2025 में डोनाल्ड ट्रंप और शी जिनपिंग के बीच हुई बैठक ने वैश्विक राजनीति में महत्वपूर्ण मोड़ लिया है, और इसने “जी-2” (G2) की अवधारणा को फिर से जीवंत किया है। यह बैठक दुनिया के दो प्रमुख महाशक्तियों अमेरिका और चीन के बीच बहुप्रतीक्षित थी, जो लगभग छह वर्षों के बाद पहली बार मिली थीं। इस बैठक का परिणाम, जो दक्षिण कोरिया के बुसान शहर में आयोजित हुई, ने न केवल दोनों देशों के बीच रणनीतिक संबंधों को पुनः परिभाषित किया बल्कि विश्व के भविष्य के राजनीतिक, आर्थिक, और सुरक्षा आयामों पर भी गहरा प्रभाव डाला है।
ट्रंप और शी जिनपिंग की बैठक का महत्त्व:
बुसान में हुई यह मुलाकात अपने आप में ऐतिहासिक थी। दोनों नेताओं के बीच करीब 1 घंटे 40 मिनट तक बातचीत चली, जिसमें व्यापार, सुरक्षा, तकनीक, जलवायु परिवर्तन, और क्षेत्रीय स्थिरता जैसे मुद्दों पर चर्चा हुई। ट्रंप ने इस मुलाकात को “अत्यंत सफल” करार दिया, और कहा कि इसमें कई महत्वपूर्ण निर्णय लिए गए हैं। खास बात यह रही कि बैठक के बाद दोनों नेताओं ने टैरिफ में 10 प्रतिशत की कटौती का ऐलान किया, जो चीन और अमेरिका के बीच व्यापारिक तनाव को कम करने की दिशा में एक सकारात्मक कदम माना जा रहा है। ट्रंप ने यह भी संकेत दिया कि वह अप्रैल में चीन का दौरा कर सकते हैं, वहीं शी जिनपिंग भी अमेरिका का दौरा कर सकते हैं। यह संकेत दोनों देशों के बीच संवाद और स्थिरता के प्रकार को दर्शाता है, लेकिन साथ ही यह भी सवाल खड़ा करता है कि क्या यह G2 के रूप में वैश्विक प्रभाव का स्थायी समाधान प्रदान कर पाएगा।
G2 की अवधारणा का विकास और उसका संदर्भ:
G2 की अवधारणा का मूल विचार है कि विश्व की दो सबसे बड़ी आर्थिक और सैन्य शक्तियां अमेरिका और चीन सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक क्षेत्रों में प्रमुख भूमिका निभाती हैं। इतिहास में इसकी जड़ें 2010 के दशक से देखी जा सकती हैं, जब दोनों देशों ने अपनी महाशक्ति की भूमिका का व्यापक प्रदर्शन किया। हालांकि, वर्तमान परिदृश्य में यह अवधारणा रोजगार, सुरक्षा, जलवायु, ट्रेड वॉर और तकनीक जैसे आयामों पर महत्वपूर्ण है। ट्रंप की बैठक में इस संकल्पना को एक नई दिशा मिली है, जब उन्होंने इसे “प्रैक्टिकल” कदम के रूप में स्वीकार किया।
आर्थिक दृष्टिकोण से, संयुक्त प्रयास व्यापार और निवेश को स्थिर बनाने का प्रयास हैं, जबकि सुरक्षा आयाम पर दोनों देशों के बीच जमीनी स्तर पर तनाव कम करने और क्षेत्रीय स्थिरता सुनिश्चित करने के प्रयास हो रहे हैं। ट्रंप और शी जिनपिंग की मुलाकात ने संकेत दिए हैं कि दोनों महाशक्तियां अपने-अपने नीतिगत क्षेत्रों में बदलाव कर सकती हैं, लेकिन इसकी असली सफलता इस बात पर निर्भर करेगी कि क्या दोनों पक्ष विश्व शक्ति का तालमेल बनाए रख पाएंगे।

राजनीतिक, आर्थिक और सुरक्षा आयाम:
राजनीतिक स्तर पर, मौजूदा मुलाकात ने यह दिखाया कि दोनों देशों के बीच संवाद की राह अभी भी खुली है, और वे विभिन्न मुद्दों पर सहमति बना सकते हैं। हालांकि, क्षेत्रीय विवाद जैसे ताइवान और दक्षिण चाइना सी की स्थिति अभी भी जटिल है। व्यापारिक संबंधों में टैरिफ में कमी आई है, पर दोनों राष्ट्र अभी भी विभिन्न तकनीक और सुरक्षा मुद्दों पर मतभेद रखते हैं।
आर्थिक रूप से, दोनों देशों ने अपनी घरेलू अर्थव्यवस्था को मजबूत करने की दिशा में कदम बढ़ाए हैं। संयुक्त घोषणाओं के तहत व्यापार विवादों और संरक्षणवादी नीतियों में कमी आने की उम्मीद है। साथ ही, बहुत सारी अनौपचारिक चर्चाओं में जलवायु परिवर्तन, उद्योग 4.0 और वैश्विक चिप और खनिज संसाधनों की आपूर्ति पर भी विचार-विमर्श हुआ है।
सुरक्षा आयाम में, दोनों नेताओं ने क्षेत्रीय स्थिरता पर चर्चा की। वाशिंगटन और बीजिंग के बीच सैन्य अभ्यास, साइबर सुरक्षा, और आतंकवाद से मुकाबले के मुद्दों पर विचार विमर्श जारी है। दोनों ने यह स्वीकार किया कि वैश्विक सैन्य खामियों को दूर करने के लिए मिलकर काम करना जरूरी है। इस मुलाकात में दोनों देशों ने संकल्प व्यक्त किया कि वे अपने-अपने खड़े विवादित क्षेत्रों में संघर्ष टालने के प्रयास करेंगे।
व्यापक वैश्विक प्रभाव:
G2 की अवधारणा का सबसे बड़ा प्रभाव है विश्व व्यवस्था का दो ध्रुवीय स्वरूप। यदि यह प्रणाली स्थायी रूप लेती है, तो एकतरफा अमेरिका या चीन का वर्चस्व कमजोर होगा, और दुनिया एक नई सहअस्तित्व की दिशा में बढ़ेगी। परंतु, यह भी संभावना है कि यह द्विपक्षीयता संघर्ष को जन्म दे सकती है, खासकर जब दोनों शक्तियों के हित निकट नहीं होते।
अंतरराष्ट्रीय संबंधों में इस अवधारणा का असर पूरे एशिया-प्रशांत क्षेत्र, यूरोप, और बाकी विश्व पर पड़ेगा। क्षेत्रीय शक्तियों को भी अपने-अपने राष्ट्रीय हितों को संतुलित करने के लिए चालाकी से काम लेना होगा। आर्थिक बा (इकोनॉमी) पर इसका प्रभाव पड़ेगा, विशेषकर व्यापार नीतियों, निवेश, और तकनीक के क्षेत्र में। सुरक्षा के लिहाज से, दोनों शक्तियों की प्रतिस्पर्धा के चलते क्षेत्रीय विवाद और सैन्य गतिविधियों के वर्तमान स्तर को बढ़ावा मिल सकता है।
आलोचना और चुनौतियां:
G2 की इस अवधारणा की आलोचना भी खूब हो रही है। विश्लेषकों का कहना है कि यह केवल एक आदर्शवादी कल्पना है जो वास्तविकता से दूर है। दोनों शक्तियों के बीच मतभेद और प्रतिस्पर्धा बहुत गहरी और जटिल हैं, जैसे कि ताइवान का सवाल, दक्षिण चाइना सी का क्षेत्र, साइबर जासूसी और तकनीक के क्षेत्र में संघर्ष। दोनों देशों के राष्ट्रीय हित, असमान आर्थिक स्तर और भौगोलिक हित इस अवधारणा को लागू करने में बाधा हैं।
इसके अलावा, कई विशेषज्ञ यह भी मानते हैं कि G2 का प्रयोग विश्व शक्ति बंटवारे का एक छलावा है, जिससे क्षेत्रीय और वैश्विक स्थिरता को खतरा हो सकता है। अमेरिका की फोकस चीन की बढ़ती शक्ति को रोकने की ओर है, जबकि चीन अपने विस्तार को अपने स्वाभाविक अधिकार के रूप में देखता है। इस प्रतिस्पर्धा से वैश्विक अस्थिरता और संघर्ष की संभावना भी बढ़ जाती है।
निष्कर्ष:
अंततः, यह कहा जा सकता है कि ट्रंप और शी जिनपिंग की बैठक ने G2 अवधारणा को एक नई जीवन शक्ति दी है, लेकिन इसकी कारगरता अभी साबित नहीं हुई है। यह दोनों देशों के राजनीतिक, आर्थिक, और सुरक्षा हितों का मिश्रण है, जो आने वाले समय में दोनों महाशक्तियों की चित्रकथा को निर्धारित करेगा। यदि दोनों राष्ट्र अपने-अपने हितों को समर्पित करके संवाद की इस प्रक्रिया को जारी रखते हैं, तो यह निश्चित तौर पर वैश्विक स्थिरता और विकास की दिशा में एक सकारात्मक कदम हो सकता है। परंतु, यदि हितों का टकराव बढ़ता है और प्रतिस्पर्धा जटिल होती है, तो G2 की यह विचारधारा विश्व के लिए नई चुनौतियों और अस्थिरताओं का सूत्रधार बन सकती है। वाकई में यह समझना आवश्यक है कि G2 की संकल्पना कितनी कारगर साबित होगी, यह समय ही बताएगा।
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