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G20 शिखर सम्मेलन में प्रधानमंत्री मोदी का ‘ग्लोबल साउथ’ केंद्रित एजेंडा 

वर्ष 2025 में दक्षिण अफ्रीका के जोहान्सबर्ग में आयोजित G20 शिखर सम्मेलन, वैश्विक चुनौतियों के समाधान और समावेशी विकास की दिशा में भारत की बढ़ती नेतृत्वकारी भूमिका का एक महत्वपूर्ण मंच बना। भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस सम्मेलन में ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ (विश्व एक परिवार है) के दर्शन को आगे बढ़ाते हुए, विशेष रूप से ‘ग्लोबल साउथ’ (विकासशील देशों) की आवश्यकताओं पर केंद्रित छह नई वैश्विक विकास पहलों का प्रस्ताव रखा। ये प्रस्ताव न केवल आर्थिक सहयोग के पारंपरिक ढाँचे से परे जाते हैं, बल्कि स्वास्थ्य, ज्ञान, कौशल, सुरक्षा और पर्यावरण जैसे बहुआयामी क्षेत्रों में सामूहिक कार्रवाई की मांग करते हैं। प्रधानमंत्री मोदी के ये प्रस्ताव एक ऐसे विश्व की परिकल्पना करते हैं जहाँ विकास केवल समृद्धि तक सीमित न हो, बल्कि ‘एकात्म मानववाद’ के दर्शन पर आधारित हो, जिसमें प्रकृति और मनुष्य के बीच सामंजस्य हो।

दर्शन की नींव: एकात्म मानववाद और वैश्विक साझेदारी

प्रधानमंत्री मोदी ने अपने संबोधन में भारत की सभ्यतागत विरासत के मूलभूत सिद्धांतों ‘एकात्म मानववाद’ को वैश्विक विकास के लिए एक मार्गदर्शक दर्शन के रूप में प्रस्तुत किया। यह दर्शन भौतिक प्रगति के साथ-साथ प्रकृति और जीवन के प्रति सम्मान पर बल देता है। उन्होंने तर्क दिया कि वैश्विक समस्याओं का समाधान केवल आर्थिक विकास दर बढ़ाने से नहीं होगा, बल्कि इसके लिए हमें विकास के मापदंडों पर पुनर्विचार करना होगा। इस दर्शन के आधार पर, मोदी ने ग्लोबल साउथ की वास्तविक चिंताओं को संबोधित करने और उन्हें वैश्विक निर्णय लेने की प्रक्रिया में भागीदार बनाने के लिए छह कार्य-उन्मुख पहलों को G20 पटल पर रखा।

विकास के प्रति भारत का समग्र दृष्टिकोण:

प्रधानमंत्री ने यह स्पष्ट किया कि भारत की विकास गाथा और वैश्विक जुड़ाव का मूल आधार आत्म-केंद्रित नहीं, बल्कि समग्र और भागीदारीपूर्ण है। भारत ने G20 की अध्यक्षता (2023) के दौरान अफ्रीकी संघ को समूह का स्थायी सदस्य बनाकर ‘ग्लोबल साउथ’ के प्रतिनिधित्व को मज़बूती दी थी। 2025 के सम्मेलन में, मोदी ने इसी भावना को आगे बढ़ाते हुए, तकनीकी समाधानों और मानव पूंजी के विकास पर ज़ोर दिया, जो अफ्रीका जैसे महाद्वीपों के लिए अत्यधिक प्रासंगिक हैं। उनके प्रस्तावों का सार यह है कि G20 जैसे मंचों को केवल विकसित देशों के हितों का प्रतिनिधित्व नहीं करना चाहिए, बल्कि उन्हें उन दो-तिहाई विकासशील आबादी की आकांक्षाओं को भी पूरा करना चाहिए जो इस समूह के फैसलों से प्रभावित होती हैं।

6 प्रमुख प्रस्तावों का विस्तृत विश्लेषण:

प्रधानमंत्री मोदी द्वारा प्रस्तुत छह प्रस्तावों को प्रमुख रूप से ज्ञान और कौशल, स्वास्थ्य एवं सुरक्षा, तथा पर्यावरण और ऊर्जा में विभाजित किया जा सकता है।

1-G20 ग्लोबल ट्रेडिशनल नॉलेज रिपोजिटरी:यह पहल पारंपरिक ज्ञान प्रणालियों, विशेष रूप से चिकित्सा पद्धतियों, को आधुनिक वैज्ञानिक विधियों के साथ एकीकृत करने और उन्हें सुरक्षित रखने पर केंद्रित है।

मोदी ने तर्क दिया कि पारंपरिक चिकित्सा ज्ञान, जैसे कि आयुर्वेद, केवल भारत तक सीमित नहीं है, बल्कि मानवता के लिए एक अमूल्य धरोहर है। इस पहल का उद्देश्य एक साझा, डिजिटल प्लेटफॉर्म बनाना है जहाँ विभिन्न देशों के सिद्ध पारंपरिक ज्ञान को मानकीकृत तरीके से संरक्षित और साझा किया जा सके। इसका परिणाम यह होगा कि विकासशील देश बिना किसी पेटेंट या बौद्धिक संपदा बाधाओं के इन ज्ञान प्रणालियों का उपयोग कर सकेंगे, जिससे स्वास्थ्य देखभाल तक उनकी पहुँच में सुधार होगा।

2-G20–अफ्रीका स्किल्स मल्टीप्लायर इनिशिएटिव:अफ्रीका महाद्वीप की युवा आबादी और उसकी अपार क्षमता को देखते हुए, यह पहल सबसे महत्वपूर्ण है। प्रधानमंत्री ने अगले दस वर्षों में अफ्रीका में 10 लाख प्रमाणित प्रशिक्षकों को प्रशिक्षित करने का लक्ष्य रखा।

इसका उद्देश्य अफ्रीकी युवाओं को भविष्य की अर्थव्यवस्था के लिए आवश्यक कौशल, विशेष रूप से डिजिटल प्रौद्योगिकियों, हरित ऊर्जा और स्वास्थ्य देखभाल के क्षेत्रों में, प्रदान करना है। यह कौशल विकास न केवल अफ्रीकी देशों को आत्मनिर्भर बनाएगा, बल्कि वैश्विक श्रम बाज़ार में उनकी भागीदारी को भी बढ़ाएगा, जिससे सामूहिक समृद्धि को बल मिलेगा।

3-G20 ग्लोबल हेल्थकेयर रिस्पॉन्स टीम : कोविड-19 महामारी के अनुभवों को ध्यान में रखते हुए, मोदी ने वैश्विक स्वास्थ्य आपात स्थितियों का तेज़ी से जवाब देने के लिए एक स्थायी, बहु-विषयक स्वास्थ्य देखभाल प्रतिक्रिया टीम के गठन का प्रस्ताव रखा।

इस टीम में चिकित्सा विशेषज्ञ, महामारी विज्ञानी और लॉजिस्टिक्स पेशेवर शामिल होंगे, जिन्हें ज़रूरत पड़ने पर तुरंत दुनिया के किसी भी हिस्से में तैनात किया जा सके। इस पहल का उद्देश्य अंतर्राष्ट्रीय स्वास्थ्य नियमों को मज़बूत करना और कमजोर स्वास्थ्य प्रणालियों वाले देशों को महामारी के प्रकोप से प्रभावी ढंग से निपटने में सहायता करना है। यह कदम वैश्विक स्वास्थ्य सुरक्षा के प्रति भारत की प्रतिबद्धता को दर्शाता है।

4-G20 इनिशिएटिव ऑन काउंटरिंग द ड्रग–टेरर नेक्सस : यह पहल वैश्विक सुरक्षा के एक गंभीर खतरे—नशीले पदार्थों की तस्करी और आतंकवाद को वित्त पोषण के बीच के खतरनाक गठजोड़—पर प्रहार करती है। प्रधानमंत्री मोदी ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर समन्वयित कार्रवाई और खुफिया जानकारी साझा करने के लिए एक मजबूत ढाँचा बनाने का आह्वान किया।

उन्होंने विशेष रूप से फेंटेनाइल जैसे सिंथेटिक ड्रग्स के बढ़ते खतरे को रेखांकित किया, जो न केवल सामाजिक स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं, बल्कि आपराधिक और आतंकवादी संगठनों को धन भी प्रदान करते हैं। यह प्रस्ताव इस बात पर ज़ोर देता है कि वैश्विक सुरक्षा और आर्थिक स्थिरता एक-दूसरे से अविभाज्य रूप से जुड़े हुए हैं।

5- G20 क्रिटिकल मिनरल्स सर्कुलैरिटी इनिशिएटिव: वैश्विक ऊर्जा परिवर्तन और उच्च तकनीक वाले उद्योगों के लिए महत्वपूर्ण खनिजों की आपूर्ति श्रृंखला को सुरक्षित करना अनिवार्य है। प्रधानमंत्री ने इन खनिजों की स्थिरता और पहुंच सुनिश्चित करने के लिए चक्रवाती अर्थव्यवस्था दृष्टिकोण का प्रस्ताव रखा। इस पहल में पुनर्चक्रण , शहरी खनन, और सेकेंड-लाइफ बैटरी परियोजनाओं को बढ़ावा देना शामिल है। यह पहल उन विकासशील देशों के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण है जो स्वच्छ ऊर्जा प्रौद्योगिकियों में निवेश करना चाहते हैं लेकिन उन्हें महत्वपूर्ण खनिजों के आयात पर निर्भर रहना पड़ता है। यह पहल वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं के लचीलेपन और स्थिरता को बढ़ाएगी।

6- G20 ओपन सैटेलाइट डेटा पार्टनरशिप: अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी और उपग्रह डेटा को अब तक कुछ ही देशों का विशेषाधिकार माना जाता रहा है। प्रधानमंत्री मोदी ने इस विशेषाधिकार को तोड़ते हुए ग्लोबल साउथ के लिए उपग्रह डेटा को मुक्त और सुलभ बनाने के लिए एक साझेदारी का प्रस्ताव रखा। इस डेटा का उपयोग कृषि, मत्स्य पालन, आपदा प्रबंधन और शहरी नियोजन जैसे क्षेत्रों में किया जा सकता है। यह पहल विकासशील देशों को वैज्ञानिक डेटा-आधारित निर्णय लेने में सशक्त बनाएगी, जिससे वे जलवायु परिवर्तन और प्राकृतिक आपदाओं के प्रति अधिक लचीले बन सकेंगे। यह एक ऐसा कदम है जो भारत की सफल अंतरिक्ष कूटनीति का विस्तार करता है।

प्रस्तावों का सामरिक महत्व और वैश्विक प्रभाव:

प्रधानमंत्री मोदी के ये छह प्रस्ताव केवल घोषणाएँ नहीं हैं, बल्कि ये एक गहरी सामरिक दृष्टि को दर्शाते हैं। ये प्रस्ताव G20 को केवल विकसित और बड़ी अर्थव्यवस्थाओं का समूह न रहकर, एक ऐसा मंच बनाने की दिशा में प्रयास हैं जो वास्तव में विश्व की अधिकांश आबादी की जरूरतों को पूरा करता है।

  • ग्लोबल साउथ का नेतृत्व: इन पहलों के केंद्र में अफ्रीका, एशिया और लैटिन अमेरिका के विकासशील देश हैं। भारत ने इन प्रस्तावों के माध्यम से यह सुनिश्चित किया है कि G20 का एजेंडा केवल यूक्रेन संघर्ष या व्यापार जैसे मुद्दों तक सीमित न रहे, बल्कि मानवीय विकास, जलवायु न्याय और प्रौद्योगिकी के समावेशी उपयोग जैसे मूलभूत विषयों को भी कवर करे।
  • भारत का ‘विश्व गुरु’ दृष्टिकोण: इन प्रस्तावों को भारत की बढ़ती वैश्विक सॉफ्ट पावर के रूप में देखा जा सकता है। पारंपरिक ज्ञान, डिजिटल सार्वजनिक बुनियादी ढाँचे (जैसे UPI) और अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी में भारत की सफलता को अब एक वैश्विक भलाई के रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है। यह दृष्टिकोण भारत को एक “समाधान प्रदाता” के रूप में स्थापित करता है, जो अपनी स्वदेशी सफलताओं को वैश्विक चुनौतियों के समाधान के लिए साझा करने को तैयार है।
  • बहुपक्षवाद का सुदृढ़ीकरण: एक ऐसे समय में जब भू-राजनीतिक ध्रुवीकरण बढ़ रहा है, जैसा कि अमेरिकी बहिष्कार से भी स्पष्ट हुआ, इन प्रस्तावों ने G20 को सर्वसम्मति और रचनात्मक सहयोग की ओर निर्देशित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। भारत ने यह सिद्ध किया कि मतभेदों के बावजूद, जलवायु परिवर्तन, स्वास्थ्य सुरक्षा और कौशल विकास जैसे सामान्य हितों के मुद्दों पर सामूहिक रूप से कार्य करना संभव है।

निष्कर्ष और आगे की राह:

G20 शिखर सम्मेलन 2025 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा प्रस्तुत छह प्रस्ताव वैश्विक शासन के लिए एक नया और समावेशी ब्लूप्रिंट प्रदान करते हैं। ज्ञान के वैश्वीकरण से लेकर सुरक्षा चुनौतियों के सामूहिक समाधान तक, और स्वास्थ्य देखभाल में साझेदारी से लेकर अफ्रीकी महाद्वीप के सशक्तिकरण तक, ये पहलें भारत की ‘विश्व मित्र’ की भूमिका को दृढ़ता से स्थापित करती हैं।

इन प्रस्तावों की वास्तविक सफलता अब G20 सदस्यों के क्रियान्वयन की इच्छा पर निर्भर करेगी। भारत को आगामी ट्रोइका अध्यक्षों, विशेषकर अमेरिका (2026), के साथ मिलकर इन पहलों को ठोस परियोजनाओं और समयबद्ध लक्ष्यों में बदलने के लिए लगातार राजनयिक प्रयास करने होंगे। ‘एकात्म मानववाद’ के दर्शन पर आधारित ये प्रस्ताव न केवल भारत की वैश्विक प्रतिष्ठा को बढ़ाते हैं, बल्कि G20 जैसे मंचों की प्रासंगिकता को भी भविष्य के लिए सुनिश्चित करते हैं, जहाँ मानव-केंद्रित विकास ही एकमात्र मार्ग है।


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