दक्षिण–पूर्व एशिया लंबे समय तक औपनिवेशिक शासन, राजनीतिक संघर्ष, सैन्य तख्तापलट और आर्थिक अस्थिरता से प्रभावित रहा है। ऐसे चुनौतीपूर्ण परिवेश में 1967 में पाँच देशों ने एक ऐसा मंच बनाने का निर्णय लिया जो न केवल आर्थिक विकास को गति दे, बल्कि क्षेत्रीय शांति और स्थिरता का आधार भी बने। इस प्रकार ASEAN—Association of Southeast Asian Nations—का जन्म हुआ। आज ASEAN दस देशों का समूह है जो विश्व की तीव्र गति से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं, वैश्विक सप्लाई चेन और समुद्री व्यापार मार्गों के केंद्र में स्थित है। यह निबंध ASEAN के विकास, उपलब्धियों, चुनौतियों और एशिया के भविष्य में उसकी भूमिका का विश्लेषण प्रस्तुत करता है।
परिचय: एक क्षेत्र, कई पहचानें
ASEAN एक ऐसा क्षेत्रीय संगठन है जिसने “एकता में विविधता” का वास्तविक मॉडल प्रस्तुत किया है। सदस्य देश भाषा, धर्म, राजनीतिक प्रणाली, आर्थिक क्षमता और सांस्कृतिक पहचान—हर स्तर पर अलग-अलग हैं। फिर भी इन विविधताओं के बीच एक ऐसी साझेदारी विकसित हुई है जिसने इसे विश्व के सबसे सफल क्षेत्रीय संगठनों में स्थान दिलाया।
आज ASEAN वैश्विक व्यापार का केंद्र, समुद्री शक्ति, रणनीतिक गलियारा और भू-राजनीतिक स्पर्धा का मैदान दोनों है। इंडो–पैसिफिक के उभार और चीन–अमेरिका प्रतिद्वंद्विता से ASEAN का महत्व और भी बढ़ गया है।
ASEAN का विकास: एक संघर्षशील शुरुआत से प्रभावी मंच तक
1967 की बैंकॉक घोषणा का उद्देश्य था—क्षेत्र को संघर्षों से मुक्त करके आर्थिक विकास को बढ़ावा देना। समय के साथ ASEAN ने कई महत्वपूर्ण पड़ाव पार किए:
1. राजनीतिक स्थिरता का मॉडल
शीत युद्ध काल में ASEAN ने बाहरी शक्तियों के प्रभाव को संतुलित रखने के लिए “neutrality” और “non-interference” की नीति अपनाई। इससे सदस्य देशों के बीच विश्वास बढ़ा।
2. आर्थिक समुदाय की ओर कदम (AEC)
2015 में ASEAN Economic Community की शुरुआत ने इसे एकीकृत बाज़ार में बदलने की दिशा में बड़ा कदम बनाया।
- स्वतंत्र व्यापार
- समान नियम
- निवेश को प्रोत्साहन
इन सबने ASEAN को वैश्विक निवेशकों का केंद्र बनाया।
3. सुरक्षा सहयोग
ADMM-Plus, EAS (East Asia Summit) और अन्य मंचों के माध्यम से समुद्री सुरक्षा, आतंकवाद निरोध और साइबर सुरक्षा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण कार्य किया।
ASEAN की उपलब्धियाँ: सफलता की कहानी
1. आर्थिक प्रगति
ASEAN दुनिया की 5वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुका है।
सदस्य देशों के बीच व्यापार और निवेश ने क्षेत्र की आर्थिक वृद्धि में निर्णायक भूमिका निभाई।
2. शांति और स्थिरता
अतीत में जिस क्षेत्र को तख्तापलटों, विद्रोहों और युद्धों के लिए जाना जाता था, ASEAN ने उसे संवाद और कूटनीति के माध्यम से स्थिरता प्रदान की।
3. आपसी कनेक्टिविटी (Connectivity)
सड़क, वायु और समुद्री कनेक्टिविटी परियोजनाओं ने लोगों और व्यापार को जोड़ा।
डिजिटल कनेक्टिविटी पर भी ASEAN तेजी से कार्य कर रहा है।
4. आपदा प्रबंधन में महत्वपूर्ण योगदान
क्षेत्र प्राकृतिक आपदाओं से सबसे अधिक प्रभावित है। ASEAN Coordinating Centre for Humanitarian Assistance (AHA Centre) ने आपदा प्रबंधन में बड़ी भूमिका निभाई।
5. सामाजिक–सांस्कृतिक पहचान
ASEAN ने अपनी सांस्कृतिक एकता को भी मजबूत किया—शैक्षणिक कार्यक्रम, छात्र विनिमय, सांस्कृतिक उत्सव और पर्यटन इसमें शामिल हैं।
ASEAN की चुनौतियाँ
1. चीन का बढ़ता प्रभाव और दक्षिण चीन सागर विवाद
कई सदस्य देश (वियतनाम, फिलीपींस, मलेशिया) चीन के साथ समुद्री विवाद में हैं। परंतु चीन ASEAN का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार भी है।
इससे ASEAN का सामरिक संतुलन चुनौतीपूर्ण हो जाता है।
2. ‘ASEAN Way’ की सीमाएँ
सहमति और ‘Non-Interference’ का सिद्धांत संगठन को धीमा बनाता है।
- म्यांमार संकट पर निष्क्रियता
- दक्षिण चीन सागर पर साझा रुख बनाने में कठिनाई
ये इसकी प्रमुख कमियाँ हैं।
3. आर्थिक असमानताएँ
सिंगापुर जैसे धनी देशों और कंबोडिया–लाओस जैसे गरीब देशों में बड़ा अंतर है, जिससे एकीकृत बाज़ार की गति धीमी पड़ती है।
4. बाहरी शक्तियों की प्रतिस्पर्धा
अमेरिका, चीन, जापान, ऑस्ट्रेलिया—सभी ASEAN में सक्रिय हैं।
इससे ASEAN देशों पर रणनीतिक दबाव बढ़ता है।
भारत–ASEAN संबंध: ऐतिहासिक, सामरिक और आर्थिक महत्व
भारत की “Act East Policy” ASEAN के बिना अधूरी है।
- ASEAN भारत का चौथा सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार है।
- पूर्वोत्तर भारत की विकास रणनीति ASEAN-केंद्रित है।
- Samudra-shakti, SIMBEX, MILAN जैसे नौसैनिक अभ्यास सुरक्षा सहयोग को मजबूत करते हैं।
- India–Myanmar–Thailand Highway और Kaladan Project कनेक्टिविटी बढ़ाते हैं।
भारत ASEAN के लिए एक संतुलित शक्ति है—चीन के प्रभाव को संतुलित करने में भारत की भूमिका महत्वपूर्ण मानी जाती है।
ASEAN का भविष्य: एक उभरते इंडो–पैसिफिक का केंद्र
1. इंडो–पैसिफिक में सामरिक प्रासंगिकता
इंडो–पैसिफिक का भविष्य ASEAN के बिना अधूरा है।
दुनिया के सबसे महत्वपूर्ण समुद्री मार्ग दक्षिण–पूर्व एशिया से गुजरते हैं।
2. डिजिटल अर्थव्यवस्था और स्टार्टअप इकोसिस्टम
ASEAN दुनिया के सबसे युवा क्षेत्रों में से एक है। 2030 तक ASEAN की डिजिटल अर्थव्यवस्था विश्व की शीर्ष तीन अर्थव्यवस्थाओं में शामिल हो सकती है।
3. कार्बन मुक्त विकास (Green Growth)
सस्टेनेबल एनर्जी, इलेक्ट्रिक परिवहन और नवीकरणीय ऊर्जा के क्षेत्र में ASEAN महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
4. भारतीय और जापानी मॉडल का प्रभाव
भारत और जापान की कनेक्टिविटी परियोजनाएँ ASEAN को एक संतुलित और स्थिर Indo-Pacific का केंद्र बनाती हैं।
निष्कर्ष
ASEAN एक ऐसा संगठन है जिसने विविधताओं को अपनी शक्ति में बदल दिया। यह एशिया के राजनीतिक और आर्थिक मानचित्र का अनिवार्य हिस्सा बन चुका है। यद्यपि इसे चीन के विरुद्ध एकजुट रुख, म्यांमार संकट, आर्थिक असमानताओं और धीमे निर्णय–निर्माण जैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, फिर भी ASEAN के पास क्षेत्रीय सहयोग का एक टिकाऊ मॉडल प्रस्तुत करने की क्षमता है।
21वीं सदी का एशिया संवाद, कनेक्टिविटी और संतुलन की राजनीति का क्षेत्र है—और ASEAN इस नए एशियाई युग का केंद्र बिंदु बनने की पूरी क्षमता रखता है। भारत और ASEAN की साझेदारी न केवल आर्थिक विकास की, बल्कि स्थिर, सुरक्षित और समृद्ध इंडो–पैसिफिक की आधारशिला भी है।
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