भूमिका (Introduction)
21वीं सदी विश्व राजनीति के सबसे तेजी से परिवर्तित होने वाले कालों में से एक है। शीत युद्ध समाप्त होने के बाद दुनिया एक एकध्रुवीय व्यवस्था की ओर बढ़ी, जहाँ अमेरिका और उसके सहयोगी आर्थिक, राजनीतिक तथा सुरक्षा संस्थाओं पर प्रभुत्व रखते रहे। किंतु वैश्विक शक्ति-संतुलन अब बदल रहा है। उभरती अर्थव्यवस्थाएँ, जनसंख्या, संसाधन और तकनीकी क्षमता वाली नई शक्तियाँ विश्व व्यवस्था में अपना प्रभाव बढ़ा रही हैं। इसी पृष्ठभूमि में BRICS—ब्राज़ील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका—ने न केवल एक नई वैकल्पिक आवाज़ को जन्म दिया, बल्कि एक बहुध्रुवीय, समावेशी और न्यायपूर्ण वैशिक व्यवस्था की दिशा भी तय की।
BRICS की अवधारणा केवल आर्थिक सहयोग की नहीं है; यह वैश्विक शासन सुधार, दक्षिण-दक्षिण सहयोग और विकासशील देशों की सामूहिक आकांक्षाओं की अभिव्यक्ति है। यह वह मंच है जिसने विश्व को यह याद दिलाया कि विकास, निवेश और प्रगति का केंद्र अब पश्चिम नहीं, बल्कि उभरता हुआ ‘Global South’ भी है।
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BRICS का उद्भव: विचार से संस्था तक
BRICS का विचार वर्ष 2001 में निवेश विशेषज्ञ Jim O’Neill द्वारा उभरा, जब उन्होंने उभरती चार अर्थव्यवस्थाओं—Brazil, Russia, India और China—को “BRIC” कहा। यह मात्र एक आर्थिक शब्द था, जिसका उद्देश्य उच्च-विकास वाले बाजारों की पहचान करना था।
लेकिन इसे वास्तविक राजनीतिक और संस्थागत रूप 2006 में मिला और 2009 में यह एक औपचारिक मंच बन गया। 2010 में South Africa के शामिल होने के बाद यह BRICS हो गया।
आज यह समूह
•विश्व की 40% जनसंख्या,
•वैश्विक GDP का 30%,
•कुल भूमि क्षेत्र का 26%,
•और वैश्विक व्यापार का बड़ा हिस्सा
प्रतिनिधित्व करता है।
2024–25 में UAE, Egypt, Iran, Ethiopia, Saudi Arabia जैसे देशों के शामिल होने से BRICS एक विस्तारित और शक्तिशाली गठबंधन बन चुका है।
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BRICS की प्रमुख उपलब्धियाँ: Global South की सामूहिक शक्ति का उदय
1. New Development Bank (NDB): पश्चिमी वित्तीय व्यवस्था का विकल्प
2015 में स्थापित NDB BRICS की सबसे बड़ी उपलब्धियों में से एक है।
•इसका उद्देश्य विकासशील देशों को बुनियादी ढाँचे और सतत विकास परियोजनाओं के लिए लचीली और समान वित्तीय सहायता प्रदान करना है।
•यहाँ IMF–World Bank की तरह किसी एक देश का नियंत्रण नहीं।
•यह non-dollar lending की ओर बढ़ते प्रयासों से डॉलर प्रभुत्व को चुनौती देता है।
2. Contingent Reserve Arrangement (CRA): संकट से सुरक्षा
यह व्यवस्था सदस्यों को मुद्रा अस्थिरता और बाहरी आर्थिक झटकों से बचाने के लिए बनाई गई।
•यह IMF के emergency assistance का वैकल्पिक मॉडल है।
•इससे आर्थिक आत्मनिर्भरता बढ़ती है।
3. व्यापार, निवेश और ऊर्जा सहयोग
BRICS व्यापारिक साझेदारी, डिजिटल अर्थव्यवस्था, ई-कॉमर्स और ऊर्जा सुरक्षा जैसे क्षेत्रों में सहयोग बढ़ा रहा है।
•ऊर्जा समृद्ध रूस–ब्राज़ील–सऊदी अरब
•उपभोक्ता शक्ति भारत–चीन
•खनिज और संसाधन संपन्न अफ्रीकी अर्थव्यवस्थाएँ
मिलकर एक बहुआयामी आर्थिक गठबंधन बनाती हैं।
4. Global Governance Reforms: एक न्यायपूर्ण विश्व की दिशा
BRICS संयुक्त राष्ट्र, IMF, WTO जैसे संगठनों में संरचनात्मक सुधार की मांग उठाता है।
•विकासशील देशों का प्रतिनिधित्व बढ़ाने
•वित्तीय संस्थानों में पश्चिमी प्रभुत्व कम करने
•जलवायु न्याय का समर्थन
ये इसकी प्रमुख प्राथमिकताएँ हैं।
5. तकनीकी सहयोग और नवाचार
BRICS देशों ने
•Artificial Intelligence
•डिजिटल भुगतान
•स्वास्थ्य और वैक्सीन
•space cooperation
जैसे क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाया है।
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भारत और BRICS: रणनीतिक, आर्थिक और भू-राजनीतिक महत्व
1. बहुध्रुवीय विश्व में भारत की भूमिका
भारत पारंपरिक रूप से एक संतुलित, स्वतंत्र और बहुध्रुवीय विश्व का समर्थक रहा है। BRICS भारत को यह मंच प्रदान करता है जहाँ वह
•पश्चिमी देशों,
•चीन,
•और Global South
के बीच सेतु की भूमिका निभा सकता है।
2. आर्थिक अवसर
•बड़ा व्यापारिक बाजार
•तकनीकी सहयोग
•निवेश प्रवाह
•कृषि, औद्योगिक और डिजिटल अवसर
भारत की अर्थव्यवस्था BRICS देशों के साथ संरचनात्मक रूप से पूरक है।
3. चीन को संतुलित करने की रणनीति
भारत और चीन के बीच प्रतिस्पर्धा व तनाव के बावजूद BRICS एक ऐसा मंच है
•जहाँ भारत बहुपक्षीय प्रभाव बढ़ा सकता है
•और चीन के प्रभुत्व को संतुलित कर सकता है।
4. डॉलर निर्भरता कम करना
BRICS स्थानीय मुद्रा व्यापार, भुगतान प्रणाली और डिजिटल करेंसी की दिशा में काम कर रहा है।
यह भारत को दीर्घकालिक रूप से अधिक वित्तीय स्वतंत्रता दे सकता है।
5. ऊर्जा और खाद्य सुरक्षा
रूस–ब्राज़ील–सऊदी अरब जैसे देशों के साथ सहयोग भारत की ऊर्जा और खाद्य जरूरतों को स्थिर कर सकता है।
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BRICS के सामने प्रमुख चुनौतियाँ
1. चीन का वर्चस्व
BRICS में चीन की आर्थिक शक्ति अत्यधिक है।
•समूह के भार का अधिकतर हिस्सा चीन ही वहन करता है।
•इससे संस्थागत संतुलन बिगड़ सकता है।
2. सदस्य देशों के बीच राजनीतिक असमानता
लोकतंत्र, अधिनायकवाद, सैन्य शासन—BRICS में सभी तरह की राजनीतिक प्रणालियाँ मौजूद हैं।
•साझा मूल्य और लक्ष्य तय करना कठिन हो जाता है।
3. भारत–चीन तनाव
LAC विवाद का प्रभाव
•संस्थागत विश्वास
•कूटनीतिक संवाद
•संयुक्त परियोजनाओं
पर पड़ता है।
4. विस्तार से उत्पन्न चुनौतियाँ
नए देशों के जुड़ने से
•निर्णय लेना
•प्राथमिकताएँ तय करना
•नेतृत्व की दिशा
और भी जटिल हो गई है।
5. संस्थागत कमजोरी
BRICS के पास SAARC या ASEAN जैसे मजबूत सचिवालय या कानूनी व्यवस्था का अभाव है।
इससे long-term परियोजनाएँ धीमी हो जाती हैं।
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BRICS का वैश्विक प्रभाव: विश्व व्यवस्था का परिवर्तन
1. पश्चिमी प्रभुत्व को चुनौती
BRICS ने विश्व को यह दिखाया कि
•आर्थिक विकास
•तकनीकी नवाचार
•सामाजिक परिवर्तन
अब केवल पश्चिम की कहानी नहीं है।
2. Global South का सशक्तिकरण
BRICS के जरिए
•अफ्रीका
•दक्षिण एशिया
•लैटिन अमेरिका
को एक नई सामूहिक आवाज़ मिली है।
3. De-dollarization की प्रक्रिया
यह वह क्षेत्र है जहाँ BRICS विश्व अर्थव्यवस्था को मूल रूप से बदल सकता है।
NDB का non-dollar lending, लोकल करेंसी ट्रेड खाड़ी और एशियाई देशों को आकर्षित कर रहा है।
4. ऊर्जा और खनिज व्यवस्था में बदलाव
ब्राज़ील, रूस, सऊदी अरब और ईरान जैसे देश BRICS में ऊर्जा उत्पादन की नई धुरी बन सकते हैं।
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सकारात्मक मार्ग आगे: BRICS का भविष्य
BRICS का भविष्य उसकी क्षमता पर निर्भर करेगा कि वह
•संस्थागत सुधार
•संतुलित नेतृत्व
•आर्थिक दृष्टि
•राजनीतिक स्थिरता
को कितना मजबूती से आगे बढ़ा पाता है।
भारत यहाँ
•लोकतांत्रिक मूल्यों
•तकनीकी नवाचार
•मानव पूँजी
•कूटनीतिक विश्वसनीयता
के माध्यम से एक निर्णायक भूमिका निभा सकता है।
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निष्कर्ष (Conclusion)
BRICS केवल पाँच देशों का समूह नहीं है; यह वैश्विक दक्षिण की नई चेतना है। एक ऐसी चेतना जो कहती है कि विकास, अवसर और वैश्विक नेतृत्व का अधिकार सभी देशों को है, न कि केवल कुछ चुनिंदा शक्तियों को।
एक ऐसी व्यवस्था का उदय जिसमें
•समानता
•बहुध्रुवीयता
•न्याय
•समावेश
प्रमुख होंगे।
BRICS एक ऐसा मंच बन सकता है जो आने वाली पीढ़ियों को एक संतुलित, न्यायपूर्ण और सहयोगी विश्व प्रदान करे—एक ऐसी दुनिया जो पूरे मानव समाज के विकास की आकांक्षा को पूरा कर सके।
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