल/शिक्षक – शिक्षक और परीक्षाएँ बच्चों को खुद को अनुशासित करने पर मजबूर करती हैं।
चर्च/पादरी – स्वीकारोक्ति (confession) की प्रक्रिया में पादरी ज्ञान भी प्राप्त करता है और व्यक्ति पर सत्ता भी चलाता है।

सत्ता की उत्पादकता

फूको कहते हैं कि सत्ता केवल दमनकारी (repressive) नहीं है।

सत्ता नई वास्तविकता (reality) पैदा करती है।
सत्ता “सत्य” गढ़ती है, जिसे समाज मान लेता है।
उदाहरण: यौनिकता (Sexuality) – कुछ व्यवहारों को “सामान्य” और कुछ को “विकृत” घोषित करना।
पागलपन (Madness) – पहले पागल को कैद किया जाता था, लेकिन बाद में उसे मरीज मानकर इलाज किया जाने लगा।

आलोचना (Critique of Foucault’s Power/Knowledge)

फूको के विचार प्रभावशाली रहे लेकिन उनकी आलोचना भी हुई।

ज्ञान बिना सत्ता?

फूको कहते हैं कि हर ज्ञान सत्ता से जुड़ा है।
आलोचक पूछते हैं: अगर ऐसा है तो सत्य बोलकर सत्ता का विरोध कौन करेगा?
क्या कोई वस्तुनिष्ठ (objective) सत्य है ही नहीं?

प्रतिरोध (Resistance) की समस्या

फूको कहते हैं जहाँ सत्ता है, वहाँ प्रतिरोध है।
लेकिन वे यह स्पष्ट नहीं करते कि प्रतिरोध कैसे होगा।
आलोचकों (जैसे चार्ल्स टेलर, नैन्सी फ्रेज़र) का मानना है कि अगर हर जगह सत्ता है तो उससे बाहर निकलने का रास्ता कहाँ है?

राजनीतिक बदलाव की कमी

फूको यह नहीं बताते कि समाज को कैसे बदला जाए।
उनके विचारों में कुछ हद तक निराशावाद (pessimism) औरनिष्क्रियता (passivity) झलकती है।

निष्कर्ष

मिशेल फूको का सत्ता और ज्ञान का सिद्धांत आधुनिक समाजशास्त्र और दर्शन पर गहरा प्रभाव डाल चुका है। उन्होंने दिखाया कि सत्ता केवल दमनकारी नहीं बल्कि उत्पादक शक्ति है, जो “सत्य” और “ज्ञान” को गढ़ती है।

सार्वभौमिक सत्ता – राजा/राज्य की प्रत्यक्ष शक्ति।
अनुशासनात्मक सत्ता – निगरानी, नियम और परीक्षण के ज़रिए आत्म-नियंत्रण।
जीव-सत्ता – शरीर और आबादी पर नियंत्रण।

फूको ने समझाया कि सत्ता हर जगह है स्कूल, अस्पताल, जेल, चर्च और हम सभी इसे रोज़मर्रा की ज़िंदगी में अनुभव करते हैं। हालाँकि आलोचकों के अनुसार फूको का सिद्धांत प्रतिरोध और वस्तुनिष्ठ सत्य के सवाल पर अधूरा रह जाता है, फिर भी उनका विचार आधुनिक सत्ता-विश्लेषण का एक अनिवार्य हिस्सा है।


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